'द केरला स्टोरी' बीती 5 मई को रिलीज हुई थी. फिल्म आतंकी संगठन ISIS की करतूतों, जबरन धर्म परिवर्तन के दावों और केरल की तीन महिलाओं के इर्द-गिर्द घूमती है. इस पर राजनीति भी हो रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक में बीजेपी की एक चुनावी सभा में बोलते हुए इस फिल्म का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था,
'दी केरला स्टोरी' से अलग केरल का वो सच जो उसे लोगों का फेवरेट राज्य बनाता है
देशभर में केरल की मिसालें दी जाती हैं और इसकी एक नहीं कई वजहें हैं.

“आतंकी साजिश पर बनी फिल्म 'द केरला स्टोरी' की आजकल काफी चर्चा है. बताते हैं कि केरल स्टोरी सिर्फ एक राज्य में हुई आतंकवादियों की छद्म नीति पर आधारित है. देश का वो राज्य जहां के लोग इतने परिश्रमी और प्रतिभाशाली होते हैं, उस केरल में चल रही आतंकी साजिश का खुलासा इस 'द केरला स्टोरी' फ़िल्म में किया गया है.”
वहीं केरल के सीएम पिनाराई विजयन का कहना है कि ये फिल्म दुनिया के सामने राज्य को बदनाम करने की कोशिश है.
PM और CM के बयानों से केरल के दो पक्ष उभर कर आते हैं, या कहें दो सवाल खड़े होते हैं. एक, क्या केरल में ISIS ऐक्टिव रहा है? और दूसरा सवाल, क्या केरल की कहानी में उन मेहनती और प्रतिभाशाली लोगों की बात नहीं होनी चाहिए जिनका जिक्र PM मोदी ने अपने बयान में किया है? असल में केरल आखिर क्या है? कैसा है?
आज बात केरल के दूसरे पक्ष की. उन आंकड़ों की जो केरल को देश का एक बेहतर राज्य बनाते हैं. जिनकी लोग मिसालें देते हैं. जिनसे पूरे देश को सीखने की जरूरत है.
द केरल स्टोरी पर बवाल क्यों?द केरला स्टोरी का टीज़र पिछले साल नवंबर में आया और फिर इस साल अप्रैल में ट्रेलर आया. तब से बवाल जारी है. फिल्म इंडस्ट्री से लेकर नेताओं, राजनीतिक दलों, जानकारों तक, सबकी राय बंटी हुई है. हाई कोर्ट में फ़िल्म को रोकने की अर्ज़ी भी दी गई. जिसे कोर्ट ने ख़ारिज करते हुए फिल्म मेकर्स को तथ्य ठीक करने का निर्देश भी दिया.
फिल्म के टीजर में एक लड़की बुर्का पहने है. उसका इस्लाम में धर्मांतरण करवा दिया गया है. और अब वो ISIS की आतंकवादी है. अफ़ग़ानिस्तान की जेल में बंद है. उसके मुताबिक, '32,000' लड़कियों का धर्मांतरण कर उन्हें सीरिया और यमन जैसे देशों में भेजा गया है.
द केरला स्टोरी के डायरेक्टर सुदीप्तो सेन और प्रोड्यूसर विपुल अमृतलाल शाह हैं. उनका दावा है कि ये फ़िल्म वास्तविक घटनाओं पर आधारित है. सुदीप्तो ने ट्वीट भी किया था,
“पिछले पांच सालों से शालिनी, गीतांजलि, निमाह और आसिफ़ा ने मेरी ज़िंदगी पर छाप छोड़ी है. मुझे उनकी कहानी बताने पर मजबूर किया है.”
अब फिल्म सिनेमाघरों में है. मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे बीजेपी शासित राज्यों में फिल्म को टैक्स फ़्री कर दिया गया है. जबकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार और तमिलनाडु में मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ने फिल्म की स्क्रीनिंग पर रोक लगा दी है. कुछ और राज्यों में भी फिल्म के समर्थन और विपक्ष में धड़े बन गए हैं. राजनीतिक रस्साकशी भी जारी है.
और इस सबके पीछे कलह की वजह है फिल्म का एक आंकड़ा. फ़िल्म का शुरुआती दावा था कि 32 हज़ार लड़कियों का धर्मांतरण किया गया.
इसके सबूत के बतौर सुदीप्तो ने कहा था, "साल 2010 में केरल के तत्कालीन CM ओमन चांडी ने विधानसभा के सामने एक रिपोर्ट रखी थी. उन्होंने कहा था कि हर साल लगभग 2 हज़ार 800 से 3 हज़ार 200 लड़कियां इस्लाम धर्म अपना रही हैं. बस इससे अगले 10 सालों का हिसाब लगा लें. ये संख्या 30 से 32 हज़ार होती है."
सुदीप्तो के कहे की तफ़्तीश की गई तो मालूम हुआ कि ओमन चांडी ने 2010 में नहीं, बल्कि 25 जून 2012 को कोर्ट में इस मसले पर बयान दिया था. और उन्होंने अपने बयान में ये नहीं बोला था कि केरल में हर साल ढाई हज़ार लड़कियों का इस्लाम में धर्म परिवर्तन हुआ. उन्होंने जो आंकड़ा दिया, वो क़रीब साढ़े छह साल के दरम्यान का था. ये बात खास तौर पर ध्यान देने वाली है कि महिलाओं के ISIS में शामिल होने पर ओमन चांडी ने कुछ नहीं बोला था.
ये सच है कि केरल से कुछ लोगों के ISIS में शामिल होने के मामले आए थे. इनमें कुछ महिलाएं भी थीं. लेकिन ये मामले उंगलियों पर गिने जा सकते हैं. इसीलिए केरला स्टोरी के आंकड़ों पर सवाल उठे. ये फिल्म जिस तरह केरल और ISIS के कनेक्शन का दावा करती है, उसका काफी विरोध हुआ. लोगों ने फिल्म निर्माताओं को चुनौती दी कि अगर वो अपने दावे को साबित कर दें, तो भारी भरकम इनाम देंगे.
26 अप्रैल को फिल्म का ट्रेलर आया था. और बवाल बढ़ने के बाद 2 मई को ट्रेलर के यूट्यूब डिस्क्रिप्शन से 32 हज़ार वाला आंकड़ा हटा कर तीन कर दिया गया. बदले डिस्क्रिप्शन में लिखा गया,
"The Kerala Story केरल के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाली तीन युवा लड़कियों की सच्ची कहानियों का संकलन है... सच्चाई हमें आज़ादी दिलाएगी! हजारों मासूम महिलाओं का व्यवस्थित तरीके से धर्म परिवर्तन करवाया गया, कट्टरपंथी बनाया गया और उनकी जिंदगी बर्बाद कर दी गई."
जब मामला केरल हाई कोर्ट पहुंचा तो फिल्म मेकर्स ने कहा कि वो 32 हज़ार महिलाओं के दावे वाला टीजर सारे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म से हटा लेंगे. फिल्म सेंसर बोर्ड (CBFC) ने भी फिल्म को 'ए' सर्टिफ़िकेट दिया था. और जब मेकर्स ने ये सर्टिफिकेट हटाने की मांग की तो बोर्ड ने काउंटर-एफ़िडेविट दायर किया . और कहा कि फ़िल्म असलियत की सटीकता का दावा नहीं करती. सभी घटनाओं को इतिहासकारों, विशेषज्ञों और अलग-अलग रिपोर्टर्स ने वेरिफ़ाई किया है. फ़िल्म काल्पनिक है और घटनाओं का एक नाटकीय संस्करण है.
बदलते आंकड़ों के बीच फिल्म को लेकर ये दावा किया जाता रहा कि इसमें बड़े पैमाने पर आतंकी साजिश का सच दिखाया गया है. इसीलिए केरल हाईकोर्ट में लंबी बहस चली. कोर्ट में ये भी कहा गया कि अभी तक किसी भी एजेंसी को केरल में 'लव जिहाद' का एक भी केस नहीं मिला है. इस पर कोर्ट का कहना था कि होते तो भूत और वैम्पायर भी नहीं हैं, लेकिन फिल्मों में तो दिखाए जाते हैं न? आखिरकार कोर्ट ने फिल्म पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. हालांकि निर्माताओं ने ये वादा किया कि 32 हज़ार वाला दावा जिस भी सामग्री में है उसे हटा दिया जाएगा.
इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट भी गया. यहां भी फ़िल्म की रिलीज़ के ख़िलाफ़ कई याचिकाएं दायर की गई थीं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.
फिलवक्त विरोध और समर्थन के बीच फिल्म सिनेमाघरों में है और उस पर राजनीति भी जमकर हो रही है. विवाद के आसपास ही कर्नाटक में PM मोदी ने ये भी कहा था,
“बीते कुछ वर्षों में आतंकवाद का एक और भयानक स्वरूप पैदा हो गया है. बम, बंदूक और पिस्तौल की आवाज़ तो सुनाई देती है लेकिन समाज को अंदर से खोखला करने की आतंकी साजिश की कोई आवाज़ नहीं होती. अदालत तक ने आतंक के इस स्वरूप पर चिंता जताई है. कांग्रेस देश को तहस नहस करने वाली इस आतंकी प्रवृति के साथ खड़ी नज़र आ रही है. इतना ही नहीं, कांग्रेस आतंकी प्रवृति वाले लोगों के साथ पिछले दरवाज़े से सौदेबाज़ी तक कर रही है. मैं ये देख कर हैरान हूं कि वोट बैंक के लिए कांग्रेस ने आतंकवाद के सामने घुटने टेक दिए हैं. ऐसी पार्टी क्या कभी भी कर्नाटक की रक्षा कर सकती है?”
बीजेपी के आईटी सेल के चीफ अमित मालवीय ने केरल के पूर्व CM VS अच्युतानंदन का एक पुराना वीडियो जारी किया जिसमें वो कह रहे हैं,
“अगले बीस सालों में केरल मुस्लिम स्टेट बन सकता है.”
वहीं सीएम पिनाराई विजयन और सत्तारूढ़ सीपीआई (एम) ने फिल्म के कंटेंट पर सवाल उठाए. बीते रविवार पिनाराई विजयन ने कहा कि पहली नज़र में फ़िल्म का ट्रेलर ऐसा लगता है कि इसका मक़सद राज्य के ख़िलाफ़ प्रोपेगैंडा करना और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना है. वे कहते हैं,
"लव जिहाद का मुद्दा जांच एजेंसियां, अदालतें और केंद्रीय गृह मंत्रालय भी ख़ारिज़ कर चुका है. और अब इस मुद्दे को केरल से जोड़कर उठाया जा रहा है. ऐसा लगता है कि इसका मक़सद दुनिया के सामने केरल को बदनाम करना है. इस तरह की प्रोपेगैंडा फ़िल्म में मुस्लिमों को जिस तरह से दिखाया गया है, उसे राज्य में RSS के राजनीतिक फ़ायदा पाने की कोशिशों से जोड़कर देखना चाहिए."
वहीं सीपीआई (एम) के राज्यसभा सांसद एए रहीम ने कहा,
"झूठ से ढकी ये फ़िल्म RSS का एजेंडा है जो चुनावी फ़ायदा उठाने के लिए बेचैन है."
ये तो है फिल्म और उसमें दिखाई गई कहानी की बात. लेकिन केरल की एक और तस्वीर है. उसके पास सुनाने को कई और कहानियां भी हैं, दिखाने को कई आंकड़े भी हैं.
साक्षरतादेश में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं. भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने इसी साल 10 अप्रैल को एक रिपोर्ट जारी की. इसके मुताबिक शिक्षा के मामले में केवल तीन शीर्ष राज्यों की बात करें तो मिजोरम 98 फीसद साक्षरता के साथ सबसे ऊपर है. उसके बाद केरल का नंबर आता है जहां 95 प्रतिशत लोग साक्षर हैं. ये गौरतलब है कि केरल की आबादी मिजोरम की तुलना में कई गुना है. केरल के बाद त्रिपुरा का नंबर आता है. उसकी साक्षरता 94 प्रतिशत है. वहीं UTs में लक्षद्वीप की साक्षरता सबसे अधिक है. यहां 92 फीसद लोग साक्षर हैं. हिमाचल प्रदेश और मेघालय में 91 और गोवा में साक्षरता 90 फीसद है. वहीं पूरे भारत का साक्षरता प्रतिशत 84 है.
नवजात मृत्यु दरइकोनॉमिक सर्वे रिपोर्ट 2023 की रिपोर्ट के अनुसार केरल में नवजात शिशुओं की मृत्यु दर देश में सबसे कम है. यहाँ प्रति एक हजार नवजात बच्चों में 6 की मौत होती है. वहीं मध्यप्रदेश में ये आंकड़ा 43, यूपी में 38 और असम में 36 है. वहीं पूरे देश में नवजात मृत्यु दर का औसत अनुपात 1000 पर 28 का है.
बच्चों और किशोरों की मौतों के मामले में भी केरल की स्थिति सबसे बेहतर है. नीति आयोग की नेशनल मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स (MPI) की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां बच्चों और किशोरों की मृत्यु दर सिर्फ 0.19 पर्सेंट है. जबकि उत्तर प्रदेश में ये दर सबसे ज्यादा 4.97 प्रतिशत है. इसके बाद बिहार में 4.58 फीसद, मध्यप्रदेश में 3.60 पर्सेंट और छत्तीसगढ़ में 3.32 परसेंट है.
मातृ मृत्यु दरमैटरनल डेथ यानी गर्भावस्था, प्रसव या उसके बाद के दिनों में होने वाली मौतों के मामलों में भी केरल की स्थिति सभी राज्यों में बेहतर है. नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, केरल में मैटरनल डेथ रेट सिर्फ 1.73 फीसद है. वहीं बिहार में हालत सबसे खराब है. यहां मातृ मृत्यु दर 45.62 फीसद है. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 35.45 फीसद, फिर झारखंड में 33.07 फीसद और फिर मेघालय, मध्यप्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों का नंबर आता है.
गरीबीअब बात गरीबी की. NITI आयोग देश और देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए SDG Index जारी करता है. SDG माने सस्टेनेबल डेवेलपमेंट गोल्स इंडेक्स. हिन्दी में कहें तो सतत विकास के लक्ष्यों की सूची. इस इंडेक्स में गरीबी, स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, साफ़ सफाई जैसे मानकों के अनुसार देश और उसके सभी राज्यों, UTs वगैरह को 100 में से नंबर दिए जाते हैं. जितने ज्यादा नंबर, उतनी बेहतर स्थिति. साल 2022 के SDG Index में भारत का कुल स्कोर 100 में से 66 है. जबकि राज्यों में केरल टॉप पर है. उसका SDG Index स्कोर 75 है. उसके बाद हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और गोवा का नंबर आता है.
गरीबी के आंकड़ों की बात करें तो भारत का कुल स्कोर 60 है जबकि राज्यों में तमिलनाडु टॉप पर है. उसे 100 में से 86 का स्कोर दिया गया है. उसके बाद 83 अंकों के साथ केरल और गोवा एक साथ दूसरे नंबर पर हैं. जनसंख्या के लिहाज से बात करें तो केरल में सिर्फ 0.71 पर्सेंट केरलवासी गरीबी रेखा से नीचे हैं. जबकि देश के कुल 22 फीसद लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन जीते हैं.
प्रति व्यक्ति आयकेरल के लोगों की आर्थिक स्थिति को प्रति व्यक्ति आय से भी समझ सकते हैं. 2022 में केरल विधानसभा में इकनोमिक रिव्यू पेश किया गया. इसके मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 में केरल की GSDP यानी ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट में तेज उछाल आया. साल 2020-21 में केरल की GSDP माइनस 8.43 पर्सेंट थी. जो 2021-22 में बढ़कर 12 पर्सेंट हो गई. यानी 20 फीसद से ज्यादा की उछाल. जबकि इस दौरान देश की इकॉनमी में 8.7 की बढ़ोत्तरी हुई.
इकनोमिक रिव्यू के मुताबिक, केरल की पर-कैपिटा GSDP 1 लाख 62 हजार 992 थी. जबकि इस दौरान देश की औसत पर-कैपिटा 1 लाख 7 हजार 670 रही. आसान शब्दों में कहें तो साल 2021-22 में केरल के एक आम आदमी की कमाई, माने प्रति व्यक्ति आय, पूरे देश में औसत प्रति व्यक्ति आय के डेढ़ गुना से भी ज्यादा है.
विदेश से कमाईRBI के रेमिटेंसेज सर्वे के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान विदेश से पैसा भारत लाने के मामले में महाराष्ट्र के बाद केरल दूसरे नंबर पर रहा. जबकि इसके पहले के आंकड़ों में केरल टॉप पर था. आंकड़ों में बात करें तो साल 2016-17 में विदेश से भारत आने वाले पैसे का 19 फीसद नॉन-रेजिडेंट केरलाइट्स ने भेजा था. माने विदेश में रहने वाले केरल के लोगों ने. जबकि महाराष्ट्र के लोगों ने 16.7 फीसद पैसा भारत भेजा. लेकिन साल 2020-21 में स्थितियां बदलीं. और महाराष्ट्र के लोगों ने 35.2 फीसद पैसा भारत भेजा. जबकि केरल के लोगों ने 10.2 फीसद पैसा भारत भेजा. इसके बाद तमिलनाडु, दिल्ली, कर्नाटक और आंध् रप्रदेश जैसे राज्यों का नंबर आता है.
इनके अलावा कुछ और सेक्टर ऐसे हैं जिनमें केरल की स्थिति पूरे देश में अच्छी है. जैसे- स्कूली शिक्षा. NITI आयोग के डेटा के मुताबिक, सभी राज्यों में केरल इस मामले में अव्वल है. यहां सिर्फ 1.78 जनता स्कूली शिक्षा से वंचित है. स्कूल में बच्चों की अटेंडेंस के मामले में भी केरल टॉप पर है. इस क्षेत्र में बिहार की स्थिति सबसे ख़राब है. बिहार के 26.27 फीसद लोगों को स्कूली शिक्षा नहीं मिलती.
साफ सफाई के मामले में भी राज्यों की सूची में केरल टॉप पर है. यहां सिर्फ 1.30 पर्सेंट लोगों को सैनिटेशन की सुविधाएं नहीं मिलतीं. इसके अलावा पोषण के मामले में केरल दूसरे नंबर पर है. सिक्किम में 13.32 प्रतिशत लोगों को सही पोषण नहीं मिलता. इसके बाद केरल में ऐसे 15.29 प्रतिशत लोग हैं. यहां भी बिहार की स्थिति सबसे ख़राब है. यहां 51.88 फीसद लोगों को सही पोषण नहीं मिलता. बिहार के बाद झारखंड, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों का नंबर आता है.
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