स्कॉटलैंड का बारमोरल कैसल. ब्रिटेन की महरानी एलिज़ाबेथ(Queen Elizabeth II) जब तक जीवित रहीं, छुट्टियों में यही उनका आवास हुआ करता था. एक रोज़ की बात है. बारमोरल कैसल के बाहर एलिज़ाबेथ सैर पर निकली थीं. उनके साथ उनकी सुरक्षा के लिए चल रहे थे रिचर्ड ग्रिफिन. एलिज़ाबेथ की आदत थी चलते फिरते जो लोग मिलें, उन्हें हेलो कहने की. सो उस रोज़ जब दो अमेरिकी टूरिस्ट उसी रस्ते पर घूमते हुए उन्हें मिले, एलिज़ाबेथ ने उनका अभिवादन किया. हेलो सुनकर दोनों रुक गए. बातचीत शुरू हो गई. उनकी बातों से साफ़ था कि उन्हें नहीं पता कि सामने ब्रिटेन की महारानी है. इसके बाद वो पूछते हैं,
जब ब्रिटेन की रानी को इंदिरा के आगे झुकना पड़ा!
ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने तीन बार भारत का दौरा किया. साल 1961, 1983 और 1997 में वो भारत की मेहमान बनी.
"आप कहां रहती हैं?"
एलिज़ाबेथ जवाब देती हैं,
"यूं तो मैं लन्दन में रहती हूं लेकिन यहीं पास में मेरा समर होम है. मैं पिछले 80 सालों से यहां घूमने आ रही हूं."
ये सुनकर उनमें से एक ने कहा,
"80 सालों से! तब तो आप क्वीन से मिली होंगी?"
एलिज़ाबेथ मुस्कुराते हुए कहती हैं,
"नहीं, मैं तो नहीं मिली. लेकिन रिचर्ड उनसे कई बार मिले हैं."
दोनों रिचर्ड ग्रिफिन की और मुख़ातिब होकर पूछते हैं,
“महारानी असल जिंदगी में कैसी हैं?”
ग्रिफिन मुस्कुराते हुए जवाब देते हैं,
"थोड़ी खड़ूस हैं, लेकिन उनका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर गज़ब का है."
ये सुनकर दोनों एलिज़ाबेथ को अपना कैमरा पकड़ाकर रिचर्ड के साथ एक तस्वीर लेने को कहते हैं. एक तस्वीर एलिज़ाबेथ के साथ भी ली जाती है. और, फिर दोनों अपने अपने रस्ते चले जाते हैं. एलिज़ाबेथ रिचर्ड से कहती हैं,
"काश कि जब ये दोनों अपने दोस्तों को ये तस्वीरें दिखाएंगे, मैं वहां मौजूद होती."
आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी
महारानी एलिज़ाबेथ ने 6 फरवरी, 1952 के रोज़ ब्रिटेन की गद्दी संभाली थी. इसके करीब 9 साल बाद 1961 में उन्होंने भारत का दौरा किया। इसके बाद 1983 और 1997 में एलिज़ाबेथ दो और बार भारत के दौरे पर आईं.
यह तो नई-नई दिल्ली है, दिल में इसे उतार लो
एक बात कह दूं मलका, थोड़ी-सी लाज उधार लो
बापू को मत छेड़ो, अपने पुरखों से उपहार लो
जय ब्रिटेन की जय हो इस कलिकाल की!
आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी!
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की!
यही हुई है राय जवाहरलाल की!
ये शब्द थे बाबा नागार्जुन के. जो उन्होंने लिखे जब महारानी एलिज़ाबेथ पहली बार भारत दौरे पर आई(Queen Elizabeth's India Visit). साल था 1961. जनवरी का महीना. दिल्ली में जिस रोज़ एलिज़ाबेथ का प्लेन उतरा, हवाई अड्डे से राष्ट्रपति भवन तक भीड़ उन्हें देखने के लिए लाइन लगाकर खड़ी थी. एलिज़ाबेथ के साथ उनके पति ड्यूक ऑफ एडिनब्रा प्रिंस फिलिप(Prince Philip, Duke of Edinburgh) और प्रिंस एंड्र्यू भी भारत पहुंचे थे. तीनों ने इस दौरान उदयपुर, दिल्ली, आगरा, मुंबई, बेंगलुरु, अहमदाबाद, चेन्नई, कोलकाता आदि तमाम जगह का दौरा किया. यूं तो इस दौरे को लेकर भारत में काफी उत्साह था, लेकिन ये दौरा कई कॉन्ट्रोवर्सीज की वजह भी बना.
हुआ यूं कि एलिज़ाबेथ और ड्यूक उस साल भारत के गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि थे. लेकिन गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में शिकरत करने से पहले दोनों जयपुर गए. यहां जयपुर के राजा सवाई मान सिंह ने उनका खूब सत्कार किया. महारानी को हाथी की सवारी कराई गयी. इसके अगले रोज़ राजा मान सिंह ने एक शिकार का कार्यक्रम रखा. तीन बार की कोशिश के बाद ड्यूक एक बाघ का शिकार करने में सफल हुए. इसके कुछ रोज़ बाद ड्यूक और एलिज़ाबेथ गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में शिकरत करने पहुंचे, उसी दिन के अखबार में एक बड़ी फोटो छपी. कैप्शन था-'कल शिकार किए गए टाइगर के साथ प्रिंस फिलिप.'
यूं तब भारत में शिकार गैरकानूनी नहीं था. लेकिन फिर भी ये घटना एक बड़ी कॉन्ट्रोवर्सी की वजह बनी. इसका कारण ये कि उसी साल प्रिंस फिलिप ने एक 'वाइल्ड लाइफ फंड' की नींव रखी थी. ये एक गैर सरकारी संस्था थी जो वन्य जीवों के संरक्षण के लिए काम करती थी. प्रिंस फिलिप पर हिपोक्रेसी यानी पाखंड के आरोप लगे. ब्रिटिश मीडिया से उनको काफ़ी आलोचना झेलनी पड़ी. न सिर्फ शिकार करने के लिए, बल्कि इसलिए भी कि शिकार के लिए बाघ को रिझाने के लिए उन्हें भैंसे को चारे के रूप में इस्तेमाल किया था.
इस पूरे दौरे में ये विवाद प्रिंस फिलिप का पीछा करता रहा. यात्रा के अगले चरण में उन्हें नेपाल का दौरा करना था. यहां राजा महेंद्र ने उनके लिए और भी बड़े शिकार का आयोजन किया था. 300 हाथी बुलाए गए थे. ताकि शाही सवारी में ड्यूक शिकार कर सकें. भारत में हुए विवाद के चलते ड्यूक शिकार से हिचक रहे थे. लेकिन पहले से तय इतने बड़े आयोजन से वो इंकार न कर सकें. हालांकि जिस रोज़ वो शिकार के लिए पहुंचे, उन्होंने अपनी ट्रिगर वाली उंगली पर पट्टी बांध ली थी. चोट कब लगी कैसे लगी, किसी को न पता था. लेकिन इतना जरूर हुआ कि ड्यूक को शिकार में भाग न लेने का बहाना मिल गया.
एलिज़ाबेथ का दूसरा दौरा
इसके बाद साल 1983 में एलिज़ाबेथ ने एक और बार भारत का दौरा किया. इस बार उन्हें कॉमनवेल्थ देशों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए भारत आमंत्रित किया गया था. पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह इस दौरे से जुड़ा एक बड़ा रोचक किस्सा बताते हैं. नटवर सिंह तब भारतीय विदेश सेवा में कार्यरत थे. और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी(Indira Gandhi) ने उन्हें कॉमनवेल्थ सम्मलेन का चीफ कोऑर्डिनेटर नियुक्त किया हुआ था. इस दौरान एलिज़ाबेथ और प्रिंस फिलिप के रहने की व्यवस्था राष्ट्रपति भवन में की गयी थी. नटवर सिंह लिखते हैं कि सम्मलेन के दूसरे ही दिन एक मुसीबत खड़ी हो गयी. दरअसल इस दौरे में एलिज़ाबेथ मदर टेरेसा(Mother Teresa) को ब्रिटिश शाही सम्मान, आर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित करने वाली थीं. PM इंदिरा गांधी को पता चला कि एलिज़ाबेथ ये कार्यक्रम राष्ट्रपति भवन में करना चाहती हैं. उन्होंने नटवर सिंह को बुलाकर इस बाबत पूछा. नटवर सिंह ने राष्ट्रपति भवन से जानकारी निकाल कर इंदिरा तक पहुंचाई. पता चला कि इस कार्यक्रम के आमंत्रण भी भेजे जा चुके हैं.
इस बीच हेमवंती नंदन बहुगुणा, जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके थे, उन्होंने इंदिरा को एक खत लिखकर कहा कि उन्हें राष्ट्रपति भवन में महारानी एलिज़ाबेथ के निजी कार्यक्रम की जानकारी मिली है. बहुगुणा ने लिखा, उन्हें उम्मीद है कि ये जानकारी झूठी हो. अब पूरा बखेड़ा ये था कि भारत कभी ब्रिटेन का उपनिवेश रह चुका था. राष्ट्रपति भवन तब उनकी मिल्कियत हुआ करती थी. जहां से शाही फरमान जारी किए जाते थे. लेकिन 1961 में ये बीती बात हो चुकी थी. भारत आजाद था. इसलिए अब अगर ब्रिटेन की महारानी इस अपने निजी कार्यक्रम के लिए उपयोग करती तो, इससे भारत की गरिमा को काफी नुकसान होता. क्योंकि ये हक़ अब सिर्फ भारत के राष्ट्रपति को था.
स्थिति की नजाकत को समझते हुए इंदिरा ने नटवर सिंह को ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर से बात करने को कहा. थैचर और इंदिरा काफी गहरी दोस्त थी. एक मायने में थैचर इंदिरा को अपना आदर्श मानती थीं. नटवर ने थैचर को सन्देश भिजवाया कि महरानी का कार्यक्रम राष्ट्रपति भवन में कराना संभव नहीं है, इसलिए वो इस कार्यक्रम का पता बदल दें. उन्होंने नए वेन्यू के लिए UK हाई कमीशन के ऑफिस या हाई कमीनशर के घर का नाम सुझाया. थैचर की तरफ से जल्द ही ये जवाब आ गया कि ऐसा करना संभव नहीं है. आमंत्रण पत्र भेजे जा चुके हैं. प्रेस को भी कार्यक्रम की पूरी जानकारी दी जा चुकी है. और अब आख़िरी समय में पूरा कार्यक्रम चेंज नहीं हो सकता.
नटवर सिंह लिखते हैं कि मामला बिलकुल उलझ गया था. जिसके बीच में थीं दुनिया की चार सबसे ताकतवर महिलाएं, भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर, ब्रिटेन की रानी एलिज़ाबेथ और मदर टेरसा, जिन्हें लगभग संत माना जाता था. नटवर सिंह परेशान थे कि अगर इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी प्रेस को लग गई तो क्या होगा. ये मुद्दा एक बड़ा राजनयिक संकट पैदा कर सकता था. कुछ न सूझा तो नटवर इंदिरा के पास पहुंचे, और उन्हें मार्गरेट थैचर का जवाब सुनाया. नटवर लिखते हैं कि पल भर को इंदिरा के चेहरे पर चिड़चिड़ाहट का भाव उपजा. इसके बाद वो चंद सेकेंड ठहरकर नटवर से बोलीं,
“वापस जाओ और मिसेज़ थैचर को बताओ कि वो चाहे तों महारानी का कार्यक्रम राष्ट्रपति भवन में करा सकती हैं. लेकिन उन्हें कहना कि फिर ये मुद्दा अगले दिन संसद में जरूर उठेगा. और वहां एलिज़ाबेथ का नाम भी इस विवाद में घसीटा जाएगा. इसलिए बेहतर है, रानी को पहले से इस बारे में आगाह कर दिया जाए”
इंदिरा की ये गुगली एकदम निशाने पर पड़ी. महरानी एलिज़ाबेथ को अपना कार्यक्रम रद्द करना पड़ा. आखिर में उन्होंने राष्ट्रपति भवन के गार्डन में मदर टेरेसा को चाय पर बुलाया, और वहीं पर उन्हें आर्डर ऑफ मेरिट सम्मान प्रदान किया. अब चलते हैं एलिज़ाबेथ के तीसरे और आख़िरी भारत दौरे पर. ये दौरा हुआ था साल 1997 में भारते की आजादी के 50 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एलिज़ाबेथ भारत आई थीं. अपने अंतिम दौरे के दौरान उन्होंने अमृतसर के जलियांवाला बाग का दौरा किया. यहां उन्होंने अपने सैंडल उतारकर जलियांवाला में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की. और इस दौरान र उन्होंने जलियांवाला बाग़ की घटना पर खेद भी जताया. उन्होंने कहा,
“यह कोई रहस्य नहीं है कि हमारे अतीत में कुछ कठोर घटनाएं हुई हैं. जलियांवाला बाग एक दुखद उदाहरण है.”
बाद में इस यात्रा का काफी विरोध भी हुआ क्योंकि एलिज़ाबेथ ने जलियांवाला बाग़ का दौरा तो किया लेकिन फिर भी उन्होंने इस घटना के लिए माफी नहीं मांगी, जैसी कि उनसे उम्मीद की जा रही थी.
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