जून 1947 की बात है. पूरा देश बंटवारे की आशंका से डरा हुआ था. हिंसा की चिंगारी कभी भी भड़क सकती थी. लेकिन बंटवारे से पहले जून के महीने में, कुछ और ही था, जो सुलग रहा था. जून की एक रात अचानक देश के कोने-कोने में, आसमान में धुएं के बादल दिखाई दिए. धुआं उठ रहा था कुछ चिताओं से. जिन्हें घेरकर खड़े थे कुछ अंग्रेज अफ़सर. हालांकि ये इंसानों की चिताएं नहीं थी. लपटों में काग़ज़ झोंका जा रहा था. कुल चार टन सराकारी फ़ाइल्स और दस्तावेज. ये सारा काम एकदम ख़ुफ़िया तरीके से किया जा रहा था ताकि किसी को भनक तक ना लगे. क्यों, ऐसा क्या था इन दस्तावेज़ों में? इनमें छिपे थे भारतीय महाराजाओं के वो राज़, जिन्हें पिछली सदियों में अंग्रेजों ने बड़ी बारीकी से दर्ज किया था. लेकिन इन्हें आग के हवाले क्यों किया जा रहा था?
कुत्ते की शादी, छत पर हाथी, क़िस्से भारतीय राजाओं के!
भारतीय राजाओं के जलाए गए सीक्रेट दस्तावेज़ों में क्या था?
महाराजाओं की वफ़ादारी का ये आख़िरी इनाम था. क्योंकि ये कहानियां आज़ादी के बाद जनता के सामने आ जाती, तो ईश्वर समझे जाने वाले महाराजाओं की इज्जत धूल मिट्टी में मिल जाती.
डॉमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिंस अपनी किताब, फ़्रीडम एट मिडनाइट में लिखते हैं, 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ, उस समय हर महाराजा के पास औसतन 11 उपाधियां. 5.8 बीवियां, 12.6 बच्चे. 1.2 हाथी, 2.8 निजी रेल के डिब्बे, 3.4 रोल्स रॉयस कारें और शिकार में मारे गाए 22.3 शेर थे.
बात ये थी कि भारत एक नहीं था. दो हिस्सों में बंटा था. एक प्रांतीय भारत, जो सीधे ब्रिटिश सरकार के कंट्रोल में था. दूसरा रियासतों वाला भारत. जो ज़मीन के हिसाब से भारत का 40% था, और जनसंख्या के हिसाब से 50%. कुल 565 रियासतें थीं. लेकिन सब एक समान नहीं थी. 400 से ज़्यादा रियासतें ऐसी थीं, जिनका आकार 32 वर्ग किलोमीटर से ज़्यादा ना था. वहीं कुछ ऐसी रियासतें भी थीं, जो आकार और अर्थ व्यवस्था में यूरोप के कई देशों को पीछे छोड़ सकती थीं. इन रियासतों को कंट्रोल करते थे महराजा, नवाब और निज़ाम. जिनके बारे में मशहूर इंगलिश लेखक रुडयार्ड किप्लिंग का कहना था कि वो इंसानों की अलग ही नस्लें थीं. जिनकी अय्याशियों, फ़िज़ूल ख़र्चियों और सनक के क़िस्से फ़ेमस थे.
किस्सा नम्बर 1:
ग्वालियर के महराजा ने 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में एक रोज़ फ़ैसला लिया कि वो अपने महल में एक फ़ानूस लगाएंगे. जो बकिंघम पैलेस से भी बड़ा होगा. पेरिस की एक कम्पनी को फ़ानूस बनाने के ऑर्डर दिया गया. लेकिन इसी बीच किसी ने सवाल उठाया कि कहीं ऐसा ना हो, उनके महल की छत उस फ़ानूस का बोझ न सह सके. शंका के समाधान के लिए महाराजा ने एक तरक़ीब निकाली. उन्होंने एक क्रेन बुलाकर अपना सबसे भारी हाथी छत पर चढ़ा दिया. जब हाथी के बोझ से छत नहीं गिरी तो महाराजा ने पूरे विश्वास के साथ ऐलान किया कि फ़ानूस से भी छत को कुछ नहीं होगा. महाराजा की बात बाद में सच निकली.
किस्सा नम्बर 2:
जूनागढ़ के नवाब को कुत्तों का शौक़ था. कुत्तों के रहने का इंतज़ाम ऐसा था कि कुत्तों के घर में टेलीफ़ोन, बिजली के साथ साथ घरेलू नौकर भी रखे जाते थे. कोई कुत्ता मर जाता तो, उसे कुत्तों के क़ब्रिस्तान में ले जाया जाता था. कुत्ते की शव यात्रा निकाली जाती जिसमें शोक- संगीत की धुन बजायी जाती थी. और शव को दफ़नाने के बाद उसकी क़ब्र पर संगमरमर का मक़बरा बनाया जाता था.
एक ख़ास मौक़ा ऐसा भी आया जब नवाब ने बाबी नामक एक लैब्राडोर कुत्ते के साथ अपनी लाडली कुतिया रोशना की धूमधाम से शादी रचाई. शादी में सभी राजे-महाराजाओं, और बड़े-बड़े प्रतिष्ठित लोगों को निमन्त्रित किया गया था. वाइसरॉय को भी न्योता गया था. लेकिन वो नहीं आए और इस बात से नवाब बहुत नाराज़ भी हुए थे. फिर भी इस बारात में डेढ़ लाख आदमी थे. शादी के जुलूस के बाद नवाब ने एक शानदार दावत दी. जिसमें नौ लाख रुपये खर्च हुए थे. ये इतनी बड़ी रक़म थी कि 12000 लोगों की साल भर की जरूरतें पूरी हो सकती थी. इन्हीं कुत्तों से जुड़ा एक किस्सा ये भी है कि जब आज़ादी के बाद विलय की चर्चा हुई. तो जूनागढ़ के नवाब सबसे ज़्यादा चिंतित अपने कुत्तों को लेकर थे. क्योंकि किसी ने उनके मन में ये शक डाल दिया था कि विलय के बाद उनके कुत्तों को मार दिया जाएगा. विभाजन के के बाद जब उनकी नहीं चली और उन्हें पाकिस्तान भागना पड़ा, तब भी वो अपने सारे कुत्तों को साथ लेकर गए थे.
किस्सा नम्बर 3:
मैसूर रियासत के राजा खुद को चन्द्रमा का वंशज मानते थे. इसलिए साल में एक बार शरद पूर्णिमा की रात महाराजा के लिए एक ख़ास रस्म अदा की जाती थी. नौ दिन तक महाराजा अपने महल के एक अंधेरे कमरे में एकांत वास के लिए चले जाते थे. इन नौ दिनों में ना वो नहाते थे, न दाढ़ी बनाते थे, और ना ही कोई उन्हें देख सकता था, ना छू सकता था. इन दिनों में माना जाता था कि उनके शरीर में ईश्वर का वास है. नवें दिन जब महाराजा बाहर निकलते थे उन्हें हाथी में बैठाकर मैदान में चक्कर लगाया जाता. जहां जनता तालियां बजाकर उनका अभिवादन करती थी.
किस्सा नम्बर 4:
राजस्थान की आठ लाख की आबादी वाली छोटी-सी रियासत अलवर के महाराजा का व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि लगातार कई वाइसराय उनके जादू के असर में रहे. महाराजा ऑफ़ अलवर को यक़ीन था कि वो भगवान राम का अवतार हैं. उन्होंने कई बड़े-बड़े पंडितों को इस काम के लिए रखा था कि वे यह हिसाब लगाकर बतायें कि भगवान राम की पगड़ी कितनी बड़ी रही होगी ताकि वह भी अपने लिए वैसी ही पगड़ी बनवा सकें. इसके अलावा वो दूसरों से हाथ मिलाते हुए हमेशा दस्ताने पहने रहते थे. यहां तक कि जब इंगलैंड के बादशाह से हाथ मिलाने का अवसर आया, तब भी उन्होंने अपने दस्ताने नहीं उतारे. इन दस्तानों से जुड़ा एक और किस्सा तब का है जब महाराजा, वाइसरॉय लॉर्ड विलिंगडन के साथ खाने की मेज़ पर बैठे. उनके पास में ही लेडी विलिंगडन बैठी थी. महाराजा ने एक बड़ी हीरे की अंगूठी पहनी हुई थी, जिसे लेडी विलिंगडन बार बार निहार रही थीं. उस दौर में ऐसी परम्परा थी कि वाइसराय या उनकी पत्नी किसी महाराजा की किसी चीज में विशेष रुचि दिखायें तो वह चीज उन्हें दे दी जाती थी. ऐसा ही अलवर के महाराजा ने भी किया. लेडी विलिंगडन ने उसे पहनकर देखा और फिर वापिस कर दिया. महाराजा ने अंगूठी ली. एक कटोरे में पानी मंगवाया और फिर अंगूठी को अच्छी तरह धोया ताकि उस पर लेडी विलिंगडन का कोई स्पर्श बाक़ी ना रहे. ये देखकर सारे मेहमानों की आंखें फटी की फटी रह गयीं.
क़िस्से और भी कई हैं. जिनमें कामोत्तजना बढ़ाने के लिए हीरों के साथ गौरैया के दिमाग़ को पीस कर बनाई गई औषधि की कहानी, और कौन कितनी लड़कियों को हमबिस्तर कर सकता है, इसका कंपीटीशन भी शामिल हैं. लेकिन ये बेहूदी कहानियां जानने से बड़ा सवाल ये है कि क्या भारत के सभी महाराजा अय्याश और सनकी थे?
जवाब है नहीं. दूसरा महायुद्ध शुरू होते-होते रियासतों पर एक नयी पीढ़ी शासन करने लगी थी. इनमें पहले जैसी तड़क- भड़क नहीं थी, ये अपने पूर्वजों की तरह विलासप्रिय नहीं थे, और अपनी रियासतों में परिवर्तन और सुधार की जरूरत के प्रति अधिक सजग थे. ऐसे राजाओं की बदौलत कई रियासतों की प्रजा को ऐसी सुविधाएं और अधिकार भी प्राप्त थे जो अंग्रेजों के सीधे शासन में रहने वालों को भी नहीं मिले हुए थे.
बड़ौदा के महाराजा ने 19 वीं शताब्दी के अंत तक अपनी रियासत में बहु-विवाह पर पाबन्दी लगा दी थी और सबके लिए मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था कर दी थी. उन्होंने अछूत समझे जाने वाले लोगों के लिए लड़ाई लड़ी. बाक़ायदा बड़ौदा के महाराज द्वारा शुरू की गई स्कालरशिप से डॉ० भीमराव आम्बेडकर को कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में पढ़ने जाने का मौक़ा मिला.पटियाला के आठवें महाराजा ने गद्दी पर बैठने के बाद पहला काम यह किया कि अपने पिता सर भूपेन्द्रसिंह का हरम बन्द करवा दिया. ग्वालियर के महाराजा एक सरकारी अफसर की बेटी से शादी करके अपने पिता के आलीशान महल से अलग रहने लगे. बीकानेर के महाराजा ने अपनी प्रजा की सुविधा के लिए राजस्थान में जगह-जगह झीलें बनवाकर और बाग़ लगवाकर उसे स्वर्ग-समान बना दिया.
भोपाल में औरतों को बराबरी का जो दर्जा दिया गया वह उन्हें हिन्दुस्तान में कहीं और नसीब नहीं था.मैसूर में विज्ञान की शिक्षा की सबसे अच्छी संस्था थी. वहां पानी से बिजली पैदा करने के लिए कितने ही बांध बनाये गये थे और कितने ही उद्योग स्थापित किये गये थे. अधिकतर रियासतों के नए राजा, बड़ी योग्यता और जिम्मेदारी के साथ अपनी रियासतों का शासन चलाते थे. लेकिन सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह था उनका नाम उनकी बिरादरी के मुट्ठी भर महाराजाओं के साथ जुड़ गया, जो फ़िज़ूलखर्च और अय्याश थे. रियासतों की सबसे बड़ी कमी ये थी कि जो थोड़े बहुत लोकतांत्रिक सुधार अंग्रेजों ने किए, वे उनमें भी पीछे रह गए. लिहाज़ा 1947 में कांग्रेस इस पुरातन आलोकतंत्रिक सत्ता को बरकरार रखने के सख़्त ख़िलाफ़ थी.
जून 1947 में जब माउंटबेटन मुस्लिम लीग और कांग्रेस के साथ बैठक कर रहे थे. ऐसी ही बैठक उन्होंने रियासतों के प्रतिनिधियों के साथ भी की. बाद में उन्होंने बताया कि रजवाड़ों की बेतुकी बातें सुनकर वो दंग रह गए थे. मसलन एक सज्जन को सबसे बड़ी चिन्ता यह थी कि विलय के बाद क्या वे रियासत के जंगलों में शेर का शिकार कर पाएंगे? एक रियासत के महाराजा ने अपना दीवान भेजकर कहलवाया कि चूंकि महाराजा अभी समुद्र की यात्रा पर हैं, इसलिए वह विलय पर अभी फ़ैसला नहीं कर सकते फ़ैसला नहीं कर सकते.
माउंटबेटन ने ये और ऐसी ही कई बेतुकी दलीलें सुनी और फिर अपने सामने रखा हुआ बड़ा-सा कांच का पेपरवेट उठा लिया. पेपरवेट को किसी ज्योतिष की तरह घुमाते हुए उन्होंने उस दीवान से कहा,
“मैं अभी अपने गोले में देखकर बताता हूं कि आपका जवाब क्या होना चाहिए?”
अपने माथे पर बल डालकर माउंटबेटन बहुत देर तक कांच के उस गोले को बड़े रहस्यमय ढंग से घूरते रहे. दस सेकेंड के सन्नाटे के बाद माउंटबेटन ने एकदम सीरियस होकर कहा,
"वह रहे आपके आपके महाराजा साहब. वह जहाज के कप्तान की मेज पर बैठे हैं. देखिए वे कह रहे हैं- विलय के समझौते पर दस्तखत कर दीजिये".
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