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तारीख़ एपिसोड 50: जब एक तस्वीर देखकर खुद को नहीं रोक पाए लोग

‘ऐना कोर्निकोवा’ वायरस बनाने वाले स्टूडेंट को इतनी कम सज़ा क्यूं हुई?

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लेफ़्ट में ऐना कोर्निकोवा, राईट में 'ऐना कोर्निकोवा वायरस'. (तस्वीर: AFP)
ऐना कोर्निकोवा. लॉन टेनिस प्लेयर. रशियन. खेलती ‘सो-सो’ ही थी. लेकिन फिर भी उसके चाहने वाले दुनिया में कई थे. इतने कि उनके सामने उस वक्त के टॉप टेनिस प्लेयर्स की भी उतनी पूछ नहीं थी. उनकी दीवानगी ही थी, जिसके चलते लोगों ने अपने कंप्यूटर में एक वायरस को निमंत्रण दे डाला. एक-दो नहीं दुनिया भर के करोड़ों कंप्यूटर प्रभावित हुए. आज तारीख़ में बात इसी ‘ऐना कोर्निकोवा’ वायरस की.
‘ऐना कोर्निकोवा’ वायरस. 11 फ़रवरी, 2001 को शुरू हुए इस वायरस ने कितने लोगों, कितने कंप्यूटर्स को प्रभावित किया, अगर इसका हिसाब लगाया जाए तो इसे ‘आई लव यू वायरस’ के बाद, तब तक का दूसरा सबसे बड़ा वायरस कहा गया था. यूं अंदाज़ा लगाना आसान था कि ये किसी बड़ी एज़ेंसी या किसी बड़े हैकर का काम रहा होगा. लेकिन नहीं. ये काम था 20 साल के एक स्टूडेंट का. स्टूडेंट नीदरलैंड का था. नाम था, जेन डे विट. जो इंटरनेट पर अपना छद्म नाम ‘ऑन दी फ़्लाई’ इस्तेमाल करता था. उसका वायरस फैलाने का तरीक़ा बहुत ही आसान था. वो लोगों को एक ई मेल भेजता था, जिसमें ऐना कोर्निकोवा की एक धुंधली सी छवि बनी रहती थी. तस्वीर आपको प्रेरित करती थी कि आप उस छवि पर क्लिक करें. उस तस्वीर पर जैसे ही आपने क्लिक किया, समझो काम खल्लास. क्यूंकि ऐना कोर्निकोवा की तस्वीर के पिक्सल्स तो नहीं सुधरते, लेकिन वो आपके कंप्यूटर के बैकग्राउंड में एक प्रोग्रामिंग स्क्रिप्ट चला देती. और फिर यही मेल आपके सारे कॉन्टेक्ट्स को भेज देती.
जेन डे विट जेन डे विट


इंट्रेस्टिंग बात ये थी कि, ‘ऐना कोर्निकोवा’ वायरस दअरसल माइक्रोसॉफ़्ट द्वारा बनाए प्रोग्राम्स के माध्यम से ही फैलता था. मतलब ये वायरस उन्हीं ई-मेल्स से लॉन्च होता था जो ई-मेल माइक्रोसॉफ़्ट आउटलुक में खोले जाते, और इसके बाद ये माइक्रोसॉफ़्ट एक्सेल या माइक्रोसॉफ़्ट आउटलुक में स्टोर किए गए कॉन्टेक्ट्स को अपना निशाना बनाता. मतलब उन कॉन्टेक्ट्स को अपने आप मेल चले जाता. वो भी आपकी ईमेल आईडी से.
न केवल इस वायरस की प्रोग्रामिंग एक अमेच्योर द्वारा की गई थी, बल्कि, इसे उस छात्र ने सिर्फ़ कुछ घंटों में बना लिया था. एंटी वायरस कंपनी, ‘सोफ़ोस’ के ग्राहम क्लूले ने तब BBC को बताया था कि -
ये वायरस प्रोग्राम कोई बहुत मेहनत से नहीं बनाया गया था. ना ही इसमें कुछ ऐसा था, जो ओरिजनल कहा जा सके. लेकिन फिर भी ये सफल रहा था. क्योंकि ये मानव की कमियों के साथ खेल जाता था. ठीक ‘आई लव यू वायरस’ की तरह. लोग आज भी उसी पुरानी चाल से फंस जा रहे हैं.
ये भी जानना इंट्रेस्टिंग है कि ये बंदा, जेन डे विट, आख़िर पकड़ा कैसे गया. इसे पकड़ने के लिए FBI ने डेविड नाम के एक शख़्स का सहारा लिया. डेविड की आइडेंटिटी ये, कि उसने इससे दो साल पहले ‘मलिसा’ नाम का वायरस बनाकर तहलका मचाया था और अभी अमेरिकी जेल में था. डेविड को बाद में, यानी 01 मई, 2002 को 20 महीने का कारावास और 5,000 डॉलर का जुर्माना लगाया गया. लेकिन सवाल ये कि हमारी स्टोरी के नायक या कहिए खलनायक ‘डे विट’ का क्या हुआ?
डेविड, जिन्होंने जेन डे विट का पता लगाने में मदद की. (तस्वीर: AFP) डेविड, जिन्होंने जेन डे विट का पता लगाने में मदद की. (तस्वीर: AFP)


वायरस के लॉन्च के तीन दिन बाद ही इस छात्र ने पुलिस के सामने आत्मसपर्पण कर दिया. डे विट को नीदरलैंड के ल्यूवार्डेन (Leeuwarden) शहर की अदालत ने ‘दुर्भावना से डेटा स्प्रेड करने’ का दोषी पाया. इसी दौरान अमेरिकी एज़ेंसी FBI ने ल्यूवार्डेन की अदालत को ये सबूत पेश किया कि इस घटना से क़रीब 1,66,000 डालर्स का नुक़सान हुआ है. हालांकि बाद में कोर्ट ने पाया कि जेन डे विट के मन में किसी को नुक़सान पहुंचाने की दुर्भावना नहीं थी. और यूं उसे सिर्फ़ 20 घंटे की कम्यूनिटी-सर्विस करने की सज़ा मिली.
जेन डे विट ने बाद में ये भी कहा कि-
मैंने ये वायरस इसलिए विकसित किया कि मैं देखना चाहता था कि दुनिया भर की IT कम्यूनिटी, ‘आई लव यू’ जैसे कई वायरस अटैक्स के बाद कितनी सचेत है.
जेन डे विट ने ऐना कोर्निकोवा की सुंदरता से रीझ गए उन लोगों को भी दोषी माना, जिन्होंने इस ईमेल के अटेचमेंट को खोलने का प्रयास किया.
हालांकि राहत की बात ये थी कि ‘ऐना कोर्निकोवा’ वायरस कंप्यूटर में स्थित किसी प्रोग्राम या किसी डेटा को किसी प्रकार का कोई नुक़सान नहीं पहुँचाता था. लेकिन लोग 8-9 महीने पहले आए ‘आई लव यू’ वायरस रूपी गर्म दूध से अपना मुंह जला चुके थे, इसलिए अब वो ‘ऐना कोर्निकोवा’ जैसी छाछ भी फूंक-फूंक कर पी रहे थे. ‘आई लव यू’ वायरस क्या था, और इसने दुनिया को कैसे प्रभावित किया इसकी बात तारीख़ के किसी और एपिसोड में. तब तक के लिए इजाज़त दीजिए.