दुनिया-ए-फानी में साल 1991. आया और गुजरा लेकिन अपनी छाप छोड़ गया. सोवियत संघ की दहलीज पर साम्यवाद अपनी आख़िरी सांसे गिन रहा था. वहीं अमेरिका ने स्वाहा बोलते हुए तेल के कुओं में एक और आहुति देते हुए इराक पर हमला कर दिया था. ये दुनिया का पहला युद्ध था, जिसमें युद्ध स्थल से सीधा लाइव टीवी ब्रॉडकास्ट हो रहा था. अमरीकी बॉम्बर विमानों में लगी तस्वीरों के चलते लोग इसे वीडियो गेम वॉर भी कहने लगे थे. लेकिन इस वीडियो गेम में खेलने वालों से ज्यादा नुकसान देखने वालों का हो रहा था. तेल के दाम अचानक आसमान छूने लगे थे.(1991 Economic Reforms)
1991 उदारीकरण: जब सब्जी काटने वाले चाकू से हुआ दिल का ऑपरेशन!
समाजवादी चिंतन से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले नरसिम्हा राव आर्थिक उदारीकरण के लिए कैसे तैयार हुए.
अपने यहां यानी भारत में पहले ही फॉरेन एक्सचेंज की किल्लत चल रही थी. तेल के दाम बढ़े तो अर्थव्यवस्था (1991 Economic Crisis) की कमर टूटने लगी. डॉलर की कमी के चलते सम्भव था कि हम अगली क़र्ज़ की किश्त पर डिफ़ॉल्ट कर जाते. स्वामी सुब्रमण्यम तब चंद्रशेखर सरकार में क़ानून मंत्री हुआ करते थे. वो बताते हैं कि जिन दिनों सरकार इस समस्या का हल ढूंढ रही थी. एक अमरीकी राजदूत उनसे मिलने के लिए आए. उन्होंने इराक युद्ध के लिए भारत से मदद मांगी.
खाड़ी युद्ध में अमरीकी विमान फिलीपींस से उड़ान भर रहे थे. इराक पहुंचने से पहले उन्हें एक बार रिफ्यूलिंग की जरुरत पड़ती थी. ऐसे में अमेरिकी राजदूत चाहते थे कि भारत अपनी जमीन प्लेन उतारने के लिए दे दे. इस काम के लिए अमेरिका 3 गुना कीमत देने को तैयार था. लेकिन सुब्रमण्यम स्वामी इतने में तैयार नहीं थे. उन्होंने राजदूत को बताया कि उन्हें तुरंत 2 बिलियन डॉलर्स की जरुरत है.
अमेरिका तब IMF में 87% वोटिंग राइट्स रखता था. सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि अगर अमेरिका भारत को दो बिलियन का लोन दिला दे तो उन्हें विमान उतारने के लिए जमीन मिल जाएगी. लोन तो मिल गया. लेकिन सरकार की दिक्कतें ख़त्म न हुई. फरवरी में बजट पेश होना था. इधर कांग्रेस जो सरकार को बाहर से समर्थन दे रही थी, उसने एक पूर्ण बजट का समर्थन करने से मना कर दिया. लिहाजा वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा को एक अंतरिम बजट पेश करना पड़ा.
यहां पढ़ें- स्वामी विवेकानंद ने क्यों कहा, भारत को धर्म की जरुरत नहीं!
नतीजा हुआ कि भारत की बांड रेटिंग और गिर गई. यानी भारत के लिए शार्ट टर्म लोन लेना और मुश्किल हो गया. IMF और वर्ल्ड बैंक ने भी आगे और मदद देने से इंकार कर दिया. उनकी शर्त थी कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था में नीतिगत बदलाव लाए. लेकिन ये लॉन्ग टर्म सॉल्यूशन था. पैसे की इतनी किल्लत थी कि सरकार को वो कदम उठाना पड़ा जो भारत में मध्यवर्ग का कोई भी परिवार ऐसी स्थिति में उठाता है.
इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार शंकर अय्यर ने उस रोज़ एक टिप मिलने पर एयरपोर्ट पहुंचे. उन्होंने देखा कि वहां एक जहाज पर लोडिंग हो रही थी. और पास में RBI की काफी सारी वैन खड़ी थीं. सिक्यॉरिटी भी बहुत थी. अफसरों ने उन्हें बताया कि इतनी सिक्यॉरिटी पहले कभी नहीं देखी गई. जब अंदर की बात निकली तो पता चला भारत सरकार सोना गिरवी रखने के लिए बाहर भेज रही थी.
राजीव गांधी की जासूसीदूसरी तरफ अर्थव्यस्था की इन दिक्कतों की बीच पॉलिटिक्स के खेल बदस्तूर जारी थे. उसी साल मार्च महीने में एक घटना हई. हरियाणा के दो पुलिसवाले राजीव गांधी के घर के बाहर चाय पीते पकड़े गए. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार जासूसी कर रही है. और उन्होंने सदन में अपना समर्थन वापिस ले लिया. सरकार गिर गई. नए चुनाव कराए गए. चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गांधी की हत्या हुई. और नेपथ्य में चल रहा एक राजनेता अचानक प्रधानमंत्री बन गया.
यहां पढ़ें- 1965 में लाहौर तक कैसे पहुंची भारतीय सेना?
नरसिम्हा राव की आत्मकथा लिखने वाले विनय सीतापति बताते हैं कि राव के राजनैतिक करियर को देखकर कहीं से पता नहीं न लगता था कि वो उदारीकरण जैसा कुछ सोच सकते हैं. उन्हें समाजवादी चिंतन से अपनी राजनीति की शुरुआत की थी. लेकिन जल्द ही समाजवादी चिंतन पर कागज़ का एक कतरा हावी होने वाला था. 21 जून, शपथ से दो दिन पहले कैबिनेट सेक्रेटरी नरेश चंद्र ने राव को एक नोट दिया. जयराम रमेश अपनी किताब, 'टू द ब्रिंक एंड बैक: इंडिया 1991 स्टोरी' में लिखते हैं कि नोट को देखकर राव के माथे पर बल पड़ने लगे थे. उन्होंने नोट देखते ही पूछा, “क्या हालत इतनी खराब है.”
तब कैबिनेट सेक्रेटरी ने उन्हें जवाब दिया, नहीं सर, इससे भी ज्यादा ख़राब है. राव ने मनमोहन सिंह को अपना वित्तमंत्री चुना और उन्हें इस समस्या से निपटने की जिम्मेदारी दी. जुलाई महीने से आर्थिक सुधारों के लिए पहले ठोस कदम की शुरुआत हुई.
प्रधानमंत्री की नींद गायब3 जुलाई की दरमियानी रात 7 रेस कोर्स रोड स्थित बंगले में राव बिस्तर पर करवट बदल रहे थे. देश के प्रधानमंत्री की नींदें उड़ा रखी थी रूपये ने. क्यों?
आर्थिक सुधारों के तहत मुद्रा का अवमूल्यन होना था. 1 जुलाई को रूपये की कीमत 7 % तक कम कर दी गई. यानी डॉलर के मुकाबले अब रुपया 7 % कमजोर हो गया था. लेकिन इतना ही काफी नहीं था. अभी तो रूपये को और जलील होना था. 3 जुलाई को रुपया और 11% गिराया जाना था. उसी सुबह यानी 3 जुलाई को प्रधानमंत्री आवास से एक कॉल गया. वित्त मंत्री के पास. नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह से कहा, 11% अवमूल्यन को अभी के लिए टाल दो.
साढ़े नौ बजे सिंह ने RBI के डिप्टी गवर्नर को कॉल कर ये बात बताई लेकिन तब तक चिड़िया दाना चुग चुकी थी. दो दिन में रूपये का मूल्य 18 % गिर गया. डॉक्टर सिंह बताते हैं कि उस रोज़ प्रधानमंत्री बहुत डरे हुए थे. इसलिए उन्होंने रूपये के अवमूल्यन की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की पेशकश की. लेकिन राव ने इस्तीफ़ा अस्वीकार कर दिया. इसके बाद अगला चरण था उस साल का बजट.
राव की बायोग्राफी ‘दि मैन हू रिमेड इंडिया’ में विनय सीतापति बताते हैं कि मनमोहन सिंह ने बजट का जो पहला ड्राफ्ट बनाया था, वो समाजवादी सरीखा था. प्रधानमंत्री ने इस ड्राफ्ट को पढ़ा. थोड़ी उदासी, थोड़ा गुस्से और थोड़े अफसोस के साथ मनमोहन सिंह से पूछा, ‘क्या मैंने तुम्हें इसलिए ही चुना था?’
मनमोहन दूसरा ड्राफ्ट तैयार करने में लग गए. युद्ध स्तर पर तैयारियां थी. सिंह ने तमाम मंत्रालयों के सचिवों की मीटिंग बुलाई. और अगले पांच साल के वित्तीय कार्यक्रम की रूपरेखा सामने रख दी. 6 हफ़्तों के भीतर उद्योग पॉलिसी में आमूलचूल बदलाव लाना था. डॉक्टर सिंह को मालूम था कि मीटिंग में मौजूद सभी लोग ऐसे बदलावों से सहमत न होंगे. उन्होंने कहा, मुझे प्रधानमंत्री का पूर्ण मैंडेट प्राप्त है. इसलिए अगर आप में से किसी को बदलाव से दिक्कत है, तो हम आपके लिए कोई दूसरा काम ढूंढ सकते हैं.
सारा ठीकरा मनमोहन सिंह के सर24 जुलाई को डॉक्टर सिंह ने बजट पेश किया. 18,650 शब्दों का ये भाषण आज तक का सबसे लम्बा बजट भाषण था. इस भक्षण में ममोहन सिंह कहते हैं, किसी ‘विचार’ का सही समय आ जाए तो फिर उसे कोई ताकत नहीं रोक सकती. बजट भाषण की कुछ मुख्य बिंदु देखिए,
आयात शुल्क को 300% से घटाकर 50% कर दिया.
सीमा शुक्ल को 220% से घटाकर 150% कर दिया.
आयात के लिए लाइसेंस प्रक्रिया को आसान बनाने का प्रावधान भी इस बजट में था.
बजट में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण यानी LPG (लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन) की बात की गई थी.
इस बजट को भारतीय इतिहास का सबसे क्रांतिकारी बजट माना जाता है. लेकिन तब भविष्य देखने की ताकत किसी में न थी. डॉक्टर मनमोहन सिंह बताते हैं कि खुद प्रधानमंत्री इन सुधारों को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं थे. मनमोहन सिंह ने उन्हें भरोसा दिलाने की कोशिश की तो राव ने मजाकिया लहजे में उनसे कहा,.
“अगर सब ठीक रहा तो हम इसका क्रेडिट मिलकर लेंगे. लेकिन अगर चीजें सही नहीं हुई तो मैं सारा ठीकरा तुम्हारे सर फोड़ दूंगा”
इसके अलावा विपक्ष ने भी संसद में खूब बवाल मचाया. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कहा,
“कुछ ऐसे ही ईस्ट इंडिया कंपनी भी भारत आई थी और अंततः देश गुलाम हो गया.”
इस पर प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव उन्हें बीच में टोकते हुए बोले-
चंद्रशेखर जी, मैंने तो आपके आदमी (मनमोहन सिंह) को ही वित्त मंत्री बनाया है. फिर आप क्यों आलोचना कर रहे हैं.
इस पर चंद्रशेखर ने नरसिम्हा राव को जवाब देते हुए कहा-
चित्रहार से सारेगामापा“नरसिम्हा राव जी, बात तो आपकी सही है लेकिन जिस चाकू को हम सब्जी काटने के लिए लाए थे, उससे आप हार्ट का ऑपरेशन कर रहे हैं.”
ऐसी तमाम प्रतिक्रियाएं गलत साबित हुईं. अर्थव्यवस्था के लिए अपनाई गई उदारीकरण की नीति सफल रही. गिरवी रखा गया देश का सोना साल के अंत तक वापस खरीद लिया गया. आंकड़ों की जबानी देखें तो 1991 में भारत की अर्थव्यवस्था 266 बिलियन डॉलर थी. वो अगले 30 सालों में 4 ट्रिलियन के आंकड़े को छूने लगी. उदारीकरण ने भारत के इतिहास को दो चरणों में बांट दिया. 1991 से पहले और उसके बाद. अर्थशास्त्री उदारीकरण को लेकर अलग-अलग विश्लेषण देते हैं. लेकिन इस परदे को क्रॉस करने वाले किसी आम आदमी से पूछेंगे तो वो आपको चार चीजें गिनाएगा.
पहली चीज- केबल टीवी- दूरदर्शन पर चित्रहार का इंतज़ार करने वाले आदमी अब जी टीवी पर सारेगामापा देख सकता था.
दूसरी चीज फोन, जो धीरे-धीरे आम उपयोग की चीज बन गए.
तीसरी चीज सरकारी बैंकों की लाइन में आई कमी. प्राइवेट बैंक खुले.
और चौथी चीज- जेट एयरवेज़ और सहारा एयरलाइंस की आमद से आम आदमी का प्लेन में उड़ने का सपना साकार हो पाया. लेकिन उदारीकरण से जो असली उड़ान मिली, वो थी आम आदमी के सपनों की. वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई बताते हैं कि बजट ने बाकी सभी चीजों के इतर सबसे बड़ा काम ये किया था कि उसने लोगों के मन को आजाद कर दिया था.
वीडियो देखें- त्रिपुरा को भारत में जोड़ने से रोकने के लिए किसने रचा षड्यंत्र?