शीत युद्ध के शुरुआती सालों की बात है. तारीख थी - 25 फरवरी 1956. सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी का 20 वां अधिवेशन चल रहा था. अधिवेशन के आख़िरी दिन रूस के राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव ने एक भाषण दिया. द सीक्रेट स्पीच के नाम से मशहूर इस भाषण की खबर दुनिया को करीब एक महीने बाद लगी. कहते हैं कि इस स्पीच को सुनने के बाद कई लोगों को मौके पर ही हार्ट अटैक आ गया, और कइयों ने खुद अपनी जान ले ली. जब इस भाषण के हिस्से अमेरिका पहुंचे, वहां की कम्युनिस्ट पार्टी के 30 हजार लोगों ने एक ही दिन में पार्टी की सदस्यता छोड़ दी. इस स्पीच का असर यहां तक हुआ कि चीन और सोवियत संघ के रिश्तों में दरार पड़ गई. वहीं नार्थ कोरिया में तानाशाह किम इल संग को हटाने की मांग उठने लगी.
ऐसा क्या था इस स्पीच में?
पुतिन की गर्लफ्रेंड थी RAW की एजेंट?
शीत युद्ध के दौरान मास्को की जासूसी के लिए रॉ का ख़ुफ़िया ऑपरेशन.
इस भाषण में ख्रुश्चेव ने स्टालिन के काले कारनामों का कच्चा चिटठा खोलकर रख दिया था. और चेतावनी जारी की थी कि हमें अपने नेताओं को भगवान बनाने से बचना चाहिए.
जिस रोज़ ये स्पीच दी गई थी. अधिवेशन में वसीली निकीतीच मित्रोखिन भी मौजूद थे. मित्रोखिन तब सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी KGB के डायरेक्टर हुआ करते थे. इस स्पीच का मित्रोखिन पर इतना असर हुआ कि उनका KGB से मोहभंग हो गया. लिहाजा मित्रोखिन का आर्काइव विभाग में ट्रांसफर कर दिया गया. इस विभाग में काम करने के दौरान मित्रोखिन को सभी खुफिया दस्तावेज़ों को संभालने का जिम्मा दिया गया था. लेकिन मित्रोखिन (Mitrokhin Archives) इसके साथ-साथ एक और काम कर रहे थे. उन्होंने हजारों ख़ुफ़िया दस्तावेज़ों की हाथ से लिखी कॉपियां बना ली थीं.
साल 1992 में सोवियत संघ के विघटन के बाद मित्रोखिन रूस से ब्रिटेन चले गए. और यहां उन्होंने ब्रिटिश इंटेलिजेंस एजेंसी MI6 को ये सभी ख़ुफ़िया दस्तावेज़ सौंप दिए. 25 हजार पन्नों के इन दस्तावेज़ों में सोवियत संघ की सभी ख़ुफ़िया जानकारियां थीं. कुछ साल बाद इन दस्तवाज़ों के आधार कुछ किताबें लिखी गई. जिसे नाम दिया गया, मित्रोखिन आर्काइव. इन किताबों में रूस की विदेश नीति और विदेशों में उनके ऑपरेशन से जुड़ी कई जानकारियां थीं.
जाहिर है कि इनमें भारत का भी नाम था. मित्रोखिन आर्काइव्स के अनुसार भारत KGB जासूसों का सबसे बड़ा अड्डा था. किताब के अनुसार KGB ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक खास कोड वर्ड असाइन किया हुआ था- ‘वानो.’ 1973 तक भारत के 10 बड़े अखबार KGB के पेरोल पर थे. जिनमें 3789 आर्टिकल्स KGB की तरफ से प्लांट करवाए गए थे. साथ ही किताब में कांग्रेस पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी को करोड़ों रूपये दिए जाने का भी जिक्र है.
बहरहाल KGB ने तो जो किया सो किया, लेकिन तब भारत की ख़ुफ़िया एजेंसियां क्या कर रही थी? इसके लिए जानिए एक कहानी. कहानी भारतीय सुरक्षा एजेंसी R&AW के एक ख़ुफ़िया ऑपरेशन की. जिसके तहत भारत ने क्रेमलिन के दो बेहद नजदीकी अधिकारियों को अपना जासूस बना लिया था. और जिनमें से एक को लेकर कयास लगाए जाते हैं कि वो उस शख्स की गर्लफ्रेंड थीं, जो आगे जाकर रूस के राष्ट्रपति बने. हम व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) की बात कर रहे हैं. क्या थी पूरी कहानी, चलिए जानते हैं.
शीत युद्ध में भारतशुरुआत आज की तारीख से, 2 फरवरी 1992. क्या हुआ था इस रोज़. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दो महाशक्तियों के बीच चले आ रहे शीत युद्ध का खात्मा इसी रोज़ हुआ था. अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश एवं रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने मिलकर आधिकारिक रूप से शीत युद्ध के ख़त्म होने की घोषणा की थी. शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत रूस विदेशी जमीनों पर कई प्रॉक्सी वॉर लड़ चुके थे. इनमें से कई लड़ाइयां युद्ध के मैदान में लड़ी गई , जैसे वियतनाम और कोरिया, वहीं कुछ लड़ाइयां न्यूट्रल देशों को अपने पक्ष में लाने की थी.
इनमें से सबसे प्रमुख था, भारत. सोवियत संघ और भारत के मजबूत रिश्तों की बानगी 1971 युद्ध में दिखी जब सोवियत संघ ने भारत की मदद के लिए बंगाल की खाड़ी में अपना जंगी बेड़ा भेज दिया था. इनके बरक्स कुछ लड़ाइयां इनफार्मेशन को लेकर भी लड़ी जा रही थीं. जिनके योद्धा हुआ करते थे, जासूस.
रूस की मशहूर ख़ुफ़िया एजेंसी KGB ने सालों से भारत में अपने एजेंट्स तैनात कर रखे थे. वहीं अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी CIA भी इसमें पीछे नहीं थी. वहीं भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी RA&W की बात करें तो 1990 तक R&AW के गठन को लगभग दो दशक मात्र ही हुए थे. इसके बावजूद 1988 के आसपास R&AW ने एक जबरदस्त खुफिया ऑपरेशन को अंजाम दिया और सोवियत संघ के दिल यानी क्रेमलिन में अपने जासूस बैठा दिए.
रॉ ने सोवियत अधिकारी को रिक्रूट कियायतीश यादव ने अपनी किताब RAW: A History of India’s Covert Operations, में इस किस्से का जिक्र किया है.
कहानी की शुरुआत होती है 1988 से. उस साल नवम्बर में सोवियत प्रीमियर मिखाइल गोर्बाचेव का विमान पालम एयरपोर्ट पर उतरा. शाम को गोर्बाचेव के सम्मान में एक समारोह रखा गया था. इस समारोह के दौरान दो खास लोगों की मुलाकात हुई. इनमें से एक थे निकोलस दार्चिज्ड, गोर्बाचेव की कोर टीम के एक खास सदस्य, जिनकी शीत युद्ध के खात्मे में खास भूमिका होने वाली थी. और दूसरे शख्स का नाम था, अशोक खुराना. जो कि एक भारतीय इंटेलिजेंस अफसर हुआ करते थे. हालांकि खास बात ये थी कि दोनों का ही असली नाम कुछ और था. ये नाम दोनों सिर्फ कोडनेम के तौर पर इस्तेमाल करते थे. बहरहाल खुराना और दार्चिज्ड, दोनों बात कर ही रहे थे, कि इनके बीच एक तीसरा आदमी आ धमकता है. ये थे निकोलस दार्चिज्ड के छोटे भाई, अलेक्सांद्रे दार्चिज्ड.
बातों ही बातों में खुराना अलेक्सांद्रे को ताजमहल घुमाने का प्रस्ताव देते हैं. अगले रोज़ दोनों ताजमहल जाते हैं. और यहां उनकी गहरी दोस्ती हो जाती है.
आगरा से दिल्ली लौटते वक्त खुराना कार में अलेक्सांद्रे से कहते हैं, “मेरे पास तुम्हे देने के लिए जिंदगी का कोई फलसफा नहीं लेकिन आने वाले दिनों में दुनिया में बड़े बदलाव होने वाले हैं, और उस वक्त मैं हमेशा मदद के लिए मौजूद रहूंगा”.
अलेक्सांद्रे को अब तक पता चल चुका था कि खुराना R&AW के लिए काम करते हैं. दोनों के बीच दोस्ती का एक कारण उनकी हामिद गुल के प्रति नफरत थी. हामिद गुल पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी ISI के चीफ हुआ करते थे. और अलेक्सांद्रे और खुराना दोनों का मानना था कि भारतीय उपमहाद्वीप में आतंक को बढ़ावा देने के पीछे हामिद गुल का ही हाथ है.
बहरहाल दिल्ली आकर दोनों एक दूसरे से विदा लेते हैं, और जाते हुए अलेक्सांद्रे खुराना से कहते हैं, “याद रखना, मैं जीजस की तरह सूली नहीं चढ़ना चाहता, इसलिए मेरा चरवाहा बनने की कोशिश मत करना”.
इसका मतलब था कि अलेक्सांद्रे RAW के लिए जासूसी करने को तैयार हो गए थे. इसके बाद खुराना और अलेक्सांद्रे के बीच और कई मुलाकाते हुईं. दोनों अक्सर विदेशी लोकेशंस पर मिलते थे, और आपस में सीक्रेट नोट्स साझा करते थे. ये सभी नोट्स कोडेड भाषा में लिखे रहते थे. जिसका मतलब सिर्फ खुराना और अलेक्सांद्रे को ही पता होता था. इसी बीच वैश्विक राजनीति में भी घटनाक्रम तेज़ी से बदल रहे थे. जुलाई 1989 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी मास्को की यात्रा करते हैं. यहां उनके और गोर्बाचेव के बीच द्विपक्षीय सहयोग को लेकर वार्ता होती है. इस दौरान खुराना भी प्रधानमंत्री के साथ मास्को पहुंचते हैं. और वहां एक बार फिर उनकी मुलाक़ात अलेक्सांद्रे से होती है. अलेक्सांद्रे खुराना की मुलाक़ात एक और शख्स से कराते हैं. इनका नाम था एनसटेशिया कोर्किया. जो एक 27 साल की युवती थी और सरकार में पब्लिक रिलेशन विभाग में काम करती थीं.
अलेक्सांद्रे और एनसटेशिया की मुलाक़ात 1986 में हुई थी. दोनों में प्यार हुआ और साथ रहने लगे. इससे ये हुआ कि अलेक्सांद्रे के जरिए एनसटेशिया की पहुंच सोवियत सरकार के शीर्ष तक हो गई. आगे का घटनाक्रम कुछ यूं हुआ कि प्रधानमंत्री के लौटने के बाद खुराना ने कुछ दिन मास्को में रुकना उचित समझा. यहां एक खास कैफे था, जो जासूसों और सरकारी अधिकारियों की मीटिंग का पसंदीदा अड्डा हुआ करता था. यहां खुराना ने कई बार अलेक्सांद्रे और एनसटेशिया से मुलाक़ात की. और दोनों को अपने लिए काम करने के लिए मनाने की कोशिश की. जल्द ही खुराना की ये मेहनत रंग लाई. और नवम्बर 1989, यानी बर्लिन की दीवार गिरने के कुछ दिन पहले ही दोनों, R&AW के लिए काम करने के लिए राजी हो गए. दोनों ने अमेरिका, यूरोप और एशिया से जुड़ी सोवियत विदेश नीति की कई ख़ुफ़िया जानकारियां खुराना को लाकर दी. इस पूरे ऑपरेशन को नाम दिया गया, ऑपरेशन अजेलिया.
पाकिस्तान की ख़ुफ़िया जानकारीऑपरेशन अजेलिया के तहत जो सबसे महत्वपूर्ण जानकारी खुराना को मिली, वो पाकिस्तान से जुड़ी थी. इसके अलावा , न्यूक्लियर टेस्टिंग, आतंकवाद, और व्यापार को लेकर रूस की नीति से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां भी खुराना हो हासिल हुईं. जासूसी का ये ऑपरेशन कई सालों तक यूं ही चला. लेकिन फिर कुछ साल बाद अलेक्सांद्रे और एनसटेशिया के रिश्तों में दरार पड़ने लगी. अलेक्सांद्रे को सोवियत विघटन से बने नए देश जॉर्जिया का राष्ट्रपति बना दिया गया.
वहीं KGB के एक टॉप अधिकारी से एनसटेशिया की नजदीकियां बढ़ने लगीं. इस अधिकारी से एनसटेशिया को कई ख़ुफ़िया जानकारियां हासिल हुईं , जो खुराना के जरिए भारत तक पहुंची. इनमें पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम से जुड़ी जानकारियां भी शामिल थीं. एनसटेशिया ने इस नए माशूक का कोड नेम अलेक्सी था. अलेक्सी जल्द ही रूस की सरकार में बड़ा ओहदा संभालने वाला था. इसलिए भारत को ये जानने में खास रूचि थी कि अलेक्सी का चीन और पाकिस्तान के प्रति कैसा नजरिया है.
साल 2000 के आसपास अलेक्सांद्रे ने खुराना को एक और प्रस्ताव दिया. उसने कहा कि वो अलेक्सी से एनसटेशिया के जरिए दूसरे देशों से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां ला सकता है. लेकिन इसके लिए उसने कुछ ज्यादा रकम की मांग की. खुराना ने फौरी तौर पर तो कोई वादा नहीं किया लेकिन अलेक्सांद्रे से कुछ वक्त इंतज़ार करने को कहा. इधर भारत में इस बात पर काफी माथापच्ची हुई. R&AW के टॉप अधिकारियों को ये समझ नहीं आ रहा था कि अलेक्सांद्रे जो जानकारी देने की बात कह रहा है, वो झूठी तो नहीं. हो सकता था अलेक्सांद्रे डबल गेम खेल रहा हो. एक गलत कदम से भारत रूस संबंधो पर गहरा असर पड़ सकता था.
रोका जा सकता था 2001 संसद आतंकी हमलाअंत में सरकार ने खतरा देखते हुए ऑपरेशन अजेलिया को बंद कर दिया. अप्रैल 2001 में अलेक्सांद्रे को ऑपरेशन बंद करने की जानकारी दे दी गई. ऑपरेशन यहीं खत्म हो गया. हालांकि कहानी यहां खत्म न हुई. इसके कुछ तीन साल बाद खुराना बर्लिन के एक कैफे में बैठे थे. अचानक उन्होंने अपने कंधे पर एक हाथ महसूस किया. ये अलेक्सांद्रे का हाथ था. अलेक्सांद्रे बैठे नहीं, उन्होंने खुराना के कान में बस इतना कहा, “हम दिसंबर 2001 को होने से रोक सकते थे”.
दरअसल अलेक्सांद्रे दिसंबर 2001 में आतंकियों द्वारा भारतीय संसद पर हमले की घटना के बारे में बात कर रहे थे. उससे कुछ वक्त पहले ही ये ऑपरेशन ख़त्म हुआ था. और संभव था कि अगर ऑपरेशन अजेलिया चालू रहता तो वक्त से पहले इस आतंकी हमले की जानकारी भारत को मिल सकती थी.
अब अंत में एक खास बात आपको बताते हैं जिसका जिक्र हमने पहले किया. शुरुआत में हमने कहा था कि इस बात के कयास लगाए जाते हैं कि जिस एनसटेशिया की यहां बात हो रही है. वो ब्लादिमीर पुतिन की गर्लफ्रेंड थीं. इस कयास के पीछे कुछ आधार भी है. मसलन हमने बताया था कि एनसटेशिया क्रेमलिन के एक टॉप अधिकारी से ख़ुफ़िया जानकारी निकाल रही थीं. यतीश यादव अपनी किताब में इस अधिकारी का कोड नेम अलेक्सी बताते हैं. अलेक्सी रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी FSB का टॉप अधिकारी था, जो 1999 में सरकार में ऊंचे पद पर पहुंचा और फिर 2000 में उससे भी ऊंचे पद पर बैठ गया. अलेक्सी की ये टाइमलाइन पुतिन से मेल खाती है. क्योंकि पुतिन भी 1999 में रूस के प्रधानमंत्री बने और 2000 में राष्ट्रपति नियुक्त हो गए थे. इससे पहले वो एक साल तक FSB के हेड भी रहे थे.
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