एक 300 साल पुरानी राजशाही. एक पांच फ़ुट पांच इंच का क्रांतिकारी, एक अय्याश संत. एक राजा-रानी और एक हत्याकांड. सांचे में बिठाएं तो ये सभी एक बेस्ट सेलर नॉवल का पार्ट हो सकते हैं. लेकिन आप जानते ही हैं कि कई बार सच्चाई कल्पना से भी ज्यादा हैरान करने वाली होती है.
सबसे खौफनाक तांत्रिक ने कैसे फंसाया रूस की आख़िरी रानी को?
कौन था रास्पुतिन जिसने रूस के अंतिम राजा को झांसे में लिया और रूस की बर्बादी का कारण बना. कैसे हुई राजपरिवार की हत्या?

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ये सब किरदार एक ऐसे साम्राज्य के पतन की कहानी का हिस्सा हैं, जो समूचे मानव इतिहास का तीसरा सबसे बड़ा साम्राज्य था. जिसके आख़िरी राजपरिवार को तहखाने में गोलियों से भून डाला गया. और जिसके खात्मे ने दुनिया की सबसे लम्बी वैचारिक जंग की शुरुआत की. पूंजीवाद और साम्यवाद की जंग. ये कहानी है रूस की, जो किसी ज़माने में एक साम्राज्य था, फिर पिछली शताब्दी में हुई कम्युनिस्ट क्रांति के बाद कई देशों के एक संघ का हिस्सा बना और अब इक्कीसवीं सदी में वो फिर से एक देश है. (Last Tsar of Russia)
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रूस के साम्राज्य का अंत कैसे हुआ?
कैसे मारा गया रूस का आख़िरी ज़ार.
इस कहानी का ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया से क्या नाता है.
एक था राजा-एक थी रानी
बचपन में सुनी थी एक कहानी. एक था राजा एक थी रानी, दोनों मर गए ख़त्म कहानी. रूस पहुंचते ही ये कहानी एक ज़ार और ज़ारीना की हो जाती. दोनों मारे गए. लेकिन कहानी खत्म न हुई. कहानी के सिरे 100 साल बाद तक खुलते रहे. लेकिन वो आगे की बात है. पहले इतिहास से शुरू करते हैं.
साल 1547. रूस में ज़ारशाही की शुरुआत हुई. पहले ज़ार का नाम था इवान द टेरीबल. गज़ब गुस्से वाला आदमी था. अपने ही बेटे और पोते ही हत्या कर डाली. हालांकि अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था. पत्नी का नाम था एनसटेसिया रोमनोव्ना. पर यही उसकी एकमात्र पत्नी नहीं थी. ज़ार की आठ पत्नियां थीं. लेकिन इवान के बाद गद्दी मिली एनसटेसिया के परिवार को. एनसटेसिया से रूस में रोमनोव राजवंश की शुरुआत हुई. इस राजवंश ने 300 साल तक रूस पर राज किया. साल 1894 में इस परिवार से निकोलस द्वितीय ज़ार बने. पिता के लाडले थे. इसलिए कभी राज-काज का काम नहीं सीखा. अय्याशी में जवानी गुज़री. लेकिन फिर एक रोज़ एक लड़की की मोहब्बत में गिरफ़्तार हो गए.

अलेक्सांद्रा नाम की ये लड़की यूं तो जर्मन राजवंश से आती थी लेकिन उसकी जबान और तौर तरीके से निकोलस के घरवाले खुश नहीं थे. निकोलस किसी की सुनने को तैयार नहीं थे. ज़ार बनते ही उन्होंने अलेक्सांद्रा से शादी कर ली. अलेक्सांद्रा दहेज़ में खूब सारा सोना चांदी और तोहफे लेकर आई. लेकिन वो इस बात से अनजान थी कि उसके साथ-साथ एक छुपा हुआ दुश्मन भी आ रहा है. जो आगे जाकर उसके परिवार के नाश का कारण बनेगा.
रानी विक्टोरिया का रोग
आगे की कहानी से पहले आपके लिए एक बात जानना जरूरी है. रूस की आख़िरी ज़ारीना अलेक्सांद्रा ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की नातिन थी. विक्टोरिया के खानदान में पीढ़ी दर पीढ़ी एक बीमारी चली आ रही थी. इस बीमारी का नाम था हीमोफीलिया. इस बीमारी में खून इतना पतला हो जाता है कि उसके थक्के नहीं बनते. इसलिए चोट लगने पर अधिक खून बहने से आदमी मर सकता है. अलेक्सांद्रा में इस बीमारी के गुण सोए हुए थे. लेकिन उनके जरिए ये बीमारी उनेक बेटे तक पहुंच गई. अलेक्सी निकोलाविच नाम का ये बेटा बड़ी मिन्नतों के बाद हुआ था. इससे पहले ज़ार और ज़ारीना को चार बेटियां हुई थीं. अलेक्सी के पैदा होने से ज़ारशाही के भविष्य की चिंताएं तो शांत हो गई. लेकिन जल्द ही पता चला कि वो जानलेवा बीमारी से पीड़ित है.
इस बीमारी के इलाज के लिए ज़ार और ज़ारीना ने दुनिया भर से नीम हकीम बुलाए लेकिन कहीं से कोई फायदा नहीं मिला. फिर साल 1905 में इस कहानी में एक और दिलचस्प किरदार की एंट्री हुई. ग्रिगोरी रास्पुतिन. (Rasputin)
कौन था रास्पुतिन?
साढ़े छह फुट का एक जोगी जो भविष्य देखने का दावा करता था. उसकी आभा ऐसी थी कि जो उससे मिलता, प्रभावित हुए बिना न रह पाता. लम्बी घनी दाढ़ी और शरीर से आती बकरे की बदबू उसे रहस्यमयी बनाती थी. पूरे सेंट पीटरसबर्ग में उसके चर्चे थे. और जल्द ही उसे विंटर पैलेस यानी राजमहल से भी बुलावा आ गया.

निकोलस ने रास्पुतिन से मुलाक़ात की और उन्हें अपने बेटे के बारे में बताया. रास्पुतिन ने वादा किया कि वो जादुई ताकत से उनके बेटे की बीमारी ठीक कर देगा. निकोलस के बारे में मशहूर था कि वो कान के कच्चे थे. उन दिनों पूरे रूस में इस बाबत एक लतीफा चला करता था.
“रूस में दो लोग सबसे ताकतवर हैं. पहला ज़ार और दूसरा वो जिससे ज़ार ने अभी-अभी बात की है.”
निकोलस ने रास्पुतिन की बातों पर विश्वास कर लिया. अपने बेटे के लिए उन्होंने सरकारी ख़ज़ाने के दरवाज़े खोल दिए. इत्तेफाक ऐसा हुआ कि अलेक्सी की तबीयत में सुधार भी आने लगा. बस फिर क्या था. ज़ार और ज़ारीना रास्पुतिन के भक्त बन गए. दोनों उसकी मुट्ठी में थे. चंद महीनों में ही वो रूस का सबसे ताकतवर शख्स बन गया. इधर जब महल में ये सब चल रहा था. रूस में क्रांति की पहली चिंगारी सुलगने लगी थी.
रूस की क्रांति
साल 1905 में रूस में पहली क्रांति हुई. व्लादिमिर इलयिच उल्यानोव लेनिन जैसे नेता इस क्रांति के अगवा थे. किसान और मजदूर बेहतर वेतन की मांग लेकर सड़कों पर थे. उन्होंने निकोलस से मिलने की कोशिश भी की. लोगों का एक हुजूम विंटर पैलेस की तरफ रवाना हुआ. लेकिन निकोलस ने इन लोगों से मिलने की बजाय, उनके ऊपर पुलिस छोड़ दी. ब्लडी सन्डे के नाम से मशहूर एक इतिवार के रोज़ हज़ारों लोग पुलिस एक्शन में मारे गए. इस हत्याकांड ने चिंगारी को और भड़का दिया. मजदूर स्ट्राइक पर चले गए. किसानों ने हथियार उठा लिए.
अंत में निकोलस को क्रांति के आगे झुकना पड़ा. उन्होंने रूस में संविधानिक राजतंत्र की शुरुआत की. रूस में ड्यूमा यानी संसद का गठन हुआ. चुनाव हुए. प्रधानमंत्री बना. हालांकि आख़िरी ताकत अभी भी ज़ार के हाथ में थी. वो जब चाहे अपनी मर्ज़ी से संसद को भंग कर सकता था. ऐसा ही हुआ भी. एक साल के अंदर ज़ार निकोलस ने संसद भंग कर दी. और अपने मनपसंद आदमी को प्रधानमंत्री बनवा दिया. लोगों में एक बार फिर विद्रोह की चिंगारी भड़कने लगी. इस विद्रोह ने आगे जाकर दुनिया की सबसे बड़ी क्रांति का रूप लिया. इसे इतिहास में बोल्शेविक क्रांति के नाम से जाना गया. लेकिन उससे पहले एक आख़िरी धक्के की जरुरत थी. और ये धक्का लगा पहले विश्व युद्ध की शुरुआत से. जिसे तब ग्रेट वॉर कहा जाता था.
पहला विश्व युद्ध
1914 में रूस विश्व युद्ध में दाखिल हुआ. एक साल के अंदर लोगों को इसके अंजाम दिखने लगे. चीजों के दाम बढ़ रहे थे. राशन की कमी थी. यहां तक कि सेना के पास लड़ने के लिए गोलियां तक नहीं थी. उधर राजमहल से हर रोज़ अलग-अलग कांड बाहर आ रहे थे. ख़बरें आ रही थीं कि रास्पुतिन के ज़ारीना से नाजायज रिश्ते हैं और उसने राजकुमारियों को भी नहीं छोड़ा है. निकोलस की चुप्प्पी इन ख़बरों को बढ़ावा दे रही थी. नतीज़ा हुआ की पूरे रूस में ज़ारशाही के खिलाफ गुस्सा चरम पर पहुंच गया. मोर्चे पर खड़े सैनिक हथियार डालकर विद्रोहियों के साथ मिल गए. जब ये खबर ज़ार के पास पहुंची, वो खुद युद्ध के मोर्चे पर पहुंच गए. उनके पीठ पीछे गुस्साए क्रांतिकारियों ने रास्पुतिन की हत्या कर डाली.

रास्पुतिन को मारना आसान न था. रास्पुतिन की हत्या करने वाले प्रिंस फेलिक्स युसोपोव के अनुसार रास्पुतिन को केक में ज़हर मिलाकर दिया गया. लेकिन इससे उसे कोई असर न हुआ. गोली मारने के बावजूद वो मरा नहीं. अंत में उसे ठन्डे पानी में डुबाकर मारा गया. रास्पुतिन की मौत ने विद्रोहियों का हौंसला और बढ़ा दिया. साल 1917 आते-आते हालात इतने ख़राब हो गए कि लोग दुकानों में लूटपाट मचाने लगे. मजबूरन निकोलस को युद्ध से बाहर निकलने का ऐलान करना पड़ा. हालांकि इससे भी हालात बेहतर न हुए. युद्ध में लाखों रूसी सैनिक मारे गए थे. और महंगाई आसमान तक पहुंच गई थी. रूस के लोग अब किसी भी तरह ज़ारशाही का अंत चाहते थे.
कुर्सी गई और जान भी
फरवरी 1917 में रूस के प्रधानमंत्री ने ज़ार के नाम एक तार भेजा. जिसमें लिखा था कि उनका सत्ता छोड़ देना ही अब इस समस्या का आख़िरी हल है. निकोलस ने अपने फेमस जवाब में लिखा,
“उस मुटल्ले प्रधानमंत्री ने हमेशा ही तरह बकवास लिखकर भेजी है. मैं इसका कोई जवाब नहीं दूंगा.”
अगली सुबह वो ट्रेन में अपने बच्चों और पत्नी से मिलने के लिए निकले. लेकिन रास्ते में ही प्रदर्शनकारियों ने इस ट्रेन का घेराव कर लिया. निकोलस के पास अब कोई चारा नहीं था. 15 मार्च 1917 के रोज़ ज़ार ने सत्ता छोड़ दी. और इसी के साथ रूस के 300 साल पुराने साम्राज्य का अंत हो गया. निकोलस ने आखिर तक ज़ारशाही को बचाने की पूरी कोशिश की. उन्होंने अपने भाई मिखाईल को अगला ज़ार नियुक्त किया. लेकिन उसने भी ये पद स्वीकार करने से मना कर दिया.
सत्ता जाने के बाद निकोलस अपने परिवार की जान बचाने में लग गए. ब्रिटेन के किंग जॉर्ज रिश्ते में ज़ार के चचेरे भाई लगते थे. उन्होंने निकोलस को ब्रिटेन में शरण देने का प्रस्ताव दिया. लेकिन किंग जॉर्ज के सलाहकारों ने आशंका जताई कि ऐसा करने पर ब्रिटेन में भी विद्रोह भड़क सकता है. इसलिए उन्होंने अपना ऑफर वापिस ले लिया.

रूस में ज़ारशाही ख़त्म हो चुकी थी. लेकिन क्रांतिकारी इससे संतुष्ट नहीं थे. क्रांतिकारियों का बोल्श्विक धड़ा रूस में कम्युनिस्ट शासन लाना चाहता था. इसका नेतृत्व लेनिन कर रहे थे. वहीं दूसरा धड़ा इसके खिलाफ था. इसे मेन्शेविक कहा जाता था. लिहाजा रूस में गृह युद्ध की शुरुआत हो गई. निकोलस को उनके महल में नजरबंद किया गया था. लेकिन लेनिन चाहते थे कि निकोलस को बंदी बनाकर सजा दी जाए. जल्द ही निकोलस और उनका परिवार बोल्श्विक विद्रोहियों के कब्ज़े में आ गए. उनका अंत अब नजदीक था.
मौत की रात
17 जुलाई, 1918 की बात है. निकोलस और उनका परिवार साइबेरिया के पास एक घर में नजरबन्द था. रात के दो बजे अचानक कुछ लोग वहां घुसे. ज़ार के पूरे परिवार को घर के नीचे बने एक तहखाने में ले जाया गया. ये ऑपरेशन 'चिमनी स्वीप' की शुरुआत थी. दरअसल बोल्श्विक क्रांतिकारियों को खबर मिली थी कि ज़ार के समर्थक अपने राजा को छुड़ाने आ रहे हैं. इसलिए रातों रात ही उन्होंने ज़ार को परिवार सहित ठिकाने लगाने का प्लान बना लिया. पूरे परिवार को महल के तहखाने में ले जाकर गोलियों से भून डाला गया. जिनमें थोड़ी जान बची थी, उन्हें संगीनों से घोंपा गया. मरने वालों में 13 साल का अलेक्सी निकोलाविच भी था.
ज़ार की मौत के बाद रूस में कम्युनिस्ट शासन की शुरुआत हुई. कम्युनिस्ट सरकार ने ज़ार के परिवार की मौत की जांच करवाई. रूस में गृहयुद्ध के खात्मे और उसके कई दशक बाद तक इस हत्या को लेकर सवाल उठते रहे. तब कहा गया था कि ज़ार के पूरे परिवार के शव जला दिए गए हैं. लेकिन साल 1991 में ये अवशेष अचानक प्रकट हो गए. इन्हें 1979 में ही खोज निकाला गया था. लेकिन सोवियत क्रांति के इस काले इतिहास को छुपाकर रखने के लिए इन्हें सामने नहीं लाया गया. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद निकोलस और उनके परिवार को राजकीय सम्मान के साथ दफना दिया गया.
इस मौके पर राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने इस हत्यकांड को पूर्वजों की गलती बताया. सोवियत संघ के रहते ज़ारशाही का नाम लेना भी गुनाह था. लेकिन 21 वीं सदी में वो कई लोगों के हीरो हैं. और रशियन चर्च ने उन्हें संत का दर्ज़ा दे रखा है.
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