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के.एम. करियप्पा, जिनकी पैरवी में नेहरू से कह दिया गया था, क्यों न किसी अंग्रेज को देश का पीएम बना दें

भारत के पहले चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के 6 रोचक किस्से.

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भारत के पहले चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के.एम. करियप्पा को काफी लोग ब्राउन साहिब भी कहते थे.

आज तक इंडियन आर्मी के सिर्फ दो लोगों को फाइव स्टार रैंक मिली है. एक जनरल मॉनेकशॉ और दूसरे जनरल करियप्पा को.

के.एम. करियप्पा के नाम से मशहूर कोडनान मडप्पा करियप्पा भारत के पहले चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. इनका निकनेम किपर था. 30 साल की सर्विस की उन्होंने. 15 जनवरी 1949 में उन्हें सेना प्रमुख नियुक्त किया गया. इसके बाद से ही 15 जनवरी को ‘सेना दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. करियप्पा राजपूत रेजिमेन्ट से थे. वो 1953 में रिटायर हो गये, फिर भी किसी न किसी रूप में भारतीय सेना को सहयोग देते रहे. 28 जनवरी 1899 को कर्नाटक के कोडागू में उनका जन्म हुआ था. और 15 मई 1993 को उन्होंने आखिरी सांस ली.

आइए जनरल करियप्पा की ज़िन्दगी से जुड़े 6 बेहतरीन किस्से आपको बताते हैं:

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1. बात 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की है. करियप्पा रिटायर हो चुके थे. कर्नाटक के अपने गृहनगर मेरकारा में रह रहे थे. उनके बेटे के.सी. करियप्पा भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट थे, और युद्ध में लड़ रहे थे. पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश करने पर नंदा करियप्पा के विमान पर हमला कर दिया गया. विमान से कूदने पर नंदा को युद्ध बंदी के रूप में पाक सेना ने कब्जे में ले लिया. रेडियो पाकिस्तान ने तुरंत ऐलान किया कि नंदा पाक सेना के कब्जे में हैं, और पूरी तरह सुरक्षित हैं.

तब पूर्व सेना प्रमुख जनरल अयूब खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे. देश के बंटवारे से पहले अयूब खान के.सी. करियप्पा के अंडर काम कर चुके थे.


जब अयूब को पता चला कि करियप्पा का बेटा युद्धबंदी बना लिया गया है, तो उन्होंने तुरंत फोन लगाया और बेटे को रिहा करने की बात कही. बाद में अयूब की पत्नी और उनका बड़ा बेटा अख़्तर अयूब उनसे मिलने भी आये. एयरमार्शल करियप्पा याद करते हैं, "वो मेरे लिए स्टेट एक्सप्रेस सिगरेट का एक कार्टन और वुडहाउस का एक उपन्यास लेकर आए थे."

2. देश की आज़ादी के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने एक मीटिंग ली, जिसमें सारे नेता और आर्मी ऑफिसर मौजूद थे. मीटिंग इस बात के लिए थी कि आर्मी चीफ किसे बनाया जाये. पंडित नेहरू ने कहा कि मैं समझता हूं कि हमें किसी अंग्रेज़ को इंडियन आर्मी का चीफ बनाना चाहिए, क्योंकि हमारे पास सेना को लीड करने का एक्सपीरियंस नहीं है. सभी ने नेहरू का समर्थन किया. क्योंकि किसी में भी नेहरू जी का विरोध करने की हिम्मत नहीं थी. लेकिन अचानक एक आवाज आई, 'मैं कुछ कहना चाहता हूं'. पंडित नेहरू ने कहा कि आप जो कहना चाहते हैं, कहिए. उस व्यक्ति ने कहा,


'हमारे पास तो देश को भी लीड करने का भी एक्सपीरियंस नहीं है तो क्यों न हम किसी ब्रिटिश को भारत का प्रधानमंत्री बना दें.'

सभी लोग शांत हो गये. नेहरू ने पूछा कि क्या आप इंडियन आर्मी के पहले जनरल बनने को तैयार हैं? उस इंसान को एक बहुत अच्छा मौका मिला था कि वो चीफ बनते, लेकिन उन्होंने कहा कि सर हमारे बीच में एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिसको ये जिम्मेदारी दी जा सकती है. उनका नाम है लेफ्टिनेंट जनरल करियप्पा. वह आर्मी ऑफिसर, जिसने आवाज़ उठायी थी, उनका नाम था लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर.


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जनरल करियप्पा

3. जनरल करियप्पा की हिन्दुस्तानी बोली काफी कमज़ोर थी. इसीलिए काफी लोग इन्हें ब्राउन साहिब भी कहते थे. देश आज़ाद होने के बाद उन्होंने आर्मी ट्रूप्स को संबोधित किया. वो कहना चाहते थे कि Country is free and so are all of us. लेकिन इसको उन्होंने हिन्दी में बोला, इस वक्त आप मुफ्त हैं, हम मुफ्त हैं, मुल्क मुफ्त हैं, सब कुछ मुफ्त है. एक और मौके पर फिर से सैनिकों की पत्नियों की गैदरिंग को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, ''माताओं और बहनो, हम चाहता है कि आप दो बच्चे पैदा करो. एक अपने लिए और एक हमारे लिए''. जबकि उनके कहने का मतलब था कि दो बच्चे पैदा करो. एक जो घर पर रह सके और एक जो आर्मी ज्वाइन करे.

4. करियप्पा जब सिकंदराबाद में थे, तब उनकी शादी मुथू माचिया से हुई. उस समय करियप्पा कैप्टन थे. उनकी उम्र उस समय 37 साल थी, और उनकी पत्नी की उम्र लगभग आधी थी.

5. अपने रिटायरमेंट के पहले जनरल करियप्पा ने राजपूत रेजीमेंटल सेंटर विज़िट किया. उनके साथ उनके दोनों बच्चे भी थे. लेकिन उन्होंने बच्चों को एक प्राइवेट कार में कमांडेट के घर पर भेज दिया. कारण था कि ऑफिसर्स मेस में बच्चों को जाने की अनुमति नहीं थी. और करियप्पा नियम को तोड़ना नहीं चाहते थे. हालांकि वह उस समय आर्मी चीफ थे.

6. जनरल करियप्पा के बेटे एयर मार्शल के.सी. करियप्पा ने अपनी किताब में लिखा है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू को इस बात का डर था कि मेरे पिता उनका तख्तापलट कर सकते हैं, इसीलिए नेहरू ने 1953 में मेरे पिता को ऑस्ट्रेलिया का हाई कमिश्नर बनाकर भेज दिया. हालांकि जनरल करियप्पा के नेहरू और इंदिरा के साथ काफी अच्छे संबंध थे, फिर भी नेहरू के मन में एक भय था. इसका एक बड़ा कारण था कि मेरे पिता जी आर्मी के साथ-साथ पॉलिटिकली भी काफी पॉपुलर थे.