The Lallantop

श्री अरबिंदो: एक क्रांतिकारी  कैसे बन गए आध्यात्मिक गुरु?

साल 1908 में अलीपुर बम केस के दौरान अरबिंदो घोष को कुछ वक्त जेल में गुजारना पड़ा था

post-main-image
महर्षि अरबिंदो घोष का जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में हुआ था (तस्वीर: Wikimedia Commons)

1905 का साल. लार्ड कर्जन का आदेश है बंगाल का बंटवारा होगा. नतीजे में बंगाल में क्रांति अपने ज़ोरों पर है. इधर कुछ सालों में अंग्रेज अफ़सरान पर कई बार जानलेवा हमला हो चुका है. ब्रिटिश राज के अनुसार इस पूरे षड्यंत्र के क़ेंद्र में हैं एक संगठन, अनुशीलन समीति. 1908 में डग्लस किंग्सफोर्ड पर हुए हमले के बाद पुलिस हरकत में आती है. अनुशीलन समीति के सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया जाता है. सब मुकदमों को मिलाकर प्रॉसिक्यूशन एक बड़ा केस बनाता है. ब्रिटिश राज के खिलाफ षड्यंत्र के इस केस को अलीपोर बम केस का नाम मिलता है.

स्वतंत्रता आंदोलन की बात आते ही इमोशन उफान पर आ जाते हैं. लेकिन ब्लैक एंड वाइट नज़रिए से थोड़ा हटकर देखेंगे तो पाएंगे कितना दिलचस्प घटनाक्रम है.
मामले में मुख्य अभियुक्त हैं अरबिंदो घोष. 49 लोगों पर राजद्रोह का मुकदमा लगा है. इन सभी के खिलाफ पुलिस के पास पर्याप्त गवाह हैं लेकिन अरबिंदो के खिलाफ सबूत के नाम पर है सिर्फ कुछ खत और उनमें भी कुछ मिठाई के डब्बों की चर्चा है, बस.

केस को मजबूत बनाने के लिए पुलिस एक अभियुक्त को सरकारी गवाह बनाने में सफल हो जाती है. लेकिन ऐन वक्त पर उसकी भी हत्या हो जाती है. अंत में फैसले का दारोमदार आता है एक ब्रिटिश जज पर. जो कभी अरबिंदो का सहपाठी हुआ करता था. इतना ही नहीं केस में जब सवाल उठता है कि बम कैसे बना?, कहां बना? तो एक रूसी केमिस्ट का जिक्र आता है. नाम पूछो तो जवाब मिलता है ‘पीएचडी’ 

जब तक केस पूरा होता है, भारतीय क्रांति की ख़बरें देश विदेश के सामचार पत्रों में फैल जाती हैं. और तंग आकर ब्रिटिश सरकार को इंडियन प्रेस एक्ट 1910 लागू करना पड़ता है. इसी केस के दौरान एक और दिलचस्प घटना घटती है. केस पूरा होने के बाद बंगाल में उस दौर के सबसे बड़े राजनेता अरबिंदो घोष संन्यास की घोषणा कर देते हैं. और आगे जाकर पांडिचेरी में एक आश्रम के नींव रखते हैं. आज 6 मई है और आज ही के दिन साल 1908 में अलीपोर बम केस में अदालत का निर्णय आया था. क्या थी इस केस की पूरी कहानी?

घुड़सवारी का इम्तिहान

इस किस्से की शुरुआत होती उत्तर कोलकाता में मुरारीपुकुर के एक गार्डन हाउस से. इस घर के मालिक थे. ICS की पढ़ाई पूरी करने के लिए एक और शर्त थी, किंग्स कॉलेज कैंब्रिज में 2 साल का ग्रेजुएशन. अरबिंदो ने स्कॉलरशिप हासिल कर कॉलेज में दाखिला तो ले लिया, लेकिन पढ़ाई के दौरान उनका मन ICS से उचट गया. फाइनल परीक्षा पास करने के लिए हॉर्स राइडिंग का एक प्रैक्टिकल इम्तिहान देना होता था. अरबिंदो इस परीक्षा में जानबूझ कर लेट पहुंचे. और इसके चलते उनकी ICS की पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई.

Ghose Family
कृष्णधन घोष अपने परिवार के साथ (तस्वीर: Wikimedia Commons)

1893 में अरबिंदो भारत लौटते हैं. बॉम्बे में उनके पिता कृष्णधन उनके लौटने का इंतज़ार कर रहे थे. तभी उनको खबर मिलती है कि जिस जहाज से अरबिंदो ट्रेवल कर रहे थे, वो पुर्तगाल के पास समुन्द्र में डूब गया. इस खबर से कृष्णधन को ऐसा सदमा लगता है कि कुछ दिनों में उनकी मृत्यु हो जाती है.

खबर झूठी थी. अरबिंदो कुछ दिनों बाद सही-सलामत भारत पहुंचते हैं. और यहां बड़ौदा स्टेट सर्विस ज्वाइन कर लेते हैं. 1905 में बंगाल का बंटवारा हुआ. यहीं से अरबिंदो की राजनीति में एंट्री हुई. उनके भाई बरिन घोष अनुशीलन समिति से जुड़े थे. और उन्हीं के थ्रू अरबिंदो की मुलाक़ात बाघा जतिन और बाकी क्रांतिकारियों से हुई.

पीएचडी ने बम बनाना सिखाया

मुरारीपुकुर वाला गार्डन हाउस क्रांतिकारियों का अड्डा बना. शुरुआत हुई बम बनाने से. हेमचन्द्र दास नाम के एक क्रांतिकारी फ्रांस से लौटे थे. वहां उन्होंने एक मराठी क्रन्तिकारी पांडुरंग महादेव बापट, जिन्हें सेनापति बापट के नाम से जाना जाता था, के साथ मिलकर बम बनाने की ट्रेनिंग ली थी. दोनों को ये काम सिखाया था एक रूसी अनार्किस्ट ने, जिसका नाम पूछो तो दास कहते थे, “उसका नाम ‘पीएचडी’ था.”

फ़्रांस से दास एक 70 पन्नों का मैनुएल लेकर लौटे थे. जिसमें बम बनाने का पूरा लेखा-जोखा था. दास की देखरेख में बम बनाने का काम शुरू हुआ. मुरारीपुकुर वाले घर के पीछे वाले हिस्से में बम बनाने का काम होता, जबकि आगे वाले कमरे में भजन गाए जाते, ताकि आने-जाने वालों को शक न हो.

बमों का पहला लॉट तैयार हुआ तो इन्हें टेस्ट करने की बारी आई. टेस्ट करने के लिए पांच लोग तैयार हुए. देवघर (आज के झारखंड में) में टेस्टिंग के दौरान एक क्रांतिकारी प्रफुल्ल चक्रवर्ती की मृत्यु हो गई. बम सही से काम कर रहे थे लेकिन उसे फेंकने के बाद प्रफुल्ल को पीछे हटने में देर हो गई. जिसके चलते वो ब्लास्ट की चपेट में आ गए थे.

Murai
मुरारीपुकुर का गार्डन हाउस (तस्वीर: Wikimedia Commons)

इसके बाद अनुशीलन के सदस्यों ने अंग्रेज़ अफसरों को निशाना बनाने का प्लान बनाया. पहला निशाना थे बंगाल के गवर्नर एंड्रू फ़्रेज़र. अक्टूबर 1907 में बरिन घोष, उल्लासकर दत्त और नरेंद्र गोस्वामी इस काम को अंजाम देने के लिए चंद्रनगर पहुंचे. फ़्रेज़र रांची तक एक स्पेशल ट्रेन से जा रहे थे, जो इसी रास्ते गुजरती थी. ये मिशन फेल हो गया क्योंकि तीनों लोगों ने बम लगाने में देरी कर दी.

कुछ दिनों बाद एक और कोशिश हुई. इस बार उल्लासकर दत्त ने समय पर बम लगा दिया, लेकिन ऐन मौके पर फ़्रेज़र ने अपना प्रोग्राम बदल दिया. 6 दिसंबर 1907 को तीसरी कोशिश की गई. गवर्नर फ़्रेज़र का खड़गपुर जाने का प्लान था. अबकी ट्रेन की पटरी पर बम लगाया गया, वो फूटा भी, लेकिन फ़्रेज़र को कोई नुकसान नहीं हुआ. चौथे प्रयास के लिए बन्दूक का सहारा लिया गया. लेकिन फिर से फ़्रेज़र की किस्मत ने साथ दिया. और ऐन मौके पर बन्दूक जाम हो गई

अरबिंदो घोष को मुख्य अभियुक्त बनाया

फ़्रेज़र पर हमला बार-बार असफल हो रहा था. इसलिए एक दूसरे अंग्रेज़ अफसर को मारने का प्लान बनाया गया. इसके बारे में हमने आपको 11 अगस्त वाले एपिसोड में बताया था.खुदीराम और प्रफुल्ल कुमार चाकी ने डग्लस किंग्सफोर्ड नाम के एक ब्रिटिश जज पर बम से हमला किया था. इस हमले में किंग्सफोर्ड तो बच गए लेकिन एक ब्रिटिश महिला और उनकी बेटी की मृत्यु हो गई थी. जिसके बाद खुदीराम बोस को फांसी दे दी गई थी.

यहां पढ़ें- खुदीराम बोस: 18 साल का लड़का, जो फांसी का फंदा देख मुस्कुरा उठा

इस हमले के बाद पुलिस ने पूरे कोलकाता में दबिश देना शुरू किया.और इसी दौरान मुरारीपुकुर वाले घर की तलाशी भी ली गई. यहां से पुलिस को कई सारे खत और सबूत मिले. अलीपोर सेशंस कोर्ट में मुकदमा चला. 49 लोगों को सरकार के खिलाफ षड्यंत्र का आरोपी बनाया गया. 206 गवाहों की पेशी हुई. और 400 कागजातों समेत 5000 से ज्यादा सबूत अदालत में पेश किए गए. इस केस में पुलिस ने अरबिंदो घोष को मुख्य अभियुक्त बनाया. प्रॉसिक्यूशन की दलील थी कि वो ही इस पूरे घटनाक्रम के मास्टरमाइंड थे. उस रोज़ कोर्ट में क्या हुआ, देखिए.

Conspiracy
अलीपोर बम केस के अभियुक्त (तस्वीर: Wikimedia Commons)

सरकार की तरफ से केस की पैरवी करने के लिए मद्रास प्रेसिडेंसी के एक नामी वकील यार्डली नॉर्टन को बुलाया गया था. यार्डली अदालत में एक खत पेश करते हैं. जिसे अरबिंदो के छोटे भाई बरिन घोष ने लिखा था. इस खत में एक जगह लिखा था कि पूरे बंगाल में मिठाई बांटी जानी है. प्रॉसिक्यूशन ने दलील दी कि मिठाई से यहां मतलब हथियारों से था.

बचाव पक्ष से चितरंजन दास कोर्ट में पेश हुए थे. उन्होंने प्रॉसिक्यूशन की तरफ से पेश किए खत को जाली बताया. इसके पक्ष में उन्होंने पहली दलील दी कि दोनों भाई जब एक साथ रहते थे तो खत लिखने की जरुरत ही क्या थी. दूसरी दलील थी खत की भाषा. जिसमें बरिन ने अरबिंदो को ‘डियर ब्रदर’ कहकर सम्बोधित किया था. जबकि अरबिंदो उम्र में काफी बड़े थे और बंगाली परंपरा के अनुसार बड़े भाई को डियर ब्रदर कहकर सम्बोधित नहीं किया जाता था. इसके अलावा खत में बरिन घोष ने अपना पूरा नाम लिखा था, जबकि अपने सगे सम्बन्धियों को लिखे खत में पूरा नाम लिखने का रिवाज भी नहीं था. इसके अलावा खत में कहीं भी अरबिंदो का नाम नहीं था खत किसी AG के नाम लिखा हुआ था.

नरेन्द्रनाथ गोस्वामी  से बदला

दलील सुनाने वाले थे जज CP बीचक्रॉफ्ट. बीचक्राफ्ट ने कभी अरबिंदो के साथ ही ICS की परीक्षा दी थी. और उनका स्थान 36 वां था. जबकि अरबिंदो ने 11 वां स्थान हासिल किया था. जज बीचक्रॉफ्ट ने अरबिंदो के खिलाफ खत को नाकाफी माना और प्रॉसिक्यूशन से कहा कि कोई और सबूत हों तो पेश करें.(बाद में अरबिंदो ने माना था कि ये ख़त बरिन ने ही लिखा था) बाकी अभियुक्तों के खिलाफ पर्याप्त सबूत थे. लेकिन अरबिंदो को दोषी ठहराने के लिए सबूत पर्याप्त नहीं पड़ रहे थे. इसी चक्कर में केस पूरे एक साल तक खिंचा.

Naren Murder
नरेन्द्रनाथ बसु की हत्या के बाद गिरफ्तार किए गए कनाईलाल और सत्येन्द्रनाथ बसु (तस्वीर: Wikimedia Commons)

22 जून 1907 के रोज़ प्रॉसिक्यूशन ने अदालत में एक गवाह पेश किया. नरेन्द्रनाथ गोस्वामी जो पहले फ़्रेज़र पर हुए एक हमले में शरीक थे, माफी के एवज में पुलिसिया गवाह बन गए थे. नरेन अरबिंदो के खिलाफ मामले में बेहद अहम गवाह साबित हो सकते थे. इसलिए अनुशीलन समिति के सदस्यों ने फैसला किया कि नरेन को चुप कराना होगा. कनाई लाल दत्त बाकी क्रांतिकारियों के साल जेल में बंद थे. 29 अगस्त को उन्होंने पेट में दर्द का बहाना किया और जेल हॉस्पिटल में दाखिल हो गए. यहां से कनाईलाल ने नरेन को एक सन्देश भिजवाया कि वो और सत्येन्द्रनाथ बसु सरकारी गवाह बनना चाहते हैं. और इसके लिए नरेन से मुलाक़ात करना चाहते हैं.

जैसे ही नरेन दोनों से अस्पताल मिलने पहुंचे, दोनों ने स्मगल की हुई बन्दूक से नरेन पर 9 गोलियां चलाकर उनकी हत्या कर दी. कनाईलाल दत्त और सत्येन्द्रनाथ बसु को इस मामले में फांसी की सजा हुई. लेकिन दोनों के इस कारनामे से पुलिस के हाथ से आख़िरी गवाह भी जाता रहा.

अरबिंदो घोष ने सन्यास का फ़ैसला लिया

अंत में आज ही के दिन यानी 6 मई 1908 को इस मामले में फैसला आया. अरबिंदो और उनके साथ 16 और लोगों को रिहा कर दिया गया. जबकि बरिन दास और उलास्कर दत्त को इस मामले में फांसी की सजा सुनाई गई. जिसे बाद में आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया गया. 13 और लोगों को आजीवन कारावास की सजा मिली. साथ ही 3 लोगों को 10 साल और 3 लोगों को 7 साल कारावास की सजा मिली.

Chuttranjan Das
जज CP बीचक्राफ्ट और बचाव पक्ष के वकील चितरंजन दास (तस्वीर: Wikimedia Commons)

अलीपोर बम केस तब भारत के सबसे बड़े केसों में से एक साबित हुआ था. कारण कि सरकार अपनी पूरी कोशिश के बावजूद इस मामले में अरबिंदो को सजा नहीं दिलवा पाई थी. इसी केस के दौरान अरबिंदो के कई लेख देश-विदेश के अखबारों में छपे और बंगाल क्रांति की खबर दुनिया भर में फ़ैली. इसी के चलते साल 1910 में सरकार को प्रेस एक्ट लागू करना पड़ा. जिसके बाद क्रांतिकारी विचारों को प्रेस में छापने पर प्रतिबंध लगा दिया गया.

इसी केस के दौरान एक और रोचक घटना घटी. इसके केस के चलते अरबिंदो घोष कई महीनों तक जेल में रहे थे. जब रिहा हुए तो उनका मन पूरी तरह से बदल चुका था. उन्होंने राजनीति से सन्यास की घोषणा कर दी. यहां से उनकी आध्यात्मिक यात्रा शुरू हुई. आगे जाकर उन्होंने पुदुच्चेरी में अरबिंदो आश्रम बनाया और इसके बाद दुनियाभर में श्री अरबिंदो के नाम से जाने जाने लगे.

तारीख: मुगल नहीं हरा पाए और राजा छत्रसाल ने आखिर बुंदेलखंड आजाद करवा लिया