तारीख में हमने बहुत से वैज्ञानिकों की बात की है. उनकी कहानियां सुनाई हैं. लेकिन आज मामला टफ है. तारीख एक गणितज्ञ पर आकर ठहरी है. और गणितज्ञ भी ऐसा कि तारीख बताओगे तो उसी के बारे में 10 ऐसी बातें बता देगा कि सर चकरा जाए. तारीख के इस एपिसोड में आज हम बात करने वाले हैं महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की. आज ही के दिन यानी 26 अप्रैल, 1920 को मद्रास में उनका निधन हो गया था.
12वीं पास रामानुजन ने कैसे दुनिया के सबसे बड़े गणितज्ञ का दिमाग चकरा दिया था?
भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन को बचपन से ही गणित का शौक था. कॉलेज में इसी के चलते दूसरे विषयों की पढ़ाई में मन नहीं लगता था. क्लर्क की नौकरी करते हुए उन्होंने गणित की कई थियोरम लिखीं और उन्हें कैम्ब्रिज के गणितज्ञ प्रोफ़ेसर GH हार्डी को भेजा. हार्डी ने रामानुजन की प्रतिभा को देखते हुए उन्हें कैंब्रिज बुलाया जहां पहुंचकर रामानुजन ने गणित में कई खोजें की. लेकिन छोटी उम्र में ही बीमारी के चलते उनका निधन हो गया था.

रामानुजन की कहानी सुनना टफ है. वो इसलिए क्योंकि रामानुजन की कहानी का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ और सिर्फ गणित है. किसी और भाषा में उनकी कहानी के साथ इंसाफ नहीं हो सकता. अब आप कह सकते हैं कि गणित अपने आप में तो कोई भाषा नहीं. तो एक सवाल से समझिए.
वन प्लस वन बराबर क्या? जवाब आसान है, वन प्लस वन बराबर टू. होता है, ये तो सबको मालूम है. लेकिन पूछा जाएगा कि प्रूव करके बताइये तो?
प्रूव करने का मतलब ये नहीं कि आप एक सेब के साथ एक सेब और रख दें और बोलें, देखिए हो गया प्रूव. नहीं ये प्रूफ नहीं है, ये उदाहरण है कि ऐसा होता है. लेकिन ऐसा हमेशा होगा, या हर चीज के साथ होगा, ऐसे प्रूफ नहीं होता. इसके लिए भी गणित ही लगेगी. ब्रिटिश फिलॉसफर बर्ट्रांड रसल और अल्फ्रेड वाइट हेड को सिर्फ ये प्र्रव करने के लिए 300 पन्ने लग गए थे.
बिना प्रूफ किए इक्वेशन बना देते थेरामानुजन के साथ भी यही दिक्कत थी. उनकी भाषा थी गणित. वो इक्वेशन ईजाद करते थे और बता देते थे. लेकिन तब मॉडर्न मैथमेटिक्स के दिग्गज मांगते थे प्रूफ. और रामानुज के साथ दिक्कत थी कि उन्होंने मॉडर्न मैथमेटिक्स की ट्रेनिंग नहीं ली थी. इसलिए जब वो पहली बार कैंब्रिज गए तो वहां प्रोफेसर GH हार्डी को उन्हें मॉडर्न मैथ्स के तरीकों से रूबरू कराना पड़ा.

रामानुजन की बायोग्राफी का नाम है, द मैन व्हू न्यू इंफिनिटी. यानी वो आदमी जो इंफिनिटी को जानता था. अब इनफींटी यानी जिसकी गणना नहीं की जा सकती. असंख्य. बात दिलचस्प है कि कोई इंफिनिटी को कैसे जान सकता है. रामानुजन का इन्फिनिटी से बड़ा गहरा रिश्ता रहा. फॉर्मल ट्रेनिंग तो ली नहीं थी इसलिए जब खुद गणित में कूदे तो सीधे एक बड़े बवाल से शुरुआत की.
1912 में जब पहली बार उन्होंने अपनी इक्वेशंस लन्दन भेजीं तो वहां एक प्रोफ़ेसर MJ हिल हुआ करते थे. उन्होंने रामानुजन की इक्वेशंस को देखा. इनमें से एक इक्वेशन कुछ इस प्रकार थी. 1+2+3+4……..= -1/12
अब अगर 12 वीं की गणित पढ़ी हो तो हम जानते हैं कि ये एक डाइवर्जेन्ट सीरीज़ है. मतलब सीरीज लगातार बढ़ती जा रही है. इंट्यूटीवली देखें तो ऐसी सीरीज का सम इन्फिनिटी होगा. लेकिन रामानुजन ने इसे -1/12 की वैल्यू दी.
इसके अलावा भी रामानुजन ने कई और डाइवर्जेन्ट सीरीज की इक्वेशन का हल दिया था. ये एक टैबू सब्जेक्ट था. क्योंकि डाइवर्जेन्ट सीरीज का कोई उपयोग तब तक ईजाद नहीं हुआ था. रामानुजन की इक्वेशंस को देखकर प्रोफेसर हिल ने जवाब दिया,
“रामानुजन के पास गणित की प्रतिभा है लेकिन उससे कहो डाइवर्जेन्ट सीरीज़ के गड्ढे में न घुसे”
लेकिन ये रामानुजन को मंजूर नहीं था. वो ऐसे ही कठिन सवालों के पीछे लगे रहे. ऊपर दी गई उनकी इक्वेशन और कई ऐसी थियोरम्स उन्होंने ईजाद की. जिनको भविष्य में स्ट्रिंग थियरी और ब्लैक होल की स्टडी में इस्तेमाल किया गया.
सर मुझे माफ़ कीजिएरामानुजन की जिंदगी की कहानी भी उतनी ही इंटरस्टिंग है जितनी उनकी मैथ्स. त्रिपलीकेन चिन्नई में एक हॉस्टल हुआ करता था, विक्टोरिया स्टूडेंट्स हॉस्टल. ब्रिटिश राज के दौरान बनाए इस हॉस्टल की बनावट कैंब्रिज सरीखी थी. 1910 के आसपास इस हॉस्टल में 20 साल के एक लड़के को एक से दूसरी विंग में घूमते देखा जा सकता था. मीडियम हाइट, चौड़ी नाक, बड़ा सा सर और चमकती आंखों वाले रामानुजन, लड़को के कमरों को खटखटाकर पूछते, मैथ्स का ट्यूशन लेना चाहोगे. उनसे उम्र में कहीं ज्यादा बड़े लड़के उनसे मैथ्स का ट्यूशन लेने को तैयार हो जाते. ये जानते हुए कि रामानुजन खुद परीक्षा में दो बार फेल हो चुके हैं. क्या करते, कुछ और पढ़ने में दिल लगता ही नहीं था.

छठी कक्षा में थे, जब पहली बार गणित की एक किताब हाथ लगी थी. वहीं से गणित को लेकर शौक शुरू हुआ था. मेर्टिक में फर्स्ट डिवीजन पास हुए थे. लेकिन कॉलेज में पहुंचने तक गणित का शौक जूनून की हद तक चला गया था. इसलिए किसी और विषय को पढ़ने में मन ही नहीं लगता था.
एक बार कॉलेज में बायोलॉजी की परीक्षा देने बैठे. सवाल था, डाइजेस्टिव सिस्टम समझाओ. रामानुजन ने लिखा, “sir, this is my undigested product of the Digestion Chapter. Please excuse me.”
यानी, “सर ये डाइजेसन के चैप्टर का मेरा अपाच्य उत्तर है. मुझे माफ़ कीजिए.”
इसके बाद एक और बाद कोशिश की लेकिन दोबारा परीक्षा में फेल हो गए. कॉलेज जाने के लिए बड़ी मुश्किल से स्कॉलरशिप का इंतज़ाम हुआ था. इसलिए जब फेल हुए तो घर से भाग गए. द हिन्दू अखबार में तब घरवालों ने एक अपील भी छपवाई थी. एक महीने बाद घर लौटे थे. गणित के अलावा कुछ और करने को दिल राजी नहीं था. इसलिए कोई काम-धंधा भी नहीं कर पाते थे. बस गणित गणित और गणित.
रामानुजन के जीनियस होने का राजमिर्जा ग़ालिब के बारे में एक बात फेमस थी. मिर्ज़ा जब शेर बनाते तो कलम दवात का इस्तेमाल नहीं करते थे. उससे खलल पड़ता था. शाम को जाम लेकर बैठते. एक शेर पढ़ते और अपने रुमाल में गांठ बांध लेते. अगला शेर पढ़ते फिर एक और गांठ, ऐसे करते-करते पूरी गजल तैयार हो जाती. सुबह उठकर फिर कलम दवात लेते, और एक-एक गांठ खोलकर पूरी गजल को कागज़ पर दर्ज़ कर लेते.

कुछ ऐसे की तरीका रामानुजन का भी था. अपने घर के अहाते में पालथी मारकर एक स्लेट लेते और पागलों की तरह घंटों लिखते रहते. फिर सो जाते. सुबह उठते तो दिमाग में इक्वेशन तैयार मिलती. उसे कागज़ पर दर्ज़ कर लेते. कहते थे, देवी सपने में आकर बता जाती है. ईश्वर पर बहुत विश्वास था. इतना कि कहा करते, “जो इक्वेशन ईश्वर के विचार को व्यक्त न करे उसका मेरे लिए कोई अर्थ ही नहीं है.”
साल 1909 में रामानुजन की शादी हुई. तब काम-धंधा करना मजबूरी हो गया. पहले ट्यूशन पढ़ाने की कोशिश की. उससे पूरा नहीं हुआ तो क्लर्क की नौकरी कर ली. इस बीच गणित के कुछ रिसर्च पेपर छापे. नौकरी के दौरान उनकी पहचान मद्रास कॉलेज के एक प्रोफ़ेसर से हुई. उन्होंने तय किया कि रामानुजन का काम कैंब्रिज भेजा जाए.
16 जनवरी 1913 की तारीख थी. ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज में पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर GH हार्डी जब कॉलेज पहुंचे तो उन्हें अपनी टेबल पर कुछ खत मिले. हार्डी वर्ल्ड फेमस मैथमैटिशियन हुआ करते थे. और रोज़ उन्हें ऐसे सैकड़ों खत मिला करते थे. टेबल में रखा एक खत भारत से आया था. खोलकर देखा तो एक के बाद एक थियोरम और गणितीय सिंबल भरे पड़े हुए थे. इनमें से कुछ इक्वेशन तो ऐसी थीं, जिन्हें हार्डी ने पहले कभी नहीं देखा था. हार्डी को लगा कोई फ्रॉड है जो अंटशंट लिखकर भेज रहा है. और उन्होंने खत को किनारे रख दिया. लेकिन पूरे दिन हार्डी के दिमाग में वो खत घूमता रहा.
रामानुजन के लिखे खतरात को वापस जाकर हार्डी ने खत को दोबारा देखा, और अपने एक साथी लिटिलवुड को भी बुला लिया. रात 9 बजे से 3 बजे तक दोनों खत में लिखी इक्वेशंस पर चर्चा करते रहे. कैंब्रिज के दो प्रोफेसर (हार्डी और लिटिलवुड) एक हाईस्कूल फेल भारतीय की नोटबुक में लिखी थियोरम को समझने की कोशिश कर रहे थे. अंत में दोनों ने डिसाइड किया कि इन इक्वेशन को लिखने वाला कोई जीनियस ही हो सकता था. दोनों ने रामानुजन को यूलर और जैकोबी (कैलकुलस की नींव रखने वाले गणितज्ञ), आसान भाषा में समझें तो गणित के न्यूटन और आइंस्टीन की श्रेणी में रखा.

इस घटना के बारे में हार्डी बाद में लिखते हैं,
“रामानुजन ने खत में करीब 120 इक्वेशंस लिखी थीं. उनकी अंतिम तीन थियोरम ने उस दिन मुझे पूरी तरह चौंका दिया था. मुझे समझ नहीं आ रहा था ये क्या हैं. मैंने ऐसा पहले कभी कुछ नहीं देखा था. मुझे लगा ये गलत हैं लेकिन फिर बाद में मुझे अहसास हुआ कि ये जरूर सही होंगी क्योंकि ये ऐसी इक्वेशन थीं जिनकी यूं ही कल्पना कर लेना असम्भव था”
रामानुजन की इक्वेशंस से हार्डी बहुत प्रभवित हुए. उन्होंने उनसे कैंब्रिज आने को कहा. लेकिन एक तमिल ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए रामानुजन के लिए समंदर की यात्रा करना धार्मिक विश्वास के खिलाफ था. रामानुजन की मां भी इसके लिए तैयार नहीं हुई. तब हार्डी ने रामानुजन से अपनी इक्वेशन का प्रूफ भेजने को कहा.
इसका जवाब देते हुए रामानुजन ने खत में लिखा,
“अगर मैं अपने तरीके आपको बताऊंगा तो आप उस पर विश्वास नहीं करेंगे. मैं आपसे केवल इतना कह सकता हूं कि मैंने जो थियोरम ईजाद की हैं आप उन्हें वेरिफाई कर लीजिए. अगर आपके तरीकों से वो प्रूव हो जाती है तो आपको कम से कम इतना मानना होगा कि मेरा तरीके में कुछ तो सही है. इस वक्त मैं बस इतना चाहता हूं कि आपके कद का गणीतज्ञ मुझे इतना बताए कि मैं किसी लायक हूं”
आगे अपनी मजबूरी के बारे में बताते हुए रामानुजन लिखते हैं.
कैंब्रिज में रामानुजन“मैं आधा पेट भूखा रहने वाला आदमी हूं. अपना दिमाग जिन्दा रखने के लिए मुझे खाना चाहिए और यही मेरी प्रायोरिटी है. अगर आप सरकार से मेरी सिफारिश कर दें तो मुझे कुछ स्कॉलरशिप मिल जाएगी. और मैं गणित का काम जारी रख पाऊंगा”
इसके बाद हार्डी ने अपने एक दोस्त EH नेविल को रामानुजन से मिलने भेजा. नेविल ने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए तैयार किया और मद्रास यूनिवर्सिटी से उनकी स्कालरशिप की व्यवस्था कराई. 17 मार्च 1914 को रामानुजन लन्दन के लिए रवाना हुए. कैम्ब्रिज पहुंचकर रामानुजन की असली रिसर्च शुरू हुई. हार्डी और लिटिलवुड के साथ मिलकर उन्होंने कई इंटरनेशनल पेपर्स में शोध पत्र छापे. लेकिन फिर प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया. लिटिलवुड को मिलिट्री सर्विस में ड्राफ्ट कर लिया गया. हार्डी ने तब मद्रास कॉलेज को लिखे एक पत्र में इस बात का जिक्र करते हुए लिखते हैं, “रामानुजन के कैलिबर के छात्र के लिए एक टीचर काफी नहीं है”

रामानुज जीनियस की कैटगरी में आते थे. लकिन यही बात हार्डी के लिए मुसीबत का सबब थी. रामानुज इंट्यूटिवली गणित की मुश्किल से मुश्किल थियोरम्स को समझ लेते थे. लेकिन वो मॉडर्न मैथमेटिक्स में ट्रेन नहीं थे. इसलिए कांसेप्ट ऑफ प्रूफ के बजाय सीधे रिजल्ट पर पहुंच जाते.
रामानुजन के तरीके के बारे में लिटिलवुड लिखते हैं,
रॉयल सोसायटी की फेलोशिप“अगर बात उन्हें समझ आ गई, और अपनी रीजनिंग के चलते उन्हें अपने दिमाग में उस बात का एविडेंस मिल गया. तो यही उनके लिए काफी हो जाता था, वो प्रूफ आदि करने के बारे में नहीं सोचते थे “
हार्डी के लिए ये परेशान करने वाली बात थी. रामानुजन की इक्वेशंस को दुनिया तक पहुंचाने के लिए मॉडर्न मैथमैटिकल तरीके का इस्तेमाल जरूरी था. लेकिन एक आदमी जो कॉम्प्लेक्स मल्टिप्लिकेशन की मल्टीपल ऑर्डर्स की इक्वेशन सुलझाने में महारथ हासिल रखता था, कंटीन्यूअस फ्रैक्शंस की मैथ्स सुलझाने में जिसके आगे दुनिया का कोई गणितज्ञ कहीं नहीं ठहरता था, उसे बेसिक मैथ्स में ट्रेन होने के लिए कहना हार्डी के लिए बहुत मुश्किल था.
फिर भी हार्डी ने रामानुजन को फॉर्मल मैथ्स में ट्रेन किया. वो कहते थे,
“रामानुजन मॉडर्न स्कूल ऑफ मैथमैटिक्स से नहीं आते थे. लेकिन जो वो कर सकते थे, वो कोई और नहीं कर सकता था. इसलिए हमने कभी उनका तरीका बदलने की कोशिश नहीं की.”
रामानुजन भारत में डिग्री नहीं ले पाए थे. लेकिन साल 1916 में कैम्ब्रिज में उन्हें उनकी रिसर्च के लिए BA की डिग्री दी. इसके अलावा 28 फरवरी 1918 को रामानुजन को रॉयल सोसायटी की फेलोशिप दी गई. पहली ही बार में फेलोशिप स्वीकृत किए जाने वाले वो पहले छात्र थे. उसी साल अक्टूबर में उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज की फ़ेलोशिप भी दी गई. ये सम्मान पाने वाले भी वो पहले भारतीय थे.
जैसा की पहले कहा रामानुजन की कहानी का असली हिस्सा गणित में है. हम ये तो समझ सकते हैं कि दुनिया भर के गणितज्ञ उन्हें इतना मान देते हैं, इसकी जरूर कोई वजह होगी. लेकिन गणित से जो जादू उन्होंने रचा था, उसे समझने के लिए उस भाषा में दक्ष होने की जरुरत है, जिसे गणित कहते हैं.
वीडियो देखें- आर्यभट्ट सैटेलाइट बनाने की पूरी कहानी