बात 1920 के समय की है. भारत के मध्य प्रदेश से लेकर उत्तर प्रदेश और पंजाब तक सुल्ताना डाकू का आतंक था. बड़े-बड़े अंग्रेज अफसर उसे ढूंढ़ते-ढूंढते तक चुके थे. इसके बाद पुलिस महकमे के तेज तर्रार अफसर फ्रेडी यंग को सुल्ताना को पकड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गई. फ्रेडी की सुल्ताना से दो मुलाकातें हो चुकी थीं. तीसरी मुलाकात होने वाली थी. जिसे वे अंतिम बनाना चाहते थे.
जिम कॉर्बेट ने सुल्ताना डाकू को कैसे पकड़वाया था?
सुल्ताना डाकू की गोली का शिकार होते-होते बचे जिम कॉर्बेट उसे 'इंडिया का रॉबिन हुड' मानते थे
14 दिसंबर 1923 की बात है. ऑफिसर फ्रेडी को एक मुखबिर से जानकारी मिली कि सुल्ताना हरिद्वार के किसी गांव में डकैती डालकर अपने एक ठिकाने पर लौटा है. दो दिन बाद फ्रेडी और उनके 300 सैनिकों वाले दस्ते ने सुल्ताना को चारों ओर से घेर लिया. फ्रेडी सुल्ताना के ठिकाने पर बने पशुओं के बाड़े में गए. वहां एक ही चारपाई थी, जिस पर सुल्ताना सो रहा था. फ्रेडी जाकर सुल्ताना के ही ऊपर बैठ गए. सुल्ताना डाकू जिसने ऐलान कर रखा था कि कोई उसे जिन्दा उन्हीं पकड़ सकता, अपनी जगह से हिल तक न सका.
चर्चित सुल्ताना डाकू को पकड़े जाने की ये कहानी महान शिकारी और पर्यावरण संरक्षक जिम कॉर्बेट ने अपनी किताब 'माय इंडिया' में लिखी थी. अब सवाल यही है कि आखिर एक शिकारी का सुल्ताना डाकू के पकड़े जाने की घटना से आखिर क्या संबंध था? जानेंगे आज के एपिसोड में. साथ ही जानेंगे आखिर क्यों जिम कॉर्बेट सुल्ताना जैसे खतरनाक डाकू को “इंडिया का रॉबिन हुड” नाम दिया था.
आज ही के दिन यानी 25 जुलाई, 1875 को जिम कॉर्बेट का जन्म हुआ था. नैनीताल के कालाढ़ूंगी में जन्मे जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट को शुरू से ही पहाड़ों, जंगलों और जानवरों से ख़ास लगाव था. अपने बचपन में इनकी जानवरों से इतनी अच्छी दोस्ती थी कि उन्हें आवाज़ से पहचान लेते थे. जब 6 साल के थे, तब पिता की मौत हो गई. स्कूल तो जाते लेकिन पढाई-लिखाई में ज्यादा मन नहीं लगता था. पढ़ाई छोड़कर 18 साल की उम्र में ही जिम कॉर्बेट ‘बंगाल एण्ड नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे’ में फ़्यूल इन्स्पेक्टर हो गए. बाद में मोकामा घाट पर उन्होंने रेलवे के ठेकेदार के तौर पर काम किया.
जिम कॉर्बेट तब 31 वर्ष के थे, जब चम्पावत में उन्होंने पहली बार एक आदमख़ोर बाघ का शिकार किया. तारीख़ थी- 31 मई 1907. 1938 में टॉक गांव में आख़िरी आदमख़ोर के शिकार के वक़्त तक वे 63 साल के हो चुके थे. इस बीच उन्होंने 2 दर्जन से ज्यादा आदमखोर बाघों और चीतों का शिकार किया. जिम के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने उन्हीं जानवरों का शिकार किया था, जिनके आदमखोर होने की बात कन्फर्म होती थी.
जिम कॉर्बेट के शिकार के किस्से सुनकर ही उन्हें यूनाइटेड प्रोविंस (अब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) में ख़ास तौर पर बुलाया गया था. इन इलाकों में लोग जानवरों खासकर बाघ और चीतों से बहुत परेशान रहते थे. उस इलाके में ये जानवर इंसानों पर काफी अटैक करते थे. जिम कॉर्बेट ने उत्तराखंड के गढ़वाल जिले में कई आदमखोर बाघों को मारा था जिनमें रुद्रप्रयाग का आदमखोर तेंदुआ भी शामिल था, जो हर दिन पूरे देश के अख़बारों की सुर्खियां बना करता था. चम्पावत में 436 लोगों का शिकार करने वाली आदमखोर बाघिन से भी जिम कॉर्बेट ने ही लोगों को छुटकारा दिलाया था.
साल 1920-22 के आसपास सुल्ताना डाकू जीते-जी किंवदंती बन चुका था. उसका इस कदर ख़ौफ था कि अगर किसी दूर-दराज के पुलिस थाने के आगे से वह गुजरता तो सिपाही उसे अपने हथियार सौंप दिया करते थे. सुल्ताना उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के जंगलों में ही रहता था. जिम कॉर्बेट भी इन्हीं जंगलों में शिकार किया करते थे. जिम के जंगलों में लम्बे अनुभव के चलते ही सुलताना को पकड़ने में लगे अधिकारी फ्रेडी यंग ने उन्हें अपने साथ जुड़ने को कहा था.
जिम कॉर्बेट महीनों फ्रेडी यंग और उनके 300 सैनिकों और 50 घुड़सवारों वाले दस्ते के साथ जंगलों में भटकते रहे. इस दौरान कई बार ये लोग सुल्ताना के ठिकानों के नजदीक पहुंचे लेकिन वह बच निकला. फ्रेडी के दस्ते ने गोरखपुर से लेकर हरिद्वार के बीच ताबड़तोड़ चौदह बार छापेमारी की लेकिन वह उनके हाथ नहीं लगा. इस दौरान फ्रेडी और उनके साथी कई बार जंगल में भटके और उन्हें जिम कॉर्बेट ही सही रास्ते पर लेकर आए. जिम ने अपनी किताब माय इंडिया में कई जगहों पर इसका जिक्र भी किया है.
काफी समय तक जंगलों में सुल्ताना को ढूंढने के बाद दिसंबर 1923 में वह मौका आया जब फ्रेडी और जिम कॉर्बेट की सुल्ताना से आखिरी मुलाकात हुई. मुखबिरों से पता चला कि सुल्ताना नजीबाबाद के जंगलों में रुका है. फ्रेडी यंग ने जाल बिछाया और इस बार सुल्ताना को पकड़ लिया.
सुल्ताना इंडिया का रॉबिन हुड!जिम कॉर्बेट ने सुल्ताना को भारत का रॉबिन हुड बताया था. उन्होंने सुल्ताना की गिरफ़्तारी के साथ ही तफ़्सील से इस डाकू के मानवीय पक्ष का ब्योरा लिखा था. उन्होंने लिखा था,
मैं चाहता था कि उसे बेड़ियां पहनाए हुए लोगों के सामने से न ले जाया जाए और उनके माखौल का पात्र न बनाया जाए, जो उसके जीते जी उसके नाम से थर्राते थे. मेरी ख्वाहिश थी कि सिर्फ इस बिनाह पर उसे थोड़ी कम कठोर सज़ा दी जाए कि उस पर पैदा होते ही अपराधी का ठप्पा लग गया था. जब उसके हाथ में ताकत थी, उसने ग़रीबों को कभी नहीं सताया.
उन्होंने ये भी लिखा,
सुल्ताना खराब इंसान नहीं था. जब हम उसे खोज रहे थे तब एक बार उसने बरगद के एक पेड़ के पास उसने मुझे और फ्रेडी को साथियों के साथ देख लिया था. हम उसके निशाने पर थे लेकिन फिर भी उसने गोली नहीं चलाई थी. उसने हमारी जान बख्श दी थी. जबकि उसे पता था कि हम उसे पकड़ने या मारने के लिए ही जंगल में उतरे हैं.
जिम कॉर्बेट ने एक और घटना का जिक्र करते हुए लिखा था,
जिम कॉर्बेट शिकारियों से नफरत क्यों करने लगे?एक बार सुल्ताना एक गाँव में डाका डालने गया. उस गांव के मुखिया के बेटे की शादी थी. सुल्ताना ने मुखिया से उसकी बंदूक और 10 हजार रुपए लिए और वहां से चला आया. फिर उसे पता चला कि उसका उसके गैंग का एक आदमी मुखिया की बहू को उठा लाया है. सुल्ताना ने तुरंत उस आदमी को फटकार लगाई और मुखिया की बहू को एक गिफ्ट के साथ वापस भेज दिया.
कुछ अपवादों को छोड़कर जिम कॉर्बेट ने अपने जीवन में नरभक्षी बाघों और तेंदुओं का ही शिकार किया. लेकिन, 1930 के दशक के दौरान कॉर्बेट के हाथ में बंदूक की जगह कैमरे ने ले ली थी. उन्हें स्थानीय और बाहरी शिकारियों का भी जंगल में जाना कतई पसंद नहीं था. बताते हैं कि 1930 के दशक में कॉर्बेट शिकारियों को न केवल नापसंद करने लगे बल्कि उनके खिलाफ आक्रामक हो चले थे.
ऐसा इसलिए था क्योंकि जिम कॉर्बेट शिकार के बाद बाघों और अन्य जानवरों के शरीर की जांच-पड़ताल करते थे. बताते हैं कि जांच के दौरान अधिकांश मौकों पर उन्हें जो बातें पता चलीं, उससे बाघों को लेकर उनकी सोच बदल गई. बताते हैं कि अधिकांश बाघों के शरीर पर गोली या चोट के निशान मिलते थे. इन चोटों के चलते कुछ बाघ जंगली जानवरों का शिकार नहीं कर पाते थे तो इंसानों पर हमला करते थे. ऐसी ही कुछ बाघ इंसानों को देखकर ही भड़क जाते और इस वजह से उन पर हमला कर देते थे.
जिम कॉर्बेट के साथ जंगल में एक नहीं, ऐसा कई बार हुआ जब बाघ उनके नजदीक आकर वापस लौट गया. इन मौकों के बारे में उन्होंने विस्तार से बताया है. ‘मैन-ईटर्स ऑफ़ कुमाऊं’ नाम की एक किताब में उन्होंने ये भी बताया है कि किस तरह जंगल में रात हो जाने पर कुछ लकड़ियां जलाकर वे किसी भी पेड़ के नीचे सो जाते थे. बाघ की दहाड़ से नींद टूटती तो और लकड़ियां आग में डालकर वे फिर सो जाते.
‘ऐसा हुआ तो हिन्दुस्तान और ग़रीब हो जाएगा’जिम कॉर्बेट को अपने करीबियो से सुने क़िस्सों और ख़ुद अपने अनुभवों के चलते यकीन था कि अगर कोई बाघ को नहीं छेड़ेगा तो उसे भी किसी से कोई मतलब नहीं होगा.
मार्टिन बूथ ने जिम कॉर्बेट की बायोग्राफी में लिखा है,
बाद में आलम ये हो गया था कि जिम कॉर्बेट के पास बंदूक की जगह कैमरे और बटुए ने ले ली थी. जब भी कुमाऊं के किसी गांव का किसान उनके पास यह गुहार लेकर आता कि बाघ उनके पशुओं को खींच ले गया है. वह अपने घर में अंदर ज़ोर से आवाज़ लगाकर अपनी ‘.275 वेस्टले रिचर्ड्स’ राइफ़ल मंगाने की जगह अपना बटुआ मंगाते थे. और किसान को उसके जानवर जाने से हुए नुकसान का पूरा मुआवज़ा दे देते थे. लेकिन वे बाघ का शिकार करने नहीं जाते थे.
मार्टिन बूथ आगे लिखते हैं,
जिम कॉर्बेट इंडिया में बाघों के भविष्य को लेकर बड़े चिंतित थे. उनके हिसाब से देश में क़रीब तीन से चार हज़ार बाघ ही बचे थे और वो भी अगले दस से पंद्रह सालों में ख़त्म हो जाने वाले थे. जिम का कहना था कि भारतीय राजनीतिज्ञों को इसमें दिलचस्पी नहीं है. ऊपर से बाघ वोट भी नहीं देते. जबकि जो लोग बंदूकों के लाइसेंस लेंगे, वे वोट देने वाले लोग होंगे.
जिम कॉर्बेट बाघों को ‘बड़े दिल वाला सज्जन’ कहते थे. वो कहते थे कि बाघ दिलदार और हिम्मती जीव है और अगर लोग उसके विनाश के ख़िलाफ़, उसकी हिफ़ाज़त के पक्ष में नहीं खड़े हुए तो अपने ऐसे ख़ूबसूरत प्राणी को खोकर हिन्दुस्तान और ग़रीब हो जाएगा.
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