ब्रिटिश हुकूमत में दूध उत्पादक किसानों के हालात बेहद खराब थे. वजह थी मिल्क मार्केटिंग सिस्टम. जिसे बिचौलिए कंट्रोल करते थे. ये बिचौलिए बेहद कम कीमत पर किसानों से दूध लेते और ज्यादा कीमत में कंपनियों या बड़े व्यपारियों को बेच देते. इन्हें भारी मुनाफा होता. इस तंत्र में फंसना किसान की मजबूरी थी, दूध एक जल्द खराब होने वाला आइटम था, इसलिए जो भी औने-पौने दाम उसे बिचौलिए देते वो रख लेता.
जब अमूल बना देश के लाखों किसानों का मसीहा
डॉ. वर्गीज कुरियन ने कैसे गुजरात के खेड़ा जिले में शुरू हुई AMUL डेरी के जरिए पूरे देश में सफेद क्रांति ला दी
गुजरात का खेड़ा जिला, जिसके एक हिस्से को अब आणंद जिले के नाम से जाना जाता है. यहां के किसान भी इस समस्या से खासे परेशान थे. इनकी परेशानी 1945 में तब और बढ़ गई जब बॉम्बे की सरकार ने 'बॉम्बे मिल्क स्कीम' शुरू की. ये स्कीम दूध का इलाका कहे जाने वाले गुजरात के खेड़ा जिले को दिमाग में रखकर बनाई गई थी. लेकिन बॉम्बे खेड़ा से तकरीबन 420 किमी दूर था. ऐसे में कहा गया कि दूध को पहले खेड़ा में ही पाश्चराइज किया जाए फिर मुंबई लाया जाया.
इसके लिए बॉम्बे की सरकार ने ब्रिटिश मिल्क प्रोडक्ट कंपनी 'पॉलसन' को ठेका दिया. इस योजना में जितने भी लोग शामिल थे, सभी खुश थे, सिवाय दूध उत्पादक किसानों को छोड़कर. क्योंकि उनके हाथ से अभी भी दूध बिचौलियों को ही कंपनी तक ले जाना था. यानी उन्हें औने-पौने दाम ही मिलते. कई महीनों तक ऐसा चलता रहा.
फिर एक किसान नेता त्रिभुवन दास पटेल ने किसानों की समस्या को उठाने का फैसला किया. कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता सरदार पटेल भी खेड़ा से ही थे. त्रिभवन दास सरदार पटेल से जाकर मिले. पटेल ने उन्हें सलाह दी कि किसानों को अपनी खुद की एक कोआपरेटिव सोसाइटी बनानी चाहिए, जिसका खुद का एक पाश्चराइजर प्लांट हो. और किसानों की कोऑपरेटिव सोसाइटी सीधे बॉम्बे में दूध सप्लाई करे. इससे बिचौलियों का चक्कर खत्म हो जाएगा.
सरदार पटेल का मशविरा अच्छा था, लेकिन इसमें एक बहुत बड़ी दिक्क्त थी. वो ये कि क्या ब्रिटिश सरकार किसानों को कोऑपरेटिव सोसाइटी बनाने की परमिशन देगी.
क्या किसान सोसाइटी बना सके? क्या उन्हें सरकार से परमिशन मिली? फिर कैसे उनके बीच एक 30 साल का युवा वर्गीज कुरियन पहुंच गया, जिसने इन किसानों की जिंदगी बदल दी. साथ ही आज ये भी जानेंगे कि कैसे गुजरात के खेड़ा जिले से निकले एक आइडिया से पूरे देश में दूध की नदियां बहीं?
बल्लभ भाई पटेल के कहने पर 4 जनवरी 1946 को मोरारजी देसाई खेड़ा पहुंचते हैं. वे किसानों की एक मीटिंग बुलाते हैं. उन्हें बताते हैं कि जिले के हर गांव में एक कोऑपरेटिव सोसाइटी होगी. और जिले में किसानों की ही एक बड़ी यूनियन होगी. गांव की कोऑपरेटिव सोसाइटी दूध इकट्ठा कर यूनियन को देगीं. यूनियन के पास अपना दूध का प्लांट होगा. सरकार को दूध लेने के लिए इस यूनियन से एक समझौता करना पड़ेगा. अगर सरकार ऐसा नहीं करती तो किसान स्ट्राइक करेंगे और किसी भी बिचौलिए को दूध नहीं देंगे.
ब्रिटिश सरकार ने किसानों की बात नहीं मानी, कोऑपरेटिव सोसाइटी बनाने की इज्जाजत भी नहीं दी गई. स्ट्राइक शुरू हो गई. 15 दिनों तक खेड़ा जिले से दूध की एक बूँद भी बॉम्बे नहीं पहुंची, आखिरकार 'बॉम्बे मिल्क स्कीम' से जुड़े अंग्रेजी अफसरों को झुकना पड़ा और उन्होंने किसानों की डिमांड मान ली.
'खेड़ा डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर यूनियन' नाम से कोऑपरेटिव सोसाइटी बनी. इस सोसाइटी को आधिकारिक रूप से 14 दिसंबर, 1946 को रजिस्टर किया गया. सोसाइटी ने जून 1948 से अपने प्लांट में दूध पाश्चराइज करना शुरू किया. उस समय महज दो गांवों के किसान 250 लीटर दूध ही ला पाते थे. लेकिन, अगले महज 6 महीने में ही कोआपरेटिव सोसाइटी से 400 से ज्यादा किसान जुड़े और करीब 4 हजार लीटर दूध इकट्ठा होने लगा.
खेड़ा में Verghese Kurien कैसे पहुंचे?1949 में वर्गीज कुरियन गुजरात के खेड़ा इलाके में पहुंचते हैं. खेड़ा में सरकार ने एक मक्खन निकालने का कारखाना यानी क्रीमरी खोली थी, जिसमें उन्हें बतौर डेयरी इंजीनियर भेजा गया था. कुरियन साल भर पहले ही अमेरिका की मिशीगन यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर भारत आए थे, जिसमें डेयरी इंजीनियरिंग भी एक विषय था. पढ़ाई सरकारी स्कॉलरशिप पर की थी, इसलिए सरकारी शर्त के तहत उन्हें करीब 3 साल सरकारी संस्था में काम करना था.
कुरियन खेड़ा पहुंचे तो उनकी मुलाकात खेड़ा के किसान नेता त्रिभुवन दास पटेल से हुई. कई मुलाकातों के बाद अच्छी जान पहचान हो गई. कोऑपरेटिव डेरी के कई मामलों में कुरियन उनकी मदद करते रहते. 1949 में किसानों की कोऑपरेटिव डेरी में नया प्लांट लगाने में भी उन्होंने मदद की थी. हालांकि, वर्गीज कुरियन का खेड़ा में मन नहीं लग रहा था और उन्होंने सरकार से कई बार उन्हें किसी शहर में पोस्टिंग देने की गुजारिश की. 1949 के अंत तक सरकार ने उनकी मांग मान ली. वे खेड़ा से जाने की तैयारी करने लगे.
ये बात जब त्रिभुवन दास पटेल को पता लगी तो वे किसानों के साथ तुरंत वर्गीज कुरियन के पास पहुंचे. उन्होंने कहा,
आपके बिना कोऑपरेटिव सोसाइटी डेरी नहीं चला पाएगी. किसान कम पढ़े लिखे हैं, उन्हें एक पढ़े लिखे हैं, उन्हें मैनेजर की जरूरत है, जो काम आप ही कर सकते हैं.
वर्गीज कुरियन ने काफी विचार-विमर्श के बाद 'खेड़ा डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर यूनियन' के साथ जुड़ने का फैसला कर लिया. 1 जनवरी 1950 को उन्होंने इसे बतौर मैनेजर ज्वाइन कर लिया.
Verghese Kurien के सामने आई पहली चुनौती और नया आविष्कार हो गयामैनेजर के रूप में वर्गीज कुरियन के सामने सबसे बड़ी चुनौती दूध उत्पादक किसानों की बढ़ती संख्या थी. इतना ज्यादा ज्यादा दूध खेड़ा की कोऑपरेटिव डेरी के पास आने लगा था, जिसे 'बॉम्बे मिल्क स्कीम' कंपनी खपा नहीं पा रही थी. सर्दियों में समस्या और बढ़ जाती, तब भैसें तकरीबन दो गुना दूध देने लगतीं.
कुरियन ने इसे लेकर अमेरिका में अपने साथ पढ़ने वाले डेयरी इंजीनयर एचएम दलाया से मदद मांगी. उनसे भैंस के दूध को खपाने का तरीका पूछा. उस समय तक यूरोप और न्यूजीलैंड में अधिक दूध होने पर उसे खपाने के लिए मिल्क पाउडर बनाया जाता था. यूरोप और न्यूजीलैंड वालों का कहना था कि केवल गाय के दूध का ही पाउडर और कंडेंस्ड मिल्क बन सकता है. लेकिन, एचएम द्लाया ने भैंस के दूध से स्किम दूध पाउडर और कंडेंस्ड मिल्क बनाकर दुनिया को चौंका दिया. अब कोऑपरेटिव डेरी दूध का पाउडर और कंडेंस्ड मिल्क बनाकर बेचने लगी. यानी सारा दूध खपने लगा.
कोऑपरेटिव डेरी के अब तीन स्तम्भ थे वर्गीज कुरियन, एचएम दलाया और त्रिभुवन दास पटेल. डेरी लगातार विस्तार कर रही थी. अब मक्खन और क्रीम से लेकर पनीर तक बनाया जाने लगा था. 1955 में जब कोऑपरेटिव डेरी का ब्रांड नेम रखने की बारी आई तो डॉ. कुरियन ने इसका नाम अमूल रखा. इसका पूरा नाम था 'आणंद मिल्क यूनियन लिमिटेड'.
इसके बाद खेड़ा में अमूल की मॉडर्न डेरी स्थापित की गई, जिसने मार्केट के सभी बड़े प्लेयर्स को पीछे छोड़ दिया. 1956 में अमूल रोजाना 1 लाख लीटर दूध प्रोसेस करने लगा. अब गुजरात से अमूल के उत्पाद अन्य राज्यों में भी जाने लगे थे.
जय जवान-जय किसान का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री खेड़ा पहुंचेजब दूध बढ़ने लगा तो वर्गीज कुरियन ने जानवरों के चारे और आहार के लिए खेड़ा में ही एक प्लांट लगाने की घोषणा की. 1964 में प्लांट बनकर तैयार हुआ. देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री इसका उद्घाटन करने पहुंचे. उन्होंने इस दौरान खेड़ा के किसी एक गाँव में एक किसान के घर रात गुजारने का फैसला किया. गाँव के किसानों का रहन-सहन देखकर वे हैरान थे. रात में गांव वालों के बीच बैठे शास्त्री ने उनसे पूछा,
मैं तो पूरा भारत घूम कर आया हूँ. लेकिन खेड़ा के गाँवों में मैंने किसानों को जितना संपन्न और खुशहाल देखा है, इतना कहीं दूसरी जगह नहीं देखा, इसकी वजह क्या है?
किसानों का जवाब था वर्गीज कुरियन का डेरी मॉडल. प्रधानमंत्री को बताया गया कि 'अमूल' को हजारों दूध उत्पादक किसानों ने ही शुरू किया है, वे ही उसके मालिक हैं. बिचौलियों का कोई चक्कर है ही नहीं, इस वजह से दूध की बाजार में जो कीमत है उसका 80 फीसदी तक हिस्सा उनकी जेब में ही आ जाता है.
लाल बहादुर शास्त्री ने वर्गीज कुरियन से कहा,
मुझे अमूल का मॉडल पूरे देश में लागू करना है. मुझे देश के हर दूध उत्पादक किसान को ऐसा ही खुशहाल देखना है. और आप इसका ब्लू प्रिंट यानी एक प्लान तैयार कर दिल्ली पीएम ऑफिस आएं.
वर्गीज कुरियन कई बार ब्लू प्रिंट बनाकर दिल्ली पहुंचे, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पा रही थी.
यूरोप में दूध बढ़ गया और भारत को नया रास्ता मिल गयाइसी बीच यूरोपीय देशों में दूध की पैदावार अचानक से बढ़ गयी. उनके पास दो ही विकल्प थे या तो समुद्र में बहायें या फिर गरीब देशों को दूध या उसके उत्पाद दे दें. भारत ने यूरोप से दूध के उत्पाद ले लिए, जिसमें स्किम्ड मिल्क पाउडर और बटर आयल था. सरकार ने योजना बनाई की इन उत्पादों को मिक्स करके दूध बनाएंगे. जिसे गांवों में बच्चों और बुजुर्गों को मुफ्त में दिया जायेगा.
ये खबर सुनते ही वर्गीज कुरियन सरकार में बैठे लोगों से दिल्ली जाकर मिले. उन्होंने कहा कि सरकार ऐसा नहीं कर सकती. जब लोगों को फ्री में दूध मिलेगा तो दूध उत्पादक किसान दूध का उत्पादन बंद कर देंगे. जब लोगों को दूध फ्री मिलेगा तो वे क्यों उत्पादन करेंगे. साथ ही दूध बिकेगा भी कम.
अधिकारियों ने कुरियन से पूछा कि क्या उनके पास इसका कोई उपाय है. उन्होंने कहा
यस मेरे पास उपाय है. आप हमें यूरोप से आया स्किम्ड मिल्क पाउडर और बटर आयल दे दीजिये. हम उसे दूध बनाकर बेचेंगे. जो पैसा आएगा उससे वह योजना शुरू होगी. जिसके लिए प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने उनसे ब्लू प्रिंट देने को कहा था. यानी अमूल मॉडल पूरे देश में लागू किया जाएगा.
सरकार में बैठे नेता और अधिकारी ये सुनते ही खुश हो गए, क्योंकि अब बिना पैसे दिए प्रधानमंत्री का सपना उन्हें साकार होते नजर आ रहा था.
प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने अमूल मॉडल को दूसरी जगहों पर फैलाने के लिए राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड (एनडीडीबी) का गठन किया और कुरियन को बोर्ड का अध्यक्ष बनाया. एनडीडीबी ने 1970 में ‘ऑपरेशन फ्लड’ की शुरुआत की, यानी दूध क्रांति अब शुरू होने वाली थी. इसी दौरान गुजरात के सूरत, बड़ौदा, मेहसाणा, बनासकांठा और साबरकांठा जिलों में भी खेड़ा की तरह ही कोऑपरेटिव डेरियां बनीं. 1973 में इन सबकी शीर्ष संस्था बनी 'गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ' यानी जीसीएमएमएफ.
तीन फेज में शुरू हुआ Verghese Kurien का Operation Flood‘ऑपरेशन फ्लड’ को तीन फेज में लागू किया गया. पहले फेज में वर्गीज कुरियन ने देश भर में करीब 13 डेरी प्लांट बनाए और एक पशु आहार प्लांट. ‘ऑपरेशन फ्लड’ का दूसरा फेज 1980 से शुरू हुआ और 1990 तक चला. दूसरे फेज में पैसा कम पड़ा तो वर्गीज कुरियन को वर्ल्ड बैंक से मदद मिली. इस दौरान उन्होंने देश भर में करीब 170 डेरी प्लांट और 32 पशु आहार प्लांट लगाए.
फिर आया 'ऑपरेशन फ्लड' का तीसरा और अंतिम फेज. ये 1990 से शुरू हुआ. इस दौरान उन प्लांट्स यानी डेरी कोआपरेटिव सोसाइटी की पहचान की गई, जो सही से काम नहीं कर पा रहे थे. अलग से फंड लगाकर इनकी स्थिति को बेहतर किया गया.
इस दौरान देश के इलाकों में लोगों तक दूध की पहुंच आसान बनाने के लिए दूध की वेंडिंग मशीनें लगाई गईं. दुकानों पर दूध के बड़े-बड़े कंटेनर लगवाए गए. अब हर आदमी को दूध मिल रहा था और हर उत्पादक अच्छी कीमत पर आसानी से अपना दूध बेच पा रहा था. 1997 में 'ऑपरेशन फ्लड' पूरा हो गया. ऑपरेशन फ्लड के दौरान ही भारत दूध की कमी वाले मुल्कों की लिस्ट से निकलकर दूध के बड़े उत्पादक देशों में शुमार हो गया था. 1998 में वो दुनिया में सबसे ज्यादा दूध का उत्पादन करने वाला देश बन गया.
जब चीन ने Verghese Kurien का मॉडल कॉपी कियाइसके बाद दुनिया ने वर्गीज कुरियन को सफेद क्रांति का जनक कहा. उन्हें कई बड़े सम्मान मिले. रूस, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका सहित कई देशों की सरकारों ने वर्गीज कुरियन को अपने यहां आने की दावत दी. उनसे डेरी क्षेत्र में मदद मांगी. चीन पहला ऐसा देश बना, जिसने वर्गीज कुरियन के मॉडल को कॉपी किया. चीन ने अपने तीन अधिकारियों को गुजरात भेजा. उन्होंने अमूल की डेरी पर जाकर कई दिनों तक रिसर्च किया. चीनी सरकार की गुजारिश पर वर्गीज कुरियन ने अपने दो इंजीनियर्स को चीन भेजा. उसने वर्गीज कुरियन की मदद से फिर अपना ऑपरेशन फ्लड शुरू किया.
कहते हैं आपका एक फैसला आपकी जिंदगी बदल सकता है. लेकिन डॉ. वर्गीज कुरियन एक ऐसे शख्स थे, जिनके एक फैसले ने न केवल उनकी बल्कि लाखों किसानों की जिंदगी बदल दी. वो फैसला था, खेड़ा यानी आणंद को न छोड़ने का.
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