The Lallantop

35 लोगों को लाइन में खड़ा कर मार दी गोलियां, छत्तीसिंह पुरा और अमरनाथ अटैक की कहानी

पहलगाम का अटैक कश्मीर के इतिहास में पर्यटकों पर हुए ये सबसे बड़े हमलों में से एक है. सबसे बड़े हमलों में से एक होने के बावजूद ये अपनी तरह का पहला हमला नहीं है. पर्यटक पहले भी आतंकवादियों के निशाने पर आए हैं. कुछ तारीख़ें ऐसी रही हैं, जो आज भी सिरहन पैदा करती हैं. चाहे-अनचाहे आज इन्हीं तारीखों के बारे में जानते हैं.

post-main-image
आतंकी पाक अधिकृत कश्मीर में बने कैंप्स में ट्रेनिंग लेकर भारत में हमले करते हैं (PHOTO-AajTak)

पहली तारीख, 20 मार्च, 2000. जगह छत्तीसिंह पुरा, अनंतनाग, जम्मू-कश्मीर. 2 अलग-अलग जगहों पर 36 लोगों को आतंकवादियों ने लाइन में खड़ा करके गोली मार दी. इनमें से 35 की मौत हो गई. दूसरी तारीख़, 2 अगस्त, 2000. अमरनाथ यात्रा पर गए 95 लोगों पर आतंकवादियों ने गोलियां चलाईं. 32 लोग मारे गए. अगले 48 घंटे कश्मीर के आधा दर्जन अलग-अलग जगहों पर ऐसे ही हमले हुए. करीब 100 या इससे भी ज़्यादा लोगों की जान गई. तीसरी तारीख, 20 जुलाई, 2001. एक बार फिर से अमरनाथ यात्रा पर हमला हुआ. यात्रा में दो-तिहाई मार्ग के बाद पड़ने वाले शेषनाग बेस में देर रात करीब डेढ़ बजे आतंकियों ने एक कैंप पर ग्रेनेड हमला किया. इस हमले में 13 लोगों की जान गई. 

अब अगली तारीख, 22 अप्रैल, 2025. पहलगाम में एक टूरिस्ट स्पॉट पर आतंकवादियों का हमला हुआ. कम से कम 28 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है. कश्मीर के इतिहास में पर्यटकों पर हुए ये सबसे बड़े हमलों में से एक है. सबसे बड़े हमलों में से एक होने के बावजूद ये अपनी तरह का पहला हमला नहीं है. पर्यटक पहले भी आतंकवादियों के निशाने पर आए हैं. कुछ तारीख़ें ऐसी रही हैं, जो आज भी सिरहन पैदा करती हैं. चाहे-अनचाहे आज इन्हीं तारीखों के बारे में जानते हैं.

Amarnath tragedy: Efforts to find 40 pilgrims continue overnight, Yatra  remains suspended - India Today
अमरनाथ यात्रा हमेशा से आतंकियों के निशाने पर रही है (PHOTO-India Today)

20 मार्च, 2000, होली का दिन था. जगह जम्मू कश्मीर में अनंतनाग का छत्तीसिंह पुरा. यहां 200 सिख परिवार रहते थे. शाम को इलाके के लोग पास के गुरुद्वारे से अरदास कर के घर वापस लौट रहे थे. वहीं दूसरी ओर औरतें घर के कामों में लगी थीं. बिजली कटी थी इसलिए मोमबत्तियां जलाकर कुछ गांववाले रेडियो पर अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के दौरे की खबरें सुन रहे थे. बिल उस साल 21 से 25 मार्च तक भारत दौरे पर थे. 1998 में भारत के न्यूक्लियर वेपन टेस्ट के बाद नाराज अमेरिका के इस पहलू को नरम कूटनीति की तरह देखा जा रहा था. 

शाम के करीब 7 बजकर 20 मिनट हो रहे होंगे कि सेब के बागों से होकर कुछ लोग गांव में दाखिल होते हैं. चश्मदीदों के मुताबिक ये कुछ 15-20 लोग थे जिन्होंने इंडियन आर्मी की यूनिफार्म पहन रखी थी. गांव में घुसते ही ये लोग घरों के दरवाजे खटखटाकर पुरुषों को बाहर बुलाने लगे. 17 लोगों को एक लाइन में खड़ा किया. कहा कि हम आर्मी से हैं, एक रेग्युलर चेकिंग के लिए आए हैं. छत्तीसिंह पुरा वो इलाका रहा था, जहां आसपास कुछ अलगाववादियों की भी मौजूदगी रहती थी. ऐसे में इंडियन आर्मी इस तरह की तलाशी लेती रहती थी. गांववालों के लिए ये सामान्य बात थी. लेकिन इस बार जो लोग तलाशी के बहाने आए थे, उनके हाव-भाव थोड़े अलग थे. गांव के ही एक शख्स करमजीत को शक हुआ. वे फौरन भागे और कीचड़ में रेंगते हुए भाग निकले.

Bill Clinton's visit to India - India Today
अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत के दौरे पर थे (PHOTO-India Today)

इधर इंडियन आर्मी की यूनिफॉर्म पहनकर आए लोगों में से एक ने हवा में पहली फायरिंग की. कोई कुछ समझ पाता, उससे पहले ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई. लाइन में खड़े लोग जमीन पर गिर गए. हमलावर यही नहीं रुके. गुरुद्वारे के बाहर भी 19 लोगों को इकठ्ठा किया. सभी सिखों को गुरुद्वारे की तरफ मुंह करके घुटनों के बल बैठाया गया और करीब से गोली मारनी शुरू की गई. चश्मदीदों के मुताबिक

आतंकवादियों ने टॉर्च जलाकर देखा कि कोई ज़िंदा तो नहीं बचा. जिसके जिंदा बचे होने का शक हुआ, उसे दोबारा गोली मारी.

आप समझ ही गए होंगे कि उस दिन छत्तीसिंहपुरा में आर्मी यूनिफॉर्म में आए ये लोग आतंकवादी थे. केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल-मुजाहिदीन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया था. इन 36 लोगों में से सिर्फ एक, 40 साल के नानक सिंह की जान बचाई जा सकी. करमजीत सिंह जो अपनी सूझबूझ से बचे थे. दोनों ही इस घटना के बाद घाटी छोड़कर परिवार के साथ चले गए.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक- इस घटना के 4 दिन बाद 26 मार्च को सेना के जवानों और स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (यानी SOG) की यूनिट ने अनंतनाग जिले के पथरीबल गांव में 5 संदिग्धों को मार गिराया. दावा किया कि ये वही आतंकी थे, जिनका हाथ सिख नरसंहार में था. सेना ने इनके शवों को अलग-अलग जगहों पर दफना दिया. हालांकि स्थानीय लोगों ने मानने से इंकार कर दिया कि वो 5 लोग आतंकी थे. CBI ने चार्जशीट में इसे फेक इनकाउंटर भी बताया.  

गुस्साए लोगों ने 3 अप्रैल को अनंतनाग के बराकपुरा में प्रोटेस्ट किया. CRPF ने फायरिंग खोल दी. 9 लोग मारे गए, 15 घायल हुए. घटना में मारे गए लोग पथरीबल फर्जी मुठभेड़ के पीड़ितों के परिजन जांच की मांग कर रहे थे. अधिकारियों का कहना था कि इस प्रोटेस्ट में मिलिटेंट्स भी शामिल थे.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2010 में, लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी और 2008 के मुंबई हमलों के आरोपियों में से एक डेविड हेडली ने नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी यानी NIA के सामने ये कबूला कि छत्तीसिंहपुरा नरसंहार को लश्कर-ए-तैयबा ने अंजाम दिया था. इससे अंदाजा लगया जा सकता है कि कैसे आतंकियों ने न सिर्फ इतने बड़े नरसंहार को अंजाम दिया. बल्कि इसके आफ्टरमैथ्स में सुरक्षा बलों की तरफ से भी गलतियां हुईं, असंतोष पैदा हुआ और अस्थिरता भी. 

घाटी में नरसंहार जैसी कायराना हरकतें कई बार आतंकवादियों ने की हैं. कई बार पर्यटकों को भी निशाना बनाया गया है. साल 2000 की अमरनाथ यात्रा को ही ले लीजिए. काफी सुरक्षा के बीच साल 2000 में ही सावन के आने के साथ अमरनाथ यात्रा शुरू हुई. शुरुआती दिनों में भारी संख्या में लोगों ने बाबा बर्फानी के दर्शन किये. फिर 2 अगस्त को पहलगाम स्थित नुनवान बेस कैम्प के समीप हिज़्बुल- मुजाहिदीन ने भयानक आतंकी हमले को अंजाम दिया. 

The Tribune की रिपोर्ट के मुताबिक घटना में लगभग 95 लोगों पर आतंकियों ने अंधाधुंध फ़ायरिंग की. 21 श्रद्धालु और 3 जवान समेत 32 लोग मारे गए. अगले 48 घंटे कश्मीर के आधा दर्जन अलग-अलग जगहों पर ऐसे ही हमले हुए, जिनमें 100 से ज्यादा लोगों को जान गवानी पड़ी. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पहलगाम का दौरा किया और राष्ट्रपति के आर नारायण ने हमले की निंदा करते हुए कहा था, 

श्रद्धालुओं, मजदूरों और बेकसूर आदमी-औरतों को ‘जिहाद’ के नाम पर मारना बर्बरता की पराकाष्ठा है.

उस साल लगभग 2 लाख से कुछ कम श्रद्धालुओं ने अमरनाथ में माथा टेका. लेकिन अगले साल जब फिर से यात्रा शुरू हुई तो संख्या आधी रह गई. अगले साल, शुरुआती दौर में ही अमरनाथ यात्रियों पर फिर से हमला हुआ. 20 जुलाई 2001 को दो-तिहाई मार्ग के बाद पड़ने वाले शेषनाग बेस के एरिया में देर रात डेढ़ बजे आतंकियों ने एक कैम्प पर कायराना तरीके से ग्रेनेड से हमला किया. इसके चलते 3 महिलाओं और 2 जवानों समेत 13 लोगों को जान गवानी पड़ी.

2002 में जब यात्रा शुरू हुई तो 15 हजार से ज्यादा सुरक्षाबलों को तैनात किया गया और यात्रियों की संख्या में भी कुछ इजाफा हुआ. चाक-चौबंद इंतजाम किए गए. 2001 में जहां यात्रा मार्ग के ऊपरी हिस्से यानी शेषनाग कैंप पर सुरक्षा में सेंध लगी थी, 6 अगस्त 2002 को पहलगाम स्थित नुनवान और चंदनवाड़ी कैम्प (जहां से यात्रा शुरू होती है) के बीच लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने एक और भयानक हमला किया. इस हमले में 8 लोगों की मौत और 30 से अधिक के घायल होने की पुष्टि हुई.

जुलाई 2017 में एक बार फिर अमरनाथ यात्रा के श्रद्धालुओं को आतंकियों ने निशाना बनाया और अनंतनाग के बटेंगो में शाम के समय एक बस पर गोलीबारी की जिसमें 7 लोग मारे गए और 19 श्रद्धालु घायल हुए. लेकिन अगले ही दिन 2400 लोगों ने पहलगाम और करीब हजार लोगों ने बालटाल के रास्ते अमरनाथ दर्शन करके आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब दिया.

वीडियो: तारीख: कश्मीर में आतंक की वो कहानियां जिनसे सिहर उठा देश