29 अप्रैल, 1945. रविवार की सुबह, करीब 4 बजे थे. इटली के मिलान शहर में भारी सन्नाटा था. इक पीले रंग का लकड़ी का ट्रक शहर के सबसे मशहूर चौक 'पियाजाले लोरेटो' पर आकर रुकता है. खाकी वर्दी में 10 सिपाही एक दूसरी वैन से निकलकर ट्रक के पीछे चढ़ते हैं. ट्रक से कुछ भारी सा सामान निकालकर चौक पर बने गोल चक्कर के अंदर फेंकने लगते हैं. आसपड़ोस के जो लोग वहां थे, उन्हें अंधेरे में कुछ समझ नहीं आया.
हिटलर जिसे अपना गुरु मानता था, उस तानाशाह के दर्दनाक अंत की कहानी
जब 7 लाख लोगों का ये कातिल मरा, तो उसके अपनों ने उसे उल्टा लटकाया और फिर वो हाल किया, रूह कांप जाए

जब सिपाही चले गए तो सामान को करीब से जाकर देखा. पता लगा ये 18 लाशें थीं. इटली में उस समय लाशें देखना कोई बड़ी बात नहीं थी. होती भी कैसे दूसरा विश्व युद्ध जो चल रहा था. और इटली इसमें सक्रिय भूमिका में था. लेकिन इन लोगों की आंखें तब खुलीं रह गईं, जब इनकी नजर इनमें से एक लाश पर गई. लाश थी उस तानाशाह की, जिसने इन लोगों पर 21 साल तक शासन किया था. तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी. एक बॉडी उसकी प्रेमिका क्लारेटा पेटाची की भी थी. 16 अन्य लाशें मुसोलिनी के करीबी सैनिकों की थीं.
खबर फैलते देर ना लगी. सुबह 7 बजे तक चौक पर 5 हजार लोगों की भीड़ इकठ्ठा हो गई. भीड़ गुस्से में थी, नारे लगा रही थी, देखते ही देखते लाशों को पत्थर मारे जाने लगे. भीड़ में से दो लोग मुसोलिनी की लाश के पास गए और उसके जबड़े में जोर से लात मारी. एक महिला ने अपनी पिस्टल को लोड किया, और मुसोलिनी के शव पर एक के बाद एक पांच गोलियां मार दीं. बोली- 'बेटों की मौत का बदला आज पूरा हुआ.' 1935 में मुसोलिनी ने उसके पांच बेटों को विद्रोही करार देकर मरवा दिया था. एक और महिला चीखते हुए आगे आई और उसने मुसोलिनी के मुंह पर पेशाब कर दी.
अमेरिकी इतिहासकार ब्लेन टेलर लिखते हैं कि इसके बाद नारे लगाती भीड़ में से एक महिला चाबुक लेकर मुसोलिनी के पास जाती हैं. उसपर तड़ातड़ चाबुक चलाती है. इतनी तेज कि मुसोलिनी की एक आंख बाहर निकल आती है. एक और आदमी मुसोलिनी के मुंह में मरा हुआ चूहा डालता है और बार-बार चीखता है- 'डूचे तुझे लेक्चर देने का बहुत शौक है, अब दे लेक्चर'.
बता दें कि इटली के लोग बेनिटो मुसोलिनी को डूचे भी कहा करते थे.
मुसोलिनी पर लोग गुस्सा उतार रहे होते हैं कि भीड़ से आवाज आती है कि मुसोलिनी दिख नहीं रहा. तभी एक छह फीट का आदमी मुसोलिनी की लाश को पकड़कर हवा में उठाता है. तभी भीड़ से आवाज आती है और ऊंचा और ऊंचा. फिर कुछ लोग आगे आते हैं और मुसोलिनी को सड़क के किनारे लगे एक स्टैंड पर उल्टा लटका देते हैं. उसकी प्रेमिका क्लारेटा के शव को भी उल्टा लटकाया जाता है.
इतिहासकार ब्लेन टेलर लिखते हैं,
'क्लारेटा को उल्टा लटकाते ही उसकी स्कर्ट उसके मुंह पर आ जाती है. उसने कोई अंडरगारमेंट्स नहीं पहना हुआ था. लोग ये देखकर हंसने लगते हैं. तभी एक व्यक्ति आगे जाकर स्कर्ट को ऊपर करके क्लारेटा की टांगों में रस्सी से लपेट देता है.'
ये सब चल ही रहा होता है, तभी कहीं से मुसोलिनी की फासटिस्ट पार्टी का एक पूर्व सचिव वहां पहुंचता है. वो आगे बढ़कर तानाशाह के शव को सेल्यूट करता है. मुंह से निकलता है- 'माई डूचे-माई डूचे'. तभी गोली चलने की आवाज आती है, और सेल्यूट करता हुआ व्यक्ति नीचे गिर जाता है. ये गोली इसे मुसोलिनी के विरोधी ग्रुप - पार्टिजन - से जुड़े एक सैनिक ने मारी थी.

ये सब होते-होते दिन का 1 बज जाता है. फिर अमेरिकी सैनिक पियाजाले लोरेटो चौक पर पहुंचते हैं. भीड़ को हटाते हैं और लाशों को सफेद संदूकों में भरकर ले जाते हैं. मुसोलिनी की लाश का पोस्टमार्टम होता है, पता लगता है कि उसे 9 गोलियां मारी गई थीं, इनमें से एक गोली उसके दिल में लगी थी, जिससे उसकी मौत हुई थी. मुसोलिनी को दफनाने से पहले उसके दिमाग का हिस्सा निकाल लिया गया था. इसपर वाशिंगटन डीसी के सेंट एलिजाबेथ अस्पताल में रिसर्च किया गया. कई साल बाद उसे मुसोलिनी की पत्नी डोना रचेले को सौंप दिया गया.
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29 अप्रैल, 1945 को मिलान के 'पियाजाले लोरेटो' चौक पर जो हुआ उससे पता लगता है कि इटली के लोग मुसोलिनी से कितनी नफरत करने लगे थे. वही लोग जो कभी उसे भगवान की तरह पूजते थे. सवाल उठता है कि ऐसा क्या हुआ था जो लोग उसे इस कदर नापसंद करने लगे? और मुसोलिनी जो शुरुआत में लोकतंत्र की बातें करता था, वो बाद में खतरनाक तानाशाह कैसे बन गया? यही सब जानेंगे आज.
पत्रकार से नेता बनने तक की कहानीबात शुरू से करते हैं. उत्तरी इटली के प्रेडापियो में पैदा हुए मुसोलिनी के पिता एक लुहार और मां टीचर थीं. मुसोलिनी जब 18 साल का हुआ तो उसे सेना में जाने का डर सताया. इटली में एक नियम था कि बालिग होते ही हर लड़के को सेना में कुछ सालों तक काम करना होगा. मुसोलिनी इससे बचने के लिए स्विट्ज़रलैंड भाग गया. जब लौटा, तो कुछ समय के लिए सेना में काम किया. फिर पत्रकारिता शुरू कर दी. इटली के एक सामाजिक दल का न्यूज़ पेपर था 'अवांती'. मुसोलिनी इसमें एडिटर बन गया. 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के समय उसने एक आर्टिकल लिखा. इससे हंगामा मचा गया. इसमें उसने लिखा था कि इटली को निष्पक्ष ना रहकर ब्रिटेन और फ़्रांस के पक्ष में लड़ाई में उतरना चाहिए. उसके इस लेख से अखबार के कुछ अधिकारी नाराज हो गए और उसे नौकरी से निकाल दिया. मुसोलिनी ने इसके बाद जर्नलिज्म ही छोड़ दिया.
उसकी एक अलग राजनीतिक विचारधारा थी जिसका आधार था 'राष्ट्रवाद'. उसने इसके जरिए लोगों को जोड़ना शुरू किया. 1919 में मुसोलिनी ने एक राजनीतिक संगठन की स्थापना की. नाम रखा 'नेशनल फासिस्ट पार्टी'. इसमें अपने हमखयाल लोगों की भर्ती की. ये वक़्त इटली में प्रखर राष्ट्रवाद के उभार का था. इटली में ही क्यों, मुसोलिनी के यार हिटलर के जर्मनी में भी यही हो रहा था. ‘राष्ट्र सर्वप्रथम’ का नारा लुभावना साबित हो रहा था. इसी हल्ले में मुसोलिनी को अभूतपूर्व समर्थन हासिल हुआ. उससे इटली की सेना के पूर्व सैनिक बड़ी संख्या में जुड़े, ये बेरोजगार हो गए थे और सरकार की पॉलिसी से खफा थे.
अगले दो-तीन सालों में उसकी पार्टी से लाखों लोग जुड़ गए. कई विरोध प्रदर्शन करके उसने अपनी विचारधारा को लोगों तक पहुंचाया.
जब संगठन अच्छे से बन गया फिर करीब तीन साल बाद मुसोलिनी ने सीधे सत्ता को ललकारा. 1922 में 27-28 अक्टूबर की रात को 30,000 फासिस्ट लोगों को लेकर रोम पर धावा बोल दिया. तत्कालीन प्रधानमंत्री लुइगी फैक्टा के इस्तीफे की मांग कर दी. इटली में उस समय महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से लोग परेशान थे, मुसोलिनी ने इसी बात का फायदा उठाया. लोकतांत्रिक सरकार की रक्षा से सेना ने भी हाथ खींच लिए. मार्शल लॉ लगाने से इंकार कर दिया. परिणाम ये रहा कि प्रधानमंत्री लुइगी फैक्टा को सत्ता छोड़नी पड़ी. किंग विक्टर इमैनुअल ने सत्ता मुसोलिनी को सौंप दी. कई इतिहासकारों का मानना है कि किंग उस समय मुसोलिनी की ताकत देखकर खौफ में आ गए थे और इस वजह से ही उन्होंने ये फैसला लिया था.
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1922 से लेकर 1943 तक लगातार 21 वर्षों तक मुसोलिनी ने इटली पर राज किया. वो इटली के इतिहास में सबसे कम उम्र महज 40 साल में प्रधानमंत्री बन गया था. अपने कार्यकाल के शुरुआती तीन-चार साल उसने लोकतंत्र की इज्ज़त करते हुए शासन किया. महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को कम किया. लेकिन, कुछ साल बाद वो निरंकुश हो गया, उसने ठान लिया कि अब उसे लंबे समय तक इटली की सत्ता में बने रहना है. उसने ऐसे-ऐसे कानून बनाए जिससे कोई उसे सत्ता से हटा ही ना पाए.
कनाडाई लेखक फाबियो फर्नांडो रिजी अपनी किताब ‘बेनेडेट्टो क्रोसे एंड इटैलियन फासिज्म’ में लिखते हैं-
'1926 के आखिर तक उदार इटली की मृत्यु हो चुकी थी. मुसोलिनी ने अपनी ताकत और बढ़ा ली थी और ऐसे कानूनी उपाय भी कर लिए थे जिनसे उसकी तानाशाही जारी रह सके. राजनीतिक पार्टियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. प्रेस की आजादी खत्म कर दी गई थी. विपक्ष को बिना दांत के कर दिया गया था और संसद को शक्तिहीन. सार्वजनिक जगहों यहां तक कि निजी चिट्ठियों में भी सरकार की आलोचना करना खतरे से खाली नहीं था. सरकार की नीतियों के विरोध में बात करने वालों की नौकरी चली जाती थी. उन्हें जेल में डाल दिया जाता था.'
जो लोग मुसोलिनी के विरोध में खड़े हो जाते थे, उन्हें मरवा दिया जाता था. सेकेंड वर्ल्ड वॉर तक देश-विदेश में मुसोलिनी पर करीब सात लाख लोगों को मरवाने का आरोप है.
इटली जनता मुसोलिनी को क्यों पसंद करती थी? इस बारे में भी इतिहासकारों ने काफी लिखा है. इतिहासकार फर्नांडो रिजी लिखते हैं-
'इतना सब होने के बावजूद इटली में बड़ी संख्या में लोग मुसोलिनी को पूजते थे. वो कहीं भी दिखता लोग डूचे-डूचे-डूचे नारे लगाने लगते... इसकी सबसे बड़ी वजह वहां की मीडिया थी, जो सरकार के करीबी लोगों के हाथ में आ गई थी. इसका इस्तेमाल करके मुसोलिनी की व्यक्ति पूजा और उसके प्रति पूर्ण समर्पण की संस्कृति विकसित कर दी गई. मुसोलिनी की एक छवि गढ़ी गई. जिसमें मुसोलिनी को ‘दैवीय मनुष्य’ और ऐसा इंसान कहा जाने लगा था जिस पर ईश्वर का वरदहस्त है. उसे एक ऐसा मुखिया बताया जाता था, जो कभी गलत नहीं होता, एक ऐसा नेता जो तब फैसला लेने की हिम्मत रखता है जब दूसरे असमंजस में पड़ जाते हैं.'

कुछ इतिहासकारों के मुताबिक 'मुसोलिनी का शासन इसलिए भी इतना लंबा चला क्योंकि इटली की जनता उसमें अपना अक्स देखती थी. मुसोलिनी उन पीढ़ियों का नुमाइंदा था जिन्हें लगता था कि उनका मुल्क अपने उदारवादी नेताओं की वजह से अब तक वो प्रगति नहीं कर पाया है, जो उसे करनी चाहिए थी.’
जब लोग मुसोलिनी से नाराज होने लगेमुसोलिनी सत्ता को मजबूती से संभाले हुए था. फिर आया साल 1939 और इस साल दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ. इसमें मुसोलिनी ने जर्मन तानाशाह हिटलर का साथ दिया. शुरू में हिटलर और मुसोलिनी जीते, लेकिन फिर उनकी हार होना शुरू हो गई. उधर, 1943 तक इटली में युद्ध की वजह से महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी बढ़ने लगी. इससे इटली में मुसोलिनी के युद्ध के फैसले को लेकर असंतोष फैलने लगा. उसके नेतृत्व पर सवाल उठने लगे. आखिरकार 1943 की 25 जुलाई को इटली के राजा ने जनता का मूड भाँपते हुए उसकी सरकार बर्खास्त कर दी. मुसोलिनी को गिरफ्तार किया गया. हालांकि वो ज़्यादा दिनों तक जेल में नहीं रहा. इसी साल सितंबर में उसे हिटलर ने छुड़ा लिया.
लेकिन, सेकंड वर्ल्ड वॉर के खत्म होने का समय आते-आते हिटलर की हार निश्चित हो गई थी. अप्रैल 1945 में सोवियत संघ और पोलैंड की सेना ने जर्मनी के बर्लिन पर कब्जा कर लिया. इसके बाद हिटलर को वहां से भागना पड़ा, हिटलर की सेना ने हथियार डाल दिए. ये खबर जब मुसोलिनी को मिली, तो वो घबरा गया उसे लगा कि अब उसे भी जल्द ही सोवियत संघ की सेना गिरफ्तार कर लेगी. अब वो इटली छोड़कर भागने की कोशिश में लग गया.
17 अप्रैल, 1945 को वो इटली के सालो शहर से निकलकर मिलान पहुंचता है. यहां से वो स्विट्जरलैंड जाने की तैयारी में लग जाता है. 27 और 28 अप्रैल की रात को मुसोलिनी अपनी प्रेमिका क्लारेटा पेटाची और 16 ख़ास सैनिकों के साथ स्विट्जरलैंड की तरफ भागता है. ये सभी एक ट्रक में निकलते हैं मुसोलिनी ने पहचान छिपाने के लिए बड़ा सा हेलमेट लगा रखा था, काला चश्मा पहन रखा था और एक भारी सा कोट.
पूरे इटली में विद्रोही ग्रुप 'पार्टिजन' के सैनिक तैनात थे. मुसोलिनी के भागने की खबर इन्हें मिल चुकी थी. हर जगह गाड़ियों की चेकिंग चला रही थी. स्विट्जरलैंड के बॉर्डर से थोड़ा पहले चेकिंग के लिए मुसोलिनी का ट्रक रुकवाया गया. ट्रक के अंदर से आवाज आई कि उसमें बैठे सभी लोग शरणार्थी हैं. लेकिन, पार्टिजन के एक सैनिक ने ट्रक में झाँकते ही मुसोलिनी को पहचान लिया. मुसोलिनी पकड़ा गया. 28 अप्रैल को देर रात मुसोलिनी, उसकी प्रेमिका और उसके साथी 16 सैनिकों को एक झील के करीब ले जाया गया. वहां इन सभी को गोली मार दी गई. अगली सुबह इनकी लाशों को मिलान शहर के पियाजाले लोरेटो चौक पर फेंक दिया गया. फिर वहां इनके साथ क्या हुआ ये आपको पहले ही बता चुके हैं.
तो इस तरह एक क्रूर तानाशाह का अंत हुआ.
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