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दुनिया के सारे ठगों का गुरु, 2100 करोड़ लूटे, लेकिन मरा कंगाली में!

चिट फंड नाम से होने वाले जितने भी स्कैम हैं, उनका नाम इस आदमी के ऊपर रखा गया है. कौन था चार्ल्स पोंजी और क्या थी उसकी स्कीम जो ठगों की दुनिया में उसका नाम अमर कर गई.

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पोंजी का स्कैम जब तक खुला, 6 बैंक डूब चुके थे और हजारों लोग दिवालिया हो चुके थे. ( तस्वीर: Getty)

हेराफेरी फिल्म वाली अनुराधा याद है आपको. जो 21 दिन में पैसा डबल करने का वादा करके ग़ायब हो जाती है. उसके स्कैम का शिकार हुए थे श्याम राजू और बाबू राव. इस स्कैम को कहा जाता है - पॉन्ज़ी स्कीम. हम और आप कई बार पॉन्ज़ी स्कीमों के बारे में अख़बारों में पढ़ते हैं. जिस आदमी के नाम से इस ठगी को जाना जाता है, कभी उसके दरवाज़े पर लोगों की भीड़ खड़ी होती थी. कैश और गहने लिए लोग पोंजी के आगे नतमस्तक होकर कहते थे, हमारा भी पैसा इन्वेस्ट करा दो. पोंजी बाल खींचकर कहता, चिल्ला चिल्ला के सबको स्कीम बता दो.

ऐसा नहीं था कि पोंजी महज एक धोखेबाज़ था. इस ठगी को जमाने के लिए उसने खूब मेहनत की थी. तमाम नौकरियों में रहा. कभी इस देश घूमा तो कभी उस देश. लेकिन आखिर में उसे चार्वाक याद आए. पोंजी उधार लेकर घी पीने लगा. लेकिन जब लोगों ने उधार देना भी बंद कर दिया तो पोंजी ने खोजी एक ऐसी स्कीम जिसने उसका नाम हमेशा-हमेशा के लिए अमर कर दिया. इटली से आए पोंजी को इस स्कीम ने अमेरिकियों का हीरो बना दिया. उसे फाइनेंस की दुनिया का जीनियस करार दिया गया. लेकिन ये सिर्फ तब तक था, जब तक उसकी पोल न खुल गई. आगे अपनी हरकतों के कारण पोंजी को एक बदनाम जिंदगी और एक नामुराद मौत मिली. (Charles Ponzi)

इसके बावजूद पोंजी को गुरु बनाकर दुनियाभर के ठगों ने पोंजी का आईडिया रीसायकल किया. पकड़े गए लेकिन रुके नहीं. पोंजी के चेले उसकी विरासत आगे बढ़ाते रहे. अब भी बढ़ा रहे हैं. कौन था पोंजी?
क्या थी उसकी स्कीम? (Ponzi Scheme)
और कैसे बना वो ठगों का सरदार?
चलिए जानते हैं.  

इटली टू अमेरिका 

3 मार्च 1882. इटली के एक छोटे से शहर में चार्ल्स पोंजी का जन्म हुआ. पोंजी की पैदाइश तक उसका परिवार पैसे वाला था. लेकिन जब तक पोंजी के खर्च करने की बारी आती, पैसे ख़त्म हो गए. जैसे ही पोंजी थोड़ा बड़ा हुआ, रोम चला गया. यहां उसने छोटी-मोटी नौकरियां की. और फिर एक यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया. हालांकि पढाई में उसका मन कभी था ही नहीं.

Charles Ponzi
चार्ल्स पोंजी (तस्वीर: Getty)

पोंजी के अपने शब्दों में. “पैसे खर्च करना उसे दुनिया की सबसे आकर्षक शय लगती थी”. वो होटल और बार में वक्त बिताता. इस चक्कर में उसके पास जो थोड़े बहुत पैसे थे वो भी ख़त्म हो गए. पोंजी को यूनिवर्सिटी छोड़नी पड़ी. रोज़ी कमाने के लिए अब उसके पास दिहाड़ी के अलावा कोई चारा न था. लेकिन मेहनत का काम पोंजी करे. ऐसा हो ही नहीं सकता था. पोंजी ने कहा, वो सपनों के देश जाएगा. सपनों का देश तब एक ही था- अमेरिका.

15 नवम्बर 1903. पोंजी अमेरिका के बोस्टन शहर में उतरा.और अपनी किस्मत चमकाने लगा. उसने छोटी-मोटी नौकरियां शुरू कीं. लेकिन कहीं भी ज्यादा देर टिक न सका. हर जगह उसने चोरी चकारी या धोखाधड़ी की कोशिश की. और निकाल दिया गया. अमेरिका में जब पोंजी की दाल न गली तो उसने कनाडा का रुख किया. कनाडा में भी पोंजी कुछ खास तो न कर पाया लेकिन यहां रहते हुए उसे वो आईडिया मिल गया, जो उसकी जिंदगी बदलने वाला था. (Chit Fund Fraud)

पोंजी इन कनाडा

कनाडा में पोंजी को ज़ेरोसी नाम के एक बैंक में असिस्टेंट की नौकरी मिली.यहां पोंजी को अपना पहला गुरु मिला.वो कैसे?
ज़ेरोसी बैंक की खास बात थी की ये जमा की हुई रकम पर 6 % ब्याज देता था. जबकि बाकी बैंक 3 % देते थे. बैंक के ज्यादातर कस्टमर इतालवी आप्रवासी थे. जो आसानी इसे इस झांसे में आ गए. जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि ये एक स्कैम है. बैंक का मालिक नए खातों से पैसे लेकर पुराने ग्राहकों को दे देता था. इस तरह कई साल वो ये ठगी चलाता रहा. लेकिन फिर एक रोज़ उसकी पोल खुल गई. ज़ेरोसी पैसा लेकर मेक्सिको भाग गया. पोंजी ये सब देख रहा था. बैंक को डूबते देख उसने सोचा क्यों न कुछ मलाई उसे भी मिल जाए. उसने बैंक के नाम से 423 डॉलर का एक फ़र्ज़ी चेक भुनाने की कोशिश की. और इस चक्कर में पकड़ा गया. उसे तीन साल की जेल हुई. पोंजी ने हालांकि इससे कोई सबक नहीं सीखा. जेल से निकलकर वो अमेरिका पहुंचा और फिर अपनी हरकतें शुरू कर दीं.

पोंजी बैक टू अमेरिका

1911 में पोंजी वापिस अमेरिका लौटा था. यहां आकर उसने गैरकानूनी रूप से आप्रवासियों को बॉर्डर पार कराना शुरू कर दिया.इस चक्कर में उसे फिर दो साल की जेल हुई. पोंजी के बदलने के कोई आसार न लग रहे थे. लेकिन फिर एक रोज़ उसे ’रोज़’ दिखाई दी. स्टेनेग्राफर का काम करने वाली ये लड़की पोंजी को पहली नज़र में भा गई. प्यार में पड़ा पोंजी रोज़ के लिए कुछ भी करने को तैयार था. उसने रोज़ से शादी की और कुछ वक्त के लिए अपने टेढ़े-मेढ़े धंधे बंद कर दिए. उसने रोज़ के पिता के धंधे में हाथ बंटाना शुरू किया.लेकिन किस्मत को शायद कुछ और मंजूर था. ये धंधा भी एक ही साल में ठप पड़ गया. पोंजी ने कुछ और धंधों में हाथ आजमाया लेकिन कहीं उसकी दाल न गली. अंत में पोंजी ने सोचा, बहुत हो गया. अब वो बिजनेस का अपना अलग रास्ता ईजाद करेगा. पोंजी ने जो बिजनेस बनाया, वो पोंजी स्कीम के नाम से हमेशा के लिए फेमस हो गया.

क्या है पोंजी स्कीम?

चार्ल्स पोंजी का नाम आपने सुना हो या न सुना हो. इतना तय है कि इस स्कीम, या जिसे स्कैम कहना चाहिए, उसके बारे में आपने जरूर सुना होगा. मोटा-मोटी समझिए कि पोंजी स्कीम होती क्या है.

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चार्ल्स पोंजी अपनी पत्नी रोज़ के साथ (तस्वीर: getty)

अंग्रेज़ी में इस धोखाधड़ी के लिए एक सिंपल सी कहावत है. रॉब पीटर टू पे पॉल. यानी पीटर को लूटो और पॉल को चुका दो. और आसानी से समझने के लिए मान लीजिए एक रोज़ आपके शहर में लल्लन आया. लल्लन ने एक इन्वेस्टमेंट स्कीम शुरू की. उसने वादा किया कि अगर आप उसे पैसा दें तो वो आपको 12 % इंटरेस्ट देगा. 12% इंटरेस्ट सुनकर आप लल्लन के पास पैसा जमा कर आए. शुरुआती महीनों में आपको 12 % ब्याज मिलने भी लगा. अब जैसे ही आपको ब्याज मिला, आपने अपने दोस्तों को बताया. बात फैलती गई. और आखिर में लल्लन के पास ढेर सारे इन्वेस्टर हो गए.

अब लल्लन क्या करता. नए कस्टमर से जो पैसा आता उससे पुराने कस्टमर को ब्याज की रकम दे देता. अब आप पूछेंगे अगर लल्लन कहीं से कमा नहीं रहा तो ऐसे कब तक वो ब्याज देता रहेगा. तो इसी में छुपी है इस स्कीम की कुंजी. एक पोंजी स्कीम सिर्फ तब तक चल सकती है, जब तक उसमें नए कस्मटर जुड़ते जाएं. हालांकि अंत में लल्लन का डूबना तय है. लेकिन तब तक वो लाखों लोगों का पैसा डकार चुका होगा. और किस्मत ने साथ दिया तो लन्दन यूरोप में आराम की जिंदगी काटेगा. किस्मत सही नहीं हुई तो पकड़ा जाएगा और जेल होगी. यही पोंजी के साथ भी हुआ. लेकिन उससे पहले पोंजी ने लम्बे समय तक मौज़ काटी.

पोंजी का स्टाम्प बिजनेस

अब जबकि आपको समझ आ गया होगा कि पोंजी स्कीम काम कैसे करती है, जानते हैं कि पोंजी ने इस स्कीम का कौन सा कलेवर अपनाया था. इस सब की शुरुआत हुई थी एक स्टाम्प कूपन से. क्या था ये कूपन?

दरअसल 1906 में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन नामक संस्था ने इंटरनेशनल रिप्लाई कूपन या IRC नाम के एक कूपन की शुरुआत की. यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन, संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है जो सदस्य देशों के बीच डाक नियमों को तय करती है. इंटरनेशनल रिप्लाई कूपन क्या था? मान लीजिए आपने अमेरिका तक एक डाक भेजी. और आप उसका जवाब भी चाहते हैं. लेकिन आपको लगता है कि जवाब देने वाले को अपने पैसे खर्च न करने पड़ें. तो आप अपनी डाक के साथ एक IRC भेज देते हैं. अमेरिका वाला बंदा IRC के एवज में स्टाम्प खरीद सकेगा. और इस तरह उसे अपनी तरफ से पैसे खर्च नहीं करने पड़ेंगे. पोंजी ने इसी IRC से बिजनेस बनाने की सोची.

IRC
1959 में रिलीज़ हुआ एक ब्रिटिश IRC कूपन (तस्वीर: Wikimedia Commons)

साल 1919 के आसपास की बात है. पोंजी नए बिज़नेस की तलाश में था. और इस चक्कर में वो यूरोप की कंपनियों को चिट्ठी भेजा करता था. ताकि वो उसने बिजनेस में पैसा इन्वेस्ट कर सके. ऐसी ही एक चिट्ठी के जवाब में पोंजी को साथ में नत्थी एक IRC कूपन मिला. कंपनी के साथ बिजनेस तो नहीं शुरू हो पाया लेकिन इस IRC कूपन से पोंजी को एक आईडिया मिल गया. क्या था ये आईडिया?

कम में खरीदो, ज्यादा में बेचो!

पोंजी को अहसास हुआ कि अलग-अलग देशों में IRC के मूल्य में अंतर था. ऐसे समझिए. 
मान लेते हैं कि भारत का रुपया अमेरिकी डॉलर का आधा है. यानी 1 डॉलर में दो रूपये आते हैं. अब आपने भारत से IRC ख़रीदा 1 रूपये में और उसे अमेरिका भेज दिया. अमेरिका में IRC के बदले 1 डॉलर का पोस्ट स्टाम्प मिलेगा. अगर आप इस पोस्ट स्टाम्प को बेचें तो आपको दोगुना मुनाफा होगा. यही पोंजी का बिजनेस आईडिया बना. वर्ल्ड वॉर-2 के बाद यूरोप में मुद्राएं डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रही थीं. पोंजी को लगा, अगर वो इन देशों से IRC लाकर अमेरिका में स्टाम्प खरीदेगा और उसे बेचेगा तो उसे 400% मुनाफा मिल सकता है.

पोंजी के इस धंधे में कुछ भी गैरकानूनी नहीं था. कम में खरीद के ज्यादा में बेचना बिजनेस का मूल सिद्धांत है. पोंजी ने अपनी कम्पनी बनाई और इस धंधे में उतर गया. उसने दूसरे लोगों को भी ये स्कीम बेचनी शुरू की. उन्हें बड़ी बड़ी बातें बताई. मसलन दुनिया के हर देश में उसके एजेंट हैं, जो एकमुश्त ढेर सारे IRC खरीद कर उसे भेजते देते हैं. धंधे में 4 गुना मुनाफा है, आदि.

उसने लोगों से वादा किया कि वो उनका पैसा 45 दिन में डेढ़ गुना और 90 दिन में दोगुना कर सकता है. पोंजी का आईडिया सुनने में मजबूत लगता था. लोगों ने उसे पैसे देना शुरू किया. पहले कुछ इन्वेस्टर्स को 45 दिन में डेढ़ गुना पैसा मिला भी. ये सुनकर पोंजी के ऑफिस के आगे लोगों की भीड़ लग गई. बॉस्टन पोस्ट नाम के एक नामी गिरामी अखबार ने उसे जीनियस बता दिया. जल्द ही पोंजी अमेरिका का नामी गिरामी इंसान बन गया. कभी कौड़ियों को तरसने वाला पोंजी, अब हर महीने करोड़ों में खेल रहा था. उसके सपने सच हो चुके थे. वो महंगी गाड़ियों में घूमने लगा. अच्छे कपड़े, महंगी दारु सब उसे हासिल था. जिस कंपनी में वो पहले काम करता था, टशन दिखाने के लिए उसने उसे भी खरीद लिया. सिर्फ इसलिए ताकि उसके मालिक को बर्खास्त कर सके.पोंजी के सितारे आसमान पर थे. लेकिन फिर एक रोज़ अख़बार में छपी रिपोर्ट ने उसके साम्राज्य की नीवें हिला दीं. ये रिपोर्ट बॉस्टन अखबार में छपी थी, वही अखबार जिसने कुछ साल पहले उसे जीनियस बताया था.

पोल खुली तो ठन ठन गोपाल 

हुआ ये कि कुछ सालों बाद पोंजी के नए इन्वेस्टर्स को ब्याज मिलना बंद हो गया. वो सीधे अखबार के पास पहुंचे. 
बॉस्टन अखबार ने पोंजी के बिजनेस की तहकीकात के लिए लिए एक विशेषज्ञ को बुलाया. उसने जो खुलासा किया, पैरों तले जमीन खिसकाने वाला था. तहकीकात में पता चला कि पोंजी जिसे बिजनेस आईडिया बता रहा था, वो प्रैक्टिकल ही नहीं था. दुनियाभर से IRC कूपन खरीदकर अमेरिका भिजवाने, उससे स्टाम्प खरीदने और फिर बेचने का ये उपक्रम बहुत ही महंगा था. इतना महंगा कि IRC से जितना प्रॉफिट होता, वो इस नेटवर्क को मेंटेन करने में ही ख़त्म हो जाता. दूसरी बात ये थी कि दुनियाभर में इतने IRC कूपन थे ही नहीं कि उनसे कोई बिजनेस किया जा सके. बॉस्टन अखबार ने जैसे ही इन खामियों का खुलासा किया, पोंजी के दफ्तर के आगे एक और बार लोगों की भीड़ जुटने लगी. अबकी ये लोग अपना पैसा वापिस मांगने आए थे. लेकिन पैसा आता कहां से. वो तो पोंजी अपनी अय्याशी में लुटा चुका था.

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बॉस्टन पोस्ट अखबार को पोंजी पर अपनी रिपोर्ट के लिए पुलित्ज़र पुरस्कार मिला था (तस्वीर: boston globe)

पोंजी ने इस तहकीकात को रुकवाने के लिए खूब कोशिशें की. उसने पत्रकारों पर केस किया. लेकिन बॉस्टन पोस्ट अखबार ने अपनी तहकीकात बंद न की. पोंजी की पोल खोलने वाली उनकी रिपोर्ट को बाद में पुलित्ज़र पुरस्कार से नवाजा गया. जल्द ही मामला केंद्रीय जांच एजेंसियो के सामने लाया गया. ऑडिट में पता चला कि पोंजी लोगों के 2100 करोड़ रुपए डकार चुका था. पोंजी की धोखाधड़ी से 6 बैंक डूब गए और हजारों लोग दिवालिया हो गए. पोंजी को जेल हुई. लेकिन उसकी कहानी यहां खत्म न हुई. अभी तो उसे और कारनामे करने थे.

पोंजी रुका नहीं, पोंजी रुकते नहीं

तीन साल की जेल काटने के बाद पोंजी को परोल मिल गई. वो भागकर अमेरिका के राज्य फ्लोरिडा पहुंच गया. यहां एक बार फिर उसने झूठ का एक कारोबार खड़ा किया. फ्लोरिडा में रियल स्टेट की कीमतें आसमान छू रही थीं. पोंजी ने लोगों ने कहा कि उसके पास ढेर सारी जमीन है. और अगर वो उसके बिजनेस में इन्वेस्ट करेंगे तो उन्हें दोगुना ब्याज मिलेगा. असल में पोंजी जिसे महंगी जमीन बता रहा था, वो दलदल वाली जमीन थी. जो उसने कौड़ी के दाम खरीदी थी. 

यहां भी पोंजी का पर्दाफाश हुआ और उसे एक बार फिर जेल जाना पड़ा. एक बार फिर उसे बेल मिल गई. पोंजी को लगने लगा था कि अमेरिका में रहकर वो जेल से बाहर नहीं रह पाएगा. उसने भेष बदलकर इटली जाने की कोशिश की. लेकिन जहाज में चढ़ते वक्त अधिकारियों ने उसे पहचान लिया. इस बार पोंजी को 7 साल जेल की कड़ी सजा गुजारनी पड़ी. बाहर आते ही उसे इटली डिपोर्ट कर दिया गया. लुटेरे का सब कुछ लुट चुका था. उसके बीवी बच्चों ने भी उसका साथ छोड़ दिया. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पोंजी इटली से ब्राज़ील गया. अपने आख़िरी दिन मुफलिसी में गुजारने के बाद एक सरकारी अस्पताल में उसकी मौत हो गई. साल था 1949.

पोंजी की कहानी यूं तो दिखाती है कि ठगी का अंजाम बुरा होता है. लेकिन हर ठग को पकड़े जाने तक यही लगता है कि वो इस कहानी को बदल देगा. पोंजी के बाद उसके चेलों ने ऐसे कई स्कैम चलाए. भारत की बात करें तो शारदा चिट फंड स्कैम पोंजी स्कीम का सबसे बड़ा उदाहरण है.

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