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एक भारतीय की मदद से तानाशाह ने लूट डाले 20 हजार करोड़!

8 जून 1998 को नाइजीरिया के तानाशाह सनी अबाचा की मौत हो गई थी. बाद में पता चला कि अबाचा ने हजारों करोड़ की रकम देश से लूटकर विदेश भिजवा दी थी और इस काम में अबाचा की मदद की थी एक भारतीय बिजनेसमैन ने

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नाइजीरिया के तानाशाह सनी अबाचा ने एक भारतीय बिजनेसमैन की मदद से पांच साल के शासन में देश के हजारों करोड़ लूट डाले (तस्वीर: Getty)

जेनेवा, स्विटज़रलैंड में रहने वाले एनरिको मॉनफ्रीनि वकालत का काम किया करते थे. साल 1999, सितम्बर महीने की बात है. उस रोज़ मॉनफ्रीनि के घर एक कॉल आया. कॉल के दूसरी तरफ नाइजीरिया की सरकार का एक उच्च अधिकारी था. जो मॉनफ्रीनि को आधी रात कॉल कर होटल में मिलने बुला रहा था. मॉनफ्रीनि को मुलाक़ात की वजह तो समझ नहीं आई. लेकिन उन्होंने कई साल नाइजीरिया में कॉफ़ी और कोको के धंधों से जुड़े लोगों के साथ काम किया था. इसलिए उन्हें लगा कि जरूर इसी से जुड़ा कोई मसला होगा. 

होटल जब मॉनफ्रीनि और नाइजीरियन अधिकारी की मुलाक़ात हुई. तो अधिकारी ने बताया कि उसे खुद नाइजीरिया के राष्ट्रपति, ओलुसेगुन ओबासंजो ने एक ख़ास काम के लिए जेनेवा भेजा है. क्या था वो ख़ास काम? एक खोए हुए खजाने का पता लगाना था. जो असल में खजाना न होकर नाइजीरिया से लूटा गया माल था. कीमत थी लगभग 19250 करोड़ रूपये. इस माल को लूटने वाला और कोई नहीं, नाइजीरिया का ही एक पूर्व राष्ट्राध्यक्ष था. 

अब सवाल ये कि इस सब का भारत से क्या लेना देना. दरअसल जिस शख्स के जरिए नाइजीरिया से लूटी गयी रकम विदेश पहुंची थी, वो एक भारतीय था. पैसों को स्विस बैंकों समेत दुनिया भर के टैक्स हैवन्स में छुपा कर रखा गया था. और नाइजीरिया सरकार चाहती कि कैसे भी करके ये पैसा देश में वापस लाया जाए. 

नाइजीरिया में तख्तापलट 

इस कहानी की शुरुआत होती है 1993 से. 12 जून, 1993 को नाइजीरिया में इलेक्शन हुए. ये इलेक्शन सालों की मिलिट्री डिक्टेटरशिप से बाहर निकलने के लिए हुए थे. लेकिन इलेक्शन में इस कदर धांधली हुई कि इलेक्शन कमीशन ने रिजल्ट ही नहीं डिक्लेयर किया. अंततः एक अंतरिम सरकार बनाई गई. अर्नेस्ट शोनेकान राष्ट्रपति नियुक्त हुए. देश की माली हालत ख़राब थी. वर्ल्ड बैंक ने नाइजीरिया के 20 सबसे गरीब देशों की सूची में डाल रखा था. वो भी तब, जब नाइजीरिया में तेल के अकूत भण्डार थे. तेल से सारे देश की इकॉनमी चलती थी. लेकिन भ्रष्टाचार ने गत ख़राब करके रखी थी.

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सानी अबाचा ने नाइजीरिया पर 5 साल तक शासन किया (तस्वीर: नाइजीरियन गवर्नमेंट)

देश की इकॉनमी को उठाने के लिए अंतरिम सरकार ने कुछ कठिन निर्णय लिए. वर्ल्ड बैंक और IMF से लोन की बात हुई. लेकिन IMF की शर्त थी कि देश में लागू सब्सिडी हटाई जाएं. तेल के दाम रातों रात 700 % बढ़ गए. इसके चलते देश भर में विरोध प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया.
 
देश में राजनैतिक अस्थिरता दिनों दिन बढ़ रही थी. ऐसे में एक शख्स ने सोचा, परिस्थियों का फायदा उठाकर क्यों न सालों का पसरा अरमान पूरा किया जाए.   
जनरल सनी अबाचा 1993 तक देश के रक्षा मंत्री रहे थे. उससे पहले वो चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. नवम्बर महीने में अबाचा ने तख्तापलट करते हुए अंतरिम सरकार को बर्खास्त कर दिया. और नाइजीरिया में मिलिट्री रूल की शुरुआत ही गई. हालांकि ये शुरुआत नहीं, दशकों से चले आ रहे मिलिट्री रूल के सिलसिले में एक नई कड़ी भर थी.
 
इससे पहले भी नाइजीरिया में दो बार तख्तापलट हो चुके थे. और इन दोनों में भी अबाचा का ही हाथ था. हालांकि तब अबाचा मिलिट्री हायरार्की में नीचे थे इसलिए सत्ता उनके हाथ नहीं आई थी. लेकिन 1993 में अबाचा का मुकाबला करने वाला कोई नहीं था. अबाचा ने सरकार को भंग कर एक क़ानून बनाया. 

जिसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी. साथ में एक और क़ानून बना. जिसके तहत किसी को भी बिना कारण 3 महीने जेल में डाला जा सकता था. इसके बाद अबाचा ने एक पर्सनल सिक्योरिटी फ़ोर्स खड़ी की. 3000 लोगों को ट्रेनिंग के लिए नार्थ कोरिया भेजा गया. जिनके सहारे कुछ ही महीनों में उन्होंने नाइजीरिया पर एकछत्र राज स्थापित कर लिया.

नाइजीरिया को कॉमनवेल्थ से बाहर निकाला गया  

शुरुआत में मिलिट्री डिक्टेटरशिप के फायदे भी हुए. अबाचा के दौर में नाइजीरिया का फॉरेन एक्सचेंज 494 मिलियन डॉलर से बढ़कर 9.6 बिलियन डॉलर हो गया. मुख्य शहरों में रोड और ब्रिज बनाने का काम तेज़ी से पूरा होने लगा. अबाचा ने जब सत्ता संभाली तब इन्फ्लेशन 54% था. कुछ ही सालों में ये गिरकर 8% के आसपास पहुंच गया. 

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अर्नेस्ट शोनेकान (तस्वीर: Getty)

ये वो फायदे थे जिनके एवज में लोग अपनी आजादी गिरवी रखने को तैयार हो जाते हैं. ऐसा हुआ भी. देश में बोलने की, सवाल और जवाब करने की आजादी ख़त्म हो गई. अबाचा के खिलाफ जिसने भी आवाज उठाई उसे जेल में ठूस दिया गया. और जो एक बार जेल गया वो कभी जिन्दा बाहर लौटकर नहीं आया.
 
इसके बाद बारी आई अल्पसंख्यकों की. ओगोनि लोग नाइजीरिया में अल्पसंख्यक माने जाते हैं. नाइजर डेल्टा में रहने वाले इन लोगों की जमीन के नीचे ही सारा तेल था. अबाचा के काल में इन लोगों की जमीन का खूब दोहन हुआ. इन लोगों की प्राकृतिक सम्पदा को तो लूटा गया ही. साथ ही पेट्रोलियम निकलने में जो वेस्ट पैदा हुआ, उसने अल्पसंख्यक इलाकों में रहने के हालत बदतर कर डाले.
 
केन सारो-वीवा नाम के एक ओगोनि लेखक ने अबाचा के खिलाफ खूब आवाज उठाई. नतीजे में साल 1995 में केन सारो-वीवा पर झूठे इल्जाम लगाकर उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया. इस स्टेट स्पांसर्ड हत्या ने अंतर्राष्ट्रीय जगह में इतना हो हल्ला मचाया कि साल 1995 में नाइजीरिया को कामनवेल्थ देशों से 3 साल के लिए बाहर कर दिया गया. हालांकि जैसा की आम तौर पर होता है, पश्चिम के देश तेल के इस खेल में बराबर शरीक थे. नाइजीरिया से तेल निकालने का ठेका ब्रिटिश तेल कंपनी रॉयल डच शेल को मिला था. जो तेल के कारोबार में फायदा देख अबाचा के सारे काले कारनामों से नजर फेरे हुई थी. 

सनी अबाचा की मौत 

5 साल नाइजीरिया पर राज करने के बाद 1998 में अबाचा तानाशाही का अंत हुआ. आज ही की यानी 8 जून की तारीख थी. राजधानी अबुजा के प्रेसिडेंशियल पैलेस से खबर आई कि अबाचा की मृत्यु हो गयी है. मुस्लिम रिवाजों से उसी दिन डेड बॉडी को दफना दिया गया. कोई ऑटोप्सी भी नहीं हुई. सरकारी तौर पर इस हार्ट अटैक से हुई मृत्यु माना गया. US इंटेलिजेंस तहक़ीक़ात में बाद में सामने आया था कि अबाचा को जहर दिया गया था.

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केन सारो-वीवा (तस्वीर: Getty)

इस केस में नाम आया इज़राएल की ख़ूफ़िया एजेन्सी मोसाद का. आबचा की मौत से कुछ महीने पहले यासर अराफात ने नाइजीरिया का दौरा किया था. उनके साथ में एक इज़राएली अधिकारी भी था. अंदेशा लगाया गया कि वहीं से अबाचा को एक धीमा ज़हर दे दिया था.
 
बहरहाल अबाचा की मौत के बाद देश में लोकतंत्र दोबारा खड़ा हुआ. नई सरकार बनी. सबसे पहले अबाचा के काले कारनामों की तहक़ीक़ात शुरू हुई. तब सामने आया लगभग 20 हज़ार करोड़ का घोटाला. जो अबाचा के शासन में हुआ था. इसे अबाचा लूट का नाम दिया गया. 
 
जांच में सामने आया कि अबाचा ने साल 1998 में सत्ता हस्तांतरण का प्लान बना रखा था. जिसके बाद संभवतः वो विदेश भाग जाते. और विदेशों में जमा अपनी काली कमाई को भोगते. लेकिन उससे पहले ही अबाचा की मौत हो गयी. अब जानते हैं कि अबाचा ने 20 हजार करोड़ की रकम इकठ्ठा कैसे की थी. 

भोजवानी की मदद से नाइजीरिया को लूटा 

सत्ता में आते ही अबाचा ने विदेशी कम्पनियों को देश में काम करने के एवज़ में उगाही शुरू की. इसके बाद भी लालच पूरा ना हुआ तो उन्होंने ने नई स्कीम निकाली. जिसका तरीक़ा कुछ यूं था-
आबचा के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर नेशनल सिक्योरिटी के नाम पर अबाचा के पास एक फंडिंग का मसौदा भेजते. अबाचा तुरंत उसे अप्र्रूव कर देते. इसके बाद ये अप्रूवल जाता नाइजीरिया के सेन्ट्रल बैंक के पास. वहां से ट्रकों भर कैश निकाला जाता. और सीधे अबाचा के घर पहुंचा दिया जाता. 

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एनरिको मॉनफ्रीनि (तस्वीर: Getty)

यहां से कहानी में एंट्री होती है राज अर्जनदास भोजवानी की. एक भारतीय बिज़नेसमैन जो नाइजीरिया के सबसे बड़े शहर लागोस में ट्रक का कारोबार करते थे. अबाचा नेशनल सिक्योरिटी के जो रक़म अप्रूव करते, उससे सामान की ख़रीद फ़रोख़्त भी दिखाई जानी होती थी. और यहीं पर काम आता था भोजवानी का ट्रक का धंधा. 
 
1996 -97 के बीच अबाचा ने भोजवानी को टाटा ट्रकों की डिलवरी के कई कॉन्ट्रैक्ट दिए. ये कॉन्ट्रैक्ट बाजार से कहीं ऊंची कीमत पर दिए जाते. इससे भोजवानी को काफ़ी फ़ायदा होता. इसके एवज़ में वो ट्रक की क़ीमत का एक हिस्सा निकालकर विदेशों में अबाचा के अकाउंट में जमा कर देते. इसके लिए इस्तेमाल होता बैंक ऑफ़ इंडिया की एक विदेशी ब्रांच का. जो फ्रांस और UK के बीच स्थित जर्सी आयलैंड में थी. 
 
जर्सी यूं तो ब्रिटिश क्राउन डिपेंडेंट इलाक़ा है. लेकिन यहां एक स्वायत्त सरकार और अपने अलग नियम क़ानून है. इसलिए UK के क़ानून जर्सी में लागू नहीं होते. जिसके चलते ये आयलैंड एक टैक्स हेवन के तौर पर देखा जाता है. भोजवानी ने अबाचा के नाम पर नाइजीरिया से लूटी रकम का एक बड़ा हिस्सा जर्सी में छुपाकर रखा था. 

भोजवानी की गिरफ्तारी और जेल 

स्विस बैंक और जर्सी स्थित बैंक प्राइवेसी के चलते इस रकम का खुलासा नहीं कर सकते थे. इसलिए साल 1999 में नाइजीरिया सरकार ने एनरिको मॉनफ्रीनि नाम के एक स्विस वकील से मदद मांगी. बदले में मॉनफ्रीनि को वापस लाई गयी रकम का 4% मिलता. 
 
काफी कोशिश के बाद मॉनफ्रीनि अबाचा के अकाउंट्स की डिटेल निकलवा पाए. इसी तहकीकात के दौरान साल 2007 में राज अर्जनदास भोजवानी का नाम भी आया. फरवरी 2007 में भोजवानी को तब गिरफ्तार कर लिया गया जब वो अमेरिका जाने के लिए एक प्लेन में सवार होने वाले थे. जर्सी में मनी लॉन्डरिंग का केस चला. भोजवानी भारतीय नागरिक थे. इसलिए उनकी बेटी ने भारत सरकार से मदद की मांग की. पूर्व क़ानून मंत्री जेठमलानी भी भोजवानी के समर्थन में आए.  
लेकिन सरकार के हाथ बंधे हुए थे. 

जर्सी का लीगल सिस्टम ब्रिटिश जूरिस्डिक्शन के अंदर नहीं आता था. और जर्सी और भारत के बीच ऐसी कोई ट्रीट्री भी नहीं थी कि भारत सरकार इस केस में वकील भेजती या कोई मदद पाती.  
साल 2010 में इस केस में भोजवानी को 8 साल की सजा हुई, जिसे बाद में घटाकर 6 साल कर दिया गया. जर्सी आइलैंड में जमा रकम भी नाइजीरिया को लौटा दी गई. इसके अलावा स्विस बैंकों में जमा हजारों करोड़ की रकम भी नाइजीरिया लौटा दी गयी. 


साल 2004 में जारी हुए एक लिस्ट के अनुसार देश लूटकर अपना खजाना भरने वालों की सूची में अबाचा परिवार का नाम चौथे स्थान पर था. नाइजीरिया सरकार मानती है कि अभी भी हजारों करोड़ों की रकम अबाचा के नाम पर विदेशी बैंकों में जमा है और नाइजीरिया आज भी दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक बना हुआ है.

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