दुनिया के कई देशों में इन दिनों दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने की 77वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी चल रही है. विश्व युद्ध की चर्चा होने पर भारत के एक शहर का जिक्र भी छिड़ जाता. एक ऐसा शहर जिस पर दोनों विश्व युद्ध में बम बरसाए गए. एक बार जर्मनी और दूसरी बार जापानियों के निशाने पर आया. खैर, ये शहर आज यानी 22 अगस्त को अपनी स्थापना के 383 साल पूरे होने का जश्न मना रहा है. नाम है मद्रास जिसका वर्तमान नाम चेन्नई है लेकिन ऐतिहासिक परिपेक्ष्य के लिए हम मद्रास नाम ही यूज़ करेंगे क्यूंकि कहानी इसी नाम से जुड़ी हुई है.
मद्रास के नाम और इतिहास को लेकर अलग-अलग दावों की कहानी क्या है?
मद्रास का नाम बदलकर चेन्नई क्यों कर दिया गया?

मद्रास की स्थापना से जुड़ी एक और जंग जिसका अपना इतिहास काफी लम्बा है. ये है इतिहासकारों के बीच की जंग. दक्षिण भारत के इस शहर की जब स्थापना हुई तो इसका नाम मद्रास क्यों रखा गया, इस बात को लेकर अलग-अलग दावे हैं. आज हम आपको बताएंगे इन सभी दावों के बारे में और ये भी कि सबसे सही दावा कौन सा है? इसके अलावा कि मद्रास आखिर बना कैसे, किसने इसे बनाया.
कोरोमंडल तट पर बसा मद्रास और उसके आसपास का इलाका भारत के उन गिने-चुने क्षेत्रों में से है जिसे यूरोप के सबसे ज्यादा देशों ने उपनिवेश बनाने की कोशिश की थी. यहां 16वीं शताब्दी में सबसे पहले पुर्तगाली आए. 1522 में पुर्तगालियों ने यहां सबसे पहले बंदरगाह बनाया था. इसके सौ साल बाद हॉलैंड के व्यापारी इस क्षेत्र में व्यापार करने आ गए.

लगभग इसी समय यानी 1619-20 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी भारत में अपने पैर जमाने शुरू कर दिए थे. सूरत में पोर्ट स्थापित कर उन्होंने व्यापार शुरू कर दिया था. बढ़िया काम चल रहा था. सूरत में जमने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने और विस्तार करने का फैसला किया. अधिकारी फ्रांसिस डे और एंड्रयू कोगन को दक्षिण भारत में ऐसी जगह ढूंढने को कहा गया जहां व्यापारिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए एक बड़ा कारखाना, गोदाम और हजारों अंग्रेजी अफसरों और कर्मचारियों के रहने की व्यवस्था की जा सके.
ईस्ट इंडिया कंपनी को मिली 3 किमी की पट्टीफ्रांसिस डे और एंड्रयू कोगन को कोरोमंडल तट सबसे उपयुक्त लगा. उस समय इस क्षेत्र पर विजयनगर के राजा के राजा पेडा वेंकट राय का कब्जा था. हालांकि, उन्होंने क्षेत्र की बागडोर दमरेला वेंकटपति नायक को सौंप रखी थी. कहें तो कोरोमंडल तट और उसके आसपास के इलाके के राजा नायक ही थे.
फ्रांसिस डे ने नायक से जमीन लेने को लेकर बात की. सौदा पक्का हुआ. 22 अगस्त 1639 में ईस्ट इंडिया कंपनी के एक हाकिम फ्रांसिस डे ने तीन किमी की पट्टी लीज पर ले ली. इसी दिन मद्रास की स्थापना हुई. अंग्रेजों ने यहां सेंट जॉर्ज फोर्ट (तमिलनाडु का वर्तमान विधानसभा भवन) बनवाया. इसे भारत में अंग्रेजों द्वारा निर्मित पहला किला भी कहा जाता है. इसके परिसर में अंग्रेजों के आवास, कारखाना और गोदाम बनाए गए.

1644 में लीज पर ली गई जमीन का कॉन्ट्रैक्ट पीरियड पूरा हो गया. 1645 में दूसरा कॉन्ट्रैक्ट साइन हुआ और इसमें अंग्रेजों को और जमीन देकर विस्तार करने का अधिकार मिला. यानी अब एक बड़े मद्रास शहर की नींव पड़ी. विस्तार के दौरान अंग्रेजों ने पुर्तगालियों और हॉलैंड के व्यापारियों के साथ भी सौदा किया और उनके इलाकों को भी अपने में मिला लिया. कुछ ही सालों में मद्रास भारत और यूरोप के बीच एक प्रमुख व्यापारिक बंदरगाह के रूप में फेमस हो गया.
मीर जुमला का मद्रास पर आक्रमणबंदरगाह की खबरें करीब 600 किमी दूर बैठे गोलकुंडा के सुल्तान अब्दुल्ला कुतुब शाह के कानों तक भी पहुंचीं. उसके वजीर मीर जुमला ने सेना लाकर मद्रास को जीत लिया. बताते हैं कि जुमला ने मद्रास के स्थानीय लोगों पर जमकर अत्याचार किए थे.

17 वीं शताब्दी के अंत तक प्लेग, नरसंहार और नस्लीय हिंसा के चलते मद्रास लगभग खत्म हो गया था. गोलकुंडा साम्राज्य के पतन के बाद 1687 में मद्रास मुगलों के कब्जे में आया. मुगलों ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को मद्रास को डेवलप करने और उसका विस्तार करने का अधिकार दे दिया.

इस दौरान मद्रास को लेकर अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों और मैसूर के सुल्तान हैदर अली के हमले भी झेले. कुछ साल फ्रांसीसियों ने भी यहां शासन किया. लेकिन, अंततः 1749 में अंग्रेज दोबारा यहां इतनी मजबूती से काबिज हो गए कि फिर उन्हें कोई यहां से हटा नहीं सका.
अब समझिए मद्रास के नाम की कहानीकिसी एक शहर का नाम कैसे पड़ता है. अमूमन वहां के चर्चित व्यक्ति के नाम पर, आसपास कोई चर्चित जगह हो, उसके नाम पर या उसे थोड़ा बदलकर शहर का नाम रख दिया जाता है. जितने भी तरह से किसी शहर का नामकरण किया जा सकता, मद्रास के नाम को लेकर वे सब दावे किए जाते हैं.
कुछ इतिहासकारों का कहना है कि जब अंग्रेजों ने मद्रास की स्थापना की तो उस जगह के करीब मद्रासपट्टनम नाम का एक गांव था जिसके चलते मद्रास नाम पड़ा. 1927 में मद्रास के एक पादरी रेव एएम टेक्सीरा ने दावा किया कि मद्रास नाम एक पुर्तगाली परिवार के चलते पड़ा. उनका कहना था कि इस परिवार को ‘मद्रा’ कहा जाता था. इस परिवार ने मद्रास के तटीय क्षेत्र में रहने वाले एक मछुआरों के नेता को ईसाई धर्म में कन्वर्ट करा दिया था. उन्होंने इस मछुआरे को नया नाम दिया - मदरसन - और मदरसन के ही नाम पर क्षेत्र का नाम पड़ा मद्रास.

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि 16वीं शताब्दी में जब पुर्तगाली इस क्षेत्र में पहुंचे, तो उन्होंने इसका नाम ‘माद्रे दे डेस’ रखा जिसे बाद में 'मद्रास' के नाम से जाना जाने लगा. कुछ का ये भी कहना है कि 'मद्रास' शब्द पुर्तगालियों द्वारा स्थापित माद्रे-डी-दिओस चर्च से निकला.
कुछ मुसलमानों का मानना है कि मद्रास शब्द मुस्लिम है और इसकी उत्पत्ति 'मदरसा' शब्द से हुई है. कुछ इतिहासकार बताते हैं कि ऐसा ब्रिटिश सेना के कर्नल हेनरी यूल के एक बयान के बाद कहा गया. यूल ने 1886 में दावा किया था कि 1639 में फोर्ट सेंट जॉर्ज किले के निर्माण के समय उसके करीब एक मदरसा मौजूद था.
मद्रास को जब 1996 में चेन्नई नाम दिया गया तो राज्य सरकार सबसे बड़ा तर्क यही था कि ये मद्रास एक तमिल शब्द नहीं है.
'1639 से पहले मद्रास शब्द का कहीं जिक्र नहीं'मद्रास नाम की उत्पत्ति को लेकर हो रहे दावों पर फ्रेंच इतिहासकार और दक्षिण भारत पर काफी कुछ लिखने वाले जेबी प्रशांत मोरे ने एक किताब लिखी है. नाम है 'Origin and Foundation of Madras'. ये किताब उन्होंने तमिलनाडु से लेकर लंदन तक रिसर्च के बाद लिखी.

मद्रास की उत्पत्ति को लेकर जितने भी दावों की बात हमने की है, जेबी मोरे वे सभी दावे तर्कों के साथ ख़ारिज करते हैं. सबसे पहले तो उनका कहना है कि 'मद्रास' एक तमिल शब्द है. एक इंटरव्यू में मोरे कहते हैं,
अंग्रेजों को जो जमीन दी गयी थी, वहां पर 1639 से पहले से जो गांव मौजूद थे, इन गांवों के मंदिरों में मौजूद पुराने शिलालेखों में कहीं भी 1639 से पहले 'मद्रास' या 'चेन्नई' के बारे में कुछ नहीं मिला....इसके अलावा उस समय के अरब, पुर्तगाली, डच, डेनिश, ब्रिटिश और फ्रांसीसी यात्रियों द्वारा लिखे गए दस्तावेजों में 1639 से पहले 'मद्रास' या चेन्नई के अस्तित्व का उल्लेख नहीं है. प्राचीन और मध्यकालीन तमिल, तेलुगु और संस्कृत साहित्य में भी कोई उल्लेख नहीं है. इसलिए तार्किक निष्कर्ष यह है कि 1639 से पहले मद्रास का कोई अस्तित्व नहीं था. यानी इसे लेकर पुर्तगालियों से जुड़े सभी दावे खारिज हो जाते हैं.
मोरे बताते हैं,
अंग्रेजों के आने से पहले कोई मद्रासपट्टनम या मद्रास नहीं था. अंग्रेजों से मिले दस्तावेज बताते हैं कि 1639 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी फ्रांसिस डे को वेंकटपति नायक से जो जमीन मिली थी, उसे 'सियार का टीला' या 'नारी मेदु' कहा जाता था. और जब यहां सेंट जॉर्ज किले की स्थापना की जाने लगी तो किले के आसपास की जगह पर तमिल और तेलुगु प्रवासी आकर बस गए. इसके बाद शुरुआत में इस जगह का नाम मद्रासपट्टनम पड़ा.'जगह का विस्तार हुआ और नाम मद्रास हो गया.
मदरसे वाले दावे को लेकर जेबी मोरे का कहना है कि कर्नल हेनरी यूल के दावे के अलावा उन्हें किसी भी दस्तावेज में वहां मदरसा होने वाली बात नहीं मिली. दस्तावेजों में यही लिखा है कि वहां जिस क्षेत्र में सेंट जॉर्ज किला बना था, वह रेतीला इलाका था और आसपास बस कुछ मछुआरे ही रहते थे.
मद्रास का नाम चेन्नई क्यों रखा गया?1996 में तमिलनाडु की DMK सरकार ने मद्रास का नाम बदलकर चेन्नई रखने का फैसला किया. 1998 में नाम बदल दिया गया. शहर का नाम चेन्नई करने के पीछे ये विचार था कि मद्रास एक तमिल नाम नहीं है. जबकि चेन्नई एक तमिल नाम है. 'चेन्नई' शब्द चेन्नईपट्टनम शहर के नाम से लिया गया था. कहा गया कि चेन्नईपट्टनम शहर का नाम दमरेला वेंकटपति नायक ने रखा था. वही नायक जिन्होंने 1639 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को जमीन दी थी. नायक ने चेन्नईपट्टनम शहर को ये नाम अपने पिता दमरेला चेन्नप्पा नायकउडु के सम्मान में दिया था.

नाम में क्या रखा है? ऐसा अक्सर कहा जाता है. लेकिन, एक नाम पहचान होती है एक व्यक्ति की, एक जगह की. इससे भी ज्यादा एक नाम अपने साथ पूरा इतिहास और संस्कृति लेकर चलता है. जैसे कि मद्रास, जिसके साथ कई शताब्दियों का इतिहास जुड़ा है.
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