13 फरवरी 1982 की सुबह. तय था कि आज दोपहर फूलन देवी (Phoolan Devi) का सरेंडर होगा. मध्य प्रदेश के भिंड ज़िले में मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह खुद सरेंडर लेने वाले थे. सरेंडर कवर करने के लिए सुबह से मीडिया वालों का तांता लगा हुआ था. मीडिया वाले पहुंचे. फूलन की फोटो खींचनी थी. सो कैमरे से क्लिक की आवाज़ आई और साथ ही आई आवाज़ एक थप्पड़ की. फूलन ने एक पत्रकार को थप्पड़ रसीद दिया था.
जब फूलन देवी के लिए आपस में भिड़ गई यूपी और एमपी पुलिस!
जब फूलन देवी को पकड़ने के लिए SP ने बेटे को दांव पर लगा दिया.

फूलन नहीं चाहती थी कि सरेंडर से पहले कोई उनकी तस्वीर खींचे. उन्हें किसी ने बताया था कि उनकी एक फोटो पर लाख रुपए मिलते हैं. उस सुबह इसी बात को लेकर हंगामा हुआ. फूलन अड़ गई कि जब तक उनके हिस्से के पैसे उन्हें नहीं मिलेंगे तब तक कोई फोटो नहीं खींचेगा. इसके अलावा भी फूलन की कुछ मांगें थीं. मसलन परिवार के साथ-साथ उनकी बकरी और गाय को भी यूपी से मध्य प्रदेश लाया जाए. उन्हें ए श्रेणी की जेल में रखा जाए, भाई को नौकरी और परिवार को ज़मीन दी जाए.
सरकार तैयार थी. होती भी क्यों ना, बड़ी मुश्किल से फूलन को सरेंडर के लिए तैयार कराया गया था. आज इसी सरेंडर की कहानी जानेंगे. जब फूलन को मनाने के लिए पुलिस अफ़सर अपने बेटे को गिरवी रखने के लिए तैयार हो गए थे.
गरीब और तथाकथित 'छोटी जाति' में जन्मी फूलन में पैतृक दब्बूपन नहीं था. उसने अपनी मां से सुना था कि चाचा ने उनकी जमीन हड़प ली थी. दस साल की उम्र में अपने चाचा से भिड़ गई. जमीन के लिए. धरना दे दिया. चचेरे भाई ने सर पे ईंट मार दी. इसकी सजा भी फूलन को ही मिली.घरवालों ने उसकी शादी करा दी. 10 साल की फूलन का ब्याह 30-40 साल बड़े आदमी से कर दिया गया. उस आदमी ने फूलन से बलात्कार किया. कुछ साल किसी तरह से निकले.

धीरे-धीरे फूलन की हेल्थ इतनी खराब हो गई कि उसे मायके आना पड़ गया. पर कुछ दिन बाद उसके भाई ने उसे वापस ससुराल भेज दिया. वहां जा के पता चला कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है. पति और उसकी बीवी ने फूलन की बड़ी बेइज्जती की. फूलन को घर छोड़कर आना पड़ा.
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अब फूलन का उठना-बैठना कुछ नए लोगों के साथ होने लगा. ये लोग डाकुओं के गैंग से जुड़े हुए थे. धीरे-धीरे फूलन उनके साथ घूमने लगी. फूलन ने ये कभी क्लियर नहीं किया कि अपनी मर्जी से उनके साथ गई या फिर उन लोगों ने उन्हें उठा लिया. फूलन ने अपनी आत्मकथा में कहा: शायद किस्मत को यही मंजूर था. गैंग में फूलन के आने के बाद झंझट हो गई. सरदार बाबू गुज्जर फूलन पर आसक्त था. इस बात को लेकर विक्रम मल्लाह ने उसकी हत्या कर दी और सरदार बन बैठा. अब फूलन विक्रम के साथ रहने लगी. एक दिन फूलन अपने गैंग के साथ अपने पति के गांव गई. वहां उसे और उसकी बीवी दोनों को बहुत कूटा.
बेहमई नरसंहारइसके बाद फूलन के गैंग की भिड़ंत हुई ठाकुरों के एक गैंग से. श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर का गैंग बाबू गुज्जर की हत्या से नाराज था और इसका जिम्मेदार फूलन को ही मानता था. दोनों गुटों में लड़ाई हुई. विक्रम मल्लाह को मार दिया गया. कहानी चलती है कि ठाकुरों के गैंग ने फूलन को किडनैप कर बेहमई में 3 हफ्ते तक बलात्कार किया. लेकिन फूलन ने हमेशा यही कहा कि ठाकुरों ने मेरे साथ बहुत मजाक किया. शायद बलात्कार जैसे शब्द को कहने में कतरा रही हों. यहां से छूटने के बाद फूलन एक दूसरे गैंग में शामिल हो गई. 1981 में फूलन बेहमई गांव लौटी. उसने दो लोगों को पहचान लिया, जिन्होंने उसका रेप किया था. बाकी के बारे में पूछा, तो किसी ने कुछ नहीं बताया. फूलन ने गांव से 22 लोगों को निकालकर गोली मार दी.

नरसंहार की इस घटना से रातों-रात फूलन का नाम देश भर में फैल गया था. पुलिस फूलन के पीछे पड़ी. उसके सर पर इनाम रखा गया. मीडिया ने फूलन को नया नाम दिया: बैंडिट क्वीन. इसके बावजूद चम्बल के बीहड़ों का सबसे बड़ा नाम फूलन नहीं थी. ये दर्ज़ा मलखान सिंह को हासिल था. चम्बल का सबसे बड़ा गैंग लीडर. जुलाई 1982 में मलखान सिंह ने सरकार के सामने सरेंडर किया. 30 हज़ार लोगों के सामने हुए इस सरेंडर का ब्योरा देते हुए तब इंडिया टुडे पत्रिका ने लिखा था, “हथियार डालते वक़्त ऐसा लग रहा था जैसे कोई रोमन विजेता जीतकर आया हो.”
मलखान के सरेंडर के साथ ही मध्य प्रदेश पुलिस फूलन के सरेंडर की कोशिश में जुट गई. मलखान के सरेंडर करवाने में SP राजेंद्र चतुर्वेदी का हाथ था. उन्होंने मलखान के ज़रिए फूलन से सम्पर्क करने की कोशिश की. लेकिन मलखान नहीं चाहते थे कि एक और सरेंडर से उनकी लाइम लाइट पर कोई आंच आए. फूलन के गैंग का एक मेम्बर था, घनश्याम. राजेंद्र चतुर्वेदी ने उससे मुलाक़ात की. इसके बाद चतुर्वेदी ने फ़ैसला किया कि वो खुद जाकर फूलन से मिलेंगे.
गोली मार दूंगी5 दिसंबर की रात फूलन के एक गैंग मेम्बर को बाइक में लेकर चतुर्वेदी बीहड़ों की ओर निकले. रात का सफ़र मोटरसाइकल से करना था. वो खुद बाइक चला रहे थे. कुछ दूर जाकर बाइक बाएं मुड़ी और एक झोपड़ी पर जाकर ठहरी. यहां एक घंटा ठहरने के बाद चतुर्वेदी ने आगे का सफ़र जारी रखा. बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में चतुर्वेदी बताते हैं कि चंबल नदी के किनारे खेड़न में उनकी मुलाक़ात मान सिंह से हुई. मान सिंह ने उनके पैर छुए और उन्हें फूलन के पास लेकर गया. कंधे तक बाल और सर पर लाल रूमाल बांधे फूलन ने चतुर्वेदी के पैर छुए. और साथ में 501 रुपए भी रख दिए. इसके बाद दोनों में बात शुरू हुई. फूलन ने उनके लिए चाय बनाई. चतुर्वेदी ने फूलन को बताया कि वो उनके घर गए थे. उन्होंने फूलन को कुछ फोटो दिखाई. एक रिकॉर्डिंग भी सुनाई. इसमें फूलन की बहन मुन्नी की आवाज़ थी.

'फूलन ने चतुर्वेदी से पूछा, आप क्या चाहते हैं? चतुर्वेदी ने जवाब दिया, आपका सरेंडर. ये सुनते ही फूलन भड़क उठी. चिल्ला कर बोली, क्या तुम्हारे कहने से मैं सरेंडर कर दूंगी. मैं फूलन देवी हूं, मैं इसी वक़्त तुम्हें गोली से उड़ा सकती हूं. माहौल गर्माता देखकर मान सिंह ने फूलन को शांत करवाया और चतुर्वेदी को बाकी गैंग से मिलाने ले गए. दोपहर को खाने का वक्त हुआ तो फूलन ने अपने हाथ से बाजरे की रोटी बनाकर चतुर्वेदी को खिलाई.
इसके बाद उन्होंने फूलन की कुछ तस्वीरें खींचकर उन्हें दिखाई. इस बार फूलन ने पूछा, क्या गारंटी है कि सरेंडर करते ही मुझे गोली नहीं मार दोगे?
चतुर्वेदी जवाब देते हैं, भरोसा करिए, मुझे मुख्यमंत्री ने खुद भेजा है. फूलन कहती हैं इसका क्या सबूत है. तब चतुर्वेदी गैंग के किसी मेम्बर को साथ चलकर मुख्यमंत्री से मिलने को कहते हैं. बात बन जाती है. फूलन देवी सरेंडर को राज़ी हो जाती है. लेकिन फिर कुछ दिनों में मामला बिगड़ जाता है.
दिक्कत दो तरफ़ से थी. फूलन की गिरफ़्तारी को लेकर यूपी पुलिस और एमपी पुलिस के बीच खींचतान चल रही थी. फूलन और मान सिंह का परिवार UP में था. और बेहमई नरसंहार के बाद फूलन को लग रहा था कि यूपी जाते ही उनकी हत्या हो जाएगी. इसलिए सरेंडर की शर्त रखते हुए उन्होंने कहा कि उनके परिवार को MP लाया जाए. मान सिंह की भी यही मांग थी.

इस शर्त के तहत 6 जनवरी के दिन एमपी पुलिस फूलन के परिवार को जालौन से भिंड लाती है. इस बीच पीछे से यूपी पुलिस उन पर किड्नैपिंग का केस कर देती है. अगले दिन एमपी पुलिस का एक और दस्ता यूपी पहुंचता है ताकि मान सिंह के परिवार को MP लाया जाए. इस दौरान यूपी पुलिस, MP के 6 पुलिस वालों को गिरफ़्तार कर लेती है. और इतना ही नहीं दोनों की बीच गोलीबारी भी हो जाती है. कुछ हफ़्ते बाद एक और घटना होती है.
बाबा मुस्लिम नाम का एक डकैत मध्यस्थता में शामिल था. 26 जनवरी के रोज़ MP पुलिस उसके इलाक़े में दस्त देती है और मुठभेड़ में बाबा मुस्लिम को गोली लग जाती है. बाबा मुस्लिम किसी तरह अपनी जान बचाकर भागता है. SP राजेंद्र चतुर्वेदी को ये खबर लगती है. वो किसी तरह बाबा मुस्लिम के इलाज का बंदोबस्त करते हैं. लेकिन जैसे ही ये खबर फूलन तक पहुंचती है. वो और उसका गैंग फ़रार हो जाता है.
उनके नज़रिए से देखो तो ये धोखा था. उधर चतुर्वेदी पर सरेंडर के लिए लगातार दबाव बढ़ता जा. वो एक और बार फूलन से मिलने पहुंचते हैं. गांव कनेक्शन से हुई बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार केपी सिंह बताते हैं कि इस बार उनके साथ उनकी बीवी और बच्चा भी था. इस बार चतुर्वेदी फूलन की गोद में अपना बच्चा रखते हुए कहते हैं, अगर यक़ीन नहीं तो ज़मानत के तौर पर मेरा बच्चा रख लो. इसके बाद फूलन देवी तैयार हो जाती हैं.
जेल से संसदइसके बाद आती है सरेंडर की तारीख.13 फरवरी, 1983. पिछली रात फूलन 1 सेकेंड भी सो नहीं पाई थी. घबराहट में कुछ खाया पिया भी नहीं. सुबह एक डॉक्टर को बुलाया जाता है. डॉक्टर बताते हैं कि इनको तनाव है. किसी तरह फूलन को ढांढस बंधाया जाता है.

इसके बाद दोपहर 3 हजार लोगों की भीड़ के सामने फूलन आत्मसमर्पण करती हैं. वहां महात्मा गांधी और देवी दुर्गा की तस्वीरें लगी थीं. समर्पण के लिए ये भी फूलन की एक शर्त थी कि गांधी और देवी की तस्वीर होनी चाहिए. स्टेज पर पहुंचकर फूलन अपनी राइफल और कारतूस बेल्ट उतारती हैं और मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के कदमों में रख देती हैं. इसके बाद वो फूलों का हार लेकर अर्जुन सिंह के गले में और एक हार देवी दुर्गा को चढ़ा देती है
फूलन पर 22 हत्या, 30 डकैती और 18 अपहरण के केस चले. 11 साल जेल में रहना पड़ा. 1993 में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी. मुलायम सिंह ने एक बड़ा फैसला लिया. फूलन पर लगे सभी आरोपों को वापस ले लिया गया. फिर फूलन की 1994 में जेल से रिहाई हुई. उसे नया जीवन मिला. फूलन ने उम्मेद सिंह नामक व्यक्ति से शादी कर ली. 1996 में फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत गईं. मिर्जापुर से सांसद बनीं. चम्बल में घूमने वाली अब दिल्ली के अशोका रोड के शानदार बंगले में रहने लगी थी.
फूलन ने 1999 में एक और बार चुनाव जीता लेकिन इस टर्म के बीच में ही उनकी हत्या हो गई. 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा ने घर के गेट पर फूलन को गोली मार दी थी.
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