The Lallantop

बीच हवा प्लेन की छत उड़ी, पायलट ने कैसे बचाई 94 जानें?

बिना छत का प्लेन कैसे लैंड हुआ?

post-main-image
अलोहा फ्लाइट 243 की लैंडिंग इस कदर छतिग्रस्त प्लेन की लैंडिंग का पहला केस था (तस्वीर: Wikimedia Commons)

फ़र्ज़ कीजिए आप एक फ्लाइट में सवार हैं. बीच हवा में अचानक प्लेन को एक ज़ोर का झटका लगता है. कुछ टूटने की आवाज आती है. शायद कोई इमरजेंसी है. हड़बड़ाकर आप ऑक्सीजन मास्क पकड़ने के लिए हाथ उठाते हैं, जो ऐसी सिचुएशन में प्लेन की छत से अपने आप नीचे लटक जाता है. पता चलता है, ऑक्सीजन मास्क और प्लेन की छत दोनों गायब हो चुके हैं. अब आप हैं और आपके ऊपर खुला आसमान. हजारों फ़ीट की ऊंचाई पर सिर्फ एक सीट बेल्ट है, जो आपको हवा में उड़ने से बचाए हुए है. सोचिए ऐसी हालत में कितनी संभावना है कि आपकी जान बच सके. कल्पना में शायद नहीं. लेकिन फिर कहते हैं न, असलियत कभी-कभी कल्पना से ज्यादा विचित्र होती है. आज आपको सुनाएंगे 35 साल पहले घटी एक ऐसी घटना का किस्सा, जब बीच हवा में प्लेन की छत गायब हो गई. आगे क्या हुआ. चलिए जानते हैं. (Aloha Airlines Flight 243)

फ्लाइट ने उड़ान भरी 

नीचे दिख रहे नक़्शे पर नज़र डालिए. अमेरिका के दक्षिण पश्चिम में पैसिफिक समुद्र के बीचों-बीच एक द्वीपों की श्रृंखला है. ये द्वीप मिलकर हवाई कहलाते हैं. हवाई चूंकि छोटे-छोटे द्वीपों से बना है, इसलिए इन द्वीपों के बीच ट्रेवल करने का मुख्य साधन हवाई यात्रा है.

साल 1988 की बात है. 28 अप्रैल के रोज़ दोपहर डेढ़ बजे हवाई के हिलो इंटरनेशनल एयरपोर्ट से एक फ्लाइट टेक ऑफ करती है. अलोहा एयरलाइन्स की इस फ्लाइट का नंबर था, 243. ये एक बोइंग 737-200 सीरीज का विमान था, जिसकी मंजिल थी, होनोलुलु. हवाई की राजधानी. चूंकि ये महज 35 मिनट की फ्लाइट थी, इसलिए हर रोज़ दसियों बार ये विमान हवाई इस रुट पर यात्रा करता था. उस रोज़ ये उसकी सातवीं यात्रा थी.

Hawaii
हवाई द्वीपों की एक श्रृंखला है जिसे अमेरिका में राज्य का दर्ज़ा दिया गया (तस्वीर: google maps)

फ्लाइट के कैप्टन थे, 44 वर्षीय रॉबर्ट स्कॉर्न्सथाइमर और फर्स्ट ऑफिसर थीं, 36 वर्षीय मिमी टॉम्पकिन्स. दोनों ने बीच कुल 12 हजार घंटे प्लेन उड़ाने का अनुभव था. एक तीसरे शख्स का भी जिक्र जरूरी है. 58 वर्षीय फ्लाइट अटेंडेंट, क्लाराबेल लांसिंग. लांसिंग 38 साल से ये काम कर रही थीं. हवाई के अधिकतर लोग उन्हें पहचानते थे और प्यार से ‘CB’ कहकर बुलाते थे.

बहरहाल प्लेन ने उड़ान भरी और थोड़ी ही देर में 24 हजार फ़ीट की ऊंचाई पर पहुंच गया. पायलट और क्रू को मिलाकर कुल 95 लोग प्लेन में सवार थे. और सबको ड्रिंक आदि सर्व की जा रहीं थी. 1 बजकर 48 मिनट पर अचानक सबको एक जोर का झटका लगता है. जब तक यात्री संभलते, तब तक प्लेन की बॉडी, जिसे फ्यूसलेज कहा जाता है, उसका एक हिस्सा टूटकर हवा में उड़ चुका था. स्क्रीन में दिख रही तस्वीर से आपको स्थिति का ठीक ठीक अंदाज़ा लगेगा. प्लेन की पहली से छठी कतार तक छत और दीवारें गायब हो चुकी थीं.

24000 फीट की ऊंचाई और ऑक्सीजन गायब 

किसी फिल्म आदि में शायद आपने देखा हो. प्लेन में छेद होने की स्थिति में चीजें तेज़ी से बाहर की ओर खींचती है. यहां तो प्लेन की छत ही गायब हो चुकी थी. ऐसे में लोग बाहर की ओर खिंचने लगे. किस्मत थी कि उस समय सबने सीट बेल्ट बांधी हुई थी. आमतौर पर टेक ऑफ के बाद सीट बेल्ट उतार दी जाती है. लेकिन चूंकि ये सिर्फ 35 मिनट की यात्रा थी, इसलिए सीट बेल्ट हटाने को नहीं कहा गया. इस बात ने यात्रियों को आकाश में खींच लिए जाने से बचा लिया. लेकिन इतना काफी नहीं था. हजारों फ़ीट की ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी होती है. इसलिए उड़ान से पहले हर प्लेन को प्रेशराइज़ किया जाता है.

इस प्लेन में ये प्रेशर पूरी तरह गायब हो गया था. इमरजेंसी के लिए प्लेन में ऑक्सीजन मास्क होते हैं. ये प्लेन की छत में लगे होते हैं. सीट के ऊपर. लेकिन इस प्लेन की तो छत ही गायब हो चुकी थी. तो ऑक्सीजन मास्क कहां से होते! सेकेंडों के अंदर लोगों को सांस लेने में दिक्कत होने लगी. हालांकि ये भी सबसे बड़ी मुसीबत नहीं थी.

pilot and co pilot
पायलट बाएं और को-पायलट (दाएं) ने प्लेन को सुरक्षित लैंड करा लिया लेकिन फ्लाइट अटेंडेंट क्लाराबेल लांसिंग की मौत हो गई (तस्वीर: Maui 24/7)

प्लेन का कॉकपिट बचा हुआ था. जो बाकी प्लेन से सिर्फ प्लेन के फर्श के एक टुकड़े से जुड़ा हुआ था. लेकिन कॉकपिट का दरवाज़ा मलबे से बंद हो चुका था. यानी किसी को मालूम नहीं था कि अंदर कॉकपिट में क्या हाल हैं. पायलट और को पायलट सही सलामत हैं भी या नहीं? अगर नहीं तो 95 लोगों की मौत लगभग पक्की थी.

कॉकपिट के अंदर 

कुछ देर सम्भलने के बाद एक फ्लाइट अटेंडेंट ने लोगों से पूछना शुरू किया कि क्या उनमें से कोई प्लेन उड़ा सकता है. सबका जवाब था नहीं. यानी अब सिर्फ इस बात का आसरा था कि पायलट, को-पायलट ठीक हों. कुछ देर बाद लोगों ने महसूस किया कि प्लेन नीचे की ओर जा रहा है. लेकिन वो गिर नहीं रहा था. एक निश्चित गति से ऊंचाई कम हो रही थी, जिसका मतलब था कि कोई उसे उड़ा रहा था.

किस्मत से पायलट और को पायलट सही सलामत थे. उनके पास अपना ऑक्सीजन मास्क था. जिसे लगाकर वो सांस ले पा रहे थे. और किसी तरह प्लेन को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहे थे. कुछ मिनटों बाद वो प्लेन को 10 हजार फ़ीट की ऊंचाई तक ले आए, जिससे ऑक्सीजन की समस्या सॉल्व हो गयी. लेकन इस चक्कर में इतनी तेज़ी से फ्लाइट नीचे आई कि पहले से जर्जर प्लेन की बॉडी पर भयानक ज़ोर पड़ा और कॉकपिट वाला हिस्सा लगभग टेढ़ा हो गया. किसी भी वक्त वो बाकी प्लेन से टूटकर अलग हो सकता था.

एक यात्री ने बाद में बताया कि चढ़ते वक्त उसने प्लेन के दरवाज़े के पास एक क्रैक देखा था लेकिन उसने किसी से कहा नहीं (तस्वीर: Wikimedia Commons)

ये देखते हुए पायलट रॉबर्ट स्कॉर्न्सथाइमर ने उड़ान की कमान अपने हाथ में ले ली. और अपनी को-पायलट मिमी टॉम्पकिन्स से नजदीकी हवाई अड्डे से संपर्क करने को कहा. सबसे नजदीकी हवाई अड्डा था कहुलुई, जो मावी नाम के एक द्वीप पर पड़ता था. दिक्कत ये थी कि यहां पहुंचने के रास्ते में पहाड़ पड़ते थे. और प्लेन की हालत ऐसी न थी कि उसे पहाड़ों के ऊपर से ले जाया जा सके. एकमात्र तरीका था, प्लेन को पहाड़ों के बीच से ले जाना, जिसके लिए प्लेन को मोड़ने की जरुरत थी. पर मोड़ने में रिस्क बहुत होता. 

एकबारगी रॉबर्ट ने सोचा प्लेन को पानी पर लैंड करा दिया जाए. लेकिन टूटे हुए प्लेन को पानी में उतारने में खतरा ज्यादा था. इसलिए उन्होंने सब कुछ किस्मत के हाथ छोड़, प्लेन को मोड़ने का फैसला लिया. किस्मत ने साथ भी दिया और प्लेन मुड़ने के बाद भी किसी तरह उड़ता रहा.

इंजन गया 

इसी बीच 1 बजकर 58 मिनट पर को पायलट मिमी का संपर्क मावी हवाई अड्डे से हुआ. हवा इतनी तेज़ थी कि किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था. बड़ी मुश्किल से वो अपना एक सन्देश भेजने में काबिल हुईं, ”हम लैंडिंग के लिए इनबाउंड हैं”.

कुछ देर बाद एक बार फिर उनका कनेक्शन मावी हवाई अड्डे से हुआ. इस बार की बातचीत से ग्राउंड अधिकारियों को समझ आ गया कि मुसीबत काफी बड़ी है. उन्होंने रनवे को खाली कराया और तुरंत एम्बुलेंस के लिए फोन कर दिया. अभी भी बहुत कुछ किस्मत पर अटका हुआ था. प्लेन जब एयरपोर्ट के नजदीक पहुंचा अधिकारियों ने उसे दूरबीन से देखने की कोशिश की. जो दिखाई दिया, उस पर किसी को विश्वास नहीं हो रहा था. दूर से प्लेन ऐसा लग रहा था मानों किसी शार्क ने डॉल्फिन की पीठ का एक चिथड़ा काट कर निकाल लिया हो. उसकी नोक आगे की ओर झुकी हुई थी.

संविधान हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए कहता है. और विज्ञान के अनुसार चमत्कार जैसी कोई चीज नहीं होती. लेकिन उस रोज़ जो हो रहा था, उसके लिए कोई और शब्द खोजना मुश्किल था. प्लेन अभी भी उड़ रहा था. लेकिन कितनी देर तक उड़ता रह सकता था? पायलट ने इस सवाल की आज़माइश के लिए लैंडिंग गियर चेक किया. लेकिन प्लेन के आधे से ज्यादा सिस्टम ख़राब हो चुके थे. लैंडिंग गियर वाली लाइट में कोई हरकत न हुई. तभी नीचे से दूरबीन से देख रहे लोग काम आए.

aloha plane
इस हादसे में 8 लोगों को गंभीर चोट आई थी (तस्वीर: Maui 24/7)

उन्होंने वायरलेस पर बताया कि गियर खुल गया है. पायलट ने प्लेन तेज़ी से रनवे की ओर बढ़ा दिया. लेकिन फिर एक और मुसीबत सामने आ गई. प्लेन का लेफ्ट इंजन फेल हो चुका था. किस्मत मानों इम्तिहान लेने पर तुली थी. पायलट ने कोई चारा न देखते हुए प्लेन रनवे पर उतारा और किसी तरह घिसटते हुए वो रुक गया.

94 बच गए, एक शख्स की मौत  

इस हादसे में कुल 7 लोगों को गंभीर चोटें आईं. लगभग 60 लोग घायल हुए थे. उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया. लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि उनकी जान बच गई थी. वो आपस में गले मिलकर रो रहे थे. तभी किसी को अहसास हुआ कि प्लेन की फ्लाइट अटेंडेंट क्लाराबेल लांसिंग गायब हैं. कुछ लोगों ने बताया कि उन्होंने लांसिंग को हादसे से ठीक पहले केबिन में खड़े देखा था. आखिर में पता चला कि लांसिंग फ़्यूसलेज टूटते ही हवा में खींच ली गई थी. तीन दिन तक समुद्र में उन्हें खोजने की कोशिश की गयी. लेकिन उनका कभी कोई पता न चला. इस हादसे की वो इकलौती कैजुअल्टी रहीं.

प्लेन में हुआ इतना बड़ा हादसा किसी बड़ी लापरवाही की ओर इशारा करता था. इसलिए तहकीकात शुरू हुई. पता चला कि इसमें अलोहा, बोईंग और सरकार तीनों की गलती थी. बोईंग को पता था कि अलोहा के प्लेन अपनी उड़ान सीमा से आगे जा चुके हैं. वहीं अलोहा कम्पनी ने मेंटेनेंस में भारी कोताही बरती थी. कंपनी में एक ढंग का इंजीनियर भी न था, जो प्लेन की मरम्मत कर सके. हादसे के रोज़ भी एक यात्री ने प्लेन में घुसते हुए बॉडी में एक जगह क्रैक देखा था. लेकिन ये मानकर कि कंपनी को बेहतर पता होगा, उसने कुछ न कहा. आगे जाकर इस प्लेन हादसे पर कई डाक्यूमेंट्रीज़ और फ़िल्में भी बनी. आज भी इसे इतिहास की सबसे खुशकिस्मत प्लेन लैंडिंग माना जाता है.

वीडियो: तारीख: जब North Korea की ‘लेडी जासूस’ को पहली बार टीवी दिखाया गया!