देश में जब सारे अस्पताल हाथ खड़े कर देते हैं तब मरीज को AIIMS ले जाया जाता है. सबसे अच्छा और सस्ता इलाज वहीं उपलब्ध है. दिल्ली एम्स पूरे देश का बोझ नहीं उठा सकता और ना ही वहां तक देश के हर कोने से लोग इलाज के लिए पहुंच सकते हैं. इसलिए देश के अलग-अलग हिस्सों में एम्स बनाने का फैसला किया गया. मगर उन अस्पतालों में इलाज तब संभव होगा तब वहां डॉक्टर्स मौजूद होंगे.
AIIMS रायबरेली में सब सुविधाएं, फिर भी मरीजों और डॉक्टरों की हालत रोने वाली क्यों है?
रायबरेली एम्स के पास पैसा है, सुविधाएं हैं, इंफ्रास्ट्रक्चर भी बढ़ रहा है, लेकिन डॉक्टर्स ही नहीं हैं. नतीजा ये कि अस्पताल एक दिन में OPD में जितने मरीजों को देख सकता है, उसके आधे से भी कम मरीजों का इलाज कर पा रहा है.

साल 2013 में रायबरेली एम्स के निर्माण का गैजेट नोटिफिकेशन आया था. 2018 में इस अस्पताल में OPD शुरू हुई. करीब 7 साल का समय पूरा हो चुका है, लेकिन देश का सबसे प्रतिष्ठित अस्पताल अभी डॉक्टरों का इंतजार कर रहा है. किसी भी बड़े अस्पताल की बैकबोन होते हैं सीनियर रेज़िडेंट डॉक्टर (SRD). एम्स, रायबरेली में 200 SRD की पोस्ट सेंग्शन्ड हैं. लेकिन मौजूदा स्थिति में मात्र 37 SRD अस्पताल में कार्यरत हैं. यानी जिन डॉक्टर्स के सहारे अस्पताल चलता है, एम्स में उनकी 80 प्रतिशत से भी ज्यादा पोस्ट्स खाली हैं. बात अगर मेडिकल फैकल्टी की करें, जिनके मार्गदर्शन में इलाज भी होता है और मेडिकल के छात्रों की पढ़ाई होती है तो स्थिति यहां भी निराशाजनक मिलेगी. 200 अप्रूव्ड मेडिकल फैकल्टी में से रायबरेली एम्स में 27 फरवरी तक 108 फैकल्टी ही मौजूद थे. यानी तकरीबन आधी पोस्ट्स खाली पड़ी हैं. एम्स प्रशासन की तरफ से बताया गया है कि कुछ फैकल्टी इन्हीं दिनों में ज्वाइन कर रही है जिसके बाद ये संख्या बढ़कर 120 हो जाएगी है.
रायबरेली एम्स के पास पैसा है, सुविधाएं हैं, इंफ्रास्ट्रक्चर भी बढ़ रहा है, लेकिन डॉक्टर्स ही नहीं हैं. नतीजा ये कि अस्पताल एक दिन में OPD में जितने मरीजों को देख सकता है, उसके आधे से भी कम मरीजों का इलाज कर पा रहा है. अक्सर हम दिल्ली एम्स में सर्जरी की डेट 6 महीने बाद की मिलने पर चौंक जाते हैं. पर रायबरेली एम्स डेढ़ साल बाद की डेट देकर नए रिकॉर्ड कायम कर रहा है. वजह है डॉक्टर्स की कमी.
देश के कुछ अन्य एम्स अस्पतालों में 30 ऑपरेशन थियेटर हैं. लेकिन रायबरेली में सिर्फ 10. अलग-अलग विभाग के सर्जन मरीजों की सर्जरी के लिए छटपटा कर रह जाते हैं कि क्योंकि एनेस्थीसिया विभाग में सिर्फ 3 ही डॉक्टर उपलब्ध है. और उसके बिना सर्जरी संभव नहीं है. अस्पताल के एक सीनियर फैकल्टी कहते हैं, “हमें मरीजों को यह बताने में शर्म आती है कि उनकी सर्जरी की डेट साल या डेढ़ साल बाद दी जा रही है.”
AIIMS रायबरेली में क्यों है डॉक्टर्स की कमी?कहां रहें?
किसी भी बड़े संस्थान के निर्माण के साथ वहां अधिकारियों और कर्मचारियों के रहने की व्यवस्था भी की जाती है. रायबरेली एम्स में कुल 1626 मेडिकल और नॉन-मेडिकल स्टाफ सैंग्शन्ड हैं. इनमें 450 से ज्यादा पद खाली है. लेकिन 1200 के करीब से ज्यादा स्टाफ के लिए सिर्फ 174 रेज़िडेंशियल क्वॉर्टर उपलब्ध हैं. इनमें से 108 मकान टाइप-2 हैं यानी वन BHK. और डॉक्टर्स को दिए जाने वाले मकानों की संख्या 50 से भी कम है.
अब बारी आती है किराए के मकान में रहने की. एम्स शहर से दूर है. आसपास ग्रामीण इलाका है. डॉक्टर्स कहते हैं कि अस्पताल के आसपास मकान नहीं है. दूर जाने पर कनेक्टिविटी की समस्या होती है. और मकान जितने महंगे हैं उतना HRA नहीं मिलता.
अस्पताल में नर्सिंग स्टाफ की संख्या 800 के करीब है. इसमें महिलाओं की संख्या बड़ी मात्रा में है. और सभी कैंपस से बाहर रहने को मजबूर हैं. आसपास ग्रामीण इलाके हैं. दूर रहने पर ऑड आवर ड्यूटी में समस्या होती है. नर्सिंग स्टाफ का कहना है कि यह सुरक्षा की दृष्टि से भी उनके लिए एक चुनौती है.
इस विषय पर एम्स प्रशासन ने बताया,
“कैंपस के अंदर 5 टावर बन रहे हैं. उसके बाद आवास की समस्या कुछ हद तक कम हो जाएगी. हालांकि, इसमें अभी साल भर का समय लगेगा.”
HRA बढ़ाने की मांग
HRA माने हाउस रेंट अलाउएंस. हिंदी में, मकान के किराए के लिए मिलने वाला भत्ता. हमारे देश में HRA के लिए तीन क्लास निर्धारित हैं. X, Y और Z क्लास. X क्लास में आते हैं टियर 1 शहर, जिनमें महानगर शामिल हैं. यहां के सरकारी कर्मचारियों को मिलता है 30 प्रतिशत HRA. Y में आते हैं टियर टू शहर, जिनमें बड़े शहर आते हैं. यहां के कर्मचारियों को मिलता है 20 प्रतिशत HRA. और Z क्लास में आते हैं बाकी बचे टियर 3 शहर. रायबरेली टियर 3 के अंतर्गत आता है. और यहां HRA है 10 प्रतिशत.
एम्स रायबरेली के डॉक्टर्स और कर्मचारियों का कहना है कि एक तो कैंपस के अंदर रहने को घर नहीं मिला. दूसरा, किराए का घर आसपास मिलता नहीं. और जो मिलता है उसके लिए भी पर्याप्त HRA नहीं मिलता.
हाल ही में रायबरेली को स्टेट कैपिटल रीज़न में शामिल किया गया था. एम्स रायबरेली के PRO और मेडिकल सुप्रिटेंडेंट नीरज श्रीवास्तव ने बताया कि इस विषय पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बात की गई है. उनसे यह मांग की गई है कि रायबरेली को Y क्लास में शामिल किया जाए.
भूमि अधिग्रहण और सुरक्षा की समस्या
2013 में एम्स, रायबरेली के निर्माण के लिए 148 एकड़ जमीन देने की बात कही गई थी. इसमें करीब 97 एकड़ जमीन यूपी सरकार ने केंद्र सरकार को आवंटित कर दी. बाकी राज्य सरकार को बाद में देनी थी. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बची हुई जमीन का बड़ा हिस्सा भी एम्स को मिल चुका है. लेकिन 9 एकड़ जमीन करीब ऐसी है जो विवादित है. विवाद एम्स, राज्य सरकार या केंद्र से जुड़ा नहीं है. उदाहरण से समझें तो सरकार ने जमीन का अधिग्रहण किया और पैसा देने को तैयार है, लेकिन उस जमीन के टुकड़े को लेकर दो भाइयों में झगड़ा है और उसका केस चल रहा है. कुछ ऐसे ही मामलों की वजह से 9 एकड़ जमीन अटकी है.
एम्स प्रशासन का कहना है कि इससे रेज़िडेंस में बहुत फर्क नहीं पड़ने वाला क्योंकि उस पर काम चल रहा है. लेकिन इस 9 एकड़ जमीन के ना मिलने की वजह से एम्स कैंपस की बाउंड्री वॉल नहीं बन पा रही है. और सुरक्षा की दृष्टि से यह एक बड़ा मसला है.
हालांकि, एम्स प्रशासन ने बताया कि इस विषय पर रायबरेली की जिलाधिकारी हर्षिता माथुर से संपर्क किया गया है और उन्होंने एक महीने में इस मसले को सुलझाने का आश्वासन दिया है.
मूलभूत सुविधाओं की कमी
एम्स रायबरेली में कार्यरत एक असोसिएट प्रोफेसर कहते हैं, “आज के युवाओं का काम सिर्फ पैसों से नहीं चलता, उन्हें लाइफस्टाइल भी चाहिए. और यहां दूर-दूर तक कोई लाइफस्टाइल नहीं है. वे कहते हैं कि इस शहर में मरीजों के इलाज करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते. शहर से अस्पताल दूर है. और शहर में भी वो चीज़े उपलब्ध नहीं हैं जो दूसरे शहरों में रहने पर आसानी से मिल सकती हैं.”
इस स्टोरी के संबंध में हमने एम्स के एक डॉक्टर से संपर्क करने के लिए उन्हें मैसेज किया. उन्होंने बताया,
“आपके मैसेज करने के 1 घंटे बाद मुझे मैसेज मिला क्योंकि यहां नेटवर्क ही नहीं लगता.”
एक सीनियर महिला डॉक्टर कहती हैं, “दो साल हो गए एम्स कैंपस में ऐमजॉन ग्रोसरी वालों ने कनेक्टिविटी की समस्या की वजह से सामान डिलीवर करना बंद कर दिया है. कैंपस के अंदर कोई शॉपिंग कॉम्प्लेक्स है नहीं. अगर शाम में कोई सामान चाहिए हो तो क्या करेंगे.” कैंपस में फिलहाल शॉपिंग कॉम्लेक्स का टेंडर अंडर प्रोसेस है.
एक असिस्टेंट प्रोफेसर कहते हैं- “मैं नहीं कह रहा कि रायबरेली के स्कूल अच्छे नहीं हैं. लेकिन अगर मेरे बच्चे यहां के स्कूल में पढ़ेंगे तो क्या वो उसी स्तर की शिक्षा पाएंगे जो महानगरों में रहने वाले हमारे जैसे डॉक्टर्स के बच्चों को मिल रही है.”
इस विषय पर एम्स, रायबरेली के PRO डॉ. नीरज श्रीवास्तव से भी बात की. वो कहते हैं,
“इस इलाके में इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज़ोर देने की जरूरत है. सड़क से कनेक्टिविटी बढ़ रही है, साथ ही अन्य सुविधाओं पर जोर देने की जरूरत है. यहां रेज़िडेंस, शॉपिंग कॉम्लेक्स, अच्छे स्कूल खोलने पर ज़ोर दिया जाए तो हालात सुधर सकते हैं. ये सारे काम सरकार के जिम्मे नहीं मढ़े जा सकते. लेकिन रायबरेली से बाहर के इस इलाके में मूलभूत सुविधाओं के बढ़ावे पर ज़ोर देने की जरूरत है. हालांकि, इतने कम संसाधन होने के बावजूद एम्स रायबरेली, पुराने एम्स के बराबर इलाज मुहैया करा रहा है.”
SDR के खाली पदों को लेकर एक अन्य पहलू भी सामने आता है. देश के किसी भी एम्स में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए तीन साल तक सीनियर रेजिडेंट के तौर पर काम करना पड़ता है. जबकि स्टेट मेडिकल कॉलेज में एक साल की फेलोशिप के बाद ही असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर नियुक्ति मिल जाती है. यहां आने वाले SRD एक साल अस्पताल में काम करने के बाद किसी अन्य मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर बन सकते हैं. और SRD की रिक्त पदों की बढ़ती संख्या की एक बड़ी वजह ये भी है.
इसके साथ जब बाकी सुविधाओं की समस्या जुड़ जाती है तो स्थिति और खराब हो जाती है. हालात ये हैं कि एम्स रायबरेली SRD के लिए जितनी वैकेंसी निकालता है, उतने आवेदन भी नहीं आ रहे.
हालांकि, इस एम्स प्रशासन का कहना है कि जूनियर रेज़िडेंट डॉक्टर्स आने वाले समय में सीनियर रेज़िडेंट डॉक्टर बनेंगे और जो कमी है वो पूरी होगी. एम्स में फिलहाल 160 JRD हैं. इनकी अप्रूव्ड संख्या 200 है.
एम्स रायबरेली की इन उलझी हुई समस्याओं पर हमने अमेठी के सांसद केएल शर्मा से भी बात की. वह एम्स रायबरेली की इन्स्टीट्यूट बॉडी के सदस्य हैं. शर्मा कहते हैं,
“रायबरेली एम्स को लेकर यहां के सांसद राहुल गांधी ने पिछले साल स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को पत्र भी लिखा था. सरकार ने यहां स्टाफ की संख्या भी कम अप्रूव की है और 960 बेड के अस्पताल की जगह इसे 610 बेड के अस्पताल में सीमित कर दिया गया है. ये सारे मुद्दे हमने सरकार के सामने कई बार उठाए हैं. सरकार को पहले से तय मानकों पर ही कायम रहना चाहिए. साथ ही अगर जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं तो डॉक्टर्स से भी बात की जा सकती है कि वे एम्स रायबरेली में ज्यादा समय तक सेवाएं दें. लेकिन पहले सरकार तो कदम उठाए.”
नेता प्रतिपक्ष और रायबरेली के सांसद राहुल गांधी ने 14 अक्तूबर, 2024 को इस संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को पत्र लिखा था. राहुल ने अपने पत्र में मैन पावर की कमी का मुद्दा तो उठाया ही था, साथ ही मूलभूत सुविधाओं की कमी का भी जिक्र किया था. इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा था कि एम्स रायबरेली में स्टाफ की संख्या 2,900 सैंग्शन्ड है. लेकिन मंजूरी सिर्फ 1,626 पदों की मिली है.

एम्स जैसे अस्पतालों में स्टैंडर्ड स्टाफिंग पैटर्न के मुताबिक स्टाफ की संख्या तय होती है. 610 बेड के इस एम्स अस्पताल के लिए 2900 कर्मचारियों की जरूरत होती है. लेकिन फिलहाल सरकार की तरफ से मंजूरी सिर्फ 1,626 की ही मिली है. हालांकि, स्थिति ये है कि जितने पद मंजूर हैं उनमें भी 450 से ज्यादा पद खाली पड़े हैं.
नाम ना छापने की शर्त पर नॉन-मेडिकल ऑफिसर कहते हैं कि इस अस्पताल में सिर्फ डॉक्टर्स की ही कमी नहीं है, यहां क्लर्क भी नहीं हैं. ग्रुप B के अधिकारियों से क्लैरिकल लेवल का काम करवाया जा रहा है.
एम्स में डॉक्टर्स और स्टाफ की कमी को लेकर हमने राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले और योगी सरकार में मंत्री दिनेश सिंह से भी बात की. उन्होंने कहा,
“जिस इलाके में एम्स बना हुआ है वहां इंफ्रास्ट्रचर तेज़ी से बढ़ रहा है. इलाके में सुविधाओं का इजाफा लगातार हो रहा है. डॉक्टर्स अभी रुक नहीं रहे हैं. लेकिन कुछ समय में यह समस्या भी दूर हो जाएगी.”
इन सब समस्याओं के अलावा एम्स रायबरेली एक और समस्या से जूझ रहा है. एम्स प्रशासन लगभग रुआसा होकर यह बताता है कि जिस स्थान पर अस्पताल बना है वो इलाका रायबरेली नगर पालिका के अंतर्गत नहीं आता. नतीजा ये कि कूड़ा निस्तारण की जिम्मेदारी भी एम्स के ही मत्थे है. इस पर अस्पताल प्रशासन ने रायबरेली के नगर पालिका से बात की. उनका कहना है कि इस संबंध में सरकार तक आवेदन पहुंचा दिया गया है.
एम्स रायबरेली से जुड़े इन सारे विषय पर हमने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का भी पक्ष जानने की कोशिश की. हमने 25 मार्च को मंत्रालय को इस संबंध में मेल भी किया था. सरकार की तरफ से अबतक कोई पक्ष सामने नहीं आया है. आने पर इस स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.
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