पता है , यहां से बहुत दूर, गलत और सही के पार, एक मैदान है.. मैं वहां मिलूंगा तुझे…मुमकिन है आपने ये लाइनें रॉकस्टार फिल्म में जनार्दन उर्फ जॉर्डन के मुंह से सुनी हों. पर ये लाइनें रॉकस्टार फिल्म से कुछ आठ सौ साल पहले लिखी गई थीं.
'रूमी': एक कवि जिनके दीवाने वाशिंगटन से वेटिकन तक फैले हुए हैं
Rumi वाशिंगटन से वेटिकन तक बेस्टसेलर पोएट हैं. माने, 800 साल पुराने, एक फारसी कवि, जिनकी किताबें अमेरिका में बाकी सब से ज्यादा बिकती हैं. अमेरिका ही क्या, भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में रूमी ने अपनी छाप छोड़ी.

ये लाइनें असल में कुछ इस प्रकार थीं.
Out beyond ideas of wrongdoing
and rightdoing there is a field.
I'll meet you there.
When the soul lies down in that grass
the world is too full to talk about.
ये लाइनें हैं फारसी लेखक, मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी की. रूमी वाशिंगटन से वेटिकन तक बेस्टसेलर पोएट हैं. माने, 800 साल पुराने, एक फारसी कवि, जिनकी किताबें अमेरिका में बाकी सब से ज्यादा बिकती हैं. अमेरिका ही क्या, भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में रूमी ने अपनी छाप छोड़ी. रूमी की ऐसी तमाम कहानियां हैं, लाइनें हैं जो हम गाहे-बगाहे सुनते हैं. पर असल में रूमी थे कौन? क्या लिखते थे? और वो कौन सा सवाल था जिसने रूमी को बनाया? समझते हैं.
तोते की कहानीरूमी की कहानी पर चलने से पहले आपको एक तोते की कहानी सुनाते हैं. एक दुकानदार के पास एक बेहद खूबसूरत तोता था. तोता बहुत मीठा गाता था. आने-जाने वाले लोगों से बातें भी करता था. तोता दुकानदार के समय काटने का जरिया तो था ही; साथ-साथ वो दिन भर निगरानी रखता, ग्राहकों से बातें करता और उनका मन बहलाता था. इससे दुकान में बिक्री भी खूब बढ़ती चली गई.
एक रोज दुकानदार तोते की निगरानी में दुकान छोड़कर खाना खाने घर चला गया. इसी बीच एक बिल्ली अचानक चूहे का पीछा करते हुए, दुकान में घुसी. तोते ने डर कर खुद को बचाने की कोशिश की. इसी कोशिश में वो बादाम के तेल की कुछ बोतलें गिरा देता है. पूरा तेल दुकान की फर्श और तोते के ऊपर फैल जाता है.
कुछ देर बाद दुकानदार वापस आता है. पूरी दुकान को तितर-बितर देखता है. वहीं कोने में तोता भी तेल में सना बैठा था. ये सब देखकर दुकानदार अपना आपा खो देता है. दुकानदार तोते के सिर पर जोर से वार करता है, जिसके चलते उसके सिर के पंख साफ हो जाते हैं. बेचारा तोता तेल गिराने के लिए पहले से शर्मिंदा था. मार की वजह से वो और दुखी हो गया. इस घटना के बाद तोते ने बोलना बंद कर दिया. गाना बंद कर दिया.
धीरे-धीरे दुकानदार को भी इस बात का एहसास होने लगा कि तोते को मारकर उसने गलती की. इससे उसका खुशमिजाज साथी तो गया ही, उसकी दुकान का धंधा भी गिरना लगा. इसके बाद दुकानदार के पास सिवाय खुद को कोसने के कुछ न बचा क्योंकि उसने खुद ही अपना धंधा कम कर लिया. खुद अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार ली. वो शोक में कहता,
ये करने से पहले मैंने अपना हाथ क्यों नहीं तोड़ लिया.
इसके बाद दुकानदार हर आने-जाने वाले फकीर को दान देने लगता है. इस उम्मीद में कि उसके दिन बहुरेंगे और तोता फिर से मधुर आवाज में बातें करने लगेगा. इस सब के बाद, एक रोज दुकानदार की किस्मत चमकती है. एक गंजा शख्स उसकी दुकान में आता है. जिसे देख तोता फौरन कहता है,
तुमने भी बादाम के तेल की बोतलें गिराई थीं क्या?
दरअसल तोते को लगा कि गंजे शख्स के सिर पर भी किसी ने वार किया होगा. खैर तोते की इस बात को सुनकर जो चंद ग्राहक दुकान में थे वो मुस्कुराने लगे. एक ग्राहक ने तोते से कहा
प्यारी चिड़िया, कभी दो कामों की तुलना मत करो. किसी को कभी खुद की तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए. सतह पर वो कुछ नजर आते हैं,भीतर से कुछ और.
रूमी की इस कहानी का जिक्र मरयम माफी अपनी किताब ‘द बुक ऑफ रूमी’ में करती हैं. ये कहानी बताती है कि रूमी के लिखने का तरीका कितना सरल था. कहानी कहीं से शुरू होकर कहीं खत्म होती है और एक बड़ी सीख देकर जाती है. उनकी कुछ कविताएं बेहद गहरी भी रहती थीं. मसलन उनकी एक लाइन कि परवाने को शमा की सुंदरता से आंका जाना चाहिए.
या आप जिसे खोज रहे हैं, वो भी आपको खोज रहा है.
या दूसरों की कहानियों से संतुष्ट मत हो. अपने मिथक खुद बनाओ.
या अगर तुम हर एक रगड़ से झल्लाओगे तो शीशा चमकेगा कैसे?
या अपने शब्दों को ऊंचा करो ना कि अपनी आवाज को. बारिश से फूल खिलते हैं ना कि बिजली कड़कने से.
या ईश्वर को लेकर रूमी के विचार ही ले लीजिए, वो कहते थे कि शांति ही ईश्वर की भाषा है. बाकी सब बस खराब अनुवाद है. रूमी के विचारों और लाइनों के बारें कितनी भी बात की जा सकती है. पर ये सब लिखने वाले रूमी थे कौन? अमेरिका से लेकर भारत तक में जिनके दीवाने हैं.

कुछ एक सदी पहले की बात है. ज्यादातर ईरानी लोगों का सरनेम नहीं होता था. यानी आम लोगों का एक ही नाम होता था, सिवाय कुछ खास तबके के. जिनका नाम अच्छा-खासा लंबा होता था. नाम में होता था टाइटल, पहला नाम, पिता या दादा का नाम, पेशा, जगह और पीढ़ी. मसलन रूमी के नाम को ही ले लीजिए. सिर्फ नाम से ही रूमी के बारे में बहुत कुछ जानने मिल जाता है. इनका पूरा नाम था- मौलाना जलालुद्दीन मुहम्मद इब्न मुहम्मद इब्न हुसैनी खतीबी बाल्ख़ी रूमी.
इनके नाम को समझें तो सूफी संत होने के नाते इन्हें मौलाना कहा जाता था. इनका टाइटल था- जलालुद्दीन यानी आस्था की महिमा; इनके पिता और दादा थे, मुहम्मद और हुसैन; पेशा था प्रवचन देना यानी खातीबी; और ये बल्ख से आते थे इसलिए बाल्खी. रूम या रोमन एनाटोलिया में जीने और मरने की वजह से इन्हें रूमी कहा गया. मौलाना जलालुद्दीन मुहम्मद इब्न मुहम्मद इब्न हुसैनी खतीबी बाल्खी रूमी. लेकिन फारसी और अफगानी लोग रूमी को जलालुद्दीन बाल्खी कहते थे. कोल्मन बार्क्स अपनी किताब, एसेंशियल रूमी में लिखते हैं,
उनका जन्म 30 सितंबर साल 1207 को अफगानिस्तान के बाल्क में हुआ था. जो कि तब फारस साम्राज्य का हिस्सा था. रूमी का मतलब होता है रोम के अनातोलिया से ताल्लुक रखने वाला. रूमी के पिता धार्मशास्त्री थे. जिन्हें स्कॉलर्स का सुल्तान कहा जाता था. शुरुआती दिनों से ही रूमी पिता की वजह से धार्मिक माहौल में पले. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. साल 1215 से 1220 के बीच मंगोल सेना के हमले के डर से परिवार को घर छोड़ना पड़ा. इस यात्रा में वो मक्का, बगदाद और डेमेस्कस जैसे पुराने शहरों से गुजरे. जहां युवा दिनों में रूमी ने कई संस्कृतियों और धर्मों को देखा.
कोल्मन बार्क्स आगे लिखते हैं
अजनबी का सवालयात्रियों की कहानी और सूफी संवादों ने उन्हें आकार दिया. अंत में परिवार आज के तुर्किए के कोन्या में सेटल हो गया. यहीं रूमी के स्कालर से सूफी बनने की शुरुआत होती है. जिनकी शिक्षाएं कहानियों और कविताओं की सूरत में सदियां और सीमाएं पार करती हैं. पिता के मरने के बाद रूमी ने शेख के पद को संभाला और शिक्षा के काम में लगे रहे. काफी समय तक जीवन आम धर्मशास्त्री की तरह ही रहा लेकिन फिर एक अजनबी ने रूमी के सामने एक सवाल रखा. जिसने उन्हें बदल दिया.
साल 1244 में रूमी की मुलाकात एक अजनबी से होती है. जो उनके सामने एक सवाल रखता है. ये यायावर थे तबरीज के शम्स. बकौल कोल्मन बार्क्स,
सवाल ऐसा था कि सुनकर धर्मशास्त्री जमीन पर गिर पड़े. हालांकि सवाल क्या था इस बारे में पुख्ता सोर्स तो नहीं मिलते. पर मौजूद सोर्सेज के मुताबिक, सवाल था कि बड़ा कौन पैगंबर मुहम्मद या सूफी बयाज़िद बस्तमी ? क्योंकि बस्तमी ने कहा था कि मेरी महिमा कितनी महान है. वहीं प्रॉफेट का कहना था कि हम आपको वैसे नहीं जानते जितना जानना चाहिए. कहें तो बस्तनी खुद में ही संतुष्ट थे. इस सवाल की गंभीरता को समझने पर रूमी जमीन पर गिर पड़े. आखिर में उन्होंने जवाब दिया कि मुहम्मद ज्यादा महान थे क्योंकि बेस्तमी परमात्मा के ज्ञान का एक घूंट लेने के बाद ही रुक गए. कई दिनों तक मुद्दे पर बहस चली. दोनों ने दुनिया से अलग होकर, महीनों साथ बिताए.
बहरहाल इस कहानी के अलग-अलग वर्जन सुनने मिलते हैं. माना जाता है कि इसके बाद रूमी के शिष्य जो उन्हें कभी गुरु मानते थे. अब उनके लिए वो अजनबी से थे. उनके लेक्चर कविताओं में बदल गए. शम्स और रूमी की दोस्ती गहरी होती गई. दोनों को अलग करना मुश्किल हो गया. जिसकी वजह से रूमी के शिष्यों को लगा कि वो उन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. इस दिक्कत को भांपते ही, शम्स वैसे ही संजीदगी से गायब हो गए जैसे आए थे. रूमी पर चालीस साल तक शोध करने वाले स्कालर एनेमारी शिमल, मानते हैं कि शम्स के अचानक गायब होने के बाद ही रूमी कवि में बदल गए. संगीत सुनने लगे और गाने लगे.
खैर फिर मालूम चला कि शम्स डेमेस्कस में हैं. रूमी ने अपने बेटे को सीरिया भेजा ताकि दोस्त को कोन्या वापस लाया जा सके. जब दोनों दूसरी बार मिले तो एक दूसरे के पैरों में गिर गए. ऐसे कि किसी को पता ना चले कि प्रेमी कौन है और प्रेम किया किसे जा रहा है. खैर शम्स रूमी के घर में रहे, एक लड़की से उन्होंने शादी की. फिर रूमी और शम्स के बीच बातों या सोहबत का सिलसिला शुरू हुआ. फिर से रूमी के शिष्य जलने लगे. साल 1248 की एक रात रूमी और शम्स बात कर रहे थे. तभी शम्स को पिछले दरवाजे पर बुलाया गया और फिर उन्हें कभी नहीं देखा गया.

माना जाता है कि रूमी के बेटे के साथ मिलकर शिष्यों ने उसकी हत्या कर दी. खैर इस दोस्ती की बदौलत शायद रूमी वो बन पाए जिन्हें आज हम जानते हैं. शम्स के फिर गायब होने के बाद रूमी ने दीवान-ए-शम्स-तबरीजी लिखी. जिसमें प्रेम के बारे में एक से बढकर एक अद्भुत रचनाएं शामिल थीं.
उन्होंने अपनी सबसे प्रसिद्ध रचनाएं मसनवी भी लिखीं जो कि छह भागों में हैं. उनकी सबसे प्रसिद्ध कहानियों में से एक कहानी तोते और व्यापारी की भी है. कहानी कि एक व्यापारी के पास पिंजरे में एक तोता था. एक रोज व्यापारी भारत की यात्रा पर जा रहा था. तब उसने अपने तोते से पूछा कि वो उसके लिए क्या गिफ्ट लेकर आए. तोते ने कहा कि अगर व्यापारी को उसके साथी तोते दिखें तो उन्हें कहे, मैं उन्हें याद करता हूं. व्यापारी ने ऐसा ही किया. जब वो भारत पहुंचा तो साथी तोते को ये संदेश दिया.
ये सुनते ही तोता बेजान गिर पड़ा. जब व्यापारी वापस आया तो उसने अपने तोते को ये बात बताई. ये सुनते ही व्यापारी का तोता भी पिंजरे में गिर गया. घबराकर व्यापारी दरवाजा खोल देता है. और तोता पिंजरे से उड़ जाता है. तोते ने सीख लिया था कि आजादी का रास्ता शांति, स्थिरता और समर्पण से होकर जाता है. ये कहानी सिर्फ तोते की नहीं है, बल्कि इंसानों की भी है.
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