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50 साल बाद मिली रामानुजन की किताब ने कौन से राज खोले?

जब रामानुजम से किसी ने उनके जीनियस होने का राज़ पूछा!

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रामानुजन छठी कक्षा में थे, जब पहली बार गणित की एक किताब हाथ लगी थी. वहीं से गणित को लेकर शौक शुरू हुआ था. (तस्वीर: Wikimedia Commons)
कोहनी में छुपा जीनियस होने का राज़ 

साल 1911 की बात है. (Srinivas Ramanujan) रामानुजन के रिसर्च पेपर भारतीय जर्नल्स में छपने लगे थे. इसलिए उनका थोड़ा बहुत नाम होने लगा था. एक रोज़ चेन्नई में उनकी मुलाक़ात अपने एक पुराने दोस्त से हुई. जिसने मिलते ही उनसे कहा, “अरे तुम्हें तो सब जीनियस कहने लगे हैं!”
रामानुजन ने जवाब दिया, “मेरी कोहनी देखो, तब तुम्हें असलियत पता चलेगी.” 

दोस्त ने पाया कि रामानुजन की कोहनी की चमड़ी काली और मोटी हो चुकी है. रामानुजन के कहा, “दिन रात स्लेट पर लिखता हूं. मिटाने के लिए बार-बार कपड़ा इस्तेमाल करुं तो टाइम खर्च होता है. इसलिए कोहनी से ही मिटा देता हूं. मेरी कोहनी ही मुझे जीनियस बना रही है.” 
इसके बाद रामानुजन के दोस्त ने पूछा, “तब तो तुम्हें बहुत मेहनत करनी पड़ती होगी. लिखने के लिए स्लेट की बजाए कागज़ का इस्तेमाल क्यों नहीं करते?”
रामानुजन ने जवाब दिया, “जब खाने तक की किल्लत हो, कागज़ खरीदने के पैसे कहां से आएंगे.”

कागज़ की एक कमी से जुड़ा एक किस्सा यूं भी है कि रामानुजन को जब पेपर लिखने को मिलता था तो वो उस पर दो बार लिखते थे. पहली बार काली या नीली स्याही से. और दुबारा उसी के ऊपर लाल स्याही से. आज हमारे लिए कल्पना करना मुश्किल है कि पेपर की कमी जैसी कोई चीज हो सकती है. लेकिन रामानुजन के लिए ये बहुत बड़ा मसला था. इतना बड़ा कि जब वो ब्रिटेन गए और उन्हें रहने को कमरा मिला, उनसे पूछा गया, कमरा कैसा लगा? इस पर रामानुजन ने जवाब दिया, कमरे में रखे पेपर बहुत अच्छे हैं.

एक पहेली के अनगिनत जवाब

दूसरा किस्सा तब का है, जब रामानुजन कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में रिसर्च कर रहे थे. साल 1914 की बात है. इसी समय वहां भारत के महान गणितज्ञ पी सी महालनोबिस भी अपनी पढ़ाई में लगे हुए थे. दिसंबर की एक रात महालनोबिस रामानुजन से मिलने पहुंचे. रामानुजन आग के पास बैठे हुए थे. महालनोबिस ने एक पत्रिका उनके हाथ में दी. स्ट्रैंड नाम की इस पत्रिका में हर महीने कुछ पहेलियां छपती थी. जिन्हें हल करना छात्रों का शगल होता था. 

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प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस को भारत में सांख्यिकी का जनक माना जाता है. दाईं तरफ  डॉ जॉर्ज एंड्रयूज (तस्वीर: Wikimedia Commons)

उस महीने की पहली कुछ इस प्रकार थी-

राम जिस गली में रहता है, उनमें घरों की संख्या , 1..2..3…4…5 … इस प्रकार लिखी हुई है. अगर राम की बायीं तरफ के घरों पर लिखी संख्या का जोड़ उसके दाएं तरफ के घरों की संख्या के जोड़ के बराबर है, तो बताओ राम के खुद के घर का नंबर क्या होगा?

पहेली में साथ में एक हिंट भी दी गई थी कि राम के गली में कम से कम 50 घर हैं. लेकिन घरों की संख्या 500 से ज्यादा नहीं हैं. दोनों भारतीय इस पहेली को हल करने में लग गए. महालनोबिस ने मिनटों के अंदर इसका जवाब निकाल कर दिखा दिया, जो यूं था कि राम की गली में 288 घर हैं और उसके खुद के घर की संख्या 204 है. रामानुजन अभी भी सोच में थे. महालनोबिस को लगा उनसे पहेली हल नहीं हो रही है. लेकिन तभी रामानुजन बोले, ‘एक फॉर्म्युला लिखो’. इसके बाद उन्होंने एक लम्बा सा फॉर्म्युला लिखवा लिया. अंत में बोले, ‘अगर पहेली में ये शर्त न होती कि घरों की संख्या 50 से 500 के बीच है, तो इस पहेली के और भी जवाब हो सकते हैं’. 

उदाहरण के लिए एक हल ये भी हो सकता है कि राम का घर छठा है और कुल घरों की संख्या 8 है. स्क्रीन पर आपको दिखाई दे रहा होगा कि 1 से लेकर 5 तक की संख्या का जोड़, 7 और 8 के जोड़ के बराबर होगा. यानी 15. यानी रामानुजन ने सिर्फ उसी पहेली का हल नहीं निकाला बल्कि ऐसी सभी पहेलियों के लिए मन ही मन एक फॉर्म्युला तैयार कर दिया. 
महालनोबिस चकित थे. उन्होंने पूछा, तुमने ये किया कैसे?
रामानुजन ने जवाब दिया, 
‘सवाल सुनते ही मुझे समझ आ गया था कि इस सवाल का जवाब कंटिन्यूड फ्रैक्शन होगा. लेकिन कौन सा? बस ये पता करने के लिए मुझे कुछ मिनट सोचना पड़ा.’

मेहमान खाने पर, मेजबान गायब

रामानुजन का एक दोस्त ज्ञानेश कैंब्रिज में ही पढ़ाई करता था. एक रोज़ रामानुजन को पता चला कि ज्ञानेश की शादी तय हो गयी है. इस खुशी का जश्न मनाने के लिए रामानुजन ने ज्ञानेश और उसकी मंगेतर को अपने घर आमंत्रित किया. दोनों अपनी एक और महिला दोस्त को साथ लेकर वक्त पर डिनर के लिए पहुंच गए. रामानुजन अब तक कुछ बढ़िया दक्षिण भारतीय व्यंजन बनाना सीख गए थे. बड़ी मेहनत से उन्होंने एक स्टोव पर ये सब बनाया था. उन्होंने भोजन टेबल पर लगाया. सब खाने लगे. सब कुछ सही था. रसम ख़त्म होता देख रामानुजन ने एक और कटोरी तीनों लोगों को दी और तीनों ने रसम ले भी लिया. इसके बाद एक बार फिर रामानुजन रसम से भरी कटोरी लेकर आए. लेकिन इस बार दोनों महिलाओं ने रसम लेने से इंकार कर दिया. कुछ देर बाद मेहमानों ने देखा कि मेजबान घर से गायब हो चुका है. अचानक कहां चले गए थे रामानुजन?

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रामानुजन की बायोग्राफी का नाम है, द मैन व्हू न्यू इंफिनिटी (तस्वीर: Wikimedia Commons)

ज्ञानेश ने आसपास पूछताछ की तो पता चला रामनुजन टैक्सी लेकर कहीं को निकल गए हैं. कुछ घंटे इंतज़ार के बाद मेहमान घर से चले गए. अगली सुबह ज्ञानेश रामानुजन के घर आए ताकि पता कर सकें पिछली रात क्या था. लेकिन रामानुजन अभी भी वापिस नहीं लौटे थे. पांचवे दिन ज्ञानेश के पास एक टेलीग्राम आया. ऑक्सफ़ोर्ड से. जिसमें लिखा था, मुझे पांच पौंड भेज सकते हो. आज के हिसाब से करीब 24 हजार रूपये. कुछ दिन बाद रामानुजन कैम्ब्रिज वापिस लौटे तो ज्ञानेश ने उनसे मिलकर पूरा मामला जानने की कोशिश की. रामानुजन के बताया कि वो उन दो महिलाओं को दुबारा देखना नहीं चाहते थे. दूसरी बार रसम लेने से मना करने की बात से उन्हें काफी ठेस पहुंची थी. अब यहां आपको लग सकता है, एक छोटी सी बात पर, रामानुजन इस तरह रियेक्ट क्यों कर रहे थे?

दरअसल कैम्ब्रिज में रहते हुए शुरुआत में रामानुजन काफी खुश थे. यहां उन्हें गणित करने की आजादी थी और पैसे की कोई चिंता भी नहीं. लेकिन फिर धीरे-धीरे एक दिक्कत पैदा होने लगी. यहां भारत जैसा खाना नहीं मिलता था. लोग ज्यादातर मांसाहारी थे और रामनुजन मांस को छू भी नहीं सकते थे. यानी वो बाकी लोगों के साथ मिलकर खाना नहीं खा सकते थे. और ये बात उन्हें बहुत अकेला महसूस कराती थी. खाने को लेकर वो काफी संवेदनशील थे. बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद खाना बनाना सीखा था. इसी वजह से शायद उस रोज़ रसम मना करने वाली बात रामानुजन को इतनी बुरी लगी थी.  

एक किस्सा ये भी है कि शुरुआत में रामानुजन कॉलेज के हॉस्टल से फ्राइड आलू जैसी चीजें मंगा लिया करते थे. लेकिन एक बार किसी ने उनसे मजाक में कह दिया कि उसे फ्राई करने में जानवरों के फैट का इस्तेमाल होता है. तब से रामानुजन ने हॉस्टल से खाना मांगना ही छोड़ दिया. एक छोटे से स्टोव में वो खुद अपना खाना बनाते थे. वक्त की कमी के चलते वो सिर्फ एक वक्त का खाना बना पाते. आगे जाकर इसी चक्कर में उनकी तबीयत बिगड़ गई और वही उनकी मौत का कारण भी बनी.

50 साल बाद मिली रामानुजन की खोई किताब

साल 1920 में अपनी मौत से पहले रामानुजन ने कुछ पेपर लिखे थे. 130 के लगभग ये पेपर तकरीबन 50 साल तक लंदन की एक लाइब्रेरी में धूल खाते रहे. फिर साल 1976 में पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के गणितज्ञ डॉ जॉर्ज एंड्रयूज की नजर एक दिन अचानक उन पन्नों पर पड़ी. और उन्होंने इनकी पड़ताल शुरू की. इन्हीं पन्नों के बारे में भौतिक विज्ञानी फ्रीमैन डायसन ने कहा था "ये वो फूल हैं, जो रामानुजन के बगीचे में पके हुए बीजों से उगे हैं."

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रामानुजन की नोटबुक के पन्नों पवार 1970 के दशक के बाद नए सिरे से शोध शुरू हुआ (तस्वीर: वायर्ड)

क्या था इन पन्नों में?

साल 2012 में रामानुजन के 125 वें जन्मोत्सव के मौके पर गणितज्ञों ने इन पन्नों को लेकर कुछ खुलासे किए. इन पन्नों में कुछ गणितीय समीकरण छिपे थे, जिन्हें रामानुजन ने मॉक थीटा फंक्शन्स का नाम दिया था. गणीतज्ञों ने बताया कि इन विशेष समीकरणों का उपयोग ब्लैक होल पर शोध में किया जा सकता है. ब्लैक होल यानी अंतरिक्ष में मौजूद एक क्षेत्र जहां गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक होता है कि प्रकाश भी बाहर नहीं निकल पाता है. अमेरिकी गणितज्ञ केन ओनो ने इस मौके पर कहा था, “1920 में रामानुजन ने जब ये समीकरण तैयार किए, किसी ने ब्लैक होल का नाम सुना भी नहीं था. और अब उनका काम ब्लैक होल्स के रहस्य से पर्दा उठाने में मदद कर सकता है”. इसके अलावा इन पन्नों में मौजूद समीकरणों का उपयोग सिग्नल प्रोसेसिंग और इंटरनेट को अधिक सुरक्षित बनाने के हल तलाशने के लिए किया जा रहा है. 

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