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जापान पर एटम बम गिराने की ये हकीकत छुपाई गई!

अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम सिर्फ युद्ध खत्म करने के लिए नहीं गिराए थे

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अमेरिकी फाइटर विमान ने जापानी शहरों पर 10 किमी ऊपर से परमाणु बम गिराए थे | फाइल फोटो: गेट्टी इमेज

छह अगस्त 1945. जापान के हिरोशिमा में सोमवार की सुबह थी. वैसी ही जैसी हर रोज हो रही थी. सवा आठ बजे थे. धूप निकली चुकी थी. लोग अपने दफ्तरों की ओर कदम बढ़ा रहे थे. बच्चे अपने स्कूलों में पहुंच चुके थे. तभी, करीब चार लाख की जनसंख्या वाले इस शहर के ऊपर आसमान में एक अमेरिकी बी-29 फाइटर प्लेन दिखाई पड़ा.

ये लड़ाकू विमान फिलीपींस के तिनियान द्वीप से उड़ा था और छह घंटे बाद हिरोशिमा पहुंचा था. जब ये हिरोशिमा के ऊपर करीब 10 किलोमीटर की ऊंचाई पर था, तब इसमें बैठे मेजर टॉमस फ़ेरेबी ने अपने सामने लगे लाल बटन को दबा दिया. बटन दबा और बम ज़मीन की ओर चल पड़ा. 43 सेकंड बाद जमीन से करीब 585 मीटर की ऊंचाई पर बम फट पड़ा.

64 किलो यूरेनियम के बने इस बम का नाम था ‘लिटिल बॉय’. हिरोशिमा के एक सबसे व्यस्त पुल ‘IOE’ के ठीक ऊपर फटना था इसे. पर तेज़ हवा के झोंकों ने उसे टारगेट से 240 मीटर भटका दिया. बम फटा एक अस्पताल के ऊपर. 10 लाख डिग्री सेल्सियस की प्रचंड गर्मी निकली, और 3 किलोमीटर व्यास के दायरे में तुरंत जो कुछ भी आया खत्म हो गया. खुद अमेरिकी जानकारों का अनुमान है कि मात्र पांच सेकंड के भीतर 80 हज़ार लोग मर गए! शहर में सेना का मुख्यालय तक नहीं बचा. यहां 20 हजार सैनिक मारे गए.

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जो बम फटने से मरे नहीं थे, वे अंधे, बहरे या लूले-लंगड़े हो गये | फोटो; इंडिया टुडे

जो लोग और बच्चे बम फटने के समय हिरोशिमा के बींचो-बीच थे, वो राख हो गए. जो बम फटने से मरे नहीं थे, वे अंधे, बहरे या लूले-लंगड़े हो गये. उनके कान, हाथ-पैर या दूसरे अंग शरीर से टू कर बिखर गये थे. इनके शरीर से त्वचा और मांस के झुलसे हुए लोथड़े लटक रहे थे. खून यदि भाप बन कर सूख नहीं गया था तो सारे शरीर से टपक रहा था.

सालों तक लोग तड़प-तड़प कर मरे

विस्फोट से फैली आग और रेडिएशन से 11 वर्ग किलोमीटर के दायरे तक नुकसान हुआ. जो हजारों लोग विस्फोट से नहीं मरे, वे जल जाने या रेडिएशन के चलते सालों तक तड़प-तड़प कर मरते रहे. विस्फोट से उठा धुएं का गुबार जमीन से लेकर 14 किलोमीटर ऊपर तक छा गया. ज़मीन पर उसका व्यास क़रीब एक किलोमीटर था. इस ग़ुबार से नदियों, तालाबों और झीलों का पानी लंबे समय के लिए रेडिएशन से प्रदूषित हो गया. भूख-प्यास के चलते जिस किसी ने नदी-तालाब का पानी पिया या घास-फूस खाया, उसके शरीर में रेडिएशन और बढ़ा.

इतना वीभत्स था ये सब, किसी का भी दहल जाए, दोबारा ऐसा करने की सोचे भी ना, लेकिन अमेरिका पर मानो राक्षस सवार हो, तीन दिन बाद, नौ अगस्त को उसने दोपहर के 11 बज कर दो मिनट पर नागासाकी में फिर ऐसा ही किया. वहां ‘फ़ैट मैन’ नाम का दूसरा बम गिराया गया, ये यूरेनियम से भी अधिक घातक प्लूटोनियम का बना हुआ था. बम फटा 80 हज़ार लोग मारे गए.

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10 किमी की ऊंचाई से बम गिराया गया था | फोटो: इंडिया टुडे

जापान ने ऐसा क्या बड़ा किया था जो अमेरिका ने उससे इस कदर बदला लिया? क्या वाकई अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम सिर्फ युद्ध खत्म करने के लिए गिराए थे?  या फिर उसका मेन मकसद कुछ और ही था?

जब हिटलर ने रूस को और जापान ने अमेरिका को छेड़ दिया

दुनिया को अपनी मुट्ठी में करना हर ताकतवर देश के तानाशाह का सपना होता है. हिटलर ने भी यही सपना देखा था और उसके परम मित्र जापान के राजवंश ने भी. इनकी इसी महत्वाकांक्षा ने सेकंड वर्ल्ड वॉर शुरू करवा दिया. पोलैंड से शुरुआत के बाद हिटलर ने ताव में आकर एक दिन (22 जून, 1941 को) सोवियत संघ यानी अब के रूस पर अटैक कर उसे छेड़ दिया. इधर जापान ने सात दिसंबर, 1941 को प्रशांत महासागर में अमेरिकी नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर पर धुंआधार बमबारी कर दी. अमेरिका बौखला उठा और युद्ध में कूद पड़ा.

शुरुआत में जर्मनी और जापान दोनों काफी तेजी से आगे बढ़े. जर्मनी का यूरोप के एक बड़े हिस्से पर तो जापान का एशिया-प्रशांत महासागर के बहुत बड़े भू-भाग पर कब्ज़ा हो गया. लेकिन 1942 में हवाई के पास जापानी सेना की पराजय. और 1943 में स्टालिनग्राद में जर्मन सेना की हार के बाद किस्मत का चक्का 360 डिग्री उल्टा घूम गया. अगले दो सालों में ही जर्मनी की हार तय हो गई. अपने 56वें जन्मदिन के 10 दिन बाद, 29 अप्रैल, 1945 की रात को हिटलर ने बर्लिन के अपने बंकर में आत्महत्या कर ली. इसके एक हफ्ते बाद जर्मनी ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया.

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हिटलर को जब सामने हार दिखी तो उसने आत्महत्या कर ली | फोटो: इंडिया टुडे

इस तरह यूरोप में तो द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत हो गया. लेकिन एशिया में युद्ध नहीं रुका. जापान की कमर जरूर टूट चुकी थी, पर वो घुटने टेकने में टालमटोल कर रहा था. उसे आत्मसमर्पण करने में शर्मिंदगी महसूस हो रही थी. इसलिए वो शांति वार्ता की कोशिश करने लगा.

दुश्मन गुट के एक सदस्य के जरिए शांति वार्ता की कोशिश

जर्मन पत्रकार हैं क्लाउस शेरर, उन्होंने अमेरिकी परमाणु हमलों को लेकर जापान और अमेरिका के इतिहासकारों और पुराने सैन्य अधिकारियों से बातचीत की. इसके बाद उन्होंने 'नागासाकी' शीर्षक से एक किताब लिखी. इसमें उन्होंने लिखा है कि रूस इस युद्ध में अमेरिका और ब्रिटेन के साथ था. 5 अप्रैल 1945 तक उसकी जापान से सीधे युद्ध ना करने की संधि भी टूट चुकी थी. लेकिन, तब भी  रूस और जापान का एक-दूसरे पर भरोसा बना हुआ था. संधि खत्म होने के बाद भी दोनों काफी समय तक एक-दूसरे के खिलाफ सीधी जंग में नहीं उतरे. यहां तक कि जापान रूस के जरिए शांति वार्ता की कोशिश में लगा गया.

इसी बीच जर्मनी की राजधानी बर्लिन से सटे हुए पोट्सडम शहर में, 17 जुलाई से दो अगस्त तक एक शिखर सम्मेलन हुआ. इसमें दूसरे विश्वयुद्ध के विजेता ‘मित्र-राष्ट्रों’ ने हिस्सा लिया. अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और रूस के तानाशाह योसेफ़ स्टालिन इसमें शामिल हुए.

सम्मेलन से महज एक सप्ताह पहले, नौ जुलाई 1945 को मॉस्को में जापानी राजदूत ने सोवियत विदेश मंत्री व्याचेस्लाव मोलोतोव से मुलाकात की. अनुरोध किया कि पोट्सडम सम्मेलन के नेताओं से कहा जाये कि जापान उनके साथ शांति वार्ताएं चाहता है. ये अनुरोध जापानी सम्राट हिरोहितो की पहल पर हुआ था. यही नहीं, जापान ने एलन डलेस नाम के एक अमेरिकी अधिकारी से भी संपर्क किया, जो बाद में ‘सीआईए’ के निदेशक बने. यानी शिखर सम्मेलन से पहले शांति वार्ता की बात अमेरिका तक पहुंच गई थी, लेकिन, अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन जापान को नीचा दिखाने की जिद पर अड़े थे, चाहते थे कि जापान बिना शर्त समर्पण करे.

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हिटलर की आत्महत्या के बाद जापान के सम्राट हिरोहितो भी शांति वार्ता की कोशिश करने लगे  | फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स 
एक फोन आया और ट्रूमैन का घमंड सातवें आसमान पर

पोट्सडम सम्मेलन शुरू होने से ठीक एक दिन पहले, 16 जुलाई 1945 को ट्रूमैन के पास अपने अधिकारियों का एक फोन आया. बताया गया कि अमेरिका ने पहले यूरेनियम परमाणु बम का सफल परीक्षण कर लिया है. अब ट्रूमैन का आत्मविश्वास या कहें तो घमंड, सातवें आसमान पर था. उन्होंने तुरंत शिखर सम्मेलन में जापान को सीधी धमकी दे दी.

कहा,

‘अमेरिका की पूरी सैन्य ताकत का एक ही मकसद है जापानी सेना का पूर्ण विनाश और उसका पूर्ण विध्वंस. जापान पर पूरी तरह कब्जा कर लिया जाएगा. उसके नेताओं को हटाकर तहस-नहस कर दिया जायेगा. लोकतंत्र की स्थापना होगी और युद्ध-अपराधियों को दंडित किया जाएगा. जापान को चार मुख्य द्वीपों तक सीमित कर उससे हर्जाना वसूला जाएगा...’

जर्मनी से ही 25 जुलाई को अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपनी सेना के प्रमुख को आदेश दिया कि तीन अगस्त तक यूरेनियम बम - ‘लिटिल बॉय’ - को गिराने की तैयारी कर ली जाए. जब ये आदेश आया तब तक अमेरिकी वैज्ञानिक एक दूसरा बम ‘फैट मैन’ भी तैयार कर चुके थे. हालांकि उसका परीक्षण अभी बाकी था.

एक हनीमून से बचा नागासाकी

इसके बाद जापान के चार शहरों की लिस्ट तैयार हुई. पहली सूची में हिरोशिमा के अलावा कोकूरा, क्योतो और निईगाता के नाम थे. नागासाकी अमेरिका के निशाने पर नहीं था. लेकिन अमेरिका के तत्कालीन युद्धमंत्री स्टिम्सन के कहने पर जापान की पुरानी राजधानी क्योतो का नाम संभावित शहरों की लिस्ट से हटा कर उसकी जगह नागासाकी का नाम शामिल कर लिया गया. स्टिम्सन ने अपनी पत्नी के साथ क्योतो में कभी हनीमून मनाया था और वे नहीं चाहते थे कि वह मटियामेट हो जाए.

अमेरिका के कुछ अफसर और वैज्ञानिक ऐसे भी थे जो परमाणु हमले के खिलाफ थे. इनमें सबसे बड़ा नाम था अमेरिकी जनरल ड्वाइट आइज़न हावर और वैज्ञानिक लेओ ज़िलार्द का. इनका कहना था कि इससे रूस के साथ परमाणु हथियारों की घातक होड़ चल पड़ेगी. यह भी मानना था कि जर्मनी की पराजय के बाद से जापान कमज़ोर हो गया है वो देर-सवेर घुटने टेक ही देगा. इसलिए परमाणु अटैक सही नहीं है.

पोट्सडम सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जापान पर बम गिराने का मन बना चुके थे | फोटो में बाएं से आगे की ओर - पहले योसेफ स्टालिन फिर हैरी ट्रूमैन

लेकिन, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन का कहना था कि उन्होंने दो अरब डॉलर लगा कर इन बमों का विकास केवल शो-केस में रखने के लिए नहीं किया है. तर्क दिया कि इन बमों की मार से जापान जल्द ही आत्मसमर्पण कर देगा और अमेरिकी सैनिकों का कटना-मरना बंद हो जाएगा. जुलाई, 1945 में जापानियों ने ओकीनावा की लड़ाई में 12,500 अमेरिकी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. और तब तक पूरे प्रशांत महासागर क्षेत्र में करीब 70000 अमेरिकी सैनिक मारे भी जा चुके थे. यही वजह थी कि अमेरिका के ज्यादातर अफसर अपने राष्ट्रपति की बात से सहमत थे.

आखिरकार 6 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा पर यूरेनियम वाला परमाणु बम गिराया गया. उधर, ये बम गिरने के दो दिन बाद ही आठ अगस्त, 1945 को रूस ने जापान के अधिकार वाले मंचूरिया पर आक्रमण कर दिया. इसके अगले दिन 9 अगस्त को अमेरिका ने नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम गिरा दिया. इसके कुछ रोज बाद 15 अगस्त 1945 को जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया. दोनों बमों को गिराने को लेकर अमेरिका ने दुनिया को ये तर्क दिया कि बम गिराए बिना जापान आत्मसमर्पण नहीं करता.

इतिहासकार बोले- अमेरिका पूरा सच नहीं बता रहा

जर्मन पत्रकार क्लाउस शेरर ने इस अमेरिकी तर्क को लेकर दुनिया के दो बड़े इतिहासकार सुयोशी हसेगावा और मार्टिन जे शेरविन से बात की. दोनों ही अमेरिका के इस तर्क से सहमत नहीं दिखे. दोनों ने परमाणु बम गिराने के अलग कारण बताए.

इन इतिहासकारों के मुताबिक जुलाई 1945 के दौरान जापान समर्पण करने का मन बना चुका था, लेकिन वो अपने राजा की जान को लेकर गारंटी चाहता था. इसीलिए वो पहला बम गिरने के बाद भी इस उम्मीद में रहा कि रूस मध्यस्थता कर अमेरिका को मना लेगा. लेकिन, 8 अगस्त को जब रूस ने ही उसपर आक्रमण कर दिया तो उसकी आस टूट गई. इतिहासकार सुयोशी हसेगावा की मानें तो पहला बम गिरने के बाद रूस ने इसलिए जापान पर अटैक किया क्योंकि वो अमेरिका से पहले जापान का अपने सामने समर्पण चाहता था.

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इतिहासकार जापान पर परमाणु बम गिराने के अलग कारण बताते हैं | फोटो में बाएं से पहले- जर्मन पत्रकार क्लाउस शेरर, इतिहासकार सुयोशी हसेगावा और मार्टिन जे शेरविन

उधर, रूस के जापान पर हमले से अमेरिका को डर लगने लगा था. उसे लगा कहीं ऐसा न हो कि रूस के सामने जापान घुटने टेक दे और वो अपने प्लूटोनियम बम ‘फैट मैन’ का जापान में परीक्षण ही न कर पाए. इस कारण उसने नागासाकी में बम गिराने की तारीख 13 के बदले नौ अगस्त कर दी. उसे एक डर ये भी था कि अगर जर्मनी की तरह ही कहीं जापानी जमीन पर भी रूसी सैनिकों ने पहले अपना झंडा फहरा दिया. तब हो सकता है कि जापान उसके हाथ से पूरी तरह फिसल जाए या फिर जर्मनी की ही तरह जापान की भी बंदरबांट करनी पड़े.

यानी अमेरिका ने लाखों निर्दोष लोगों की जान केवल अपने बम के परीक्षण और रूस से एक रेस जीतने के लिए ले ली.

वीडियो: तारीख: कैसे भारतीय वैज्ञानिक अमेरिकी सरकार को घुटनों पर ले आया?