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दाऊद के भाई को मारने वाला डॉन!

मन्या सुर्वे उर्फ़ मनोहर अर्जुन सुर्वे मुंबई का एक कुख्यात अपराधी था, जिसे जनवरी, 1982 में वडाला में मुंबई पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया.

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पठान गिरोह के इशारे पर गैंगस्टर मान्या सुर्वे ने दाऊद इब्राहिम के भाई शाबिर कास्कर की गोली मारकर हत्या कर दी थी (तस्वीर-Wikimedia commons/Indiatoday)

ये उस दौर की बात है जब पुलिस किसी को दिन दहाड़े मार गिराए, ऐसी ख़बर किसी के रोंगटे खड़ी कर सकती थी. पुलिस मुजरिम को पकड़ती, अदालत उसे सजा देती, कभी वो बेल पर निकल आता, दुबारा गुनाह करता, और पुलिस उसे फिर पकड़ लेती. अपराधियों और पुलिस के बीच ये अनवरत साइकिल चलती रहती थी. फिर जनवरी 1982 की एक दोपहर मुम्बई के लोगों ने पहली बार एक न शब्द सुना- एंकाउंटर. पुलिस ने दिन दिहाड़े एक अपराधी को मार गिराया था. ये मुम्बई के इतिहास का पहला एनकाउंटर था. ये एनकाउंटर 11 जनवरी 1982 को हुआ था (Manya Surve encounter).

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क्या थी इस एनकाउंटर की कहानी?

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पार्ले और कैडबरी की स्मगलिंग 

इस पूरी कहानी की शुरुआत हुई थी एक टैक्स से. 1950 के दशक में भारत में इम्पोर्ट्स पे 400 परसेंट तक टैक्स लगता था. जिसके चलते समग्लिंग एक आकर्षक धंधा बन गया था. बॉम्बे में तमाम इम्पोर्टेड चीजें स्मगल कर लाई जाने लगी. इन में सबसे कीमती थे बिस्किट. पार्ले जी, मेरी और कैडबरी. ये खाने वाले नहीं बल्कि सोने के बिस्किट हुआ करते थे, जिन्हें अपने आकार के चलते इसी नाम से बुलाया जाता था. इसके बाद जो दूसरी सबसे कीमती चीज थी, वो थी इम्पोर्टेड शराब। स्मगलिंग के इस धंधे में उस दौर में सबसे पहले तीन लोगों का नाम हुआ. करीम लाला(Karim Lala), हाजी मस्तान(Haji Mastan) और वरदराजन मुदलियार(Varadarajan Mudaliar) उर्फ़ वर्धा भाई. इन तीन लोगों ने ही मुम्बई अंडरवर्ल्ड की नींव रखी थी. करीम लाला शराब और जुएं के अड्डे चलता था. वरदराजन विदेशी शारब की स्मगलिंग किया करता था वहीं हाजी मस्तान सोने की तस्करी में लिप्त था. शुरुआत से तीनों के बीच धंधे को लेकर अदावत थी. लेकिन जल्द ही उन्हें अहसास हो गया कि असलफायदा मिलकर काम करने में है.

Dawood Ibrahim
मुम्बई अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम (तस्वीर-Indiatoday)

'डोंगरी टू मुंबई सिक्स डिकेड्स ऑफ़ द मुबई माफ़िया' नाम की किताब में में एस. हुसैन ज़ैदी लिखते हैं,

"मस्तान को मुंबई में अपनी बादशाहत क़ायम करने के लिए मसल पावर की ज़रूरत थी. इसकी तलाश में ही उसने शहर के दो मशहूर डॉन करीम लाला और वर्दराजन मुदालियार से हाथ मिलाया."

इसके अगले दो दशक तक मुम्बई में अंडरवर्ल्ड का काम आसानी से चलता रहा. छोटी मोटी गिरफ्तारियां और कभी-कभार सुनाई देने वाले मर्डर केसेज़ के अलावा जायदातर काम शांति से होता था. हुसैन जैदी लिखते हैं कि पुलिस स्टेशन में तब एक स्पेशल ड्रिंक आती थी. जिसे झागदार कोला कहा जाता था. जैसे ही ये कोला पुलिस अधिकारी की मेज़ पर पहुंचता, पूरा थाना खाली हो जाता. ये पैगाम था वर्धा भाई का. 

दाऊद और पठान गैंग की लड़ाई 

कुछ ऐसी ही हेकड़ी बाकी दोनों डॉन्स भी जताते थे. लोगों से लेकर मुम्बई पुलिस के बीच इनका दबदबा था. फिर 80 के दशक में अंडरवर्ड में एक नए गैंग की शुरुआत हुई. डी कंपनी, जिसे दो भाई मिलकर चलाते थे. दाऊद इब्राहिम कास्कर(Dawood Ibrahim) और शाबिर इब्राहिम कास्कर(Shabir Ibrahim Kaskar). दोनों की शुरुआत छोटी मोटी उठाईगिरी से हुई थी. लेकिन उनका असल इरादा था मुम्बई अंडरवर्ल्ड पे राज करना.

करीम लाला का पठान गैंग तब अधिकतर इलाके पर वर्चस्व रखता था. कास्कर भाइयों ने धंधे में आते ही करीम लाला को चुनौती देने का काम किया. नतीजा यह हुआ कि पठान गैंग और दाऊद गैंग के बीच दुश्मनी शुरू हो गई. जिसका दाऊद को खामियाज़ा भी भुगतना पड़ा.

12 फरवरी 1981 की रात. लगभग 11 बजे दाऊद का भाई शाबिर अपनी बीवी का चेकअप कराकर वापस लौटा था. तभी उसके घर का फोन बजा. दूसरी तरफ शाबिर की महबूबा चित्रा की आवाज थी. चित्रा उससे मुलाकात करना चाहती थी. शाबिर अपनी पत्नी को ये कहते हुए बाहर निकल गया कि सुबह तक लौटेगा. अपनी सफ़ेद पदि्मनी फिएट से उनसे चित्रा को पिकअप किया और मुम्बई की सड़कों पर निकल गया. हाजी अली के पास उसने रियर मिरर में देखा कि फूलों से सजी एक सफ़ेद एंबेसेडर उसे पीछे पीछे आ रही है. शाबिर ने कुछ देर बाद अपनी कार एक पेट्रोल पंप पर रोकी. जैसे ही उसकी गाड़ी पेट्रोल पंप पर रुकी. पीछे से आ रही सफ़ेद एम्बेसडर भी रुक गयी. उसमें से निकले तीन लोग. उनके हाथों में पिस्तौल थी. शाबिर ने अपनी पिस्तौल निकालने की कोशिश की. लेकिन इतनी देर में उसे गोलियों छलनी कर दिया गया. माना जाता है कि शाबिर की हत्या के बाद मुम्बई अंडरवर्ल्ड पूरी तरह से तब्दील हो गया. अब तक जो बात शब्दों से होती थी, वही गोलियों से होने लगी.

Karim Lala
मुंबई पर अंडरवर्ल्ड डॉन करीम लाला का राज करीब 30 साल यानी 1950 से 1980 के बीच रहा (तस्वीर-Wikimedia commons/indianexpress)

मन्या सुर्वे 

इस बदलाव में एक बहुत बड़ा हाथ था मन्या सुर्वे नाम के शख्स का. मन्या का असली नाम था मनोहर अर्जुन सुर्वे. साल 1944 में उसकी पैदाइश हुई थी. रत्नागिरी, महाराष्ट्र के एक गांव में. 1952 में वो बॉम्बे आया. और एल्फिंस्टन रोड स्थित एक चाल में रहने लगा. मन्या को अंडरवर्ल्ड का पहला पढ़ा लिखा डॉन बताया जाता है. काहे कि उसने केमिस्ट्री में ग्रेजुएट की डिग्री ली थी. और उस जमाने में उसके 78 % मार्क्स थे. लेकिन परिस्थितियों ने ऐसी करवट ली. और मनोहर जुर्म की दुनिया में उतरकर मन्या सुर्वे बन गया. साल 1969 में उस पर हत्या का इल्जाम लगा. और इस अपराध में उसे आजीवन कारावास की सजा हो गई हालांकि कहा ये भी जाता है कि मन्या ने ये हत्या नहीं की थी. और वो बेवजह इसमें फंस गया था.

सजा काटने के दौरान मनोहर यरवदा जेल में बंद था. यहां उसुहास उर्फ़ पोत्या भाई नाम के एक गैंगस्टर से उसकी रंजिश होने लगी. जिसके चलते जेल अधिकारीयों ने मन्या को यरवदा से रत्नागिरी जेल में ट्रांसफर कर दिया. रत्नागिरी में मन्या ने एक भूख हड़ताल की. इस दौरान उसका 20 किलो वजन कम हो गया, जिसके चलते उसे अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा. इस मौके का फायदा उठाकर मन्या जेल से भाग गया. हालांकि अपनी सजा के 9 साल वो काट चुका था. मुंबई लौटने के बाद मन्या ने अपना खुद का गैंग बनाया. इस गैंग में उसके दो खास सिपहसालार थे. पहला शेख मुनीर, धारावी से. और विष्णु पाटिल, डोम्बिवली से. मार्च 1980 में उसकी गैंग में एक और मेंबर जुड़ा, उदय शेट्टी.

मन्या के गैंग का नाम पहली बार सुर्ख़ियों में आया एक चोरी से. 5 अप्रैल 1980 को मन्या ने एक अम्बैसडर कार चोरी की और उसमें बैठकर लक्ष्मी ट्रेडिंग कंपनी जा पहुंचा. यहां से उनसे 5 हजार रुपयों की लूट की. इसके अलावा उसने शेख मुनीर के दुश्मन शेख अजीज की भी हत्या कर डाली. मन्या जेल में किताबें पढ़ा करता था. जेम्स हेडली चेस की एक किताब से इंस्पिरेशन लेकर उसने सरकारी दूध स्कीम से पैसे लूटे. गोवंडी से सवा लाख की डकैती की और उसी साल केनरा बैंक की एक ब्रांच से 1.6 लाख लूट डाले. इसके आलावा वो नारकोटिक्स के धंधे में भी उतर चुका था. उसका गैंग तेज़ी से ऊपर बढ़ रहा था.

Haji Mastan
अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान जिसे तस्कर किंग माना जाता था (तस्वीर-Wikimedia commons)

दाऊद के भाई की हत्या 

इस बीच मन्या को एक और ऑफर मिला. ये ऑफर मिला था करीम लाला के पठान गैंग की तरफ से. तस्करी के धंधे में दाऊद के आने से करीम लाला परेशान था. दोनों गैंगों के बीच आए दिन झड़प होने लगी थी. जिसके चलते बताते हैं कि एक बार करीम लाला ने दाऊद की सरेआम पिटाई कर डाली थी. हाजी मस्तान में दोनों गैंग्स की बीच सुलह कराने की कोशिश की. लेकिन इसका कोई फायदा न हुआ. पठान गैंग अब भी दाऊद को सबक सिखाना चाहता था. इसलिए उन्होंने दाऊद के भाई शाबिर की हत्या के लिए मन्या सुर्वे से संपर्क किया। मन्या सुर्वे ने अमीरजादा खान और आलमजेब खान के साथ मिलकर शाबिर कास्कर की हत्या कर दी.

मन्या के कारनामों से मुम्बई पुलिस की वैसे किरकिरी हो रही थी. इस हत्याकांड से उन पर और भीप्रेशर पैदा कर दिया।मन्या पर लगाम लगाना जरूरी हो गया था. पुलिस ने दबिश देते हुए धीरे-धीरे मन्या के गैंग के सदस्यों पर हाथ डाला. 22 जून 1981 को शेख मुनीर की गिरफ्तारी हुई. अगले कुछ दिनों में मन्या के बाकी गुर्गे भी पुलिस के हत्थे चढ़ गए. हालांकि मन्या पुलिस के हाथ नहीं आया. उसने भिवंडी के एक सेफ हाउस को अपना ठिकाना बनाया. 9 नवम्बर 1981 को पुलिस ने यहां भी दबिश दी. उन्हें मन्या तो नहीं मिला. लेकिन कुछ ग्रेनेड और रिवाल्वर बरामद हुए.

मन्या को पपकड़ने के लिए तीन लोगों की एक स्पेशल टीम बनाई गई थी. ये तीन लोग थे, इंस्पेक्टर इसाक बागवान, राजा तांबट और सीनियर इंस्पेक्टर YD भिड़े. 11 जनवरी 1982 को इस टीम को खबर मिली कि मन्या वडाला में आंबेडकर कॉलेज जंक्शन पर आने वाला है. तब कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया कि ये खबर पुलिस को दाऊद के जरिए ही मिली थी. एक दूसरी कहानी ये है कि मन्या सुर्वे की खबर पुलिस को उसकी गर्लफ्रेडं विद्या से मिली थी.

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संजय गुप्ता द्वारा निर्देशित फिल्म शूटआऊट ऍट वडाला मन्या सुर्वे के जीवन पर आधारित हैं, जिसमे जॉन अब्राहम मन्या सुर्वे की भूमिका में हैं (तस्वीर-Twitter)

मन्या सुर्वे का एनकाउंटर 

11 जनवरी को दोपहर डेढ़ बजे क्राइम ब्रांच की तीन टीम और 18 अफसर मौके पर पहुंचते हैं. करीब 20 मिनट बाद वहां एक टैक्सी आती है. जिसमें से मन्या उतरता है. मन्या को कुछ ही देर में अंदाज़ा लग गया कि दाल में कुछ काला है. उसने अपनी जेब से एक वेब्ले एंड स्कॉट रिवाल्वर निकालने की कोशिश की. लेकिन इससे पहले ही वो रिवाल्वर यूज़ कर पाता, इंस्पेक्टर इसाक बागवान और राजा तांबट ने उसके सीने में पांच चला दीं. एक गोली उसके कंधे में लगी. इसके बाद मन्या को एक एम्बुलेंस में हॉस्पिटल ले जाया गया. नजदीकी हॉस्पिटल तक दूरी महज चंद किलोमीटर की थी. लेकिन एम्बुलेंस को हॉस्पिटल पहुंचने में पूरे आधे घण्टे का वक्त लग गया. रास्ते में ही मन्या सुर्वे की मौत हो गई. इलाज में हुई इस देरी के चलते पुलिस पर ये इल्जाम भी लगाया जाता है कि शायद जानबूझकर मन्या को वक्त पर हॉस्पिटल नहीं पहुंचाया गया था.

मन्या सुर्वे की मौत से सबसे बड़ा फायदा दाऊद इब्राहिम को हुआ. उसने जल्द की पठान गैंग को निपटाते हुए मुम्बई अंडरवर्ल्ड पर अपना वर्चस्व जमा लिया। यहां तक कि अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए उसने करीम लाला के भाई तक को मरवा डाला। मन्या सुर्वे के एनकाउंटर के बाद मुम्बई में एनकाउंटर की बाढ़ आ गई. पुलिस रैंक्स में एक सपेशक तमगा जुड़ गया- एनकाउंटर स्पेशलिस्ट। 1982 से 2004 के बीच मुम्बई पुलिस ने ऐसे 622 कथित गैंगस्टर्स को एनकाउंटर में मार गिराया। जहां तक मन्या सुर्वे की बात है, साल 2013 में जॉन अब्राहम की फिल्म शूट आउट एट वडाला काफी हद तक मन्या की कहानी से मिलती हैं. वहीं साल 1990 में आई फिल्म अग्निपथ में अमिताभ बच्चन का किरदार भी मन्या सुर्वे से प्रेरित बताया जाता है.

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