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1971 युद्ध का हीरो जिसे पाकिस्तानी भी ‘भारत की शान’ कहते थे!

लेफ्टिंनेंट जनरल हनुत सिंह की कहानी, जिन्हें रोका न गया होता तो 1986 में पाकिस्तान का नक्शा बदल देते.

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1971 की लड़ाई में लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह को महावीर चक्र मिला था (तस्वीर: AGDP/facebook)

भारतीय फौज का एक अफसर जिसकी बहादुरी की तारीफ़ करने से उसके दुश्मन भी खुद को रोक न पाते थे. जो बीच युद्ध अपने जवानों से कहता है, हम एक इंच पीछे नहीं हटेंगे. और ये सुन 21 साल का एक लड़का जलते हुए टैंक से उतरने से इंकार कर देता है. और यूं ही लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो जाता है. एक अफसर जिसने भारतीय इतिहास की सबसे भयानक टैंक बैटल को लीड किया था. जो लैंड माइनों की परवाह किए बिना टैंकों को लेकर आगे बढ़ गया था, इसलिए ताकि उसकी रेजिमेंट के नाम पर आंच ना आए. जिसके बारे में एक पूर्व आर्मी चीफ ने कहा था कि अगर उसे सरकार न रोकती तो वो हिंदुस्तान पाकिस्तान का नक्शा बदलकर रख देता. जो इस कदर बेबाक था कि आर्मी चीफ से लेकर राज्यपाल से भिड़ जाता था. जिसे जब उसकी बेबाकी के चलते आर्मी चीफ नहीं बनाया गया तो उसने कहा, “ये मेरा नहीं आर्मी का नुकसान है”. (Hanut Singh)

आर्मी चीफ से भिड़ गए 

यूं तो नाम था हनुत सिंह जसोल, लेकिन आर्मी के साथी हंटी कहकर बुलाते थे. वहीं जूनियर और याद करने वाले संत सिपाही के नाम से जानते थे. धार्मिक थे लेकिन धर्म को छाती पर लेकर लोटने वाले नहीं. बल्कि अपने कर्तव्य को अपना धर्म मानने वाले. ध्यान किया करते थे. पूरे चार घंटे. और इस दौरान कोई दखल मंजूर नहीं था. यहां कि एक बार उनके कमांडिंग अफसर का फोन आया तो हनुत ने कहलवा दिया, अभी नहीं आ सकते , पूजा में हैं.

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लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह का जन्म 6 जुलाई 1933 को हुआ था (तस्वीर: Lt.General Hanut Singh/ facebook)

पूजा हालांकि सिर्फ शांति काल तक सीमित थी. युद्धकाल में हनुत के लिए युद्ध ही एकमात्र पूजा थी. टैंक बैटल के उस्ताद थे. इस कदर कि टैंकों की लड़ाई पर उनके लिखे दस्तावेज़ आज भी इंडियन मिलिट्री अकादमी में पढ़ाये जाते हैं. टैंक बैटल को लेकर उनका ज्ञान इस कदर बारीक था कि एक बार अपने आर्मी चीफ से भिड़ गए थे.

किस्सा यूं है कि एक बार आर्मी चीफ जनरल के सुंदरजी आर्मर्ड कोर की तैयारियों का जायजा ले रहे थे. हनुत प्रेजेंटेशन दे रहे थे. उन्होंने कहा, जंग की हालत में हम एक दिन में 20 किलोमीटर तक आगे जा सकते हैं. ये सुनकर जनरल सुंदरजी नाराज हो गए. बोले, कम से कम एक दिन में 100 किलोमीटर एडवांस करना चाहिए. ये सुनकर हनुत अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए तमाम तकनीकियां गिनाने लगे. अंत में बोले, सभी साजो सामान मिल जाए तो हम 100 क्या, एक दिन में 120 किलोमीटर तक चले जाएंगे.

राज्यपाल से तकरार 

भिड़ने का ये शगल सिर्फ आर्मी तक सीमित नहीं था. नेताओं के साथ उनके टकराव के किस्से भी काफी फेमस हैं. ऐसा ही एक किस्से का जिक्र पूर्व आर्मी चीफ़ जनरल वीके सिंह ने अपनी किताब, लीडरशिप इन द इंडियन आर्मी : बायोग्राफीज़ ऑफ़ 12 सोल्जर्स में किया है. मई 1982 की बात है. पद्दोन्नत होकर हनुत सिंह मेजर जनरल बने और उन्हें 17 माउंटेन डिवीजन को कमांड करने के लिए सिक्कम भेजा गया. उन दिनों सिक्किम के गवर्नर होते थे, होमी तल्यारखान. इंदिरा से उनकी खासी नजदीकी थी. सिक्कम नया नया स्टेट बना था .इसलिए इंदिरा ने उन्हें विशेष तौर पर जिम्मेदारी संभालने के लिए भेजा था. तल्यारखान नवाबी स्वभाव के आदमी थे. सो उनकी कुछ मांगे रहती थी. मसलन जब भी वो सिक्किम में कहीं भी दौरे पर जाएं तो डिवीजन कमांडर या कम से कम ब्रिगेड कमांडर के ओहदे वाला अफसर उन्हें रिसीव करे. 

हनुत सिंह को जब इस तथाकथित ‘प्रोटोकॉल’ का पता चला, उन्होंने तत्काल इस पर रोक लगा दी. एक रोज़ जब ब्रिगेड कमांडर ने उनसे गवर्नर को रिसीव करने के लिए जाने की परमिशन मांगी, हनुत सिंह ने उन्हें ये कहते हुए रोक लिया कि ये सिविल प्रशासन का मसला है और सेना का इससे कुछ लेना देना नहीं. हालांकि इसके बाद भी लोकल कमांडर को गवर्नर को रिसीव करने के लिए भेजा गया. तल्यारखान अपने गंतव्य पर पहुंचकर हेलीकाप्टर से उतरे तो उन्हें बड़ी निराशा हुई. उन्होंने हनुत सिंह को फोन मिलाया. हनुत पूजा में थे, इसलिए उनसे भी बात नहीं हो पाई. इससे गवर्नर इतने गुस्सा गए कि उन्होंने आर्मी चीफ को फोन लगा दिया. लेकिन यहां से भी गवर्नर को कोई मदद न मिली. अंत में उन्हें हनुत की बात माननी पड़ी. इसके बाद प्रोटोकॉल चेंज हुआ. ये कि अगर राज्यपाल आर्मी यूनिट का दौरा करते हैं, केवल तब ही उन्हें आर्मी अफसर द्वारा रिसीव किया जाएगा.

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 1991 में सेवानिवृत्त होने के हनुत देहरादून के एक संन्यास आश्रम में रहे (तस्वीर: Lt.General Hanut Singh/ facebook)

सिक्किम से जुड़ा एक और किस्सा यूं है कि जब हनुत का अम्बाला ट्रांसफर हुआ, सैनिकों ने जाते हुए उन्हें एक यादगार भेंट की. उसमें लिखा हुआ था, “जितना बाकी अफसर 20 साल में करते, उतना आपने एक दिखाया”. ऐसा क्या किया हनुत ने?

दरअसल हनुत जब सिक्किम पहुंचे, वहां हालात काफी ख़राब थे. न फौज के सोने के लिए ठीक इंतज़ाम थे, न बिजली पानी की व्यवस्था. हनुत ने अधिकारियों को खत लिखकर मदद मांगने की कोशिश की. लेकिन वहां से भी कुछ हासिल न हुआ. अंत ने उन्होंने तय किया कि खुद ही सैनिकों के लिए बैरक तैयार करवाएंगे. अपनी यूनिट के साथ उन्होंने जंगल से लकड़ियां काटकर उनसे शौचालय और बैरक तैयार किए, और बिजली के लिए जनरेटरों का इंतज़ाम करवाया. एक बात वो अक्सर कहा करते थे, “एक सैनिक अपने अफसर के लिए जितनी कुर्बानी देता है, अफसर उसका एक हिस्सा भी नहीं करता है”.

बसंतर में टैंकों की लड़ाई 

लेफ्टिनेंट जनरल हनुत की जिंदगी से जुड़े ऐसे कई दिलचस्प किस्से हैं, लेकिन अभी के लिए उस लड़ाई पर चलते हैं, जिसने उनका नाम बनाया. बसंतर की लड़ाई. साल 1971 जंग की बात है. पूर्वी मोर्चे पर खुद को पिछड़ता देख पाकिस्तान ने पश्चिम में मोर्चा खोला. इस दौरान जम्मू पंजाब के शकरगढ़ सेक्टर में दोनों देशों के बीच एक टैंक बैटल हुई. भारत की तरफ से 17 पूना हॉर्स को लेफ्टिनेंट कर्नल हनुत सिंह कमांड कर रहे थे. एक बड़ी दिक्कत ये थी कि पाकिस्तानी फौज ने इस इलाके में लैंड मैं बिछाई हुई थी. माइंस को हटाने की जिम्मेदारी इंजीनियर कोर की थी. जो अभी आधी ही माइंस हटा पाई थी जब पता चला कि पाकिस्तान अपने टैंक्स लेकर आगे बढ़ रहा है. 15 दिसंबर की तारीख, रात ढाई बजे कमांडिंग ऑफिसर हनुत ने तय किया कि अगर माइंस हटाने इंतज़ार किया तो बहुत देर हो जाएगी. उन्होंने अपने अपने माताहत अजय सिंह को आगे बढ़ने का आर्डर दिया. अजय सिंह ने सवाल किया, 'सर अभी माइंस फील्ड क्लियर नहीं हुआ है. हम आगे नहीं बढ़ सकते.’

हनुत ने जवाब दिया, ‘अगर हमने अभी रास्ता पार नहीं किया तो इतिहास पूना हॉर्स को कभी माफ नहीं करेगा.'

अजय सिंह को आर्डर मानना पड़ा और कमाल की बात ये है कि 17 पूना हॉर्स के सारे टैंक बिना किसी नुकसान रास्ता पार कर गए. यहां उन्होंने पाकिस्तान के सबसे एलीट 1 स्क्वॉड्रन से ना सिर्फ टक्कर ली. बल्कि उसे चकनाचूर कर दिया. बीच जंग हनुत का आदेश था, हम एक इंच पीछे नहीं हटेंगे. अपने कमांडिंग अफसर का ये आदेश सुनकर 21 साल का एक लड़का जलते हुए टैंक में बैठकर जूझता रहा, लेकिन उसने अपनी जमीन न छोड़ी. इस लड़के का नाम था सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल. खेत्रपाल इस जंग में वीरगति को प्राप्त हुए थे. और उन्हें मरणोपरांत परम वीर चक्र से नवाजा गया था. हनुत सिंह को भी इस जंग में अदम्य साहस दिखाने के लिए महावीर चक्र दिया गया. 

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लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह मूलरूप से राजस्थान के सरहदी बाड़मेर जिले से करीब 102 दूर किलोमीटर जसोल कस्बे के रहने वाले थे (तस्वीर: Lt.General Hanut Singh/ facebook)

यहां पढ़ें- जलते टैंक में बैठा रहा लेकिन पाकिस्तान को आगे बढ़ने नहीं दिया! 

बहरहाल आगे बढ़ते हुए एक लेफ्टिनेंट जनरल हनुत की शख्सियत का एक दिलचस्प पहलू सुनिए. हनुत ने ताउम्र शादी नहीं की. मानते थे कि शादीशुदा आदमी फौज की जिम्मेदारियों को उतना बेहतर नहीं संभाल सकता जितना कि एक कुंवारा आदमी. इस फलसफे पर उनका इतना यकीन था कि अपने जूनियरों और जवानों को भी शादी न करने की सलाह दे देते थे. अब उनकी कार्यशैली से जो लोग प्रभावित थे, उनकी मान भी जाते थे. इस चक्कर में एक बार ऐसा हुआ कि कई सारे जवान घर पर शादी के लिए इंकार करने लगे. परिवार वालों ने हनुत के सीनियर्स से शिकायत की. लेकिन उनकी सेहत पर इसका कोई असर न होता था. 

भारत पाकिस्तान का नक्शा बदल देते 

आखिर में सुनिए वो किस्सा जब हनुत भारत पाकिस्तान का नक्शा बदलने के लिए तैयार हो गए थे. बात है साल 1986 की. जनरल के सुंदरजी आर्मी चीफ थे. उन्होंने नौसेना, वायुसेना और आर्मी, तीनों के संयुक्त युद्धाभ्यास की एक योजना बनाई. इसे नाम दिया गया , ऑपरेशन ब्रास ट्रैक्स. सवाल था कि इस ऑपरेशन को लीड कौन करेगा. कुछ देर पहले हमने सुंदरजी और हनुत के बीच बहस का किस्सा सुनाया था. उस वाकये के बाद कई लोगों को लगने लगा था कि हनुत अब रिटायर हो जाएंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बल्कि जब ऑपरेशन ब्रासट्रैक्स को लीड करने की बारी आई, सुंदरजी ने ये जिम्मा हनुत को ही सौंपा.

29 अप्रैल के रोज़ हनुत ने फौज को राजस्थान की सीमा पर खड़ा कर दिया. आंकड़ों के मुताबिक़ इस युद्धाभ्यास में लगभग डेढ़ लाख सैनिक जमा हुए थे. ये देखकर पाकिस्तान में हड़कंप मच गया. खासकर इस बात से कि ट्रेनिंग को हनुत लीड कर रहे थे. ट्रेनिंग लम्बी चली तो मामला इंटरनेशनल हो गया. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ये सबसे बड़ा युद्धाभ्यास था. यहां तक कि नाटो ने भी इतने बड़े पैमाने पर ऐसी ट्रेनिंग एक्सरसाइज नहीं करवाई थी. भारत की तरफ से इसे बार बार महज एक ट्रेनिंग एक्सरसाइज कहा गया लेकिन कई जानकार मानते हैं कि ये युद्ध की तैयारी थी. अपनी किताब, The Use of Force: Military Power and International Politics, में रॉबर्ट आर्ट लिखते हैं, "भारत की स्ट्रेटेजी पाकिस्तान को उकसाने की थी, ताकि उन्हें हमले का बहाना मिल सके. इस पूरे ऑपरेशन का उद्देश्य पाकिस्तान के परमाणु प्रोग्राम को नष्ट करना था.”

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के. सुंदरजी १९८६ से १९८८ तक भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष थे (तस्वीर: Wikimedia Commons)

ऑपरेशन ब्रास ट्रैक्स 4 महीने तक चला, जिसके बाद क्रिकेट डिप्लोमेसी के जरिए मामला ठंडा हुआ. पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक़ क्रिकेट मैच देखने भारत पहुंचे और उन्होंने राजीव गांधी से मुलाक़ात की. माना जाता है कि इसके बाद राजीव ने ऑपेरशन ब्रास टैक्स से हाथ पीछे खेंच लिए. हनुत को जब इसकी जानकारी मिली, वो काफी मायूस हुए. पूर्व सेना अध्यक्ष VK सिंह लिखते हैं, हनुत सिंह के पिछले रिकॉर्ड को देख कर कहा जा सकता है कि अगर उन्हें इजाजत मिली होती तो वो दोनों देशों का नक्शा बदलकर रख देते.

लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह ने 39 साल फौज को अपनी सेवाएं दीं. साल 1991 में वो रिटायर हो गए और आगे का जीवन उन्होंने आध्यात्म साधना में गुजारा. साल 2015 में 10 अप्रैल के रोज़ उनका निधन हो गया था. यूट्यूब पर लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह का एक वीडियो मौजूद है. इसमें सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की कहानी सुनाते हुए वो एक कविता से उसका अंत करते हैं. हमें लगता है, उनकी कहानी का पटाक्षेप करने के लिए इससे बेहतर पंक्तियां नहीं हो सकती.

रेगिस्तान की रेत लाल रंग में डूबी है 
जमीन का एक टुकड़ा जो टूटा हुआ है 
बन्दूक जाम है और कर्नल मरा पड़ा है 
रेजिमेंट धूल और धुंए से अंधी हुई जाती है 
मौत की नदी लहलहाने लगी है 
इंग्लैंड अभी दूर है, और शौर्य बस एक नाम 
लेकिन एक आवाज बाकी है, एक स्कूली लड़के की 
जो अपनी फौज की हौंसलाफ़ज़ाई करते हुए चिल्ला रहा है,
उठो, उठो, खेल पूरा करो!

वीडियो: तारीख: अमेरिका को अपने कट्टर दुश्मन ईरान को हथियार क्यों देने पड़े?