मानने वालों ने ईश्वर को कई नाम दिए हैं. जैसे एक नाम है - ऊपरवाला. जो देता है. और कभी-कभी तो छप्पड़ फाड़ कर देता है. कम्युनिस्ट विचारधारा वाले नास्तिकता पर ज़ोर देते हैं. लेकिन एक बार ऐसा हुआ कि उन्हें भी ऊपर से एक तोहफा मिला. घटना 1960 की है. अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी CIA का एक जासूस आसमान से गिरा और सीधा सोवियत संघ की झोली में जा टपका.
रूस ने पकड़ा अमेरिकी जासूस, पाकिस्तान की लंका लग गई!
रूस ने पकड़ा अमेरिकी जासूस. फिर पाकिस्तान को न्यूक्लियर हमले की धमकी क्यों दी?
कोल्ड वॉर का दौर. लड़ाई थी अमेरिका और सोवियत संघ में. लेकिन एक तीसरा देश भी था, जो बीच में फंस गया था. हमारा पड़ोसी पाकिस्तान. सोवियत संघ ने धमकी देते हुए कहा,
‘कायदे से रहो वर्ना पेशावर पर न्यूक्लियर बम गिरा देंगे’. सोवियत अमेरिका की इस लड़ाई में पाकिस्तान का नाम कैसे आया. कैसे पकड़ा गया जासूस और क्या थी पूरी कहानी? चलिए जानते हैं.
शुरुआत एक किस्से से. जिसे पाकिस्तान के पूर्व विदेश सचिव सुल्तान मुहम्मद खान ने अपने संस्मरणों में दर्ज़ किया है. साल 1960 की बात है. एक रोज़ उनकी और एक सोवियत राजदूत, डॉक्टर कापित्सा की मुलाक़ात हुई. सुल्तान मुहम्मद को कापित्सा के इरादे मालूम थे. रूस ने अमेरिका का एक खोजी प्लेन मार गिराया था. और उनका आरोप था कि इस प्लेन ने पाकिस्तान से उड़ान भरी है. सुल्तान मुहम्मद भी पुराने खिलाड़ी थे. पूरी तैयारी से आए थे. हाथ मिलाने जैसी औपचारिकताएं पूरी हुईं. और फिर शुरू हुई बातचीत. उम्मीद के मुताबिक कापित्सा ने पहला सवाल दागा,
“क्या आप इस बात से इंकार करते हैं कि अमेरिकी प्लेन पाकिस्तान की जमीन से उड़ा था?” सुल्तान मुहम्मद ने तुरंत जवाब दिया, हां. हम इस आरोप को सिरे से नकारते हैं.
मुहम्मद को लगा था, इसके बाद आगे क्या ही होगा. ज्यादा से ज्यादा कापित्सा नाक भौं सिकोड़ेंगे और वहां से चले जाएंगे. लेकिन हुआ कुछ ऐसा, जिससे मुहम्मद के माथे से पसीना टपकने लगा. कापित्सा अपना एक हाथ जेब में डाले हुए थे. हाथ बाहर निकला तो उसमें एक कागज़ था. कापित्सा ने वो कागज़ मुहम्मद की ओर बढ़ाया. देखा तो वो एक कबूलनामा था. उस अमेरिकी पायलट का, जो प्लेन गिराए जाने के बाद ज़िंदा पकड़ लिया गया था. उसने स्वीकार किया था कि वो एक जासूसी मिशन पर था. और उसने पाकिस्तान के पेशावर से उड़ान भरी थी. साथ में और डिटेल्स भी थीं. मसलन कैसे पाकिस्तान ने अपना एक सैन्य हवाई अड्डा अमेरिका को सौंप दिया था. ताकि वो वहां से सोवियत संघ के खिलाफ गतिविधियों को अंजाम दे सके.
अब तक सुलतान मुहम्मद के मुंह पर ताला पड़ चुका था. किसी को खबर नहीं थी कि अमेरिकी पायलट ज़िंदा पकड़ा गया है. इस चक्कर में अब पाकिस्तान बुरी तरह फंसने वाला था. कापित्सा वहां से लौट गए. जाते हुए बोले.’अगर पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आया, तो न्यूक्लियर मिसाइल के एक ही हमले में पूरा पेशावर उड़ा देंगे’. कुछ सालों बाद ये मसला शांत हुआ लेकिन इसके लिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान को रूस जाकर सरेआम माफी मांगनी पड़ी. हालांकि जैसे पहले बताया असली लड़ाई अमेरिका और रूस के बीच थी. और सोवियत प्रीमियर निकिता खुर्श्चेव चाहते थे कि अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर भी इस कांड के लिए माफी मांगें. इस घटना के दो हफ्ते बाद पैरिस में दोनों के बीच मुलाक़ात हुई. इस मुलाक़ात में भी खूब पटाखे छूटे, लेकिन उससे पहले चलते हैं इस कहानी की शुरुआत पर.
साल 1957 की बात है. पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म फ़िरोज़ खान नून और अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहावर के बीच एक गुप्त समझौता हुआ. जिसके तहत पेशावर के नजदीक एक हवाई अड्डा अमेरिका को सौंप दिया गया. और बदले में पाकिस्तान को खूब सारे डॉलर मिले. ये हवाई अड्डा चाहिए क्यों था अमेरिका को?
दरअसल कुछ साल पहले अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन ने U2 नाम का एक विमान ईजाद किया था. इस विमान की खास बात थी कि ये 70 हजार फ़ीट की ऊंचाई पर उड़ान भर सकता था. अमेरिका के दुश्मन सोवियत रूस का कोई विमान इस ऊंचाई तक नहीं पहुंच सकता था. साथ ही हर तरह के मौसम में इसका इस्तेमाल हो सकता था. अपनी इन खूबियों के चलते इस विमान को लेडी ड्रैगन के नाम से भी बुलाते थे. इसी लेडी ड्रैगन की मदद से अमेरिका सोवियत संघ के न्यूक्लियर मिसाइल प्रोग्राम की जासूसी करना चाहता था. लेकिन इसके लिए सोवियत संघ के ऊपर से उड़ान भरना जरूरी था. ताकि तस्वीर आदि ली जा सके.
पेशावर का हवाई अड्डा, सोवियत संघ के मध्य एशिया वाले राज्यों से बिलकुल नजदीक था. यहां से उड़ान भरना आसान था. और इसी चक्कर में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच डील हुई थी. करार 1957 में हुआ और पहली उड़ान भरी गई 1959 में. अमेरिका नहीं चाहता था कि पकड़े जाने की स्थिति में उसका नाम आए, इसलिए उसने ब्रिटेन से पायलट मंगवाए. इस समय तक अयूब खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन चुके थे. बताते हैं कि पेशावर अड्डे को इस कदर ख़ुफ़िया रखा गया था कि ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो, जो तब कैबिनेट मंत्री थे, उन्हें भी एक बार यहां घुसने से रोक दिया गया था.
अमेरिकी पायलट पकड़ा गयाशुरुआत में ब्रिटिश पायलटों के जरिए U2 विमान दो बार सोवियत सीमा में दाखिल हुए. और ख़ुफ़िया ठिकानों की तस्वीरें खींच कर लाए. 1960 के अप्रैल में अमेरिका ने तय किया कि वो CIA ट्रेंड अमेरिकी पायलटों से ये मिशन करवाएगा. 9 अप्रैल 1960 के रोज़, एक U2 विमान पेशावर से उड़ा और फोटो खींचता हुआ सोवियत सीमा से गुजर गया. यानी ये मिशन भी पुराने मिशन्स की तरह सफल रहा था. लेकिन अमेरिका को ये पता नहीं था कि सोवियत टोही विमानों को इस मिशन की भनक लग गई थी.
फिर भी सोवियत संघ चुप रहा. क्योंकि जल्द ही अमेरिका और सोवियत संघ के बीच पैरिस में एक शिखर वार्ता होने वाली थी. जिसके ऐतिहासिक होने की पूरी संभावना थी. आइजनहावर और निकिता खुर्श्चेव के बीच हाल के सालों में खूब जमने लगी थी. और सबको लग रहा था कि पैरिस वार्ता के बाद शीत युद्ध की बर्फ तेज़ी से पिघल जाएगी. पैरिस सम्मलेन की तारीख तय की गई थी 16 मई को. लेकिन अमेरिका फिर अमेरिका था.
वार्ता से दो हफ्ते पहले उसने कांड कर दिया. 1 मई को एक U2 विमान सोवियत सीमा में दाखिल हुआ. लेकिन इस बार सोवियत मिसाइलें चौकन्नी थीं. मिसाइल से प्लेन को मार गिराया गया. प्लेन को चलाने वाले पायलट का नाम था, फ्रांसिस गैरी पावर्स. पैराशूट की मदद से वो अपनी जान बचाने में कामयाब तो रहे, लेकिन इसी चक्कर में सोवियत अधिकारियों के हत्थे चढ़ गए. पावर्स ने उन्हें पूरी कहानी बता दी.
अमेरिका ने नाटक शुरू कियाउधर अमेरिका को जब अहसास हुआ कि इस मामले में वो फंस सकते हैं, उन्होंने नई कहानी गढ़नी शुरू कर दी. NASA ने प्रेस को बुलाकर बयान जारी किया कि उनका एक प्लेन जो मौसम पर शोध के लिए उड़ा था, तुर्की के पास कहीं क्रैश कर गया है. इस कहानी को बेचने के लिए बाकायदा U2 विमानों पर बड़े अक्षरों में NASA लिखकर प्रेस के आगे पेश किया गए. सब कुछ इस उम्मीद में किया जा रहा था कि जासूसी प्लेन के पायलट की मौत हो चुकी है.
सोवियत प्रेमियर निकिता ख्रुश्चेव ये पूरा नाटक देख रहे थे. उन्हें असलियत पता थी और उनके पास सबूत भी था. फिर भी उन्होंने अपने बयान में पायलट के ज़िंदा होने वाली बात छुपाए रखी. बस इतना कहा कि अमेरिका का एक जासूसी प्लेन बरामद हुआ है. इससे अमेरिकियों का हौंसला और बुलंद हो गया. अगले कुछ दिनों तक नासा का प्लेन गायब होने की खबरें छाई रही. जिनमें यहीं कहा गया कि ये एक मौसम संबंधी उड़ान थी.
7 मई को ख्रुश्चेव ने अपने पत्ते खोले. और सबके सामने गैरी पावर्स के ज़िंदा होने का ऐलान कर दिया. आइजनहावर प्रशासन के लिए ये शर्मिंदगी की बात थी. कुछ दिनों में शिखर वार्ता होनी थी. जिस पर अब संकट के बादल मंडराने लगे थे. बावजूद इसके ख्रुश्चेव ने आइजनहावर को एक मौका दिया. उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका अपनी गलती मान ले और अपनी सभी जासूसी गतिविधियों पर रोक लगा दे, तो शिखर वार्ता नियत प्लान के तहत आगे बढ़ेगी. वरना वो इसका बहिष्कार कर देंगे.
आइजनहावर ने कुछ शर्तें मान ली. उन्होंने स्वीकार किया कि जासूसी प्लेन उनका है. और उन्होंने आगे के सभी जासूसी मिशन्स पर रोक भी लगा दी. इसके बावजूद वो माफी मांगने को तैयार नहीं थे. उल्टा उन्होंने सोवियत संघ पर आरोप लगाया कि वो भी ऐसी ही जासूसी हरकतें करता रहता है.
इस हंगामे के बावजूद 16 मई को दोनों देश पैरिस में शिखर वार्ता में शिरकत करने पहुंचे. लेकिन 3 घंटे में ही जासूसी प्लेन प्रकरण का मुद्दा इतना हावी हो गया कि शिखर वार्ता वहीं रोक दी गई. ख्रुश्चेव ने कुछ महीने पहले आइजनहावर को मास्को आने का न्योता दिया था. वो न्योता भी वापिस ले लिया गया. इसके बाद अमेरिका और सोवियत संघ के रिश्ते में और तनाव आ गया. जिसके चलते 1962 में दोनों देश न्यूक्लियर युद्ध की दहलीज़ तक पहुंच गए. मामला ये था कि रूस ने चुपके से अमेरिका के पड़ोस में क्यूबा तक न्यूक्लियर मिसाइल पहुंचा दी. और इस चक्कर में एक बड़ा बवाल पैदा हो गया. इस घटना को क्यूबन मिसाइल क्राइसिस के नाम से जाना जाता है. ये अपने आप में लम्बी कहानी है. फ़िलहाल लौटते हैं जासूसी प्लेन संकट वाले किस्से पर.
अयूब खान को मॉस्को में माफी मांगनी पड़ीअमेरिका से शुरुआती भिड़ंत के बाद सोवियत संघ ने पाकिस्तान को आड़े हाथों लिया. क्योंकि इस प्रकरण में पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल हुआ था. शुरुआत में पाकिस्तान इस बात से इंकार करता रहा लेकिन जब सोवियत संघ ने पाकिस्तान को परमाणु हमले की धमकी दी, पाकिस्तान ने पूरा दोष अमेरिका पर डाल दिया. आर्मी की तरफ से बयान जारी हुआ कि उन्हें अमेरिकी जासूसी प्रोग्राम की कोई जानकारी नहीं थी.
1965 में राष्ट्रपति अयूब खान जब मास्को गए, उन्हें वहां इस मामले में माफी मांगनी पड़ी थी. इस यात्रा के दौरान एक दिलचस्प वाकया हुआ. मॉस्को में अयूब ने सोवियत विदेश मंत्री आंद्रे ग्रोमिको से मुलाक़ात की. अयूब बोले, “चूंकि आप कभी पाकिस्तान नहीं आए इसलिए मैं आपको वहां आने का न्योता देता हूं”.
ग्रोमिको ने जवाब दिया, मैं U-2 से हमेशा आगे रहता हूं” . ये उनका तंज़ था.
पकड़े गए पायलट गैरी पावर्स का क्या हुआ? पावर्स को सोवियत रूस की अदालत ने 10 साल की सजा सुनाई. लेकिन फिर 1962 में जासूसों की अदलाबदली के तहत उन्हें अमेरिका भेज दिया गया. इस अदलाबदली की कहानी पर साल 2015 में एक फिल्म आई थी. 'ब्रिज ऑफ स्पाइज़'. फिल्म में टॉम हैंक्स एक अमेरिकी वकील का किरदार निभाते हैं, जिसने इस अदलाबदली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
वीडियो: तारीख: जब उत्तर कोरिया की ‘लेडी जासूस’ को पहली बार टीवी दिखाया गया!