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ब्रिटिश गवर्नर मरते-मरते बचा, भगत सिंह बोले, खुशी मनाओ

कहानी हरी किशन तलवार की , खैबर पख्तूनख्वा में पैदा हुआ एक क्रांतिकारी जो 21 की उम्र में हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गया और जिसका जिक्र भगत सिंह ने अपने एक खत में किया था.

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हरी किशन तलवार जिनका एक नाम हरी किशन सरहदी भी था (तस्वीर: पंजाब स्टेट आर्काइव्स / सांकेतिक तस्वीर)

शुरुआत एक हाइपोथेटिकल से. मान लीजिए एक आदमी किसी का क़त्ल करने की कोशिश करता है. लेकिन दूसरा आदमी बच जाता है. अब इस आदमी को जेल होती है. मुकदमा चलता है. इस आदमी का वकील उसे एक सलाह देता है. सलाह ये कि अदालत में कहना, प्रयास हत्या का नहीं सिर्फ घायल करने का था.
 
अब फ़र्ज़ कीजिए ये कोई आम हत्या का प्रयास नहीं था. एक राजनैतिक कोशिश थी. वैसी ही जैसे क्रांतिकारी किया करते थे. अब सवाल उठता है, अगर क्रांतिकारी ऐसे बयान से बच सकता है, तो क्या उसे अदालत में झूठ बोल देना चाहिए?

अगर आप क्रांतिकारी के प्रति हमदर्दी रखते हैं तो इसका जवाब हां में हो सकता है. तर्क हो सकता है कि एक आतताई सरकार के खिलाफ झूठ बोलने में कोई हर्ज़ नहीं. इस तरह वो अगर बच गया तो आगे और काम कर पाएगा. लेकिन सच बोल देगा तो हो सकता है फांसी पर चढ़ा दिया जाए. अब हाइपोथेटिकल से हकीकत पर चलते हैं. जून 18, 1931 को भगत सिंह का एक खत हिन्दू पञ्च नाम की पत्रिका में छपा. साहित्य अकादमी अवार्ड विजेता प्रोफ़ेसर चमन लाल द हिन्दू अखबार के एक अंक में भगत सिंह के इस खोए हुए खत की चर्चा करते हैं. 

ये खत भगत सिंह ने लाहौर जेल से लिखा था. क्या था इस खत में? 
इस खत में भगत सिंह एक अदालती केस के बहाने उस सवाल का जवाब देते हैं, जो हमने शुरू में उठाया था. क्या एक क्रांतिकारी को जान बचाने के लिए झूठ बोलना चाहिए? 
क्या था भगत सिंह का जवाब. और क्या था वो केस जिसने भगत सिंह के सामने ये सवाल खड़ा कर दिया था?

हरी किशन तलवार 

साल 1908 की बात है. नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस का इलाका, जिसे अब खैबर पख्तूनख्वा के नाम से जाना जाता है, यहां लाला गुरदासमल और उनकी पत्नी श्रीमती मथुरा देवी रहा करते थे. 2 जनवरी को यहां एक बेटे का जन्म हुआ. जिसका नाम हरी किशन रखा गया. लाला गुरदासमल शिकार का शौक रखते थे. अपने बेटे को भी उन्होंने माहिर निशानेबाज़ बनाया. 

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लाला गुरदासमल और उनकी पत्नी श्रीमती मथुरा देवी (तस्वीर:  Punjab State archives)

आगे चलकर जब फ्रंटियर गांधी के नाम से मशहूर खान अब्दुल गफ्फार खान ने खुदाई खिदमतगार या जिसे लाल कमीज वालों का आंदोलन कहते थे, शुरू किया तो लाला गुरदासमल का पूरा परिवार इससे जुड़ा. हरी किशन महज 17 साल के थे जब 1925 में काकोरी काण्ड हुआ. और इस केस के चलते हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की ख़बरें पूरे भारत में फ़ैली. हरी किशन भी क्रांतिकारियों से प्रभावित हुए और आन्दोलन से जुड़ गए. लाहौर कांस्पीरेसी केस में जब भगत सिंह गिरफ्तार हुए और उनके विचार दुनिया के सामने आए तो हरी किशन ने उन्हें अपना गुरु मान लिया. साल 1930 में एक मामले में हरी किशन को जेल जाना पड़ा. मामला छोटा था इसलिए जेलर ने एक खत पर दस्तखत करवाए और रिहा कर दिया. खत अंग्रेज़ी में था, इसलिए हरी किशन को बताया गया कि ये रिहाई के कागज़ हैं. जबकि असल में उसमें वादा किया गया था कि आगे किसी क्रन्तिकारी गतिविधि में भाग न लेंगे. 

यहीं से हरी किशन ने अंग्रेज़ सरकार से बदले की ठान ली. आजादी के लिए क्रांति का रास्ता वो पहले ही अपना चुके थे. दिसंबर 1930 में क्रांतिकारियों के एक ग्रुप ने पंजाब के गवर्नर, ज्यॉफ्री डी मोंटमोरेंसी को मारने का प्लान बनाया. हरी किशन भी इस ग्रुप से जुड़े हुए थे. पंजाब यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में इस हत्या को अंजाम दिया जाना था. वहां और भी बहुत से लोग मौजूद होते, इसलिए जरूरी था कि कोई शातिर निशाने बाज़ इस काम को अंजाम दे. ताकि आम लोगों को कोई हानि न पहुंचे. यहीं पर हरी किशन के बचपन की ट्रेनिंग काम आई और उन्हें इस काम का जिम्मा सौंप दिया गया. उन्होंने 95 रूपये का एक रिवाल्वर और कुछ गोली खरीदी. घर जाकर पिता को बताया तो लाला गुरदासमल बहुत खुश हुए. उन्होंने हरी किशन से निशानेबाजी की और ट्रेनिंग करवाई. 

पंजाब के गवर्नर की हत्या का प्रयास 

इस मिशन के लिए 23 दिसंबर, 1930 का दिन तय किया गया. उस रोज़ दोपहर 1 बजकर 15 मिनट पर पंजाब यूनिवर्सिटी का दीक्षांत समारोह ख़त्म होना था. डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन भी स्पीच देने के लिए वहां मौजूद थे.

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भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन (तस्वीर: Wikimedia Commons)

प्लान के तहत हरी किशन अंग्रेज़ी पोशाक पहने गैलरी में बैठे हुए थे. जैसे ही दीक्षांत समारोह खत्म हुआ, हरी किशन अपनी चेयर के ऊपर खड़े हो गए. ज्यॉफ्री डी मोंटमोरेंसी कुछ दूर ही बैठे हुए थे. हरी किशन ने निशाना लगाकर दो गोलियां चलाईं. एक गोली गवर्नर के बाएं हाथ में लगी. और दूसरी कूल्हे के थोड़ा ऊपर. जैसा कि लाज़मी था गोलियां चलते ही हॉल में भगदड़ मच गई. डॉक्टर राधाकृष्णन ने बाद में इस घटना को याद करते हुए बताया कि गोली चलाते वक्त हरी किशन ने खास ध्यान रखा था कि कहीं गोली उन्हें ना लग जाए. बक़ौल राधाकृष्णन, हरी सिंह ने उनसे कहा था कि वो ‘डॉक्टर साहब’ पर गोली चलाने का रिस्क नहीं ले सकता था. 

बहरहाल, गोली चलते ही पुलिस हरी किशन की ओर बढ़ी. इस दौरान एक गोली सब इंस्पेक्टर चनन सिंह को भी लगी. और बाद में अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई. एक गोली सब इन्स्पेक्टर वर्धवान के जांघ में भी लगी. साथ ही एक इंग्लिश महिला, डॉक्टर मेडरमॉट को भी काफी चोट आई. इतना सब कुछ हुआ लेकिन हरी किशन जिसे निशाना बनाने आए थे वो बच गया. गवर्नर ज्यॉफ्री डी मोंटमोरेंसी को दो गोलियां लगी लेकिन इनमें से कोई भी जानलेवा नहीं थी. 

निशाना कैसे चूक गया? 

हरी किशन की पिस्तौल में 6 गोलियां थीं और 6 के 6 ख़त्म हो चुकी थीं उन्होंने अपना रिवाल्वर रीलोड करने की कोशिश की. लेकिन इस बीच पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया. इसके बाद हरी किशन को लाहौर जेल ले जाया गया. लाहौर किले में बनी ये जेल तब भारत की सबसे खूंखार जेलों में से एक हुआ करती थी. यहां हरी किशन को जमकर यातनाएं दी गईं. पुलिस ने उन्हें जनवरी के महीने में 14 दिन तक नंगा बर्फ पर लिटाए रखा. 

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गवर्नर पर हुए हमले की खबर (तस्वीर: NYtimes)

उनके पिता लाला गुरदासमल को जेल में शिनाख्त के लिए बुलाया गया. तब तक पुलिस ने हरी किशन की वो हालत कर दी थी कि चेहरा पहचाना नहीं जा रहा था. सर से खून बह रहा था. लाला गुरदासमल ने ये सब देखा. ऐसी हालत में कोई पिता शायद अपने बेटे का हाल पूछता लेकिन लाला गुरदासमल पश्तो में बोले, “ये बता, इतनी तैयारी के बाद भी निशाना कैसे चूक गया”.

सवाल सुनकर हरी किशन के होंठों पर मुस्कान आ गई. इसके बाद उन्होंने निशाना चूक जाने का कारण बताया. दरअसल वो जिस चेयर पर खड़े हुए थे उसका एक पैर टेड़ा था. इसलिए चढ़ते ही वो हिलने-डुलने लगी. और इसी चक्कर में हरी किशन का निशाना चूक गया. लाहौर जेल में जब हरी सिंह कैद थे, उसी दौरान भगत सिंह भी वहीं थे. उन्होंने अपने आइडल से मिलने की मांग की. लेकिन जेल प्रशासन ने इजाज़त नहीं दी. तब हरी सिंह ने भूख हड़ताल शुरू कर दी. और तब तक जारी रखी जब तक उन्हें भगत सिंह से मिलने की पर्मिशन नहीं मिल गई.

'प्रोपोगंडा थ्रू डीड’

जेल में रहते हुए भगत सिंह को पता चला की हरी किशन के वकील ने उन्हें सलाह दी थी कि वो अपना जुर्म ना क़बूलें. बल्कि ये कहें कि उनका मकसद सिर्फ़ गवर्नर को घायल करना था. तब भगत सिंह ने क्रांतिकारियों के नाम वो ख़त लिखा जिसके बारे में हमने आपको शुरुआत में बताया था. इस ख़त में भगत सिंह लिखते हैं, 

“श्री हरिकिशन की कार्रवाई स्वयं संघर्ष का हिस्सा थी, चेतावनी नहीं. इसलिए उस वकील ने ये कहकर क्या हासिल किया कि उसका इरादा राज्यपाल को मारने बल्कि केवल चेतावनी देने का था?”

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भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गयी थी (तस्वीर: द ट्रिब्यून) 

आगे भगत सिंह कहते हैं, 

“ऐसे काम के पीछे आदमी का एक निश्चित उद्देश्य होता है. गिरफ्तारी के बाद उस काम का राजनीतिक महत्व कम नहीं होना चाहिए. ऐसा नहीं होना चाहिए कि राजनैतिक उद्देश्य से ज्यादा व्यक्ति महत्वपूर्ण हो जाए.”

इसी खत में भगत सिंह का एक बहुत महीन विचार प्रकट होता है. जिसमें वो हिंसा और क्रांति के अंतर को परिभाषित करते हैं. हरी किशन के हमले में गवर्नर मोंटमोरेंसी बच निकले थे. इस पर वो लिखते हैं, 

“कार्रवाई की विफलता के बाद भी, आरोपी को इसे खेल भावना की तरह स्वीकार करना चाहिए. गवर्नर बच निकले लेकिन उसका (हरी किशन का) उद्देश्य पूरा हो चुका था. इसलिए उसे राज्यपाल के बच निकलने पर भी खुश होना चाहिए. क्रांति का उद्देश्य किसी व्यक्ति को मारना नहीं है. इस काम का सिर्फ उतना ही राजनैतिक महत्व है जितना ये एक माहौल बनाने में मदद करता है . इंडिविजूअल एक्शन इसलिए किया जाता है ताकि लोगों का मॉरल सपोर्ट हासिल किया जा सके. इसलिए हम इसे ‘प्रोपोगंडा थ्रू डीड’ यानी ‘काम के माध्यम से प्रचार’ का नाम देते हैं.”

हरी किशन को फांसी 

हरी किशन को इस केस में फांसी की सजा मिली. 9 जून 1931 को मियांवाली जेल लाहौर में उन्हें फांसी पर लटका दिया. उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार भी उसी जगह पर किया जाए, जहाँ उनके आदर्श भगत सिंह का हुआ था. लेकिन पुलिस ने उनका शव भी परिवार को नहीं सौंपा. बेटे की मृत्यु के बाद लाला गुरदासमल को भी गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें भी यातनाएं दी गई. और हरी किशन तलवार की मृत्यु के 25 दिन बाद 4 जुलाई 1931 को उनकी भी मृत्यु हो गई. 

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हरी ईशान तलवार (तस्वीर: पंजाब स्टेट आर्काइव्स)

हरी किशन तलवार से जुड़ा एक दिलचस्प ट्रिविया आपको बताते चलते हैं. फिल्म अभिनेता शाहरुख़ खान के पिता मेरे ताज मुहम्मद NWFP फ्रीडम फाइटर एसोसिएशन, दिल्ली के मेंबर हुआ करते थे. उस दौर में उन्होंने एसोसिएश की पत्रिका में हरी किशन तलवार के ऊपर एक आर्टिकल लिखा था. 

हरी किशन लाला गुरदासमल के इकलौते बेटे नहीं थे. उनके चार भाई और थे. उनमें से एक भगत राम तलवार की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. साल 1941 में भगत राम ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को हाउस अरेस्ट से भागने में मदद की थी. लेकिन नेताजी को इल्म नहीं था कि ये आदमी दरअसल एक जासूस था, जो ब्रिटिश इंटेलिजेंस से लेकर जर्मनों तक के लिए जासूसी कर चुका था.

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