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जब CIA ने बनाया भारत में सरकार गिराने का प्लान

साल 1957 में केरल में हुए चुनाव में पहली बार कोई कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता में आई थी. इस खबर ने अमेरिका में CIA के कान खड़े कर दिए थे.

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EMS नम्बूदरीपाद मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए और अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन CIA से ब्रीफ लेते हुए (तस्वीर: द हिन्दू एन्ड गेटी)

साल 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी का विघटन होता है. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया CPI से अलग होकर CPI (M) (M यानी मार्क्सिस्ट) बनती है.

टी.वी थॉमस, केरल की पहली सरकार में लेबर ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर हुआ करते थे. 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी का विघटन हुआ तो थॉमस की घरेलू जिंदगी पब्लिक में आ गई. वजह थी उनकी पत्नी KR गौरी अम्मा का CPI (M) में चले जाना. जबकि थॉमस ने CPI में ही रहना चुना.1965 में दोनों अलग हो गए लेकिन घर फिर भी एक ही रहा.1967 की यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में दोनों साथ साथ मंत्री भी थे.

खास बात ये है कि जब केरल में ये सब कुछ हो रहा था. सुदूर अमेरिका में अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन पति-पत्नी के इस झगड़े के बारे में CIA को जवाब तलब कर रहे थे. कई साल बाद डीक्लासिफ़ाइ हुए एक टॉप सीक्रेट डॉक्यूमेंट से ये बात पता चली. इतना ही नहीं डॉक्यूमेंट में इस झगड़े की वजह भी बताई गई थी. अमेरिकी इंटेलिजेंस के अनुसार CPI धड़ा प्रो रशिया था जबकि CPI (M) प्रो चाइना. और यही बात पति-पत्नी के बीच मतभेद का बड़ा कारण बनी.

बहरहाल, सवाल उठता है कि अमेरिका के राष्ट्रपति के डेली ब्रीफ में भारत के एक राजनैतिक दंपति की निजी जिंदगी से जुडी डिटेल्स क्यों शामिल थीं? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए हमें भारत में कम्युनिस्टों की सरकार और CIA में उनकी दिलचस्पी की कहानी जाननी होगी. 

दुनिया की पहली लोकतान्त्रिक कम्युनिस्ट सरकार 

1 नवंबर 1956 को केरल को राज्य का दर्ज़ा मिला. फरवरी 1957 में जनरल इलेक्शन के साथ केरल में भी चुनाव करवाए गए. इन चुनावों में CPI को 126 में से 60 वोट मिले. और वो कुछ इंडेपेंडेंट्स के साथ मिलकर सरकार बनाने में सफल हो गए. 5 अप्रैल 1957 को इलमकुलम मनक्कल शंकरन नम्बूदरीपाद, आमतौर पर जिन्हें EMS के नाम से जाना जाता था, इस सरकार के मुखिया बने.

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EMS नम्बूदरीपाद (तस्वीर: द हिन्दू अखबार)

आज ही के दिन यानी 13 जून, 1909 को EMS नम्बूदरीपाद का जन्म हुआ था. एक ब्राह्मण परिवार में जन्में नम्बूदरीपाद ने कांग्रेस से ही अपने राजनैतिक करियर की शुरुआत की थी. वो जय प्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया समेत कांग्रेस के एक धड़े, सोशलिस्ट पार्टी के मेंबर थे. बाद में वो CPI से जुड़ गए. 
कम्युनिस्ट भारत में अपने हाथ-पांव फैलाने की कोशिश कर रहे थे. और केरल का सामजिक और राजनैतिक माहौल इसके लिए एकदम मुफीद था. केरल में जाति की लाइंस पूरे देश के मुकाबले और भी गहरी चॉक से खींची गयी थी. जिसके चलते 20वीं सदी के शुरुआती दौर में वहां एक के बाद एक आंदोलन हुए. जो महिलाओं और पिछड़ों के अधिकार, मसलन शिक्षा, मंदिर प्रवेश आदि से जुड़े हुए थे.

केरल में कम्युनिस्टों का अच्छा खासा सपोर्ट था. इसलिए साल 1957 के चुनावों में उन्होंने CPI के झंडे तले चुनाव लड़ा और दुनिया की पहली लोकतान्त्रिक कम्युनिस्ट सरकार बनाई. दुनिया में कहीं भी, ये पहली बार हुआ था कि बन्दूक की नोक की बजाय अंगूठे की स्याही के बल पर कम्युनिस्ट सत्ता में आए थे. इस बात के चर्चे भारत में उतने नहीं हुए, जितने विदेशों में. मॉस्को में CPI के जीतने का खूब जश्न मनाया गया.

अमेरिका में घंटियां बजने लगीं 

अब अमेरिका में क्या हुआ होगा, आप अंदाजा लगा सकते हैं. वॉशिंगटन में घंटियां बजने लगी. कोल्ड वॉर का दौर था. वाशिंगटन को डर था कि अगर केरल एक्सपेरिमेंट सफल हो गया तो पूरे साउथ ईस्ट एशिया में लाल सलाम की बयार बहने लगेगी.

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टीवी थॉमस और केआर गौरी अम्मा (तस्वीर: फाइल फोटो)

केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने सत्ता में आते ही सुधार क़ानून लागू कर दिए. पूरे केरल में सस्ते गल्ले की दुकानें खोली गई. राशन वितरण प्रणाली को टाइट किया गया. साथ ही सरकार एक बिल लाई जिसके बाद छोटे किसानों को जमीन से बेदखल नहीं किया जा सकता था. इस क़ानून के तहत सरप्लस जमीन का बंटवारा भी होना था. साथ ही एक व्यक्ति कितनी जमीन रख सकता है, इस पर भी लिमिट लगा दी गयी. मजूदरों की मजदूरी बढ़ाई गई.

केरल में उच्च वर्ग के लोग और धार्मिक संगठन अब तक चुप थे. लेकिन फिर एक और बिल आया जिसने हंगामा खड़ा कर दिया. नम्बूदरीपाद शिक्षा सुधारों को लेकर एक बिल लाए. जो सीधे प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधन में दखल देने वाला था. इस बिल के तहत टीचरों की सैलरी बढ़ाई जानी थी और स्कूल प्रबंधन को दुरुस्त किया जाना था. बिल का एक हिस्सा ये भी था कि अगर प्राइवेट स्कूल के प्रबंधन में गड़बड़ी पाई गयी तो सरकार उसका प्रबंधन अपने कब्ज़े में ले सकती थी.

प्राइवेट स्कूल कमाई का बड़ा जरिया थे. जिन्हें अधिकतर उच्च वर्ग या धार्मिक संगठनों द्वारा चलाया जाता था. नायर सर्विस सोसायटी और कैथोलिक चर्च ऐसे कई स्कूलों को चलाते थे. इन्होंने मिलकर ‘विमोचन समारम’ नाम से सरकार के खिलाफ एक आंदोलन शुरू कर दिया. बाद में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग भी इस आंदोलन से जुड़ी और आंदोलन ने बड़ा रूप ले लिया. कांग्रेस भी पीछे नहीं रही.

इंदिरा गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं 

प्रधानमंत्री नेहरू का कम्युनिस्टों से कोई ख़ास विरोध नहीं था, लेकिन सरकार का एक दक्षिणपंथी धड़ा कम्युनिस्टों से कट्टर विरोध रखता था. 2 फरवरी 1959 को इंदिरा गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. तब केरल में विरोध प्रदर्शनों का दौर जोरों पर था. कई जगह हिंसा हुई. और पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोली भी चलाई. शिक्षा बिल का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, लेकिन उन्होंने इस पर रोक लगाने से मना कर दिया. ये नम्बूदरीपाद सरकार की जीत थी.

Indira and Feroze Gandhi
इंदिरा गांधी और फ़िरोज़ गांधी (तस्वीर: Getty)

कांग्रेस का दक्षिणपंथी धड़ा इंदिरा के अध्यक्ष बनने से उत्साहित था. इनमें से कई नेता ऐसे थे जिन्होंने इंदिरा को अध्यक्ष बनाने में खासा सहयोग दिया था. इस धड़े का नेतृत्व कर रहे थे गृह मंत्री गोविन्द बल्लभ पंत. केरल के गवर्नर के रामकृष्ण राव भी इसी धड़े के नेता माने जाते थे.

अप्रैल 1959 में इंदिरा केरल का दौरा करती हैं. और कम्युनिस्टों के खिलाफ जोरदार भाषण देते हुए उन्हें चीन का एजेंट करार देती हैं. मई आते-आते केरल में विरोध प्रदर्शन उग्र रूप ले चुके थे. पुलिस की गोलीबारी में 20 से ज्यादा लोग मारे जा चुके थे. वहीं सैकड़ों घायल हुए थे.

20 जून को इंदिरा प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखती हैं, “इस संघर्ष को धार्मिक संघर्ष कहने का कोई तुक नहीं है. ये उतना हे कम्युनल है, जितनी कि केरल में कोई भी और चीज, खुद कम्युनिस्ट भी. कम्युनिस्टों से बड़ी चालाकी से नायरों को कैथोलिक ईसाईयों से लड़वाया. और अब वो इझावा लोगों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं ”

इंदिरा की मुखालफत करने वालों की कमी भी नहीं थी. इसमें सबसे आगे उनके ही पति फ़िरोज़ गांधी थे. तब उन्होंने कांग्रेस और इंदिरा पर इल्जाम लगाते हुए कहा कि वो जातिवादी और सांप्रदायिक ताकतों के साथ मिलकर एक लोकतान्त्रिक सरकार को गिराने की कोशिश कर रहीं हैं. इसके दो दिन बाद यानी 22 जून को नेहरू केरल का दौरा करते हैं. वो कोई कड़ा कदम नहीं उठाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने नम्बूदरीपाद से मुलाकात कर उनसे इस्तीफ़ा देने को कहा. उन्होंने कहा कि नए सिरे से चुनाव कराके इस बात की परीक्षा हो जाएगी कि जनता किसका समर्थन करती है. नम्बूदरीपाद इंकार कर देते हैं.

तब नम्बूदरीपाद, आगे जाकर सुप्रीम कोर्ट के जज बने VR कृष्ण अय्यर को नेहरू से मिलने भेजते हैं. और नेहरू को केरल सरकार गिराने में कांग्रेस की भूमिका से अवगत कराते हैं. इसके बाद नेहरू इंदिरा को बुलाकर पूछते हैं कि कांग्रेस केरल में ये सब क्या कर रही है. इंदिरा का जवाब और आगे का घटनाक्रम जानने से पहले थोड़ा विषयांतर लेते हैं.

CIA ने कांग्रेस को फंड किया था? 

1970 में डेनियल पेट्रिक नाम एक पूर्व अमेरिकी राजनयिक ने एक किताब लिखी. ‘अ डेंजरस प्लेस’ नाम की इस किताब में डेनियल ने दावा किया कि केरल सरकार को गिराने के लिए CIA ने कांग्रेस को दो बार फंडिंग की थी.

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विमोचन समारम के दौरान सरकारी ऑफिस के आगे प्रदर्शन करते हुए लोग (तस्वीर: Keralaculture .org) 

1991 में एक बार और ये जिन्न बाहर निकला. नम्बूदरीपाद सरकार के दौरान भारत में अमेरिकी राजनयिक रहे एल्सवर्थ बनकर ने 1991 में एक इंटरव्यू में दावा किया कि महाराष्ट्र कांग्रेस लीडर SK पाटिल के थ्रू पैसा पहुंचाया गया था. एक और अमेरिकी अधिकारी ने तब इस बात की तस्कीद की थी. 1996 में एक ऑस्ट्रेलियन इवेंजलिस्ट (ईसाई प्रचारक) ने दावा किया कि उन्होंने नम्बूदरीपाद सरकार के खिलाफ प्रचार के लिए केरल के राजनेता डॉक्टर जॉर्ज थॉमस को पैसा दिया था.

उस दौर के कई टॉप सीक्रेट डाक्यूमेंट्स आगे जाकर डीक्लासिफाय हुए. जिसके लिए अमेरिकी लोकतंत्र को बधाई मिलनी चाहिए. इन डाक्यूमेंट्स से पता चलता है कि केरल में कम्युनिस्टों के उभार ने CIA में खलबली मचा दी थी. इन कागजों में केरल सरकार को गिराने के कई तरीकों के बारे में चर्चा की गई है. मसलन कांग्रेस को सपोर्ट करना, अमेरिकी निवेशकों को केरल में निवेश से रोकना, केरल तक पहुंचने वाली अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय मदद को रोकना. इतना ही नहीं इन दस्तावेज़ों से ये भी पता चलता है कि CIA के पास तब केरल कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के पूरी लिस्ट थी. साल 1964 में जब CPI के दोफाड़ हुए, इसकी भनक भी CIA को पहले से लग गई थी.

इन दस्तावेजों और बयानों की मानें तो साल 1959 में केरल की नम्बूदरीपाद सरकार को गिराने का काम, CIA की मदद से किया गया था. 

बाप-बेटी आमने-सामने 

जून 1959 में इस मामले में पिता और बेटी आमने सामने थे. VR कृष्ण अय्यर से जब नेहरू को केरल में कांग्रेस के रोल का पता चला तो उन्होंने इंदिरा को बुलाया और इस बाबत पूछा. कृष्ण अय्यर ने इंदिरा को भी पूरी कहानी बताई लेकिन इंदिरा सुनने को तैयार न थीं.

Nehru with EMS
केरल में प्रधानमंत्री नेहरू का स्वागत करते हुए EMS नम्बूदरीपाद (तस्वीर: indianpunchline.com)

नेहरू हड़बड़ी में कोई कदम नहीं उठाना चाहते थे. इसलिए जून महीने में उन्होंने एक और बार नम्बूदरीपाद को मीटिंग के लिए बुलाया. शिमला के पास मशोबरा में ये मीटिंग हुई. मीटिंग के बाद जब एक पत्रकार ने नम्बूदरीपाद ने पूछा कि प्रधानमंत्री ने क्या पेशकश की तो उन्होंने जवाब दिया,

"बिलकुल वही जो एक कश्मीरी पंडित को केरल के नम्बूदरी पंडित के आगे पेश करना चाहिए था, फिश, मीट और चिकन."

बातचीत फेल रही थी. इसके बाद नेहरू ने इस मामले में केरल के राज्यपाल से रिपोर्ट मांगी. सरकार को बर्खास्त करने का कार्यक्रम शुरू हो चुका था. और राज्यपाल की रिपोर्ट पहला कदम थी. संविधान के आर्टिकल 356 के तहत राष्ट्रपति के पास ये ताकत है. केरल से पहले 4 बार राज्य सरकारों को बर्खास्त किया गया था. लेकिन ये सब मामले वो थे जब राज्य सरकार ने अपना बहुमत खो दिया था. लॉ एंड आर्डर के चलते सरकार बर्खास्तगी की ये पहली घटना थी.

उन दिनों त्रिवेंद्रम से दिल्ली तक डायरेक्ट फ्लाइट नहीं थी. मद्रास से होकर जाना होता था. इसलिए गवर्नर की रिपोर्ट आने में एक एक्स्ट्रा दिन लगा. उधर गृह मंत्रालय इतनी जल्दी में था कि IB को निर्देश दिया गया कि फोन पर ही रिपोर्ट पढ़कर सुनाई जाए. ताकि सरकार की कार्रवाई शुरू हो सके.

फ़िरोज़ गांधी की बगावत 

30 जुलाई को प्रधानमंत्री नेहरू नम्बूदरीपाद को एक चिट्ठी लिखते हैं. जिसमें लिखा था कि लॉ एंड आर्डर की समस्या के चलते केंद्र को हस्तक्षेप करना ही होगा. अगले ही दिन नम्बूदरीपाद सरकार गिरा दी जाती है. और केरल में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाता है. नम्बूदरीपाद इस मौके पे कहते हैं, 

“जिन्हें पीलिया हो गया हो, उन आखों को सब पीला ही दिखाई देता है.”

First Kerala Cabinet
केरल की पहली कैबिनेट (तस्वीर: Wikimedia Commons)

फ़िरोज़ गांधी इस घटना से इतना झल्लाए कि उन्होंने एक बार नेहरू के सामने ही इंदिरा को फासिस्ट कह दिया था. स्वीडिश पत्रकार बरटिल फॉक ने तीन मूर्ति भवन में नाश्ते के वक्त हुए इस घटनाक्रम का जिक्र किया है.

6 महीने बाद केरल में दोबारा चुनाव करवाए जाते हैं. कांग्रेस 60 सीटें जीतती हैं और मुस्लिम लीग के साथ सरकार बना लेती है. और इसके 4 महीने बाद इंदिरा कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे देती हैं. फ़िरोज़ और उनके रिश्ते में परमानेंट दरार आ चुकी थी. CIA में नम्बूदरीपाद सरकार के गिरने का क्या रिएक्शन हुआ?

एलन वेल्श डलस 1952 से 1961 के बीच CIA के डायरेक्टर हुआ करते थे. ये वही डलस थे जिनके इशारे पे 1953 में CIA ने ईरान की लोकतान्त्रिक सरकार को गिराने का षड्यंत्र किया था. केरल की पूरी रिपोर्ट उन तक पहुंचा करती थी. केरल सरकार गिरने के मौके पर US नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल में उन्होंने बयान दिया,

“कम्युनिस्ट चाहे हार गए हों लेकिन पब्लिक में उनका सपोर्ट बाकी है. असली लड़ाई बंगाल में होनी है”

इसके बाद 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी का विघटन होता है और नम्बूदरीपाद CPI (M) में चले जाते हैं. 1967 में वो गठबंधन सरकार के थ्रू दुबारा मुख्यमंत्री बनते हैं. लेकिन केवल दो सालों के लिए.

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