1. फूलमोनी दासी रेप केस:
फूलमोनी दासी बाल विवाह और मेरिटल रेप का मामला था. जो 1889 में हुआ था. 10 साल की बंगाली लड़की फूलमोनी दासी, जिसकी शादी अपने से दुगने उम्र के हरि मोहन मैती से हुई थी. पति द्वारा जबरन शारीरिक संबंध बनाने (रेप) के दौरान उसकी मौत हो गई. 6 जुलाई 1890 को कलकत्ता सेशन में कोर्ट में ये केस चला था. फूलमोनी की मां इस केस में गवाह बनी थीं. क्योंकि उस समय शादी की लीगल ऐज 10 साल ही थी. आईपीसी की धारा 375 के हिसाब से बीवी के साथ जबरन सेक्स रेप में नहींं आता था. आज भी नहीं आता है. जिसकी वजह से धारा 338 के तहत सिर्फ शारीरिक नुकसान का केस बना. और फूलमोनी के पति को महज़ 12 महीने की सजा हुई.इस केस के बाद ही वायसराय लॉड लैंसडाउन ने 9 जनवरी 1891 में प्रस्ताव पारित किया. जिसके तहत सहमति के साथ सेक्स की उम्र 10 से 12 साल की गई. 29 मार्च 1891 में ही सेक्शन 376 में जोड़ा गया कि 12 साल की कम उम्र की लड़की से कोई भी सेक्स करे तो वो रेप माना जाएगा. हालांकि आज सहमति से सेक्स की कानूनन उम्र 16 साल हो गई है. लेकिन 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ हर तरह का (सहमति से किया या जबरन) सेक्स रेप ही माना जाता है.
मथुरा रेप केस:
26 मार्च 1972 में महाराष्ट्र के चंद्रपुर में 2 पुलिसवालों ने आदिवासी लड़की मथुरा का रेप किया. वो अनाथ थी और अपने दो भाइयों के साथ रहती थी. घटना के समय उसकी उम्र लगभग 15 साल थी. मथुरा नूसी नाम की एक महिला के घर काम करती थी, जहां उसे नूसी के भतीजे अशोक से प्यार हो गया. दोनों एक-दूसरे से शादी करना चाहते थे, लेकिन मथुरा के भाई को ये मंजूर नहीं था. उसने पुलिस स्टेशन जाकर अशोक और उसके परिवार वालों के खिलाफ केस किया. जिसमें ये कहा गया कि मथुरा अभी छोटी है और अशोक ने उसको किडनैप किया है. जिसके बाद पुलिस अशोक और उसके परिवार को उठाकर थाने लाई. जांच-पड़ताल के बाद पुलिस ने मथुरा के भाई, अशोक और उसकी फैमिली को बाहर इंतजार करने को कहा. और मथुरा को स्टेशन में अंदर रोक लिया. जब परिवार वाले बाहर इंतजार कर रहे थे, उसी समय अंदर दो पुलिस वाले मथुरा का रेप कर रहे थे. पता चलने पर मथुरा के भाई और अशोक ने थाना जलाने की धमकी दी. जिसके बाद केस रजिस्टर कर लिया गया. 1 जून 1974 में सेशन कोर्ट में केस की सुनवाई शुरू हुई. जिसमें दोनों ही आरोपी गणपत और तुकाराम को बरी कर दिया गया. ये कहते हुए कि मथुरा को सेक्स करने की आदत थी. पुलिस वालों ने मथुरा की मर्जी से उसके साथ सेक्स किया है. इस फैसले के खिलाफ नागपुर बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील की. जहां दोनों को 1 और 5 साल की सजा हुई. लेकिन 1979 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटकर दोनों को बरी कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार मथुरा ने रेप के दौरान विरोध नहीं किया था और ना ही उसके शरीर पर कोई निशान था. इसलिए ये रेप नहीं माना जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने भी ये कहा कि मथुरा को सेक्स की आदत थी. इस जजमेंट के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के लॉ प्रोफेसर उपेंद्र बख्शी, रघुनाथ केलकर और लोतिका सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को खुला ख़त लिखा. जिसमें कहा गया था कि सरडेंर करने का मतलब सहमति नहीं होती है. हो सकता है कि परिस्थिति ऐसी हो कि लड़की ने विरोध न किया हो. पूरे देश में महिला संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का जमकर विरोध किया. इसके बाद रेप कानून में कुछ और बदलाव लाए गए.पहले ऐसे केस में पीड़िता को साबित करना होता था कि उसके साथ रेप हुआ है. लेकिन मथुरा केस के बाद ये ज़िम्मेदारी आरोपी पर डाल दी गई. अब उसे साबित करना होगा कि वो निर्दोष है. साथ ही 1983 में आईपीसी की धारा 376 में a,b,c,d धारा जोड़ दी गईं. जिनके तहत कस्टडी में हुए रेप को भी जुर्म माना गया. पीड़िता के नाम को जाहिर न करने का कानून बना. साथ ही ट्रायल के दौरान कैमरे लगाने का भी प्रावधान बना.
भंवरी देवी रेप केस:
22 सितंबर 1992 को राजस्थान के भटेरी गांव में ये घटना हुई थी. गांव के ही पांच गुर्जरों ने मिलकर इसे अंजाम दिया था. जब ये हुआ भंवरी अपने पति के साथ खेत में काम कर रही थी. तभी 5 लोग आकर उसके पति को मारने लगे. जब भंवरी ने अपने पति को बचाने की कोशिश की तो 3 लोगों ने उसके साथ रेप किया. भंवरी देवी का रेप की बदले की भावना से किया गया था. भंवरी एक दलित सामाजिक कार्यकर्ता थी. इस बार उन्होंने 9 महीने की गुर्जर बच्ची का बाल विवाह होने से रोका था. जिसका बदला उन लोगों ने रेप कर के लिया. इस केस में जांच के स्तर पर भी बहुत लापरवाहियां हुई थीं. नियम के अनुसार रेप के 24 घंटे के अंदर मेडिकल टेस्ट हो जाना चाहिए. पर भंवरी देवी का टेस्ट 52 घंटे में हुआ था और जांच के दौरान शरीर पर बने निशानों को भी नजरअंदाज किया गया था. पुलिस ने भी मामले की रिपोर्ट तो लिख ली थी, लेकिन केस को सीरीयसली नहीं लिया गया. लोकल न्यूज़पेपर में छपने और महिला संगठनों के धरना-प्रदर्शन के बाद केस को सीबीआई को सौंपा गया. आरोपियों को पकड़ने में साल भर लगा. सब पर गैंग रेप का चार्ज लगा. 1993 के दिसंबर में राजस्थान हाईकोर्ट के जज एन.एम. टिबरवाल ने अपने जजमेंट में लिखा कि बदले के लिए भंवरी का रेप किया गया था, इस बात से मैं सहमत हूं. इस केस के दौरान 5 बार हाईकोर्ट के जज बदले. नवंबर 1995 में हाईकोर्ट के जज ने रेप को सिर्फ असॉल्ट का केस मानकर पांचों को सिर्फ नौ महीने की सजा दी. और 25 सालों में अब तक एक बार ही इस केस में सुनवाई हुई है. हाईकोर्ट के जज के कुछ शानदार तर्क ये रहें: गांव का सरपंच रेप नहीं कर सकता. कोई पति चुपचाप खड़ा होकर अपनी पत्नी का रेप होते कैसे देख सकता है? कोई ‘ऊंची जाति’ का व्यक्ति किसी ‘नीची जाति’ की ‘अशुद्ध’ औरत का रेप क्यों करेगा? कोई 70 साल का वृद्ध रेप कैसे कर सकता है? दो रिश्तेदार एक-दूसरे के सामने एक ही औरत से रेप कैसे कर सकते हैं? अलग-अलग जाति के लोग एक साथ रेप कैसे कर सकते हैं?भंवरी देवी रेपकांड के बाद ही 1997 में विशाखा गाइडलाइंस आईं, जिसके तहत वर्कप्लेस पर महिलाओं के साथ हो रही छेड़छाड को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिशा-निर्देश बनाएं. यह नियम हर वर्कप्लेस पर लागू होता है. ड्यूटी के दौरान महिलाओं से किसी भी तरह के शारीरिक छेड़छाड़, जबरदस्ती या रिक्वेस्ट कर सेक्स संबध बनाने के लिए कहना, अश्लील इशारा करना या महिला सहकर्मी को पॉर्न दिखाना इस गाइडलाइंस के अंदर आता है. अगर कोई भी ऐसी हरकत करता है तो आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत उस पर केस दर्ज हो सकता है. साथ ही कार्यवाई भी होगी.निर्भया गैंगरेप- अब बात उस केस की, जिसने देश को झकझोर के रख दिया. सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी इसके बारे में चर्चा हुई. 16 दिसबंर 2012 को दिल्ली में चलती बस में 6 लोगों ने मिलकर लड़की के साथ गैंग रेप किया. अपनी दोस्त को बचाने की कोशिश कर रहे लड़के के साथ मारपीट की. आरोपियों ने रेप के बाद पीड़िता और उसके दोस्त को नाजुक अवस्था में रोड के किनारे फेंक दिया. घटना के 2 दिन बाद सारे आरोपी पकड़ लिए गए. 6 में से 5 अभियुक्त बालिग थे और एक नाबालिग. 29 दिसंबर को निर्भया की इलाज के दौरान मौत हो गई. 3 जनवरी को पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ गैंगरेप, हत्या, अपहरण, डकैती आरोपों के तहत चार्जशीट दाखिल की. फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 4 आरोपियों को मौत की सजा सुनाई. वहीं नाबालिग आरोपी को जुवेनाइल बोर्ड ने दोषी मानते हुए प्रोबेशन होम में तीन साल गुजारने को कहा. दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में फांसी की सजा को चुनौती दे रखी है. जिस पर अभी भी सुनवाई चल रही है.
3 फरवरी 2013 को क्रिमिनल लॉ अम्नेडमेंट ऑर्डिनेंस आया. जिसके तहत आईपीसी की धारा 181 और 182 में बदलाव किए गए. जिसके तहत रेप से जुड़े नियमों को कड़ा किया गया. और रेप करने वाले को फांसी की सजा भी मिल सके, इसका प्रावधान किया गया. 22 दिसंबर 2015 में राज्यसभा में जुवेनाइल जस्टिस बिल पास हुआ. इस एक्ट में प्रावधान किया गया कि 16 साल या उससे अधिक उम्र के बालक को जघन्य अपराध करने पर एक व्यस्क मानकर मुकदमा चलाया जाएगा. रेप, रेप के कारण हुई मृत्यु, गैंग रेप और एसिड-अटैक जैसे महिलाओं के साथ होने वाले अपराध जघन्य अपराध की श्रेणी में आते हैं. इसके अलावा वे सभी कानूनी अपराध जिनमें सात साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान है, जघन्य अपराध की श्रेणी में शामिल हैं.
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