अल्बर्ट आइंस्टीन, मार्क जकरबर्ग और नैटली पोर्टमैन ये तीनों अपने फील्ड के धुरंधर माने जाते हैं. लेकिन, इन तीनों में एक बात कॉमन है. वो है इन का धर्म. ये तीनों यहूदी धर्म से आते है. दुनिया भर में इस धर्म को मानने वालों की संख्या एक प्रतिशत से भी कम है. लेकिन, चाहे नोबेल प्राइज जीतने की बात हो या दुनिया की महान कंपनियां बनाने की बात या फिर अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाने की बात, यहूदी हर मामले में आगे हैं.
कहानी यरूशलम की, जो इस्लाम, यहूदी और ईसाई; तीनों के लिए पवित्र है
Jerusalem, जो कभी यहूदियों का पवित्र नगर था, पहले ईसाइयों और फिर इस्लाम के प्रभाव में आया. हर नए विजेता ने इसे अपने धर्म के अनुसार परिभाषित किया.

आज से लगभग 4 हज़ार साल पहले की बात है. माने ये सिंधु घाटी सभ्यता के आख़िरी दौर और वैदिक काल के प्रारंभिक दौर या उससे थोड़ा पहले की बात. आज के समय में जो इराक देश, वहीं मौजूद सुमेर नाम की जगह में जन्म हुआ हज़रत इब्राहिम नाम के एक शख़्स का. हज़रत इब्राहिम के नाम की गंभीरता को आप इस से समझिए कि आज के समय के तीन मुख्य धर्म यहूदी, ईसाई और इस्लाम तीनों की शुरुआत का एक कॉमन बिंदु हज़रत इब्राहिम ही हैं. और इसलिए इन तीनों धर्मों को ‘Abrahamic religions’ या ‘Ibrahimic religions’ भी कहा जाता है. इन तीन धर्मों में यहूदी धर्म सबसे पुराना है. इसके बाद आया ईसाई धर्म और फिर आया इस्लाम. इन तीनों धर्म के धागे आपस में इस क़दर नत्थी हैं कि किसी एक के इतिहास को बाक़ी दोनों के इतिहास में झांके बग़ैर समझा ही नहीं जा सकता.
अब हज़रत इब्राहिम पर वापस लौटते हैं. उनकी कई संतानें हुईं. लेकिन, यहूदियों के इतिहास को समझने के लिए इनके 2 बेटों का ज़िक्र महत्वपूर्ण है. पहले का नाम था इस्माइल और दूसरे का इस्हाक़ था. इस्माइल का नाता इस्लाम धर्म से है. क्योंकि, इस्माइल की परंपरा में ही कई हज़ार साल बाद जन्म हुआ पैगंबर मोहम्मद साहब का. हज़रत इब्राहिम के दूसरे बेटे इस्हाक़ का नाता है यहूदी धर्म से.
दरअसल इस्हाक़ का एक बेटा हुआ जिसका नाम था याक़ूब. याक़ूब के दो और नाम भी है. जैकब और इजरायल. इजरायल शब्द का मतलब है ‘टू रूल’ (To Rule) यानि जिसका जन्म शाषन करने के लिए हुआ हो. आज जो यहूदियों का सबसे बड़ा देश इजरायल है उसका नाम इन्हीं के नाम पर रखा गया है. याक़ूब या जैकब की बारह संतानें हुईं. इन बारह संतानों ने बारह अलग-अलग क़बीले बनाए. इन बारह में से एक संतान सबसे प्रमुख हुआ जिसका नाम था ‘यहूदा’. और इसी यहूदा के वंशज आगे चलकर यहूदी कहलाए.
हज़रत मूसायहूदियों के इतिहास को समझने के लिए एक और शख़्स की कहानी जानना ज़रूरी है. इनका नाम था हज़रत मूसा. हज़रत मूसा का यहूदी धर्म में वही महत्व है जो ईसाई धर्म में ईसा मसीह का और इस्लाम में पैगंबर मोहम्मद साहब का है. याकूब की संतानों ने जो बारह क़बीले बनाए थे. उन बारह क़बीलों की आपस में लड़ाई हुई और ये इजरायल से भागकर मिस्र में जा बसे. फिर मिस्र में ही जन्म हुआ हज़रत मूसा का. मिस्र में यहूदी लोग बेहद बुरी हालत में जी रहे थे. यहां वो एक रिफ्यूजी थे. और उनके साथ वहां गुलामों जैसा बर्ताव होता था. फिर एक समय ऐसा आया कि मिस्र के राजा को ऐसा लगा कि हमारे राज्य में यहूदियों की संख्या बढ़ रही है. ये लोग आने वाले वक़्त में खतरा बन सकते हैं. इसलिए राजा ने आदेश दिया कि सभी यहूदी लड़कों को जान से मार दिया जाए. यहां तक कि जो यहूदी लड़के बिल्कुल नवजात हैं उन्हें भी मार दिया जाए. उस वक़्त हज़रत मूसा भी बच्चे ही थे.
लेकिन, हज़रत मूसा की मां ने किसी तरह उन्हें छिपा लिया. बाद में हज़रत मूसा को मिस्त्र के ही राजा के परिवार ने गोद ले लिया. क्योंकि, वो इस बात से अनजान थे कि मूसा एक यहूदी हैं. लेकिन, हज़रत मूसा को जल्द ही पता चल गया कि वो एक यहूदी हैं. एक दिन जब उन्होंने मिस्र में एक यहूदी गुलाम पर उसके मालिक द्वारा ज़ुल्म होते देखा तो उनसे रहा नहीं गया. उन्होंने उस मालिक की हत्या कर दी और मिस्र से भाग गए. उन्हें लगा कि इसके बाद उनका भेद खुल जाएगा और सब जान जाएंगे कि वो एक यहूदी हैं.

मिस्र से भाग कर उन्होंने लाल सागर पार किया और पहुंचे मिस्र के माउंट सिनाई. ऐसी मान्यता है कि उसके बाद उन्हें एक रोज अपने ईश का सन्देश मिला
तुम इस तरह भाग नहीं सकते. तुम्हारा जन्म एक ख़ास काम के लिए हुआ है. तुम्हें अपने सभी यहूदी भाई-बहनों को मिस्र से बाहर निकालना है.
ये फरमान मिलने के बाद वो वापस मिस्र लौटे और राजा को इस बारे में बताया. कहा कि वो इस मिस्र से सभी यहूदियों को लेकर दूसरी जगह जाना चाहते हैं. शुरुआत में राजा इसके लिए तैयार नहीं हुआ. लेकिन, कहते हैं उसके बाद मिस्र में महामारी फैलने लगी. लोग मरने लगे. फिर, राजा को लगा कि ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि उसने यहूदियों के ईश का आदेश मानने से इंकार किया था. उसके बाद उसने हज़रत मूसा को सभी ग़ुलाम यहूदियों को मिस्र से ले जाने पर सहमति दे दी.
हज़रत मूसा सभी यहूदियों को लेकर मिस्र से निकल गए. रास्ते में समुद्र पड़ता था. ऐसी मान्यता है कि हज़रत मूसा ने अपनी शक्तियों से समुद्र के दो भाग कर दिए और फिर अपने सभी लोगों को लेकर वो समुद्र पार कर वापस पहुंचे माउंट सिनाई. कहते हैं यहां दोबारा ईश्वर ने हज़रत मूसा को दर्शन दिए. और यहूदी धर्म के दस नियम बताए. यहूदी धर्म में ये ‘टेन कमांडमेंट्स’ के नाम से जाने जाते हैं.
हालांकि, यहां तक की कहानी का कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं मिलता. ये धार्मिक मान्यता पर आधारित है.यहूदियों के लिखित साक्ष्य आधारित इतिहास की शुरुआत 1047 ईसा पूर्व से होती. आज से मोटा-माटी 3000 साल पहले. 1047 ईसा पूर्व में यूनाइटेड किंगडम ऑफ़ इजरायल बना. ये यहूदियों का पहला साम्राज्य था. इसी किंगडम में एक राजा हुए, सोलोमन. उन्होंने 970 ईसा पूर्व से 931 ईसा पूर्व तक शासन किया. उनकी राजधानी येरुशलम थी जो आज इजरायल देश की राजधानी भी है.

सोलोमन ने यहूदी धर्म की सबसे महत्वपूर्ण मंदिर का निर्माण करवाया. ऐसा माना जाता है कि जो ‘टेन कमांडमेंट्स’ ईश्वर ने हज़रत मूसा को बताया था. उसे एक प्लेट पर लिख कर, लकड़ी के एक संदूक में रखा गया. और उस संदूक को इस मंदिर में स्थापित किया गया. ये ‘टेन कमांडमेंट्स’ यहूदियों की सबसे बड़ी धार्मिक विरासत है. और इसी वजह से यह मंदिर यहूदियों के लिए सबसे पवित्र स्थल बन गया.
लेकिन, जल्द ही यहूदियों को इजरायल छोड़कर फिर से भागना पड़ा. वजह थी 586 ईसा पूर्व में उन पर हुआ बेबीलोनिया का हमला. अभी के समय में जो दक्षिणी इराक़ का इलाक़ा है वहीं बेबीलोनिया का साम्राज्य हुआ करता था. उन्होंने आज से क़रीब ढ़ाई हज़ार साल पहले इजरायल पर हमला किया और उस मंदिर को भी ध्वस्त कर दिया जिसमें ‘टेन कमांडमेंट्स’ रखे थे. हालांकि, 516 ईसा पूर्व में यहूदियों ने ठीक उसी जगह पर दोबारा इस मंदिर को बनाया.
ईसाई और यहूदियों का संघर्षजब महान रोमन सम्राट जूलियस सीजर राजा बने तो उन्होंने यहूदी धर्म को मान्यता दे दी. फिर उनके बाद यहूदियों का राज्य रोमन साम्राज्य के अंदर आ गया. रोमन साम्राज्य एक विशाल साम्राज्य था जिसकी राजधानी अभी समय के हिसाब से इटली की राजधानी रोम थी. रोमन ने हेरोड नाम एक व्यक्ति को यहूदियों का राजा बनाया. येरुशलम एक बार फिर यहूदियों की राजधानी बनी क्योंकि यही पहले यूनाइटेड किंगडम ऑफ़ इजरायल की राजधानी भी थी. राजा हेरोड ने सबसे ख़ास काम ये किया कि जिस मंदिर में ‘टेन कमांडमेंट्स’ रखे थे, उसके चारो तरफ एक भव्य चबूतरे का निर्माण कराया. इसी चबूतरे को टेंपल माउंट कहते हैं. आज के समय में इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्म के बीच जो भी झगड़े हैं वो इसी टेंपल माउंट पर अधिकार को लेकर हैं. अब समझते हैं ईसाई और इस्लाम कैसे इस कहानी में आए और उनका टेंपल माउंट से क्या रिश्ता है.

0 AD यानि अभी से ठीक 2025 साल पहले इजरायल की राजधानी येरुशलम के पास की एक जगह बेथलहेम में जन्म हुआ ईसा मसीह का. ईसा मसीह जन्म से एक यहूदी थे. इस समय इजरायल में यहूदियों का शासन था. ये वही साम्रज्य था जिसकी शुरुआत राजा हेरोड से हुई थी.
धीरे-धीरे ईसा मसीह ने अपने आस-पास के लोगों को उपदेश देने लगे. ईसाई धर्म में मान्यता है कि उन्होंने कई चमत्कार भी किए. उनको मानने वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगी. लोग उन्हें एक महान संत मानने लगे. उन्होंने ईसाई धर्म की नींव रखी. लोग उनके धर्म को मानने लगे. उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी. जल्द ही उनके और यहूदी धर्म के संतों के बीच टकराव होने लगा. यहूदियों ने ईसा मसीह पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया और फिर उन्हें सलीब पर टांग दिया और ईसा मसीह की मौत हो गई.
ईसा मसीह को जब सलीब पर टांगा गया था तो उससे कुछ दिन पहले वो टेंपल माउंट आए थे. उन्होंने उस मंदिर की अपने हाथों से सफाई की थी. यही वजह है कि टेंपल माउंट ईसाइयों के लिए एक पवित्र धार्मिक जगह बन गया. ईसा मसीह की मौत के दोषी यहूदी धर्म के लोग थे. यही इन दोनों धर्मो के बीच के नफरत की मुख्य वजह बना. ईसा मसीह के मौत तक रोमन और यहूदियों के बीच के रिश्ते ठीक थे.
यहूदियों की किस्मत में सबसे बुरा दौर तब शुरू हुआ जब टाईटस नाम का रोमन कमांडर आया. वो बाद में रोमन साम्राज्य की गद्दी पर भी बैठा. उसका समय आते-आते रोमन और यहूदियों के बीच युद्ध की शुरुआत हो चुकी थी. 70 AD में टाईटस ने इजरायल पर हमला किया और दूसरी बार यहूदियों के मंदिर जो टेंपल माउंट पर बना था उसे तोड़ दिया. यहूदी लोग एक बार फिर इजरायल छोड़कर भागने पर मजबूर हुए.
इस हमले के बाद आज तक यहूदी अपने उस मंदिर को फिर से नहीं बना पाए हैं. इस हमले के बाद रोमन लोगों ने यहूदियों को पूरी तरह से वहां से भगा दिया और उस इलाक़े का नाम रखा फलस्तीन. रोमन साम्राज्य ने यहूदियों को येरुशलम से भगाया था. उसके बाद से यहूदी दुनिया भर में तितर बितर हो गए. 306 ईस्वी में कॉन्स्टेनटीन नाम का व्यक्ति रोमन साम्राज्य का राजा बना. उसने येरुशलम में जहां ईसा मसीह को दफनाया गया था, वहां एक चर्च बनवाया.
380 ईस्वी में रोमन साम्राज्य ने ईसाई धर्म को अपना स्टेट रिलिजियन (धर्म) बना लिया. जब तक रोमन साम्राज्य रहा तब तक यहूदियों का येरुशलम में घुसना मुश्किल हो गया. वो दुनिया भर में भटकते रहे.
अब ये समझते हैं इस्लाम के साथ यहूदियों की किस बात की लड़ाई है और उनके आपसी संघर्ष की क्या कहानी है?
570 ईस्वी सन में मक्का नाम की जगह पर जन्म हुआ पैगंबर मोहम्मद साहब का. मक्का सऊदी अरब में मौजूद है. ये इजरायल के पड़ोस में ही एक देश है. वहां उन्होंने इस्लाम धर्म की नींव रखी. अब इस्लाम में ऐसी मान्यता है कि पैग़ंबर मोहम्मद साहब ने एक रात में स्वर्ग तक की यात्रा की थी. ये यात्रा उन्होंने बुराक़ नाम के घोड़े पर की थी. जो उड़ सकता था. इस यात्रा में वो पहले मक्का से येरुशलम पहुंचे. यहां उन्होंने उसी टेंपल माउंट के चबूतरे पर नमाज़ पढ़ी. और यहीं एक चट्टान का टुकड़ा भी है. जिसे इस्लाम में होली रॉक कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इसी चट्टान पर बुराक़ घोड़े ने पैर रखकर स्वर्ग की यात्रा की थी. इसी मान्यता की वजह से इस्लाम के लिए भी टेंपल माउंट एक ख़ास जगह बन गई.
638 ईस्वी सन में रोमन साम्राज्य के ख़त्म होने के बाद येरुशलम पर इस्लाम धर्म का शाषन हो गया. येरुशलम मुस्लिम शाषक उमर के कब्ज़े में आ गया. उन्होंने टेंपल माउंट पर नमाज़ पढ़ी. और फिर 700 ईस्वी सन में टेंपल माउंट में उस जगह जहां ‘होली रॉक’ था वहां गोल्डेन डोम का निर्माण हुआ. ये एक गुंबद थी जो आज भी येरुशलम में टेंपल माउंट पर बनी हुई है. साथ ही टेंपल माउंट की उस जगह जहां मोहम्मद साहब ने स्वर्ग की यात्रा करने से पहले नमाज़ पढ़ी थी वहां अल-अक़्सा मस्जिद बनाई. यहां हम आपको ये भी बता दे जिस चबूतरे को यहूदी लोग ‘टेंपल माउंट’ कहते हैं. मुस्लिम लोगों के लिए उसका नाम हरम-अल-शरीफ़ है.

लेकिन, उमर ने एक यहूदियों से कोई बैर नहीं रखा. उसने यहूदियों को वापस येरुशलम में आने की इज़ाज़त दी. 1100 ईस्वी सन में ईसाइयों और मुस्लिमों के बीच धार्मिक युद्ध छिड़े जिसे ‘क्रूसेड’ कहा गया. इसी क्रूसेड की लड़ाई में एक बार फिर येरुशलम ईसाइयों के कब्ज़े में आ गया. इस बार इसाईयों ने मुस्लिम और यहूदी, दोनों धर्म के लोगों का येरुशलम में भीषण क़त्ल-ए-आम किया. ये यहूदियों का येरुशलम में तीसरा नरसंहार था. वो हर बार येरुशलम आते, बसते और फिर उन्हें वहां से भागना पड़ता.
कुछ सालों बाद इतिहास ने फिर एक बार करवट बदली. साल 1516 में येरुशलम पर ओटोमन साम्राज्य का कब्ज़ा हुआ. ये एक मुस्लिम साम्राज्य था. ओटोमन साम्राज्य के समय में एक चीज़ अच्छी हुई कि येरुशलम शहर को इस तरह से विकसित किया गया तीनों धर्मों के लोगों के रहने के लिए अलग-अलग हिस्से बना दिए गए. ये शहर आज भी इसी नक़्शे के हिसाब से बना हुआ है. टेंपल माउंट की एक दीवार यहूदियों के हिस्से से जुड़ी है. जिसे ‘वेस्टर्न वॉल’ कहा जाता है.

आज के वक़्त में टेंपल माउंट मुख्य रूप से इस्लाम मानने वालों के धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है. इसके केवल एक हिस्से ‘‘वेस्टर्न वॉल’ के पास जाकर यहूदियों को अपने पूजा-पाठ करने की इज़ाज़त है. टेंपल माउंट के अंदर गोल्डन डोम और अल-अक़्सा-मस्जिद है. जो आज के वक़्त में इस्लाम मानने वालों का धार्मिक स्थल है. इतिहास के पन्नों में यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के रिश्ते सदियों से उलझे रहे हैं. तीनों धर्मों की जड़ें जो हज़रत इब्राहिम से शुरू होती हैं, वो समय के साथ मान्यताओं, सत्ता, और धर्म के टकराव ने बीच संघर्ष को जन्म देती है.
येरुशलम, जो कभी यहूदियों का पवित्र नगर था, ईसाइयों और फिर इस्लाम के प्रभाव में आया. हर नए विजेता ने इसे अपने धर्म के अनुसार परिभाषित किया. धर्मस्थल बने, गिरे, और नए धर्म स्थलों ने उनकी जगह ली. यहूदी, जिन्हें इतिहास ने बार-बार विस्थापन का शिकार बनाया, आज भी येरुशलम के टेंपल माउंट पर अपना दावा करते हैं, जबकि ईसाई इसे ईसा मसीह के जीवन और बलिदान से जोड़ते हैं.
इस्लाम के लिए यह वही स्थान है जहां से पैगंबर मोहम्मद ने स्वर्ग की यात्रा की थी. यही वजह है कि इन पर अधिकार को लेकर तीनों धर्मों के बीच संघर्ष जारी है. यहूदियों की हज़ारों साल की यात्रा, ईसाइयों का प्रसार, और इस्लाम का उदय; तीनों का इतिहास एक-दूसरे से इस कदर जुड़ा है कि इसे अलग करके देखना नामुमकिन है. लेकिन, क्या इतिहास हमें यह सिखाता है कि ये संघर्ष सुलझ सकते हैं? या फिर धर्म, राजनीति और पहचान का यह द्वंद्व आने वाली सदियों तक यूं ही बना रहेगा? शायद इस सवाल का जवाब इतिहास में कम और भविष्य के हाथों में ज़्यादा है.
वीडियो: तारीख: हजरत इब्राहिम से कैसे जुड़ा है यहूदी, इस्लाम और ईसाई विवाद?