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एडवर्ड स्नोडन ने भारत में ली थी हैकिंग की ट्रेनिंग?

साल 2010 में एडवर्ड स्नोडन एक हफ्ते के लिए भारत आए. इसके अगले ही साल उन्होंने NSA की ख़ुफ़िया जानकारी डाउनलोड करना शुरू किया. सालों बाद पता चला कि सिक्योरिटी क्लियरेंस लेते वक़्त स्नोडन ने भारत दौरे का खुलासा नहीं किया था.

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ख़ुफ़िया जानकारी की चोरी के लिए स्नोडेन पर ‘सरकारी संपत्ति की चोरी’, ‘राष्ट्रीय रक्षा सूचना के अनधिकृत संचार’ और ‘जान-बूझकर खुफिया सूचना का संचार’ का आरोप लगाया गया था (तस्वीर: Wikimedia Commons और Getty)

2 सितम्बर साल 2010. जापान से एक फ्लाइट दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरती है. फ्लाइट से एक आदमी उतरता है और सीधे होटल हयात रीजेंसी पहुंचता है. हयात में कमरा बुक करके ये आदमी रात वहीं गुजारता है. अगली सुबह एक कार होटल तक आती है. और ही कुछ देर बाद दिली के मोती नगर इलाके तक पहुंच जाती है.

वहां सामने एक कंप्यूटर ट्रेनिंग सेंटर है. आदमी अंदर जाता है और ट्रेनिंग सेंटर की फीस मालूम करता है. एक हफ्ते की ट्रेनिंग के लिए करीब डेढ़ लाख रूपये की फीस है . साथ में लॉज का खर्चा अलग से. लेकिन इस शख्स को पैसे से कोई दिक्कत नहीं है. इसके बाद ये शख्स ट्रेनिंग सेंटर में दाखिला ले लेता है. और इसी सेंटर के लॉज में उसके रहने की व्यवस्था हो जाती है.

अगले कुछ दिनों तक हैकिंग की ट्रेनिंग चलती है. ट्रेनिंग का वक्त 7 दिनों का था. लेकिन छठे दिन ये आदमी अचानक वापस होटल हयात की तरफ निकल जाता है. वहां पहुंचकर ट्रेनिंग सेंटर के मालिक को एक मेल भेजता है. मेल में दर्ज़ था कि उसकी तबीयत ख़राब है और इसलिए वो वापिस जापान जा रहा है. आदमी फ्लाइट पकड़ कर भारत से निकल जाता है, और फिर दोबारा कभी भारत नहीं लौटता. 

ट्रेनिंग सेंटर के मालिक के लिए ये आम ग्राहक था. कई विदेशी लोग, कम्यूटर ट्रेनिंग के लिए उसके वहां आते थे. इसलिए वो उस वक्त तो ज्यादा ध्यान नहीं देता. लेकिन उसकी आंखें चुंधयाती है कुछ साल बाद जब अमेरिका से एक खबर आती है. वहां एक बहुत बड़ा कांड हो गया था. कुछ दिन बाद टीवी स्क्रीन पर एक चेहरा फ्लैश करता है. जिसके नीचे नाम लिखा था, एडवर्ड स्नोडन.

आज ही के दिन यानी 21 जून, साल 1983 में स्नोडन का जन्म हुआ था. आज हम जानेंगे स्नोडन का भारत से कनेक्शन. क्यों वो इंडिया में कम्प्यूटर ट्रेनिंग लेने आए थे? और जिन खुफिया दस्तावेजों का स्नोडन ने खुलासा किया, उनमें भारत से जुड़ी कौन सी जानकारी थीं. इन दस्तावेजों में एक जगह पाकिस्तान का भी जिक्र है. लेकिन वो सब जानने से पहले स्नोडन की कहानी जान लेते हैं.

एडवर्ड स्नोडन की NSA में नौकरी कैसे लगी? 

स्नोडन के करियर के शरुआत हुई साल 2003 में. उस साल मार्च में अमेरिका ने ईराक पर हमला किया. फौज में नौकरियां निकली तो 20 साल के स्नोडन ने आर्मी ज्वाइन कर ली. लेकिन ट्रेनिंग के दौरान पैर में चोट लगने का कारण उन्हें बाहर होना पड़ा.

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फोर्ट मीडे, मैरीलैंड में NSA का मुख्यालय (तस्वीर: Getty)

इसके बाद साल 2005 में स्नोडन को एक सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी मिली. इत्तेफाक देखिए, मैरीलैंड सेंटर ऑफ एडवांस्ड स्टडी ऑफ लैंग्वेज, जहां स्नोडन गार्ड की नौकरी कर रहे थे, उसे नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी यानी NSA की मदद से चलाया जा रहा था.

स्नोडन कम्प्यूटर गीक हुआ करते थे. और यहीं पर बचपन का ये शौक उनके काम आया. हुआ यूं कि 2001 के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले के बाद NSA अपना टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट मजबूत करने की कोशिश में था. और इसके लिए जरूरी था ज्यादा से ज्यादा टेक रिक्रूट्स को हायर करना.

संयोग ऐसा बना कि स्नोडन की NSA के IT डिपार्टमेंट में नौकरी लग गई. काम सिर्फ टेक्नीशियन का था लेकिन तनख्वाह तगड़ी थी. स्नोडन ने इस दौरान BMW खरीदी. एस्टोनिया की एक रॉक स्टार के साथ अफेयर किया. लन्दन रोमानिया जैसी जगहें घूमी. फिर 2007 में उन्हें जिनेवा के CIA दफ्तर में काम करने के लिए भेजा गया. जिनेवा में काम करते हुए उन्हें पहली बार CIA के तौर तरीकों का पता चला.

स्नोडन ने देखा कि CIA अपना मतलब निकालने के लिए कैसे लोगों को फंसाती है. उस दौरान एक बैंकर को CIA ने शराब पीकर गाड़ी चलाने के एक मामले में फंसाया और केस रफा दफा करने के बदले उससे अपना काम निकलवा लिया. इन सब कारिस्तानियों को देखकर साल 2009 में स्नोडन ने CIA से इस्तीफ़ा दे दिया. हालांकि स्नोडन को तब पता नहीं था कि जल्द ही CIA से दोबारा उनका पाला पड़ने वाला है.

विकीलीक्स का पहला बड़ा खुलासा 

CIA छोड़ने के दो महीने बाद ही स्नोडन की नौकरी Dell कम्प्यूटर्स में लग गई. Dell CIA और NSA के प्रोजेक्ट्स पर काम करती थी. और स्नोडन को भी ऐसे ही एक प्रोजेक्ट में लगा दिया गया. स्नोडन अब CIA में कांट्रेक्टर के रूप में काम करने लगे. यहां से स्नोडन जापान और वहां से भारत कैसे पहुंचे, क्यों पहुंचे, ये समझने के लिए तब के हालात पर गौर करिए.

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चेल्सी मैनिंग और जूलियन असांज (तस्वीर: Getty)

साल 2010 वो साल था जब पहली बार अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का राज खुला. तब विकीलीक्स के फाउंडर जूलियन असांज ने अमेरिकी सेना का एक वीडियो लीक कर दिया. वीडियो बगदाद का था. जिसमें दिख रहा था कि मिलिट्री पायलट ने साल 2007 में बगदाद में दो आतंकियों को निशाना बनाया था. लेकिन असल में ये लोग आतंकी नहीं थे. ये रायटर्स के पत्रकार थे, जिन्हें आतंकी समझ कर मार दिया गया.

विकीलीक्स का ये पहला बड़ा खुलासा था. आने वाले महीनों में न्यू यॉर्क टाइम्स और गार्डियन समेत कई अखबारों ने अफ़ग़ान और इराक वॉर लॉग्स पर रिपोर्ट छपी. अमेरिकी डिप्लोमेटिक केबल्स से पता चल चला कि किस तरह इराक और अफ़ग़ानिस्तान में कोलैटरल डैमेज यानी सामूहिक निषेध के नाम पर आम लोगों को निशाना बनाया गया था. इन वॉर लॉग्स और डिप्लोमेटिक केबल्स को लीक करने वाली शख्स का नाम था चेल्सी मैनिंग. जो जूलियन असांज तक ये सीक्रेट जानकारी पहुंचा रही थी.

जब अमेरिका में ये सब चल रहा था, एडवर्ड स्नोडन जापान में थे. यहां उन्हें एक एंटी साइबर स्पाई सॉफ्टवेयर पर काम करने के लिए भेजा गया था. विकीलीक्स केबल की ख़बरें उन तक भी पहुंच रही थीं. और स्नोडन को पता था कि CIA के तहखाने में इससे भी बड़े राज छुपे हैं. यहीं पर शायद स्नोडन ने फैसला कर लिया था कि वो इन सब जानकारियों को पब्लिक के सामने लाएंगे.

स्नोडेन ने दिल्ली में हैकिंग की ट्रेनिंग ली 

उसी साल सितम्बर महीने में स्नोडन ने भारत का दौरा किया. स्नोडन नई दिल्ली की अमेरिकन एम्बेसी में एक टेक्नीकल एक्पर्ट के तौर पर काम करने आए थे. संभवतः ये काम भी सर्विलेंस से जुड़ा था. क्योंकि सालों बाद स्नोडन के लीक किए गए दस्तावेज़ों से एक सर्विलेंस प्रोग्राम का पता चला. स्टेटरूम नाम का ये प्रोग्राम विदेशों में अमेरिकन एम्बेसी में लगे उपकरणों से उन देशों की खुफिया जानकारी इकठ्ठा करता था. इन्हीं डॉक्युमनेट्स से ये बात भी सामने आई कि NSA ने अमेरिका में भारतीय एम्बेसी की भी जासूसी की थी. हालांकि इन सब दावों के आगे संभवतः लगना जरूरी है क्योंकि कोई भी इन बातों को वेरीफाई करने से तो रहा.

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विकीलीक्स ने एक लीक्ड वीडियो लीक किया जिसमें अमेरिकी पायलट को दो पत्रकारों को निशाना बनाते दिखाया गया था (तस्वीर: Getty)

भारत में रहते हुए स्नोडन ने दिल्ली स्थित कोनिग सॉल्यूशंस नाम के एक ट्रेनिंग सेंटर में हैकिंग की ट्रेनिंग ली. इसी दौरान उन्होंने कंप्यूटर सिस्टम्स को ब्रेक करने और सॉफ्टवेयर में कमियों का फायदा उठाना सीखा. ट्रेनिंग सेंटर में उन्होंने बताया कि वो सिर्फ ट्रेनिंग प्रोग्राम को परखना चाहते हैं. ताकि उसे अपनी कंपनी में लागू कर सकें. स्नोडन ने सर्टिफिकेट लेने से भी इंकार कर दिया.

6 दिनों के एथिकल हैकिंग कोर्स के दौरान स्नोडन ने मैलवेयर, वायरस आदि को रिवर्स इंजीनियर करना सीखा. स्नोडन ने ज़्यूस और फ्रॉग्स जैसे कोड सीखने की भी मंशा जताई. ये बात कुछ अजीब थी. क्योंकि जिन प्रोग्राम्स को वो सीखना चाहते थे, उन्हें अधिकतर ऑनलाइन क्राइम और लोगों की इनफार्मेशन चुराने के लिए उपयोग किया जाता था. स्नोडन ने स्पाई ऑय नाम का एक कोड भी सीखा, जिसे फर्जी वेब पेज बनाकर लोगों की बैंक डीटेल्स, लॉग इन, पासवर्ड चुराए जाते हैं.

9 सितम्बर तक कोर्स करने के बाद स्नोडन अपने होटल लौट गए. 10 की सुबह ट्रेनिंग का आख़िरी दिन था. लेकिन उन्होंने बीमारी की बात बोलकर आने से इंकार कर दिया. और 11 तारीख को जापान लौट गए.

पत्रकारों से कांटेक्ट 

2011 में स्नोडन जापान से अमेरिका पहुंचे. अब तक उन्होंने टॉप सीक्रेट इनफार्मेशन चुराने का पूरा मन बना लिया था. इसके लिए टॉप सीक्रेट क्लियरेंस की जरुरत थी. क्लियरेंस मिलते वक्त आपको अपने विदेशी दौरों, किन लोगों से मुलाक़ात की, ये सब बताना पड़ता है. लेकिन स्नोडन ने अपनी दिल्ली ट्रिप की जानकारी डिस्क्लोज़ नहीं की. ना ही ट्रेनिंग कोर्स के बारे में बताया.

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लौरा पोइट्रस और ग्लेन ग्रीनवॉल्ड (तस्वीर: Getty)

अप्रैल 2012 में डेल के लिए काम करते हुए स्नोडन ने पहली बार NSA की सीक्रेट फाइल्स डाउनलोड करना शुरू किया. और इसी के साथ उन्होंने फाइल्स को पब्लिक में लाने की तैयारी भी शुरू कर दी. इसके लिए बहुत सावधानी बरतनी थी. वरना संभव था कि वक्त से पहले ही NSA को इसकी खबर लग जाती और सब करे कराए पर पानी फिर जाता.

दिसंबर 1, 2012 की बात है. गार्डियन के लिए काम करने वाले एक पत्रकार ग्लेन ग्रीनवाल्ड को उनके लैपटॉप पर एक ईमेल आया. ईमेल में लिखा था कि ग्रीनवाल्ड अपने लैपटॉप में एक PGP एन्क्रिप्शन सॉफ्टवेयर इनस्टॉल कर लें. ग्रीनवाल्ड ने इस अजीब से ईमेल को इग्नोर कर दिया.

इसके बाद स्नोडन ने लौरा पोइट्रस नाम की एक डाक्यूमेंट्री मेकर को संपर्क किया. लौरा विकीलीक्स से जुडी हुई थीं. इसलिए पहले तो उन्हें लगा कि कोई उन्हें फंसाने की कोशिश कर रहा है. एक झूठी पहचान बताकर स्नोडन ने बताया कि वो एक हाई रैंकिंग इंटेलिजेंस ऑफिसर है. और उनके पास NSA की खुफिया जानकारी है.

इसी बीच फरवरी 2013 में स्नोडन ने एक और बार नौकरी बदली. उन्होंने बूज़ एलन हैमिल्टन नाम की एक कंपनी के काम करना शुरू कर दिया. ये भी NSA की कॉन्ट्रैक्टर थी. और इस नौकरी को लेने के पीछे स्नोडन का एक खास मकसद था. यहां स्नोडन ने सिस्टम एडमिन के रूप में काम करना शुरू किया. इस पोजीशन पर काम करने का ये फायदा था कि स्नोडन को थंब ड्राइव लाने ले जाने की इजाजत थी.

अमेरिकी खुफिया जानकारी की चोरी 

बूज़ हैमिल्टन की हवाई स्थित फैसिलिटी में स्नोडन ने सिर्फ 3 महीने काम किया. यहां स्नोडन को दुनियाभर की उन सभी मशीन का एक्सेस मिल गया, जिन्हे NSA ने हैक कर रखा था. यहां से स्नोडन ने लगभग 17 टॉप सीक्रेट लाख फाइल्स डाउनलोड की. अब बारी थी एस्केप प्लान की.

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हॉन्ग कॉन्ग के होटल में स्नोडन और ग्लेन ग्रीनवॉल्ड (तस्वीर: Citizenfour)

स्नोडन ने अपने एम्प्लॉयर से बीमारी का बहाना कर छुट्टी ले ली और सीधे हॉन्ग कॉन्ग पहुंच गए. इस दौरान स्नोडन लगातार लौरा पोइट्रस के संपर्क में थे. स्नोडन ने शर्त रखी थी कि लौरा को इस काम के लिए ग्लेन ग्रीनवॉल्ड को मनाना होगा. जब ग्रीनवॉल्ड तैयार हुए तो स्नोडन ग्रीनग्रीनवॉल्ड से हॉन्ग कॉन्ग आने को कहते हैं लेकिन ग्रीनवॉल्ड इसके लिए तैयार नहीं थे.

तब स्नोडन एक इंक्रीप्कटेड लैपटॉप पर ग्रीनवॉल्ड को कुछ फाइल्स भेजते हैं. जिन्हें देखकर ग्रीनवॉल्ड की आंखें खुली की खुली रह जाती हैं. इन फाइल्स में साफ दिख रहा था कि NSA अमेरिकी नागरिकों की जासूसी कर रही थी. और इस बारे में उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस में झूठ बोलै था.

इसके बाद तीन पत्रकार हॉन्ग-कॉन्ग के लिए रवाना होते हैं. एक होटल के कमरे में मुलाक़ात होती है. और 6 जून 2013 को दुनिया के सामने पहली बार इस स्टोरी का खुलासा होता है. पहली खबर से पता चला कि एक अमेरिकन फोन कंपनी ने लोगों की कॉल डिटेल्स NSA को दे दी थीं. जैसे ही ये खबर खुली, अमेरिका में हंगामा हो गया. अब तक किसी को पता नहीं था कि ये जानकारी किसने लीक की. 8 जून के रोज़ NSA को अंदाजा हुआ कि ये काम स्नोडन का है. अगले ही दिन TV पर आकर स्नोडन ने अपनी पहचान दुनिया के सामने रख दी.

इसके बाद धीरे-धीरे, एक-एक कर खुलासे होते गए. पता चला कि NSA दुनिया के किसी भी फोन को हैक कर उसके माइक्रोफ़ोन और कैमरा के जरिए जासूसी कर सकती थी. आगे जाकर पता चला कि NSA जर्मनी और फ़्रांस के राष्ट्राध्यक्षों की भी जासूसी कर रही थी.

स्नोडन के खुलासे से भारत के बारे में क्या पता चला? 

केबल्स लीक होते ही अमेरिकी सरकर ने स्नोडन को गद्दार घोषित कर दिया गया. कई लोगों के लिए वो हीरो थे, तो कई के लिए रूस के एजेंट. हॉन्ग कॉन्ग में कुछ दिन रहने के बाद स्नोडन ने कई देशों से असायलम की गुजारिश की. इनमें भारत भी था. लेकिन रूस को छोड़कर कोई असायलम देने को तैयार नहीं हुआ. स्नोडन ने जिन डाक्यूमेंट्स को लीक किया उनमें भारत का भी जिक्र था. 

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परमानेंट रिकॉर्ड नाम की स्नोडन की आत्मकथा जो उन्होंने साल 2019 में लिखी (तस्वीर: Getty)

साल 2017 में अमेरिकी न्यूज़ वेबसाइट इंटरसेप्ट ने स्नोडेन का लीक किया एक डॉक्यूमेंट पब्लिश किया. जिसके अनुसार अमेरिका भारत के न्यूक्लियर मिसाइल प्रोगाम पर नजर बनाए हुए था. दस्तावेजों से पता चला कि अक्टूबर 2004 में ऑस्ट्रेलिया में मौजूद एक NSA साइट रेनफॉल ने भारत की न्यूक्लियर वेपन स्टोरेज फैसिलिटी का पता लगा लिया था.

इसके बाद थाईलैंड में मौजूद एक ‘फॉरेन सैटेलाइट कलेक्शन फैसिलिटी’, लेमनवुड ने इस साइट से जुड़ी जानकारियां इकठ्ठा की और अमेरिकी डिफेन्स डिपार्टमेंट तक पहुंचाई. इस सर्विलेंस से 2005 में ही NSA को सागरिका और धनुष न्यूक्लियर मिसाइल का पता चल गया था, जबकि इनकी टेस्टिंग इसके कई साल बाद हुई थी. धनुष का टेस्ट तो 2016 में जाकर हुआ था.

सागरिका, एक सबमरीन-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल (SLMB) है. और धनुष समुद्र से लॉन्च की जाने वाली शॉर्ट-रेंज बैलिस्टिक मिसाइल (SRBM) है. ये दोनों मिसाइल इंडिया के न्यूक्लियर ट्राएड का हिस्सा हैं. चौंकाने वाली बात ये थी कि इन्हीं डाक्यूमेंट्स से ये भी पता चला कि 2005 में पाकिस्तान NSA का पार्टनर था. हालांकि ऐसा पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता कि NSA ने भारत से जुड़ी जानकारी पाकिस्तान के साथ शेयर की थी. स्नोडन वर्तमान यानी साल 2022 में रूस में कहीं है. और टेम्पररी असायलम पर रह रहे हैं. आए दिनों वो गवर्मेंट सर्विलेंस आदि से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय देते रहते हैं. जिनमें पेगासस और आधार के मुद्दे पर दी गई राय भी शामिल है.