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कश्मीर में बदल गया है आतंकी संगठनों के काम करने का तरीका, पूरी बात सोच में डाल देगी

Gandarbal Attack की जिम्मेदारी द रेजिस्टेंस फोर्स (TRF) ने ली है. TRF लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा संगठन माना जाता है. इसके अलावा भी कश्मीर में कई ऐसे संगठन हैं, जो टारगेट किलिंग करते हैं.

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जम्म कश्मीर में आतंकी हमले के पीछे TRF का नाम आ रहा सामने (सांकेतिक फोटो)

जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले (Gandarbal Attack) के सोनमर्ग क्षेत्र में 20 अक्टूबर को भीषण आतंकी हमला हुआ. निर्माणाधीन सुरंग की साइट पर हुए हमले में सात लोगों की जान चली गई. जिसमें एक डॉक्टर और तीन गैर कश्मीरी मजदूर भी शामिल हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस हमले की जिम्मेदारी द रेजिस्टेंस फोर्स (TRF) ने ली है. TRF लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा संगठन माना जाता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, हमले का मास्टरमाइंड TRF प्रमुख शेख सज्जाद गुल है. जो इस वक्त पाकिस्तान में बैठा हुआ है. TRF के लोकल मॉड्यूल ने इस घटना को अंजाम दिया है. घटना को अंजाम देने से पहले वारदात की जगह पर लगभग एक महीने तक रेकी की थी. गांदरबल अटैक में आतंकियों की संख्या दो से लेकर तीन बताई जा रही है.

आज तक ने खुफिया एजेंसी के सूत्रों के हवाले से बताया कि गुल के इशारे पर द रजिस्टेंस फ्रंट (TRF) के लोकल मॉड्यूल को एक्टिव किया गया. टारगेटेड किलिंग करने वाले आतंकी संगठन ने इस बार कश्मीरी और गैर-कश्मीरी लोगों को एक साथ निशाना बनाया.  हालांकि, ये पहली बार नहीं है कि TRF ने लोकल लोगों को निशाना बनाया है. इस संगठन का नाम पहले भी कई मौकों पर टारगेटेड किलिंग को लेकर सामने आया है. अधिकतर समय इनके निशाने पर माइग्रेंट रहते हैं.

दरअसल, 5 अगस्त, 2019 को कश्मीर से अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 को निष्प्रभावी कर दिया गया.  इसके बाद कश्मीर में द रेजिस्टेंस फ्रंट की तरह छोटे-बड़े कई नए आतंकी गुट खड़े हुए हैं. जैसे- पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट, कश्मीर टाइगर्स, लश्कर-ए- मुस्तफा (LeM) इत्यादि. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, ये एक ‘लिबरेटिंग फोर्स’ होने का भ्रम फैलाते हैं, लेकिन असल में ये पाकिस्तानी फंडेड ही हैं. ये कश्मीर में हाइब्रिड वारफेयर का यूज कर रहे हैं. किसी भी रैंडम युवा को रिक्रूट करते हैं, जिसकी हिस्ट्री नहीं होती, जो एक हमला करते ही गायब हो जाता है. आइये इन संगठनों के बारे में बारी-बारी से जानते हैं.

द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF)

अगस्त 2019 के बाद से कश्मीर में हो रही लगभग सभी आतंकी गतिविधियों में TRF का हाथ रहा है. अक्टूबर 2019 में लाल चौक पर हमला कर के ये बताने की कोशिश की गई कि अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने के बाद वो चुप नहीं बैठेंगे. सरकार ने नोटिफिकेशन में कहा है कि ये संगठन लश्कर ने नाम बदल कर शुरू किया है. लेकिन कश्मीर में आतंकी गतिविधियों पर नज़र बनाने वाले बताते हैं कि यह एक ‘अंब्रेला आउटफिट’ है. लश्कर हो या जैश, सभी TRF के झंडे तले काम कर रहे हैं. 

कैसे काम करता है TRF?

पहले जब कोई कश्मीरी युवा बंदूक उठाता था तो इस बात का ढिंढोरा पीटता था. लेकिन अब ये पैटर्न बदल चुका है. युवा आतंकी संगठन में बिना किसी तरह की कोई शोर के शामिल हो जाते हैं. सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट नहीं डालते. संगठन में शामिल होने के बाद भी ये मिलिटेंट्स आम लोगों के बीच रहते हैं. और जैसे ही वो अपनी पहली आतंकी घटना को अंजाम देते हैं, उसके बाद अंडरग्राउंड हो जाते हैं. और इन्हीं आतंकियों को कहा जाता है हाइब्रिड आतंकी. TRF के काम करने का तरीका यही है. इस संगठन से जुड़े आतंकी स्मार्ट फोन का इस्तेमाल कम से कम करते हैं. क्योंकि उससे ट्रैक होने का खतरा रहता है.  

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5 जनवरी 2023 को केंद्र सरकार ने TRF पर प्रतिबंध लगा दिया. गृह मंत्रालय ने अपने नोटिफिकेशन में कहा था कि लश्कर-ए-तैयबा का ये प्रॉक्सी संगठन आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है, युवाओं को आतंकी बना रहा है, आतंकियों की घुसपैठ करा रहा है और पाकिस्तान से जम्मू-कश्मीर में हथियार और ड्रग्स स्मगल कर रहा है. प्रॉक्सी का मतलब छद्म. यानी नया नाम, वही काम. हालांकि, इसके बाद भी ये संगठन लगातार वारदातों को अंजाम देता रहा.

पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (PAFF)

TRF की तरह ही एक और नामी संगठन है PAFF. जिसे पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) की एक शाखा माना जाता है. ये भी माना जाता है कि PAFF, जैश का ही मुखौटा है. साल 2019 में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI ने इस फ्रंट के फॉर्मेशन में मदद की. 

जम्मू-कश्मीर के पुंछ में 21 दिसंबर 2023 को आतंकी हमला हुआ था. जिसमें पांच जवान शहीद हुए थे.  20 अप्रैल 2024 को सेना के एक वाहन पर आतंकी हमला (Poonch Terrorist Attack) हुआ था. इसकी जिम्मेदारी आतंकी संगठन पीपल्स एंटी-फासिस्ट ग्रुप (PAFF) ने ली थी. साल 2020 में जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर के कुछ कमांडरों ने मिलाकर इसकी शुरुआत की थी. गृह मंत्रालय ने 7 जनवरी, 2023 को PAFF पर एक नोटिफिकेशन जारी किया था. 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक गृह मंत्रालय के नोटिफिकेशन में कहा गया था,

“PAFF भारतीय सुरक्षा बलों, राजनीतिक नेताओं और नागरिकों को धमकियां जारी करता है. ये दूसरे संगठनों के साथ जम्मू-कश्मीर और भारत के अन्य प्रमुख शहरों में हिंसक आतंकवादी गतिविधियों की साजिश रचने में शामिल है.”

कश्मीर टाइगर्स (Kashmir Tigers)

रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस संगठन की स्थापना जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी रहे मुफ्ती अल्ताफ उर्फ अबू जार ने की थी. दिसंबर 2021 में संगठन ने दावा किया था कि उसके कैडर ने श्रीनगर के बाहरी इलाके में पुलिस पर घात लगाकर हमला किया. इस हमले में 3 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे, जबकि 11 अन्य घायल हो गए थे. इसके बाद से ये संगठन चर्चा में आ गया था. इस घटना के कुछ महीने बाद, दक्षिण कश्मीर में सुरक्षा बलों पर ग्रेनेड हमले की जिम्मेदारी भी इसी संगठन ने ली थी.

लश्कर-ए- मुस्तफा (LeM) 

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो लश्कर-ए-मुस्तफा (LeM) संगठन अगस्त-सितंबर 2020 में बना. हिदायत उल्लाह मलिक उर्फ हसनैन इसका सरगना बताया गया. टारगेट किलिंग में इस संगठन का नाम भी सामने आया था.

क्या है इन संगठनों का मकसद?

अनुच्छेद 370, कश्मीरी पंडितों के मन में और कश्मीरी युवाओं को आतंकी बनाना. ये वो कीवर्ड हैं जिनके लिए TRF और बाकी संगठन काम कर रहे हैं. अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी होने के विरोध में क्या योजना हो, कैसे विरोध किया जाए और लोगों को कैसे भड़काया जाए. सरकार अगर कश्मीरी पंडितों को बसाने की बात कर रही है तो कैसे लोगों के मन में डर बैठाया जाए, ताकि वो खुद ही कश्मीर आने से डरें. जो पंडित और कश्मीरी अल्पसंख्यक कश्मीर में रहकर कामकाज कर रहे हैं, उन्हें डराया जाए ताकि वो यहां से भागने पर मजबूर हो जाएं. कुल मिलाकर TRF समेत इन संगठनों का मकसद यही है.

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घाटी में एक्टिव इन आतंकी ग्रुप के बारे में  भारतीय सेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ ने The Lallantop के पॉपुलर शो GITN में बात की थी. उन्होंने बताया था,

“ये जितने भी टेररिस्ट ग्रुप हैं, वो पहले से मौजूद बड़े आतंकी संगठनों के फ्रंट हैं. एक लश्कर-ए-तैयबा (LET) का फ्रंट है, एक जैश का है, एक हिजबुल का फ्रंट का है. सबको पाकिस्तान से मदद मिलती है, इसमें कोई दो राय नहीं है. ये सिविल सोसाइटी के अंदर ही रहते हैं. ये जंगलों या पहाड़ों में रहने वाले आतंकी नहीं है. ”

उन्होंने आगे बताया,

“ये सिर्फ एक आंतकी वारदात को अंजाम दते हैं और फिर वो आंतकवाद का काम छोड़ देते हैं, ताकि वो हिस्ट्रीशीटर ना बनें. ऐसे आदमी को तो सिर्फ उनका परिवार या मोहल्ला ही पहचान सकता है. इसलिए यहां सोसाइटी का रोल अहम है. पंजाब में आतंकवाद का खात्मा तब हुआ जब उनकी सिविल सोसाइटी काफी एक्टिव हो गई थी.”

बड़े आतंकी संगठनो का नाम बदलकर हमलों की जिम्मेदारी लेने की रणनीति का एक बड़ा कारण भ्रम पैदा करना और पुलिस जांच में बाधा डालना है. 

2024 में जम्मू-कश्मीर में टारगेट किलिंग की घटनाएं

18 अक्टूबर: बिहार के बांका जिले के 30 वर्षीय प्रवासी मजदूर अशोक चौहान की हत्या कर दी गई. उनका शव शोपियां जिले में रामबियारा नदी के पास एक मक्के के खेत में मिला. पुलिस ने कहा कि चौहान को आतंकवादियों ने अगवा कर हत्या कर दी.

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में 40 वर्षीय मोहम्मद रजाक टारगेट किलिंग के शिकार हुए. रजाक को थाना मंडी पुलिस स्टेशन क्षेत्र के अंतर्गत कुंडा टॉप में एक मस्जिद के बाहर गोली मार दी गई.

17 अप्रैल को बिहार के एक प्रवासी मजदूर राजू शाह को दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में अज्ञात आतंकवादियों ने गोली मार दी थी. अस्पताल ले जाने के दौरान उनकी मौत हो गई. 8 अप्रैल को अज्ञात आतंकवादियों ने दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले में एक गैर-स्थानीय पर्यटक कैब चालक परमजीत सिंह को निशाना बनाया। दिल्ली निवासी सिंह इस हमले में गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन बच गए.

 फरवरी में, श्रीनगर में पंजाब के दो लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. अमृतसर निवासी अमृतपाल सिंह नामक की मौके पर मौत हो गई थी. जबकि गोलीबारी में घायल हुए रोहित नामक एक अन्य व्यक्ति को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई थी.

वीडियो: अनंतनाग आतंकी हमले में तीन शहादतों के पीछे कौन? सामने आ गई एक आतंकी की तस्वीर