The Lallantop

दिल्ली के बर्बाद और आबाद होने की कहानी!

दिल्ली को राजधानी बनाने की घोषणा जॉर्ज पंचम ने 11 दिसंबर 1911 के दिन की थी. 13 फरवरी 1931 के दिन वायसरॉय और गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने दिल्ली का राजधानी के रूप में उद्घाटन किया था.

post-main-image
13 फरवरी 1931 के दिन नई दिल्‍ली भारत की राजधानी बनी थी (तस्वीर-Wikimedia commons)

बात बड़े शहर की. एक ऐसा शहर जो भारतीय इतिहास के हर पलटते पन्ने का गवाह बना. जिसके बारे में कहा जाता है कि वो 16 बार उजड़ा और बसाया गया. वो शहर जिसके बारे में भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू(Jawaharlal Nehru) ने कहा था,

“ये शहर अनेक साम्राज्यों की कब्र रहा और फिर एक गणराज्य की नर्सरी बना”

अब तक आप समझ गए होंगे कि हम बात कर रहे हैं. दिल्ली की. भारत की राजधानी. 13 फरवरी 1931 को नई दिल्ली(New Delhi) का भारत की राजधानी के तौर पर उद्धघाटन हुआ(Delhi became Capital). कैसे हुआ ये सब? अंग्रेज़ों ने दिल्ली को राजधानी क्यों बनाया? और इससे पहले दिल्ली का इतिहास क्या था(History of Delhi)? दिल्ली का 1200 साल का इतिहास याद करें तो बशीर बद्र की एक बात मौजू जान पड़ती है.

दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है
जो भी गुज़रा है उस ने लूटा है

लेकिन लुटने की बात बाद में. पहले जानते हैं दिल्ली बसी कैसे. जिसे हम नई दिल्ली कहते हैं, वो दिल्ली का बस एक छोटा सा हिस्सा था. और ऐसे 7 अलग-अलग हिस्से थे. जो अलग अलग राजाओं के समय में बनाए, बसाए गए. आधुनिक इतिहास की बार करें तो आठवीं सदी में तोमर वंश के राजाओं ने सबसे पहले दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया. राजा अनंगपाल तोमर ने महरौली के पास लाल कोट किले का निर्माण किया. तोमर राजाओं के बाद लाल कोट पर पृथ्वीराज चौहान ने राज किया. उन्होंने लाल कोट का नया रखा-  राय पिथौरा.

Lal Kot fort Delhi
लाल कोट का क़िला लाल पत्थर से निर्मित दिल्ली का पहला किला था (तस्वीर-Wikimedia commons)

दिल्ली सल्तनत 

1192 में तराइन का युद्ध हारने के बाद दिल्ली पर इस्लामिक शासकों का कब्ज़ा हो गया. पृथ्वीराज चौहान को हारने के बाद मुहम्मद गौरी वापिस अफ़ग़ानिस्तान लौट गया. और उसने कुतुबुद्दीन ऐबक, एक तुर्क गुलाम को दिल्ली के गवर्नर नियुक्त कर दिया. 1206 में मुहम्मद  गौरी की मौत के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने खुद को दिल्ली का सुल्तान घोषित कर दिया. और इस तरह दिल्ली पर गुलाम वंश के शासन की शुरुआत हुई. कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद इल्तुतमिश दिल्ली की गद्दी पर बैठे. उनका राज 1236 तक चला.

उनकी मौत के बाद दिल्ली में खिलज़ी वंश का शासन शुरू हुआ. अलाउद्दीन खिलजी को दिल्ली सल्तनत के इतिहास का सबसे ताकतवर शासक माना जाता है. उन्होंने अपना राज गजरात, रणथम्बोर, मेवाड़, मालवा और दक्षिण में वारंगल और मदुरई तक फैलाया. उन्होंने राय पिथौरा की बजाय सीरी को राजधानी बनाया. सीरी का किला खासकर मंगोलों के आक्रमण को रोकने के लिए बनाया गया था. सीरी के किले के अलावा खिलज़ी वंश के अवशेष आपको हौज़ खास में दिखाई देंगे. हौज़ खास का निर्माण सीरी को पानी की सप्लाई देने के लिए किया गया था.

1320 में खिलजियों का तख्तापलट हुआ और खुसरो शाह ने दिल्ली की गद्दी हथिया ली. लेकिन जल्द ही ग्यासुद्दीन तुगलक ने उसे भी गद्दी से हटा दिया. तुगलकों ने दिल्ली में तुगलकाबाद नाम के शहर की स्थापना की. तुगलकों के शासन में ही वो घटना भी हुई जिसके चलते हर अटपटे निर्णय की तुलना तुगलकशाही से की जाने लगी. हुआ ये कि साल 1327 में मुहम्मद बिन तुगलक ने दिल्ली से राजधानी को दौलताबाद शिफ्ट कर दिया. लेकिन जल्द ही उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ. दौलतबाद में पानी की कमी पड़ने लगी.  जिसके बाद 1334 में दिल्ली को दुबारा राजधानी बनाया गया. इस बार उन्होंने दिल्ली में एक और नगर की स्थापना की. जहांपनाह नाम का ये शहर महरौली और सीरी के बीच बसाया गया था. इस नए शहर को बनाने का कारण ये था कि मुहम्मद बिन तुगलक तुगलकाबाद को अपने लिए मनहूस मानते थे.  एक किस्सा ये भी चलता है कि  हज़रत शेख निज़ामुद्दीन औलिया यहां एक बावली बनवाना चाहते थे. लेकिन तुगलक ने इससे इंकार कर दिया, जिसके चलते औलिया ने शहर को श्राप दे दिया.

Red Fort Delhi
लाल क़िला - दिल्ली में स्थित मुगल वास्तुशैली से बने ऐतिहासिक क़िले का निर्माण मुगल शासक शाहजहां ने करवाया था (तस्वीर-Wikimedia commons)

दिल्ली को कई बार लूटा गया 

तुगलकों के शासन काल में एक और शहर का निर्माण हुआ. ये शहर था, फिरोज़ाबाद. जिसे मुहम्मद-बिन-तुगलक के बेटे फिरोज शाह तुगलक ने बसाया. आज जहां फिरोज शाह कोटला है, वहीं इस शहर को बसाया गया था. इसी शहर पर साल 1398 में तैमूर लंग ने आक्रमण किया. दिल्ली आठ दिन तक लुटती रही. इतना खून बहा कि दिल्ली को फिर दिल्ली बनने में एक सदी का समय लगा गया.  तैमूर ने जब दिल्ली पर हमला किया, इसे दुनिया का सबसे अमीर शहर माना जाता था. तैमूर के आक्रमण के बाद तुगलक वंश लगातार कमजोर होता गया और 15 वीं सदी में लोधियों ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया. 1526 में मुग़ल भारत में आए. इस साल पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम लोधी को पराजित किया और मुगल वंश की नींव रखी. बाबर के बेटे हुमायूं को साल 1540 में शेर शाह सूरी ने हरा दिया. और नींव रखी एक और शहर की. ये शहर था शेरगढ़. शेरगढ़ के अवशेष दिल्ली के पुराने किले में देखे जा सकते हैं. इसी किले की एक इमारत शेरमंडल की इमारत से गिरकर हुमायूं की मौत हुई थी.

हुमायूं के बाद अकबर ने शासन किया और अकबर के बाद शाहजहां ने. शाहजहां के काल में दिल्ली का सातवां शहर बना. शाहजहानाबाद. शाहजहां ने यहां भव्य इमारतें बनाई, जैसे लाल किला और जामा मस्जिद. अकबर के काल में दिल्ली से राजधानी आगरा शिफ्ट की जा चुकी थी. शाहजहां ने शाहजहानाबाद बनाकर आगरा से शिफ्ट कर इसे अपनी राजधानी बनाया. अंगेज़ों के आगमन तक यही इलाका दिल्ली के नाम से जाना जाता था. इसी दिल्ली को साल 1739 में एक और बार लूटा गया. अबकी बार नादिर शाह ने. दिल्ली फिर खून में नहाई. मुग़लों का तख़्त-ए -ताउस, कोहिनूर हीरा सब नादिर शाह के साथ चले गए. और साथ ही चला गया दिल्ली का वो वैभव जिसके लिए वो जानी जाती थी.

साल 1857 में दिल्ली पर एक और आक्रमण हुआ. इस बार अंग्रेज़ों ने बगावत रोकने के लिए दिल्ली तबाह कर डाली. शहर का एक तिहाई हिस्सा खंडहर में तब्दील कर दिया गया. और दिल्ली पर ईस्ट इंडिया कंपनी का पूरा कंट्रोल हो गया. लेकिन दिल्ली को अंग्रेज़ों ने राजधानी नहीं बनाया. उनकी राजधानी थी कोलकाता, जो तब कलकत्ता के नाम से जाना जाता था. कलकत्ता से राजधानी दिल्ली कैसे शिफ्ट हुई, और क्यों, इसके लिए चलते हैं सीधे साल 1905 में. क्या हुआ था इस साल?

Jama Masjid Delhi
साल 1656 में दिल्ली की जामा मस्जिद का उद्घाटन उज्बेकिस्तान के इमाम सैयद अब्दुल गफूर शाह बुखारी ने किया था (तस्वीर- Wikimedia commons)

बंगाल के बंटवारे के बाद 

इस साल ब्रिटिश शासन ने बंगाल के बंटवारे की घोषणा की. लेकिन कुछ साल में ही उन्हें इतना विरोध झेलना पड़ गया कि ब्रिटिश हुकूमत अपने फैसला वापिस लेने के बारे में सोचने लगी. इस बीच साल 1910 में जॉर्ज पंचम इंग्लैण्ड के राजा बने. राजा बनते ही उनके सामने बंगाल का मुद्दा आया. साल 1911 में उन्होंने भारत का दौरा किया. यहां दिल्ली में उनकी ताजपोशी के लिए एक दरबार लगाया गया. इस दरबार में पहले वो बंगाल का बंटवारा वापिस लेने की घोषणा करने वाले थे. लेकिन ऐन मौके पर वायसराय लॉर्ड हार्डिंग ने अड़ंगा लगा दिया.

हार्डिंग को मनाने के एक ब्रिटिश सांसद ने उन्हें सुझाव दिया कि बंगाल का बंटवारा रद्द कर नए सिरे से उसकी सरहद बनाई जाए, और राजधानी को दिल्ली शिफ्ट कर दिया जाए. हार्डिंग तैयार हो गए. और तय हुआ कि नई राजधानी का ऐलान खुद किंग जॉर्ज करेंगे. 12 दिसंबर 1911 को दिल्ली में एक लाख लोगों के सामने किंग जॉर्ज की ताजपोशी हुई. दरबार ख़त्म होने से ठीक पहले उन्होंने एक कागज़ हाथ में लिया और उसमें से पढ़ते हुए बोले,

“भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट किया जाएगा”

इसके तीन रोज़ बाद 15 दिसंबर को नई राजधानी की आधारशिला रखी गई. बाकायदा हाथीदांत से बने दो औज़ारों से राजा और रानी ने दो शिलाएं रखी. कमाल की बात ये थी कि जिस जगह पर शिलाएं रखी थी, वहां न कोई इमारत बनी, न राजधानी. बल्कि इन पत्थरों को हटाकर दूसरी जगह पर लगाया गया. एक पूरा नया शहर बनाना, जिसमें सरकार के कामकाज की सारी सुविधाएं हो, बहुत दूभर और लंवा काम था. इसलिए शुरुआत में एक अस्थाई राजधानी बनाई गई. जिसे अब ओल्ड सेक्रेट्रिएट के नाम से जाना जाता है. वहीं साथ ही नई राजधानी की तैयारियां भी शुरू कर दी गई. ब्रिटिश हुकूमत चाहती थी कि नई राजधानी मुगलिया दिल्ली से अलग दिखे, इसके कौन से पत्थर लगेंगे, क्या डिज़ाइन होगा, इसके जिम्मेदारी खास लोगों को सौंपी गयी. मैल्कम हेली को तब दिल्ली का चीफ कमिश्नर बनाया गया, और नए शहर के निर्माण की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई.        
अब बड़ा सवाल था कि नई राजधानी बनेगी कहां?

Edwin Lutyens
लुटियंस दिल्ली को ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने डिजाइन किया था (तस्वीर- Indiatoday)

कैसे बनी नई दिल्ली? 

दिल्ली तब पंजाब का हिस्सा हुआ करती थी. यहां के करीब 128 गांवों को नया शहर बनाने के लिए चुना गया. लगभग सवा लाख एकड़ जमीन को खाली कराया गया. 1914 में इसमें मेरठ के 65 गांव और शामिल कराए गए. इस पूरी जमीन के मालिकों को 150 रूपये प्रति एकड़ का मुआवजा देने की बात हुई. लेकिन कई लोगों को ये मुआवजा कभी नहीं मिल पाया. साल 1912 में मशहूर आर्किटेक्ट एडविन लैंडसीयर लुटियन्स और हरबर्ट बेकर को नई राजधानी का डिज़ाइन तैयार करने के लिए बुलाया गया. लुटियन्स डेल्ही टाउन प्लानिंग कमेटी के सदस्य भी थे. पहले अंग्रेज़ो की योजना थी कि कोरोनेशन पार्क, जहां किंग जॉर्ज की ताकपोशी हुई थी, वहीं पर नई राजधानी बनाई जाए. लेकिन लुटियन्स ने इस जगह को राजधानी के लिए सही नहीं पाया.

अपनी रिपोर्ट में उन्होंने दर्ज़ किया कि ये इलाका तंग था और यहां मलेरिया फैलने का खतरा बना रहता था. कई महीनों की तलाश के बाद अंत में वायसराय और कमिश्नर हेली ने लुटियंस को रायसीना हिल्स का एरिया सुझाया. कोरोनेशन पार्क में किंग जॉर्ज ने जो आधारशिलाएं रखी थीं, उन्हें रायसीना हिल्स लाया गया. ये काम एकदम ख़ुफ़िया तरीके से किया गया, क्योंकि अंग्रेज़ों को डर था कि क्रांतिकारी इन आधारशिलाओं को तोड़ने की फिराक में हैं. आधारशिलाएं शिफ्ट करने का काम तब कॉन्ट्रैक्टर सरदार शोभा सिंह को दिया गया था. शोभा सिंह मशहूर लेखक खुशवंत सिंह के पिता थे. शोभा सिंह ने बैलगाड़ी में ये शिलाएं लादकर आधी रात को रायसीना हिल्स तक पहुंचाई. जहां इन पत्थरों को लगाया गया, वही आगे चलकर नार्थ और साऊथ ब्लॉक बने.

913 में राजधानी बनाने का काम जोर शोर से शुरू हुआ, लेकिन तभी प्रथम विश्व युद्ध ने अंग्रेज़ों का हिसाब गड़बड़ा दिया. जुलाई 1914 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हो गयी. जिसे द ग्रेट वॉर का नाम दिया गया. चार साल चले इस युद्ध ने ब्रिटिश प्रशासन का हिसाब किताब डांवाडोल कर दिया. और इसकी वजह से राजधानी के काम में सुस्ती आ गयी. 1918 में युद्ध के खात्मे के बाद इस काम में तेज़ी आई. लुटियंस दिल्ली को ब्रिटिश सरकार ने यूरोपियन शैली में बनवाया लेकिन साथ ही इसमें पारम्परिक भारतीय शैली के छज्जे जालियां, गुम्बद भी बनवाए गए.

लुटियंस की दिल्ली

हालांकि ये काम इतना आसान नहीं था. करीब 10 हजार एकड़ जमीन को शहर की शक्ल दी जानी थी. रायसीना पर जमीन को समतल बनाने के लिए पूरी पहाड़ी को विस्फोट से उड़ाया गया. राजस्थान से सैंड स्टोन और मार्बल मंगाया गया. इन्हें ढोने के लिए करीब 30 हजार मजदूर लगाए गए. राजधानी के आर्किटेक्ट लुटियंस ने पूरे इलाके को 169 ब्लॉक्स में बांटा. और शहर के लिए अलग-अलग जोन भी निर्धारित किए गए. नई राजधानी की सबसे भव्य इमारत थी, वाइसरॉय हाउस, जिसे हम राष्ट्रपति भवन के नाम से जानते हैं. वाइसरॉय हाउस के निर्माण में कुल 17 साल लगे. वहीं इंडिया गेट का निर्माण 10 साल में पूरा हुआ. इण्डिया गेट को तब खासतौर पर वर्ल्ड वॉर में वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाया गया था.

Rashtrapati Bhavan Delhi
राष्ट्रपति भवन के निर्माण का काम साल 1912 में शुरू हुआ और 1929 तक चला, इसे बनने में 17 साल का वक़्त लगा (तस्वीर- Indiatoday)

संसद का डिज़ाइन तब लुटियंस के साथी बेकर ने तैयार किया था. बेकर ने ही नॉर्थ और साउथ ब्लॉक की इमारत बनाई थी. इस पूरे काम में लगभग 30 हजार मजदूरों को लगाया गया था. जिन्होंने साढ़े तीन सौ करोड़ क्यूबिक पत्थरों को तराश कर इमारतों के लिए तैयार किया. वहीं लकड़ी का काम करने के लिए 700 मजदूरों को लगाया गया था. नई राजधानी के हिस्से के तौर पर एक सिटी सेंटर भी तैयार करवाया गया. ये सिटी सेंटर माधोगंज गांव में बनाया गया. इस जगह को हम कनॉट प्लेस या राजीव चौक के नाम से जानते हैं. कनॉट प्लेस का नाम कनॉट प्लेस पड़ने की पीछे की कहानी यूं है कि 1921 में किंग जॉर्ज के अंकल ड्यूक ऑफ कनॉट दिल्ली आए. उन्हें तब दिल्ली खूब पसंद आई थी. इसलिए प्रशासन ने उनके नाम पर सिटी सेंटर का नाम कनॉट प्लेस रख दिया.

कनॉट प्लेस में गोलाई में जो खम्बे और ब्लॉक्स बने हैं, उसका आईडिया इंपीरियल दिल्ली कमेटी के सदस्य डब्ल्यू एच निकोलस ने दिया था. अब जानिए दिल्ली आधिकारिक तौर पर राजधानी कब बनी. 20 साल के निर्माण के बाद साल 1931 में नई राजधानी का निर्माण पूरा हुआ. तब तक शाहजहांबाद को दिल्ली के नाम से जाना जाता था. नई राजधानी बनने के बाद इसे पुरानी दिल्ली कहा जाने लगा. नई दिल्ली का उद्धघाटन फरवरी में 1931 में वाइसरॉय लार्ड इरविन द्वारा किया गया था. और जैसा कि हम जानते ही हैं आजादी के बाद नए भारत की राजधानी के लिए दिल्ली को ही बरक़रार रखा गया.

वीडियो: तारीख: पुलिस और आर्मी की मुठभेड़ में जब CM की कुर्सी गई!