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जब शर्मिला टैगोर की शादी में पहुंची सैम मानेकशॉ की गाड़ी

फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की निजी जिंदगी से जुड़े कुछ किस्से. दिल्ली में अमर प्रेम की स्क्रीनिंग के अगले ही दिन क्या हुआ? शर्मिला टैगोर के रिसेप्शन पर मानेकशॉ ने क्यों भेजी अपनी गाड़ी?, मानेकशॉ के फ्रिज में क्या रखा रहता था?, पढ़िए.

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मानेकशॉ का शानदार सैन्य करियर ब्रिटिश भारतीय सेना के साथ शुरू हुआ और 4 दशकों तक चला, जिसके दौरान पांच युद्ध भी हुए (तस्वीर: Getty)

कुछ लोग होते हैं जो जीते जी ही किंवदंती बन जाते हैं. ऐसा ही एक नाम है सैम मानेकशॉ. प्रधानमंत्री से उनकी नोंकझोंक, 71 युद्ध में उनका योगदान, ये सब किस्से आप बहुत बार सुन चुके होंगे. इसलिए हमने सोचा कि उनकी निजी जिंदगी से जुड़ी कुछ कहानियां आपके सामने लाई जाएं. मसलन क्यों मानेकशॉ ने क्यों अपनी आत्मकथा लिखने से इंकार कर दिया था? फील्ड मार्शल पद के व्यक्ति की अंत्येष्टी पर आर्मी का कोई शीर्ष अधिकारी क्यों नहीं पहुंचा?
बांग्लादेश युद्ध की जीत के मौके पर मानेकशॉ क्या कर रहे थे?
बॉलीवुड से क्या था उनका रिश्ता?

शर्मिला टैगोर की शादी में सैम मानेकशॉ की गाड़ी 

साल 1969 की बात है. कोलकाता में एक हाई प्रोफ़ाइल शादी का मौका था. फिल्म अदाकारा शर्मीला टैगोर की शादी क्रिकेटर और पटौदी के नवाब मंसूर अली खान से हो रही थी. फोर्ट विलियम के ऑफिसर्स क्लब में शादी का रिसेप्शन रखा हुआ था. बंगाल में माहौल नाजुक था. साम्प्रदायिकता की आग-आग रह रह कर सुलग उठती थी. और लोगों को डर था कि अंतर धार्मिक विवाह के चलते बवाल खड़ा हो सकता है.

नीमच CRPF अकादमी में मानेकशॉ (तस्वीर: crpf)

इस डर में कुछ इजाफा हुआ जब देर शाम क्लब के बाहर भीड़ इकठ्ठा होने लगी. और जल्द ही भीड़ इतनी बढ़ गई कि शादी का जोड़ा निकलेगा कैसे, ये सवाल खड़ा हो गया. डर था कि कहीं दूल्हा-दुल्हन को देख भीड़ उत्तेजित न हो जाए. ऐसे में उसी समय एक 1937 मॉडल, ऑस्टिन शीरलाइन कार ऑफिसर्स क्लब के बाहर आकर ठहरती है. जिसे देखते ही माहौल में एक ठहराव आ जाता है. क्योंकि सबको पता था इस गाड़ी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता.

दूल्हा-दुल्हन बैठते हैं और वहां से निकल जाते हैं. कोई हंगामा नहीं होता. ये सैम मानेकशॉ की गाड़ी थी. जो उन्होंने मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए भिजवाई थी. द वीक नाम की पत्रिका के एक लेख में पूजा जैसवाल ने इस किस्से का जिक्र किया है.

मानेकशॉ ने पिक्चर देखी और अगले दिन युद्ध हो गया 

इस किस्से से हैरानी हो सकती अगर आपको पता न हो कि मानेकशॉ फिल्मों के कितने शौक़ीन थे. साल 1971 की बात है. शक्ति सामंत निर्देशित अमर प्रेम कुछ ही दिनों में रिलीज होने वाली थी. वही ‘पुष्पा, आई हेट टीयर्स’ वाली. फिल्म की रिलीज से पहले मानेकशॉ ने दिल्ली में इस फिल्म का एक खास शो रखा, जिसके लिए राजेश खन्ना और शर्मीला टैगोर भी पहुंचे. फिल्म कुछ ही दिनों में रिलीज होने वाली थी, लेकिन इत्तेफाक ऐसा हुआ कि अगले ही दिन भारत पाकिस्तान युद्ध की घोषणा हुई और फिल्म की रिलीज को टाल देना पड़ा.

अमर प्रेम की स्पेशल स्क्रीनिंग के दौरान मानेकशॉ (तस्वीर: फिल्म हिस्ट्री पिक्स, ट्विटर) 

शहतीर की तरह मूंछे रखने वाले मानेकशॉ का कुल तीन बार नामकरण हुआ. 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में पैदाइश हुई. और पहला नाम पड़ा सैम होरमुसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ. अंग्रेज़ों के जमाने में ही फौज से जुड़े और द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लिया. ट्रेनिंग के दिनों में अंग्रेज़ अफसरों को नाम बुलाने में दिक्कत होती थी, इसलिए उनका नाम पड़ गया, सैम मैकिंटॉश.

तीसरी बार नाम पड़ा जब वो आर्मी चीफ हुआ करते थे. गोरखा रेजिमेंट से बहुत प्यार था, उनका सम्मान भी किया करते थे. और बदले में खूब सम्मान मिलता भी था. एक बार आर्मी क्वार्टर की तरफ जा रहे थे जब उन्होंने एक गोरखा गार्ड से पूछा, मेरा नाम जानते हो. तब उस गार्ड ने पूरी ताकत से जवाब दिया, जी साहब, सैम बहादुर. तब से सैम बहादुर कहलाए जाने लगे. गोरखा रेजिमेंट से इसी नजदीकी का नतीजा था कि साल 1972 में नेपाल के राजा ने उन्हें नेपाल की आर्मी के जनरल की मानक उपाधि प्रदान की.

देश में निकला होगा चांद 

जुलाई 1969 में उन्हें आर्मी चीफ अपॉइंट किया गया. अपने वन लाइनर और मूछों के लिए फेमस थे. छाता और माइक से सख्त नफरत थी और बार्बी की गुड़िया इकठ्ठा करने का शौक रखते थे. मानेकशॉ के घर में दो किचन थे, और दो फ्रिज, दूसरे फ्रिज को हाथ लगाने की इजाजत किसी को नहीं थी. खोलो तो डब्बा पैक खाने से फ्रिज भरा रहता. कई तो एक्सपायर भी हो चुके होते लेकिन मानेकशॉ के रहते कोई हाथ नहीं लगा सकता था.

फील्ड मार्शल मानेकशॉ अपनी पत्नी सिल्लू बोड़े और बेटियों के साथ (तस्वीर: Parzor Foundation Archives)

मानेकशॉ के बारे में फेमस था कि वो अपनी निजी जिंदगी में भी चुहल से बाज नहीं आते थे. एक और किस्सा सुनिए. मानेकशॉ की पत्नी का नाम था सिल्लू बोड़े. एक बार की बात है, जब मानेकशॉ को गणतंत्र दिवस समारोह पर चाय के लिए राष्ट्रपति भवन बुलाया गया. VVIP ग्रुप में 25 लोग थे, जिनमें मानेकशॉ अपनी पत्नी से थोड़ा आगे चल रहे थे. तभी एक सिक्योरिटी अफसर ने उनकी पत्नी को रोककर नाम पूछा और कहा, आपका नाम लिस्ट नहीं में. मानेकशॉ ने जैसे ही ये सुना, दौड़ते-दौड़ते पीछे आए और अफसर से बोले, “ये तो मेरी बीवी है, आपको मालूम नहीं है कि इसका गुस्सा कितना ख़राब है. इसको मत रोको, आने दो मेरे साथ.”

ब्रिगेडियर बहराम पंथकी और उनकी पत्नी ब्रिगेडियर जेनोबिया पंथकी ने मानेकशॉ की ज़िंदगी पर एक किताब लिखी है. जेनोबिया लिखती हैं कि एक बार मानेकशॉ के घर पर डिनर का आयोजन था. सब लोग बैठे थे जब मानेकशॉ की नज़र एक पारसी केलेंडर पर पड़ी. उन्होंने एकदम चहकते हुए कहा, अरे इस बार चांद रात मेरे जन्मदिन पर पड़ रही है. (चांद रात- इस दिन का पारसी समुदाय में एक ख़ास महत्त्व होता है.) लेकिन फिर कुछ देर बार ठहरे और बोले ये तो ब्रिटिश पंचांग है. क्या भारत में भी उसी दिन चांद रात होगी. पास खड़ी पत्नी से ये सुना तो तपाक से बोलीं, इसको फील्ड मार्शल किसने बनाया, अकल देखो इसकी.

…तो भारत हारा होता

निजी जिंदगी में अपने किस्सों और वन लाइनर्स की वजह से महफ़िलों की शान रहने वाले मानेकशॉ को, अपनी सार्वजनिक जिंदगी में इन्ही बयानों का खामियाज़ा भी भुगतना पड़ा. एक किस्सा है जब उन्होंने बोल दिया कि मुहम्मद अली जिन्ना ने उन्हें पाकिस्तानी आर्मी ज्वाइन करने को कहा था. लेकिन मानेकशॉ इतने पर कहां चुप रहने वाले थे. आगे बोले “अगर ऐसा होता तो भारत आज हारा हुआ होता”.

सैम मानेकशॉ (तस्वीर: Getty)

इस बात ने तब सरकार को कथित तौर पर बहुत नाराज कर दिया था. मुंहफट बात करने वाले मानेकशॉ से जब पूछा गया कि उन्हें अपनी आत्मकथा लिखनी चाहिए तो उन्होंने जवाब दिया कि वो झूठ नहीं लिखना चाहते और सच लिखने से बहुत लोगों के लिए दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं.

जनवरी 1973 में रियाटर होने से ठीक पहले उन्हें फील्ड मार्शल बनाया गया. वो पहले भारतीय थे जिन्हे फील्ड मार्शल की रैंक मिली थी. लेकिन ये बात कम लोगों को पता है कि फील्ड मार्शल उपाधि का व्यक्ति कभी रिटायर नहीं होता. एक्टिव ड्यूटी में न होने के बावजूद वो जिस अलाउंस के हकदार दे, वो भी उन्हें नहीं दिया गया. साल 2007 में राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के प्रयास से उन्हें 30 साल के बकाए एरियर का चेक मिला, रकम थी 1.16 करोड़ रूपये. 

तब मानेकशॉ तमिल नाडु के एक मिलिट्री हॉस्पिटल में भर्ती थे. मानेकशॉ ने चेक देखा और डिफेन्स सेक्रेटरी शेखर दत्त से पूछा, क्या मुझे सरकार को कोई टैक्स भरना पड़ेगा. 93 की उम्र में जाकर उन्हें गार्ड, अर्दली, स्टाफ अफसर, स्टाफ कार की सुविधाएं मिली. जो अब उनके किसी काम की नहीं थी, इसलिए उन्होंने ये सुविधाएं लेने से इंकार कर दिया.

मानेकशॉ कीं मृत्यु पर सरकार ने की अनदेखी 

आज ही के दिन यानी जून 27, 2008 को मानेकशॉ ने दुनिया को अलविदा कह दिया था. फील्ड मार्शल रैंक वाले आदमी के आख़िरी सम्मान के लिए न तो प्रधानमंत्री पहुंचे न ही तीनों सेनाओं के सुप्रीम कमांडर यानी राष्ट्रपति. आर्मी चीफ उस दिन मास्को में थे. लेकिन इस मौके पर वायु सेना और जल सेना के चीफ. प्रोटोकॉल के तहत राष्ट्रीय झंडे को भी आधा नहीं झुकाया गया. बाद में सरकार ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि वो फील्ड मार्शल को ‘वारंट ऑफ प्रिसिडेंस’ में जोड़ना भूल गए थे.

 राष्ट्रपति अब्दुल कलाम सैम मानेकशॉ से मुलाकात करते हुए (तस्वीर: Getty)

बहरहाल मानेकशॉ होते तो शायद इस बात से उन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ता. ऐसा क्यों कह रहा हूं इसके लिए एक किस्सा सुनिए. जिसे ब्रिगेडियर बहराम पंथकी और उनकी पत्नी ब्रिगेडियर जेनोबिया पंथकी ने अपनी किताब फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ: द मैन एंड हिज टाइम्स में दर्ज़ किया है.

पंथकी लिखते हैं कि जब भारत 1971 युद्ध की जीत का जश्न मना रहा था, मानेकशॉ का कहीं कोई पता नहीं था. कहते हैं किसी ने उन्हें ओबेरॉय होटल के मशहूर डिस्को, तबेला में देखा था. कहानी कितनी सच है, पंथकी इस बारे में कोई दावा नहीं करते, लेकिन इतना मेंशन करते हैं कि ये बात उनके व्यक्तित्व से बिलकुल मैच करती थी. सैम मानेकशॉ की पुण्यतिथि पर हम सभी की ओर से उन्हें श्रद्धांजलि.