अगले महीने कार्णिक की शादी होने वाली थी. वो अपनी मंगेतर कमल को खत लिख कर पोस्ट करता है. और एक प्लेन में चढ़ जाता है. ये एक चार्टर प्लेन है. जिसे पहले बॉम्बे से बैंगकॉक तक. और फिर वहां से हॉन्ग-कॉन्ग तक जाना है.
RN काओ ने यूं किया एशिया के सबसे बड़े षड्यंत्र का पर्दाफाश
साल १९५५ में एयर इंडिया का प्लेन कश्मीर प्रिंसेस इंडोनेशिया को जाते हुए क्रैश हो गया. प्लेन में एक बम धमाका हुआ था और ये साजिश थी चीन के प्रीमियर झू इनलाई की हत्या करने की. झू इनलाई तब इंडोनेशिया में गुट निरपेक्ष देशों के एक सम्मलेन में भाग लेने जा रहे थे और ऐन मौके पर उन्होंने अपना प्लान चेंज कर दिया. जिस कारण उनकी जान बच गयी. हादसे की जांच करने भारत की तरफ से RN काओ हांग-कांग पहुंचे थे और तहकीकात में पता चला था कि इस हत्या की साजिश ताइवान की पार्टी कुओमितांग ने की थी.

हॉन्ग-कॉन्ग में प्लेन में सवार होने वाले हैं चीन के प्रधानमंत्री झू इनलाई. यहां क्रू प्लेन का फ्यूल रिफिल करने के लिए कुछ देर ठहरता है. कार्णिक और पायलट और बाकी क्रू मेंबर खाना खाते हैं. इस दौरान अंग्रेज़ सा दिखने वाला एक व्यक्ति उनके पास पूछता है. वे उसकी बातों पे ज्यादा ध्यान नहीं देते. और प्रधानमंत्री झू इनलाई का इंतज़ार करने लगते हैं. उनके साथ जाने वाला एक डेलीगेशन पहले ही पहुंच चुका है. ऐन मौके पर खबर आती है कि झू इनलाई का प्रोग्राम चेंज हो गया है. इसके बाद प्लेन चीन के डेलीगेशन को लेकर आगे रवाना हो जाता है. प्लेन की आख़िरी मंजिल है जकार्ता, इंडोनेशिया की राजधानी.

अगले पांच घंटे प्लेन दक्षिण चीन समुन्द्र के ऊपर आराम से यात्रा करता है. खाना परोसा जाता है और खाने के बाद वाली सिगरेट भी. करीब 3 बजे कार्णिक समेत प्लेन के सभी यात्रियों को एक बम धमाका सुनाई देता है. कार्णिक को लगता है बैगेज एरिया से धमाके की आवाज आई है. लेकिन कुछ देर में प्लेन के दाएं पंख में आग लग जाती है. और कार्णिक समझ जाता है कि धमाका फ्यूल टैंक में हुआ है. धीरे-धीरे धुंआ पूरे प्लेन में भरने लगता है. कार्णिक और बाकी क्रू दरवाजा खोलने की कोशिश करते हैं. लेकिन वो भी जाम हो चुका है. इसके बाद प्लेन 18000 फ़ीट की ऊंचाई से सीधे समंदर में डाइव करता है और क्रैश हो जाता है. 16 लोग इस हादसे में मारे जाते हैं. किस्मत से कार्णिक और दो और लोगों की जान बच जाती है. आठ घंटे बाद उन्हें पास के एक आइलैंड से रेस्क्यू किया जाता है.
ये 1955 की बात है. हिंदी चीनी भाई-भाई का दौर था. डिफेन्स मिनिस्टर वीके मेनन चीन के दौरे पर चुके थे. उनके बाद विजय लक्ष्मी पंडित का दौरा हुआ था. गोवा पर भारत के दावे के चीन समर्थन कर रहा था. कुल मिलाकर दोनों देशों के रिश्तों में गर्मजोशी थी. 1955 में बांडुंग इंडोनेशिया में एक कांफ्रेंस का आयोजन किया गया. ये गुट निरपेक्ष देशों का सम्मलेन था. जिसे लीड कर रहे थे भारत और चीन. नेहरू खास तौर पर कोशिश कर रहे थे कि अमेरिका और USSR के बरअक्स एक तीसरा धड़ा खड़ा किया जाए.
चीन के प्रधानमंत्री झू इनलाई को इंडोनेशिया ले जाने के लिए प्रधानमंत्री नेहरू ने एक ख़ास विमान भेजा. ये लॉकहीड मरीन का L749A- कॉन्स्टेलशन एयरक्राफ्ट था. जो अमेरिकन मेड था. भारत ने उस दौर में एयर इंडिया के लिए ऐसे कई सारे एयर क्राफ्ट खरीदे थे. जिन्हे मालाबार प्रिंसेस, हिमालयन प्रिंसेस, बंगाल प्रिन्सेस जैसे नाम दिए गए थे. जो प्लेन झू इनलाई को ले जाने वाला था, उसका नाम था कश्मीर प्रिंसेस.

आज ही के दिन 11 अप्रैल, 1955 को कश्मीर प्रिंसेस दक्षिण चीनी सागर में क्रैश कर गया था. और इस घटना में चीन, और भारत के कई नागरिक मारे गए थे. चूंकि इस प्लेन में चीन के प्रधानमंत्री सवार होने वाले थे. इसलिए सवाल लाजमी था कि क्या ये प्लेन क्रैश सिर्फ एक हादसा था या कोई साजिश?
क्या बीजिंग को इस साजिश की पहले से खबर थी, और इसीलिए झू इनलाई ने आख़िरी समय में अपना प्लान चेंज कर लिया था? और सबसे बड़ा सवाल.
अगर बीजिंग को इस साजिश की खबर पहले से थी. तो उन्होंने जानबूझकर भारतीय और चीन के नागरिकों को मर जाने दिया?
इन सवालों के जवाब पाने के लिए तहकीकात जरूरी थी. लेकिन मामला इंटरनेशनल होने के चलते कॉम्प्लिकेटेड हो गया था. प्लेन भारत का था. मेड इन अमेरिका था. हॉन्ग-कॉन्ग से टेक ऑफ किया था. जो तब ब्रिटिश अधिकार में था. प्लेन में सवार थे चीनी नागरिक. और प्लेन क्रैश हुआ था इंडोनेशिया में. यानी इस केस से पांच देश जुड़े हुए थे. और जुड़ी थी इन पांचों देशों की जांच एजेंसियां.
भारत की तरफ से तहकीकात के लिए भेजा गया RN काओ को. काओ तब IB में थे. और इंटरनेशनल इंटेलिजेंस में ये उनका पहला मिशन था. हॉन्ग-कॉन्ग पहुंचकर काओ ने अपनी तहकीकात शुरू की. इसी दौरान वो ब्रिटिश इंटेलिजेंस, चीनी इंटेलिजेंस और सीआईए के संपर्क में आए. और बाद में यही नेटवर्क काम आए जब रॉ का गठन हुआ.

तहकीकात की शुरुआत में ही बीजिंग ने एलान कर दिया कि ये चीन के प्रधानमंत्री को मारने की साजिश थी. और इसमें अमेरिका यानी CIA का हाथ था. लेकिन असली बात कुछ और थी. मामला चीन और ताइवान से जुड़ा था. चीन में हुए गृह युद्ध में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (CPC) की जीत हुई थी. और चिआंग काई शेक की कुओमितांग सरकार को ताइवान में शरण लेनी पडी थी. अमेरिका कम्युनिस्ट सरकारों का धुर विरोधी था इसलिए 1954 में उन्होंने ताइवान को समर्थन दे दिया. यहीं से अमेरिका और चीन में ठन गयी. उधर कुओमितांग लगातार कोशिश कर रहा था कि किसी तरह चीन को घुटनों पर लाया जाए. इसलिए उन्होंने प्लान बनाया कि झू इनलाई की हत्या कर चीन को एक बड़ा झटका दिया जाए.
चीनी प्रीमियर को मारने की साजिशजैसे ही चिआंग काई शेक को खबर लगी कि झू इनलाई हॉन्ग-कॉन्ग से जकार्ता के लिए फ्लाइट में सवार होने वाले हैं. हॉन्ग-कॉन्ग में कुओमितांग की टीम सक्रिय हो गयी. उन्होंने हॉन्ग-कॉन्ग एयरपोर्ट में काम करने वाले एक आदमी का पता लगाया. 34 साल का झू जेमिन एयरक्राफ्ट क्लीनर के तौर पर काम करता था और जुएं के चक्कर में काफी उधार में था. कुओमितांग ने उसे प्लेन में बॉम्ब लगाने का काम सौंपा और बदले में 6 लाख हॉन्ग-कॉन्ग डॉलर देने का वादा किया. साथ ही उसे ताइवान में शरण देने का वादा भी किया गया.
RN काओ जब तक तहकीकात के लिए हॉन्ग-कॉन्ग पहुंचे झू जेमिन वहां से एक एयर क्राफ्ट में सवार होकर निकल चुका था. ख़ास बात ये थी कि जिस एयरक्राफ्ट में जेमिन भागा था. वो एक अमेरिकन कम्पनी का था. इसलिए शक बढ़ा कि अमेरिका का भी इसमें रोल था. जब प्लेन का मलबा खंगाला गया तो पता चला बम का डेटोनेटर भी अमेरिकी मेड था.

काओ अपनी तहकीकात जारी रखे थे. लेकिन उनके नोट्स के अनुसार हॉन्ग-कॉन्ग उनका इस्तेमाल बीजिंग से ख़बरें निकालने के लिए कर रहा था. काओ के लिए इतना तो अब तक पक्का हो चुका था कि प्लेन को बम से उड़ाने की साजिश ताइवान की कुओमितांग सरकार ने की है. लेकिन एक सवाल अभी भी बाकी था. झू इनलाई ने आख़िरी मोमेंट में अपना डिसीजन क्यों चेंज किया. आधिकारिक कारण दिया गया कि उनकी तबीयत ख़राब थी. लेकिन ऑब्वियस था कि उन्हें इस बम धमाके की खबर पहले ही लग चुकी थी. कैसे?
दरअसल चीन की इंटेलिजेंस कुओमितांग के हॉन्ग-कॉन्ग ऑपरेशन पर काफी लम्बे समय से नजर बनाए हुए थी. झू को भी इस प्लान की खबर बहुत पहले ही पहुंचा दी गयी थी. इसलिए उन्होंने पहले तो यात्रा की तारिख 18 से बदलकर 11 की. और फिर लास्ट मोमेंट में अपना नाम चार्टर से हटा दिया. इसके बाद 14 तारीख को झू इनलाई रंगून पहुंचे और वहां नेहरू से मुलाक़ात की. और वहां से फिर दोनों ने साथ में जकार्ता की यात्रा की. अब सवाल ये कि बीजिंग ने बम धामके को होने ही क्यों दिया?
CIA का रोलवो चाहते तो प्लेन को उड़ने से पहले ही रोक सकते थे. इसके दो कारण थे. झू इनलाई चाहते थे कि बम विस्फोट हो. ताकि वो इस बहाने हॉन्ग-कॉन्ग में छिपे कुओमितांग एजेंट्स को बाहर निकाल सकें. दूसरा मकसद था कि इस बहाने उन्हें अमेरिका के खिलाफ प्रोपोगेंडा चलाने का मौका मिल गया था.
1971 में जब झू और अमेरिकी हेनरी किसिंजर की मुलाक़ात हुए तो झू ने दो टूक पूछा, क्या सीआईए ने मुझे मरवाने की कोशिश की थी. तब हेनरी किसिंजर ने जवाब दिया, “आप सीआईए की काबिलियत को कहीं ज्यादा करके आंक रहे हैं.” इस घटना के कई साल बाद ये कश्मीर प्रिंसेस दुबारा ख़बरों में आया.

जॉन स्मिथ नाम का एक अमेरिकन दिल्ली स्थित US एम्बेसी में कोड क्लर्क का काम करता था. स्मिथ डिफेक्ट कर USSR से मिल गया और उसने कश्मीर प्रिंसेस प्लेन कक्रैश को लेकर कुछ नए दावे किए. आपको याद होगा, हॉन्ग-कॉन्ग में जब क्रू खाना खा रहा था, तब एक अंग्रेज़ उनके पास आकर कुछ सवाल पूछ रहा था. स्मिथ के अनुसार ये व्यक्ति एक CIA एजेंट था. और उसने कुओमितांग एजेंट्स को दो सूटकेस पहुंचाए थे. हालांकि इस बात की कभी पुष्टि नहीं हो पाई.
इंटरनेशनल पॉलिटिक्स के चक्कर में 16 लोगों की मृत्यु हो गयी. और इस मामले में एक भी व्यक्ति को कभी सजा नहीं हुई. घटना के बाद इंडोनेशिया में गुट निरपेक्ष सम्मलेन हुआ. और इस सम्म्मेलन में प्रधानमंत्री ने झू इनलाई का परिचय बाकी दुनिया के देशों से कराया. चीन तब तक अधिकार देशों के साथ डिप्लोमेटिक सम्बन्ध भी नहीं बना पाया था. और नेहरू की मदद से उन्हें दक्षिण एशिया और अफ्रीका के कई देशों से मान्यता मिली. 1959 तक हिंदी चीनी भाई भाई का नारा गूंजता रहा. फ़िर 1959 में दलाई लामा को भारत ने शरण दी. और यहां से बात आगे बढ़ते-बढ़ते 1962 के युद्ध तक पहुंच गई. दलाई लामा का प्रसंग हमने आपको 31 मार्च के एपिसोड में बताया था. चाहे तो डिस्क्रिप्शन में जाकर लिंक चेक कर सकते हैं. आज के लिए इतना ही.
वीडियो देखें- वो भारतीय वैज्ञानिक जिसे अमेरिका के अख़बार ‘इंडियन एडिसन’ कहते थे.
तारीख: वो भारतीय वैज्ञानिक जिसे अमेरिका के अख़बार ‘इंडियन एडिसन’ कहते थे