इस गाने में ऐसी क्या बात है कि बहुत लोग सुन के भावुक हो जाते हैं और बहुतों की आँख में ये खटकता है? इस बात की पड़ताल करते हैं:ऐसा क्यों है कि राष्ट्रगान की ही 'देशभक्ति' पर सवाल खड़े कर दिए जाते हैं? कभी 'धर्म' से जोड़ दिया जाता है. पर एक वक़्त वो भी था कि सुभाष चन्द्र बोस की 'आजाद हिन्द फ़ौज' में ये राष्ट्रगान था. महात्मा गांधी के मुताबिक ये गाना दिल में जगह बना चुका था.
1. कब लिखा गया
कोई भी कवि अपनी कविता एक बैठकी में नहीं लिखता. कई बार लिखता है. काटता है. फिर लिखता है. महीनों-सालों बाद जा के वो रचना ऐसी बनती है कि युगों-युगों तक लोगों की जबान पर चढ़ी रहती है. रवींद्रनाथ टैगोर ने इसका पहला ड्राफ्ट 1908 में लिखा था. शान्तिनिकेतन में वो जगह आज भी सुरक्षित है, जहां उन्होंने इस गाने को लिखा था.
2. जॉर्ज पंचम के स्वागत में गायी गई कविता टैगोर ने नहीं लिखी
जॉर्ज पंचम हिंदुस्तान आये थे 1911 में. राजनीतिक वजहों से कांग्रेस ने उनका स्वागत किया. उस स्वागत सम्मलेन में शुरुआत हुई टैगोर की कविता से. क्योंकि हिंदुस्तान में रिवाज है कि पहले 'सर्वशक्तिमान भगवान' की आराधना की जाती है, फिर कार्यक्रम शुरू होता है. बाद में जॉर्ज पंचम के सम्मान में भी एक कविता पढ़ी गयी. ये हिंदी कविता 'बादशाह हमारा' लिखी थी रामभुज चौधरी ने.
3. ब्रिटिश मीडिया ने इस बात को घुमा दिया:
"The proceedings began with the singing by Rabindranath Tagore of a song specially composed by him in honour of the Emperor." – The Englishman, December 28, 1911इन सबके मुताबिक रवींद्रनाथ टैगोर ने जॉर्ज पंचम के लिए ये गाना लिखा था. उस टाइम कुछ दिन पहले इन्हीं अखबारों ने ये बताया था कि वन्दे मातरम् भी टैगोर ने ही लिखा है.
"The Bengali poet Rabindranath Tagore sang a song composed by him specially to welcome the Emperor." – The Statesman, December 28, 1911
"When the proceedings of the Indian National Congress began on Wednesday 27th December 1911, a Bengali song in welcome of the Emperor was sung. A resolution welcoming the Emperor and Empress was also adopted unanimously." – The Indian, Dec. 29, 1911
4. हिंदुस्तानी अखबारों ने सच बताया:
"The annual session of Congress began by singing a song composed by the great Bengali poet Ravindranath Tagore. Then a resolution expressing loyalty to King George V was passed. A song paying a heartfelt homage to King George V was then sung by a group of boys and girls." – The Bengalee, December 28, 1911इन अख़बारों ने साफ़-साफ़ बताया है कि पहले 'भगवान की स्तुति' हुई, फिर बच्चों ने मुख्य अतिथि जॉर्ज पंचम के लिए भी एक गाना गाया.
"The proceedings of the Congress party session started with a prayer in Bengali to praise God (song of benediction). This was followed by a resolution expressing loyalty to King George V. Then another song was sung welcoming King George V." – The Amrita Bazar Patrika, December 28,1911
5. टैगोर ने क्या कहा
1937 में टैगोर ने इस बात को क्लियर करते हुए कहा था:
एक ब्रिटिश ऑफिसर मेरा दोस्त था. उसने मुझसे कहा कि ब्रिटिश सम्राट का गुण-गान करते हुए एक कविता लिख मारो. इस बात पर मुझे बहुत गुस्सा आया. इसीलिए मैंने 'जन गण मन' में 'भारत भाग्य विधाता' के बारे में लिखा था कि ये देश आदि काल से अपना भाग्य खुद लिख रहा है. वो भाग्य विधाता जॉर्ज पंचम तो कतई नहीं हो सकते. वो ब्रिटिश अफसर मेरी बात समझ गया था.पर कुछ लोग इस मामले को बराबर उठाते रहे. चिढ़कर 1939 में टैगोर ने फिर कहा:
जॉर्ज चौथा हो या पांचवां, मैं उसके बारे में क्यों लिखूंगा? इस बात का जवाब देना भी मेरा अपमान है.
रवींद्रनाथ टैगोर
6. पूरे गाने से पता चलता है कि यह किसके लिए है
ये बात टैगोर के रिकॉर्ड से साफ़ हो जाती है. जालियांवाला बाग़ के समय टैगोर ने 'नाइटहुड' का टाइटल लौटा दिया था. ये टाइटल उनको जॉर्ज पंचम ने ही दिया था. इसके अलावा टैगोर हमेशा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ ही थे. सबसे मजेदार बात ये है कि हमारा राष्ट्रगान टैगोर के लिखे गाने का सिर्फ एक स्टैन्जा है. ये गाना पांच स्टैन्जा का है. अगर पूरा गाना पढ़ें, तो पता चल जाता है कि ये किसी इंसान के लिए नहीं लिखा गया है. ये भारत देश के बारे में है. आखिरी स्टैन्जा में एक लाइन थी: 'निद्रितो भारतो जागे' मतलब 'सोता इंडिया जाग गया है'. इसका इस्तेमाल जवाहर लाल नेहरू ने 'Freedom at Midnight' स्पीच में किया था.
7. बवाल तो इस बात का भी है
फिर कोई कहता है कि इस गाने में सिर्फ 'पंजाब-सिंध-उत्कल-द्रविड़-बंग' ही हैं. बाकी राज्य कहाँ हैं? तब तो कल को उत्तराखंड, झारखंड और तेलंगाना के लोग भी खड़े हो जाएँ कि हमारा राज्य तो इस गाने में आता ही नहीं है.
8. आखिर दिक्कत किस बात से है
इलाहाबाद वाला 'कम्युनल एंगल' नया नहीं है. पहले कई सारे हिंदूवादी ग्रुप टैगोर के गाने से इसलिए चिढ़ते थे कि इसमें एक स्टैन्जा में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी सबके बारे में कहा गया था. अब यह 'इस्लाम के खिलाफ' हो गया है. अगर कठमुल्लों की बात सुनें तो दुनिया की बेस्ट पोएट्री 'उर्दू शायरी' हर एंगल से इस्लाम के खिलाफ जाएगी. इसमें अल्लाह से लेकर पीर-फ़कीर तक को नहीं छोड़ा गया है. अल्लाह से पूछते हैं कि बता दे वो जगह, जहां दारू पीना मना नहीं है. अगर जगह नहीं है, तो मस्जिद में बैठ के पीने दे.
असल में हमारा राष्ट्रगान हमारे देश और इसकी ताकत को बहुत अच्छे से दिखाता है. ये बिल्कुल ही सेक्युलर गाना है. इसीलिए ये कम्युनल लोगों की आँख में खटकता है. ये ऐसे लोग हैं, जिनका भाषा और कॉम्प्रिहेंशन से कोई लेना-देना नहीं है. वो कुछ पढ़ के कुछ समझ जाते हैं और चीख-पुकार मचाने लगते हैं. हमें इनकी बात को तूल देने की जरूरत नहीं है. सुन लिया, गुन लिया. बात ख़त्म.