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जिसका आख़िरी गीत फ़िल्मी दुनिया के मुंह पर तमाचा था!

संगीत निर्देशक राहुल देव बर्मन उर्फ़ पंचम का निधन 4 जनवरी, 1994 को हुआ था.

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RD बर्मन को अपना पहला बड़ा मौका 1966 में विजय आनंद निर्देशित फिल्‍म ‘तीसरी मंजिल’ से मिला था. किशोर कुमार और बर्मन की जोड़ी ने 70 के दशक में एक से एक सुपरहिट गाने दिए (तस्वीर:एशियन ऐज)

1862 की बात है. त्रिपुरा के एक राजा हुआ करते थे. नाम था ईशानचन्द्र देव बर्मन. उनकी मृत्यु के बाद गद्दी मिली उनके सबसे बड़े बेटे ब्रजेन्द्रचन्द्र बर्मन को. फिर कुछ समय में ब्रजेन्द्रचन्द्र की भी हैजे से मृत्यु हो गई. अब नियम के अनुसार ब्रजेन्द्र के बेटे नवद्वीपचन्द्र को अगला राजा बनना था. लेकिन इसी बीच समय ने कुछ ऐसे करवट ली कि गद्दी मिल गई ईशानचन्द्र के भाई बीरचन्द्र को. राजा बीरचन्द्र को ‘अकबर ऑफ़ द ईस्ट’ के नाम से जाना जाता है. काहे कि अकबर की ही तरह वे भी अपने दरबार में कला और संस्कृति को काफी महत्त्व दिया करते थे. राजा बीरचन्द्र के बारे में कुछ बातें जान लीजिए. वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के टैलेंट को पहचाना, बाद में दोनों के लम्बे वक्त तक रिश्ते रहे. गुरुदेव ने कई बार अपने लिखे हैं महाराजा बीरचन्द्र का जिक्र किया है. 

महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस को अपना इंस्टीट्यूट बनाने में सहायता महाराजा ने दी थी. एक और फैक्ट ये है कि भारत में जब पहली बार दो फोटो कैमरा लाए गए, उनमें से एक राजा बीरचन्द्र ने मंगाया था. बहरहाल त्रिपुरा से थोड़ा राइट लेते हुए चलते हैं. कोमिला, आज यानी 21 वीं सदी के हिसाब से बांग्लादेश का हिस्सा है. हमने अभी बताया था कि नवद्वीपचन्द्र राजा नहीं बन पाए थे. तो वो अपना सारा परिवार लेकर त्रिपुरा से कोमिला चले आए. नवद्वीपचन्द्र की नौ संतानें हुईं. जिनमें सबसे छोटे बेटे का नाम था, सचिन देव बर्मन. और जैसा कि आप जानते ही होंगे सचिन देव बर्मन के बेटे हुए राहुल देव बर्मन, शार्ट में RD बर्मन (RD Burman) या प्यार से पंचम दा (Pancham). 

पंचम सुर में रोना 

शुरुआत एक सवाल से. RD बर्मन का नाम पंचम कैसे पड़ा. तो इसके पीछे एक है एक किस्सा. 
दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हो रही थी. 27 जून 1939 को सचिन देव बर्मन के घर एक बेटा पैदा हुआ. नाम पड़ा तुबलू. बधाई देने के लिए फ़िल्मी दुनिया के कई लोग आए. इनमें से एक दादा मुनि यानी अशोक कुमार भी थे. उनके सामने तुबलू ने रोना शुरू कर दिया. रोना सुनकर अशोक कुमार बोले, ये तो रोता भी पंचम स्वर में है. तब से तुबलू का नाम पड़ गया पंचम. और उम्र भर इसी नाम से बुलाए गए. 

सचिन देव बर्मन और राहुल देव बर्मन (तस्वीर: learningandcreativity.com)

दूसरा किस्सा है जब पंचम ने अपनी पहली धुन बनाई और उसे भी पिता ने चुरा लिया. तो बात तब की है जब पंचम कलकत्ता में पढ़ाई कर रहे थे. एक बार परीक्षा में कम नंबर आए तो पिता ने खूब डांटा. पंचम ने पिता सचिन देव बर्मन को बताया कि पढाई में उनका दिल नहीं है. और वो भी अपने पिता की तरह संगीत बनाना चाहते हैं. ऐसा बोलकर पंचम ने 9 धुनें पिता को सुनाई. कुछ साल बाद चेतन आनंद की एक फिल्म आई. फंटूश. म्यूजिक SD बर्मन ने दिया था. पंचम भी फिल्म देखने गए. देखा कि फिल्म के गीतों में वही धुन बज रही है, जो उन्होंने अपने पिता को दी थी. उन्होंने पिता से कहा, आपने मेरी धुनें चोरी कर ली हैं. इस पर सचिन देव बर्मन ने जवाब दिया, मैं देखना चाहता था कि लोगों को तुम्हारी धुनें कैसी लगती हैं. 

गुलज़ार के नाम पर क्यों आ जाता है बुखार

 गुलजार एक इंटरव्यू में बताते हैं, 

“पंचम और मेरा रिश्ता बहुत खास था. मैंने उसके साथ चलते, फिरते, घूमते-घामते काम किया. वो मुझे गाड़ी में बिठा लेता था. अगर कोई धुन सूझती तो डैशबोर्ड या गाड़ी की छत पे बजाने लगता. फिर मुझे कहता कि यार इसके लिए कुछ बोल देदे वरना धुन गुम हो जाएगी. स्टूडियो पहुंचते तो बोलता कि अब तू वापस जा वर्ना काम में डिस्टर्ब करेगा.”

पंचम और गुलजार (तस्वीर: स्क्रॉल)

गुलजार बताते हैं कि पंचम में बहुत ही उतावलापन था. कभी काम के बीच कोई गर्म चाय ले आए, तो उसके ठंडे होने का इंतज़ार नहीं करते थे. बल्कि चाय में ठंडा पानी मिलाकर सुड़क जाया करते थे. पंचम पर बनी एक डाक्यूमेंट्री पंचम अनमिक्स्ड में शैलेन्द्र सिंह बताते हैं, एक बार जब वो पंचम से मिलने गए तो देखा वो बहुत टेंशन में है. शैलेन्द्र ने पूछा, क्या हुआ? तो जवाब मिला, “मरवा दिया यार. वो जब आता है तो मुझे बुखार हो जाता है. इसका गाना बनाना पड़ता है तो मुझे 10 दिन पहले और गाना बनने के 10 दिन बाद तक बुखार रहता है”.
शैलेन्द्र ने पंचम से पूछा कि वो किसकी बात कर रहे हैं. पंचम ने जवाब दिया, और कौन वही, गुलजार. 

गुलजार और पंचम की केमिस्ट्री खूब जमती थी. दोनों ने साथ में कई फ़िल्में की. लेकिन पंचम की दिक्कत थी कि उन्हें गुलजार का लिखा कुछ कम समझ आता था.  
गुलज़ार कहते हैं, 'एक तो बेचारे की हिन्दी वीक थी, ऊपर से मेरी पोएट्री'. एक बार पंचम इजाजत फिल्म के लिए धुनें तैयार कर रहे थे. गीत लिखने की जिम्मेदारी गुलज़ार के पास थी. गुलजार एक गीत लिखकर पंचम के पास लाए. पंचम ने पन्ना लिया, उल्टा पलटा और उसे हवा में उड़ाते हुए बोले, ये तो हद है, इसमें गीत कहां है. कल तुम मेरे पास टाइम्स ऑफ इंडिया उठाकर ले आओगे और कहोगे इसकी हेडलाइंस से गाना बना दो. हालांकि बाद में पंचम ने वो गाना बनाया. जिसके बोल थे, 'मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है'. 

बियर की बोतल फूंक कर बनाया गाना 

ऐसा ही एक किस्सा आंधी फिल्म के दौरान का भी है. गुलज़ार इस फिल्म के लिए एक गीत लिख रहे थे. ‘इस मोड़ से जाते हैं, कुछ सुस्त कदम रस्ते, कुछ तेज़ कदम राहें’. गीत में एक जगह लाइन थी ‘तिनकों के नशेमन तक.’ गुलजार ने ये गीत लिखकर RD बर्मन को दिया. RD ने कई देर पढ़ने के बाद गुलजार से पूछा, “यार ये नशेमन किस शहर का नाम है”.

RD बर्मन, आशा भोंसले के साथ (तस्वीर: इंडिया टुडे)

RD बर्मन अपने अजीबो-गरीब संगीत के लिए फेमस थे. इसी से जुड़ा एक किस्सा है. ​​एक बार रणधीर कपूर उनके घर पहुंचे. देखा पंचम अपने सहयोगियों के साथ मिलकर आधी भरी बियर की बोतलों में हवा फूंक रहे हैं. रणधीर को लगा, पंचम बौरा गए हैं. इसके कुछ समय बाद शोले रिलीज हुई. रणधीर ने पाया कि पंचम उस दिन बियर की बोतलों से जो निकाल रहे थे, यही वो साउंड है जो 'महबूबा महबूबा' गाने की शुरुआत में सुनाई देती है. एक और किस्सा है. एक बार पंचम और फिल्ममेकर राकेश बहल रात को ट्रेवल कर रहे थे. मुम्बई में काफी ट्रैफिक था. गाड़ी रुक-रुक कर चल रही थी. बार-बार ब्रेक लगाना पड़ रहा था. पंचम ने गाड़ी में बैठे-बैठे ब्रेक-रन-ब्रेक की साउंड को पकड़ा और तेरे बिना जिया जाये ना' का ओपनिंग म्यूज़िक बना दिया.

एक और किस्सा सुनिए, RD बर्मन और आशा भोंसले की शादी का.   
आशा और पंचम की जब पहली मुलाक़ात हुई, दोनों शादी-शुदा थे. लेकिन दोनों की शादी-शुदा जिंदगी ठीक नहीं चल रही थी. दोनों अपने-अपने संगियों से अलग रहने लगे थे.  काम के दौरान दोनों नजदीक आए. और शादी का फैसला कर लिया. हालांकि ये काम इतना आसान न था. आशा भोंसले पंचम से उम्र में काफी बड़ी थीं . इसलिए उनकी मां इस रिश्ते के खिलाफ थी. उन्होंने पंचम को ये धमकी दे डाली कि उनकी लाश के ऊपर से आशा उनके घर में आएंगी. शादी टल गई. इसके कुछ समय बाद पंचम की मां बीमार पड़ गई. और उन्होंने लोगों को पहचानना तक बंद कर दिया. उनकी हालत देख पंचम ने आशा ने शादी की और उन्हें अपने घर ले आए. 

मृत्यु के बाद मिला फिल्मफेयर 

1960 से लेकर 1980 तक, इन बीस सालों में RD बर्मन ने फिल्म इंडस्ट्री पर राज किया. लेकिन 80 के दशक में बप्पी लहरी जैसे कुछ नए संगीतकारों ने उन्हें पीछे छोड़ दिया. उनकी संगीत निर्देशन में बनने वाली फिल्में बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप होने लगी, तो लोगों ने काम देना बंद कर दिया. यहां तक कि साल 1966 में आई 'तीसरी मंजिल' से लगातार हर फिल्म में साइन करने वाले नासिर हुसैन ने भी 1988 में आई 'क़यामत से क़यामत तक' में उनको साइन नहीं किया. 90’s में विधु विनोद चोपड़ा अपनी बड़ी पीरियड फिल्म '1942 अ लव स्टोरी' प्लान कर रहे थे. म्यूजिक वे पंचम दा से बनवाना चाहते थे. संगीत कंपनी HMV के अधिकारियों ने मना कर दिया कि इस शख्स का म्यूजिक नहीं चाहिए. बोले कि ऐसे गाने कोई नहीं सुनता और पंचम को लेंगे तो ठीक नहीं होगा. विधु अड़े रहे.

मज़रूह सुल्तानपुरी और नासिर हुसैन के साथ (तस्वीर: डेली ओ)

पंचम दा ने 'कुछ न कहो' गाने के लिए एक धुन बनाई जो 90's के लटके-झटकों से भरी हुई थी. विधु ने सुनकर विनम्रता से कहा कि मुझे ये नहीं चाहिए. पंचम दा की आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने विधु से पूछा, “मैं ये फिल्म कर तो रहा हूं न! ..एक हफ्ता दे दो.” 

विधु बोले, "आप एक साल ले लीजिए मगर संगीत ऐसा दीजिए जो सिर्फ पंचम दा ही दे सकते हों".  हताशा में डूबे हुए आर.डी. बर्मन को विधु की बात से हिम्मत मिली.
पंचम ने इस गाने और फिल्म में फिर नए सिरे से संगीत दिया. और '1942 अ लव स्टोरी' हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी म्यूज़िकल हिट्स में से एक साबित हुई. इस फिल्म के लिए RD बर्मन को फिल्म फेयर पुरस्कार मिला, लेकिन जब तक पुरस्कार की घोषणा हुई, RD बर्मन दुनिया छोड़ चुके. उनकी मृत्यु पर जावेद अख्तर ने कहा था, '1942 अ लव स्टोरी' का संगीत हिंदी सिनेमा के मुंह पर एक तमाचा है जिसे पंचम मार कर गए हैं.

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