15 दिसंबर, 1987. दक्षिण कोरिया (South Korea)की राजधानी सियोल (Seoul) के गिम्पो इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर एक विमान लैंड हुआ. सुरक्षा घेरे में एक लड़की उसमें से उतरी. उसके मुंह पर टेप बंधा हुआ था. मायूमी हाचिया नाम की ये लड़की फ़र्ज़ी पासपोर्ट मामले में पकड़ी गई थी. और बार-बार खुद को जापानी नागरिक बता रही थी. हालांकि सुरक्षा एजंसियों का शक कुछ और था. कई हफ्ते बाद एक रोज़ असलियत सामने आई. कैसे?
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एक टीवी से. मायूमी हाचिया को जेल में टीवी दिखाया गया, जिसमें उसने पहली बार सियोल को देखा. और पाया कि जिसे वो भूखे नंगो का देश समझती थी, वो कहीं ज्यादा विकसित है. इसके बाद उसने अधिकारियों को पूरी कहानी बताने का फैसला किया. जो कहानी सामने आई, उसने पूरे दक्षिण कोरिया को हिलाकर रख दिया. मायूमी हाचिया असल में जासूस थी. जिसे उत्तर कोरिया (North Korea) के तानाशाह किम इल संग (Kim Il Sung) के शहजादे किम जोंग इल (Kim Jong Il)ने भेजा था. क्या थी पूरी कहानी, चलिए जानते हैं.
प्लेन में बम विस्फोट29 नवंबर, 1987. इराक की राजधानी बगदाद से सियोल के लिए एक फ्लाइट टेक ऑफ करती है. नंबर था 858. फ्लाइट में पायलट और क्रू मिलाकर कुल 115 लोग सवार थे. ये सारे लोग दक्षिण कोरियाई थे. सिर्फ दो यात्रियों को छोड़कर, जिनमें से एक भारतीय था. दोपहर के लगभग दो बजे जब प्लेन बर्मा के पूर्वी छोर में अंडमान समुद्र के ऊपर उड़ रहा था, तब उसमें एक जोरदार ब्लास्ट हुआ और विमान के परखच्चे उड़ गए. विमान में मौजूद सभी लोगों की मौत हो गई. जैसे ही ये खबर दक्षिण कोरिया पहुंची, पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई.
अधिकारियों को शक था कि ये जरूर कोई आतंकी हमला है. लेकिन सवाल था कि जांच की शुरुआत हो कहां से? इसी पर सोच विचार चल रहा था कि बहरीन से एक खबर आई. बहरीन मध्य पूर्व का एक देश है, जो क़तर और सऊदी अरब के बीच में पड़ता है. पता चला कि वहां एयरपोर्ट पर दो लोगों को पकड़ा गया है. एक आदमी और एक औरत. दोनों फ़र्ज़ी पासपोर्ट से ट्रेवल कर रहे थे. दोनों खुद को जापानी बता रहे थे लेकिन अधिकारियों को शक था कि वो उत्तर कोरियाई नागरिक हैं. उत्तर कोरिया दक्षिण कोरिया का कट्टर दुश्मन था. और प्लेन हमले के लिए शक की सुई भी उसी की तरफ थी.
इसलिए बहरीन में जैसे ही उन दो लोगों पर उत्तर कोरियाई नागरिक होने का शक हुआ, ये खबर तुरंत दक्षिण कोरिया तक पहुंचाई गई. दक्षिण कोरिया की सरकार ने दोनों को सियोल भेजने की मांग की. लेकिन इससे पहले कि ऐसा हो पाता, दोनों ने साइनाइड से भरी एक सिगरेट चबा डाली. आदमी की मौके पर ही मौत हो गई. जबकि लड़की को अस्पताल में किसी तरह बचा लिया गया. और बाद में उसे सियोल भेज दिया गया.
टीवी ने खोली सच्चाईसियोल में भी वो बार-बार खुद को जापानी नागरिक बताती रही. उसने अपना नाम मायूमी हाचिया बताया. लेकिन अधिकारियों को उसकी बात पर विश्वास न था. वजह? उसके पास से मिली सिगरेट. ये खास सिगरेट थी, जिन्हें उत्तर कोरियाई एजेंट पीते थे. ऐसे कई एजेंट पहले भी गिरफ्तार हो चुके थे. और उनके पास से ऐसी ही सिगरेट बरामद हुई थी.
मायूमी हाचिया को जेल में डालकर एक हफ्ते तक पूछताछ की गई. लेकिन वो मुंह खोलने को तैयार न हुई, तब अधिकारियों ने एक तरकीब लगाई. जेल में मायूमी के पास एक टीवी लाया गया. उसमें उसे सियोल के लोकल न्यूज़ चैनल दिखाए गए. इसके बाद मायूमी के व्यवहार में धीरे-धीरे बदलाव आने लगा. वो नर्म पड़ने लगी. और एक रोज़ अधिकारियों को बुलाकर उसने कहा कि वो पूरी असलियत बताने को तैयार है.
सबसे पहले उसने अपना असली नाम बताया- किम-ह्यों हुई. वो एक जासूस थी जिसे एक स्पेशल मिशन पर भेजा गया थी. किम के अनुसार उत्तर कोरिया में उसे बताया गया था कि दक्षिण कोरिया भूखे नंगो का देश है. और वहां के लोग आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे हैं. जब पहली बार उसने टीवी पर सियोल को देखा, उसे अहसास हुआ कि उससे सब झूठ बोला गया था. और इसीलिए वो सच बताने को तैयार हो गई थी. इसके बाद किम ने अपनी पूरी कहानी सुनाई.
नार्थ कोरिया ने कैसे बनाया जासूसकिम का जन्म उत्तर कोरिया में हुआ था. यहां वो अपने परिवार के साथ राजधानी प्योंगयांग में रहा करती थी. कॉलेज में पढ़ने के दौरान एक रोज़ उसे नार्थ कोरिया की इंटेलिजेंस कम्पनी से एक ऑफर मिला. देश के लिए काम करने का ऑफर. उसे ट्रेनिंग दी गई. जासूसी के गुर सिखाए गए. मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग दी गई. साथ ही जापानी भाषा भी सिखाई गई ताकि वो अपनी पहचान बदल सके. किम ने बताया कि उसे जापानी सिखाने के लिए खास जापान से लोगों को किडनैप कर लाया गया था. इन सबके अलावा उसे प्रोपोगेंडा फ़िल्में भी दिखाई जाती थीं. क्या था इन फिल्मों में?
इनमें उत्तर कोरिया के तानाशाह किम इल संग और उसके बेटे किम जोंग इल को भगवान बताया गया था. और भी कई बाते थीं, जैसे, जिस रोज़ किम इल संग पैदा हुआ उस रोज़ दो इंद्रधनुष निकले थे. उसने 6 साल की उम्र में डेढ़ हजार किताबें लिख डाली थी. और ये कि उसे टॉयलेट पॉटी करने की जरुरत भी नहीं थी. उत्तर कोरिया के दुश्मन देशों के बारे में बताया जाता था कि वो क्रूर सामंतवादी देश हैं. दक्षिण कोरिया के बारे में सिखाया जाता था कि वहां लोग भूख से मर रहे हैं. इस तरह कुल 7 सालों तक उसकी ट्रेनिंग चली.
साल 1987 में उसे एक मिशन के लिए बुलाया गया. किम से कहा गया कि ये आदेश सीधे किम जोंग इल से आया है. मिशन के लिए उसका एक फ़र्ज़ी पासपोर्ट बनाया गया. उसे नया नाम दिया गया. इस मिशन में एक और शख्स को उसके साथ जाना था. दोनों पहले सोवियत संघ की राजधानी मॉस्को भेजे गए. वहां से युगोस्लाविया. यहां दो लोगों ने उन्हें एक बक्सा दिया. जो असल में एक टाइम बम था. यहां से दोनों सीधे बगदाद पहुंचे और दक्षिण कोरिया जाने वाली फ्लाइट में चढ़ गए.
ओलिम्पिक खेलों की जलनकिम ने बम अपनी सीट के ऊपर बैगेज स्टोरेज में रख दिया. फ्लाइट को सियोल जाने से पहले अबु धाबी एयरपोर्ट पर रुकना था. यहां दोनों फ्लाइट से उतर गए. प्लेन आगे सियोल की तरफ उड़ा और कुछ घंटे बाद उसमें विस्फोट हो गया. प्लान के अनुसार किम और उसके साथी को अबु धाबी से जॉर्डन की फ्लाइट पकड़नी थी. लेकिन एयर पोर्ट स्टाफ ने उनके वीज़ा में कुछ दिक्कत बताते हुए जॉर्डन वाली फ्लाइट में चढ़ने से रोक दिया. इसके बाद दोनों ने तय किया कि वो बहरीन के रास्ते रोम और वहां से फिर उत्तर कोरिया चले जाएंगे. लेकिन ऐसा होता, इससे पहले ही बहरीन में अधिकारियों को उन पर शक हो गया और दोनों को वहीं रोक लिया गया.
दोनों ने सुरक्षा कर्मियों पर हमला किया. और जब लगा कि बचने का कोई रास्ता नहीं है, दोनों ने जेब से एक सिगरेट निकाल कर उसमें दांत गड़ा दिए. सिगरेट में साइनाइड था. जिससे किम के पार्टनर की मौके पर ही मौत हो गयी. लेकिन किम को बचा लिया गया. और उसे सियोल भेज दिया गया. सियोल जाते हुए उसके मुंह पर टेप बांधा हुआ था. ताकि वो फिर साइनाइड की गोली निगलने की कोशिश न कर सके. किम ने ये सब खुलासे किए, लेकिन एक बात अभी तक साफ़ नहीं हुई थी कि ये हमला हुआ क्यों था?
दक्षिण और उत्तर कोरिया में दुश्मनी जगजाहिर थी. लेकिन ऐसा आतंकी हमला पहली बार किया गया था. बाद में पता चला कि इसकी वजह थी 1988 में होने वाले ओलंपिक्स, जिनकी मेजबानी के लिए सियोल को चुना गया था. किम जोंग इल तक जब ये खबर पहुंची, वो आगबबूला हो गया. और तब उसने ओलिम्पिक खेलों में खलल डालने के लिए ये योजना बनाई. दक्षिण कोरियाई प्लेन को निशाना बनाया गया ताकि सियोल आने वाले अंतराष्ट्रीय पर्यटकों के मन में डर बैठ जाए.
115 लोगों की जान लेने वाली को माफ़ कर दियाकिम जोंग का हमला सफल रहा लेकिन इसी चक्कर में उसकी जासूस भी पकड़ी गई. इस जासूस ने उत्तर कोरिया को लेकर कई खुलासे किए. मसलन ये कि उत्तर कोरिया न्यूक्लियर हथियार हासिल करने की कोशिश कर रहा था. साथ ही उसने बताया कि 1980 के दशक में जापान के कई लोग किम जोंग इल के इशारे पर किडनैप कर लाए गए थे. जिन्हें उत्तर कोरिया में इंडस्ट्री लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाना था. हालांकि बाद में उन्हें जासूसों को जापानी तौर तरीकों में ट्रेन करने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा.
किम-ह्यों हुई एक आतंकी थी. उसने 115 लोगों की हत्या की थी. उस पर मुक़दमा चला. मुक़दमे के दौरान उसने अपनी गलती मानते हुए कहा, “मुझे 100 बार मृत्युदंड दिया जाए तो भी कम है.”. अदालत ने भी उसे दोषी मानते हुए मृत्युदंड दिया. लेकिन फिर दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने उसकी सजा माफ़ कर दी. ये कहते हुए कि उसका माइंड वॉश कर बरगलाया गया था. और इस दौरान उसका खुद पर कोई नियंत्रण नहीं था.
आगे जाकर किम-ह्यों ने ‘द टीयर्स ऑफ माय सोल’ नाम से अपनी आत्मकथा लिखी. जिससे मिली सारी कमाई उसने फ्लाइट 858 में मारे गए लोगों के परिवार जनों को दे दी. उसने खुद उनसे मिलकर माफी भी मांगी. इस दौरान उसने रोते हुए कहा, ‘मारे गए लोगों के परिवार जनों से मिलकर मुझे अपने परिवार की याद आई. लेकिन जहां तक संभव है मेरे परिवार को उत्तर कोरिया की सरकार ने मार डाला होगा. किम-ह्यों हुई जिन्दा हैं. उनकी उम्र 61 वर्ष है. समय-समय पर वो टीवी इंटरव्यू देती हैं. लेकिन उनके रहने का स्थान आदि बातें आज भी गोपनीय रखी गई है. शायद इसलिए कि किम को डर है उत्तर कोरिया की सरकार मौका मिलते ही उनकी जान ले लेगी.
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