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जब कनाडा से चले एयर इंडिया के विमान को खालिस्तानियों ने बीच हवा में बम से उड़ा दिया

बब्बर खालसा के आतंकियों ने प्लेन को निशाना बनाया. 329 लोग मारे गए. 25 साल तक चले इस केस में हजारों करोड़ खर्च करने के बाद भी कनाडा पुलिस सिर्फ 1 आदमी को सजा दिलवा पाई.

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एम्परर कनिष्क नाम की एयर इंडिया की फ्लाइट 182 जिसे कनाडा से लन्दन जाते समय खालिस्तानी आतंकियों ने बम से उड़ा डाला था (तस्वीर: getty)

हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मुद्दे पर भारत और कनाडा के बीच तल्खी बनी हुई है. भारत के लिए ये मुद्दा निज्जर की हत्या से ज्यादा खालिस्तान से जुड़ा है. इस विचार ने कई बार देश को कभी ना भरने वाले जख्म दिए हैं. कनाडा पर ये आरोप लगता रहा है कि इन जख्मों को नासूर बनाने में उसकी भी भूमिका रही है. ऐसी ही एक घटना घटी थी 1985 में, जिसे याद कर आज भी भारत के कई घरों से चीखें सुनाई देती होंगी.

साल 1985. कनाडा के मॉनट्रियल एयरपोर्ट से एक फ्लाइट टेक ऑफ करती है. इस फ्लाइट का डेस्टिनेशन था मुम्बई. लेकिन बीच में फ्लाइट को लन्दन में हॉल्ट लेना था. इसलिए फ्लाइट आयरलैंड के एयर स्पेस में एंटर होती है. आइरिश कोस्ट के करीब 200 मील की दूरी, जब प्लेन अटलांटिक महासागर के ऊपर था, अचानक रडार से गायब हो जाता है.

अनहोनी की आशंका सही साबित हुई. प्लेन 31 हजार फ़ीट की ऊंचाई से सीधा समुन्द्र में गिरा. और 82 बच्चों, चार नवजातों समेत 329 लोगों के लिए अटलांटिक उस दिन कब्रगाह बन गया. वहां से करीब 1 हजार मील दूर टोक्यो के एयरपोर्ट पर उसी दिन एक और घटना हुई. इस प्लेन हादसे से करीब एक घंटा पहले ही टोक्यो में बैगेज एरिया में एक बम फटा और दो लोगों की जान चली गई.

जब तहकीकात शुरू हुई, तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि इन दोनों हादसों का आपस में गहरा कनेक्शन था. बाद में पता चला, इस साजिश का निशाना था भारत, और साजिश को जिसने अंजाम दिया वो था आतंकी संगठन बब्बर खालसा. शुरुआत घटना के एक दिन पहले से करते हैं. 22 जून से. क्या हुआ था उस दिन?

फ्लाइट 182 में कैसे पहुंचा बम?

उस रोज़ मंजीत सिंह नाम का एक आदमी सुबह आठ बजकर 50 मिनट पर वैंकूवर एयरपोर्ट पर पहुंचा. और मांग करने लगा कि उसका बैगेज चेक इन करवा दिया जाए. मंजीत के टिकट में नाम ‘एम. सिंह’ दर्ज था. मंजीत को वैंकूवर से टोरंटो तक फ्लाइट पकड़नी थी. जहां एयर इंडिया फ्लाइट 182, सम्राट कनिष्क में उसका टिकट बुक था. कनिष्क का आख़िरी डेस्टिनेशन इंडिया था और उसे बीच में लन्दन में हॉल्ट करना था.

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2017 में रिहा होने के बाद इंदरजीत सिंह रेयात (तस्वीर: Getty)

मंजीत चाहता था कि उसका बैगेज सीधे एयर इंडिया की फ्लाइट में चेक इन कर दिया जाए, ताकि टोरंटों में उसे दोबारा परेशानी न उठानी पड़े. लेकिन दिक्कत ये थी कि मंजीत का टिकट वेटिंग पर था. एयरपोर्ट एजेंट जेनी एडम्स ने मंजीत को बताया कि वेटिंग टिकट पर वो डायरेक्ट बैगेज चेक इन नहीं कर सकती. मंजीत अड़ गया. चूंकि उसका टिकट बिजनेस क्लास था इसलिए काफी आनाकानी के बाद जेनी चेक इन कराने को तैयार हो गई. और मंजीत का लाल रंग का सूटकेस चेक इन करा दिया गया.

इसके बाद शाम 4 बजे प्लेन में बैठकर 30 लोग वैंकूवर से टोरंटो पहुंचते हैं. ताकि कनिष्क में सवार हो सकें. मंजीत का बैग भी पहुंच जाता है, लेकिन मंजीत नहीं. वो फ्लाइट में बैठा ही नहीं था. टोरंटो में एयर इंडिया का स्टाफ सामान की चेकिंग कर रहा था, जब इत्तेफाक से एक्स रे मशीन ख़राब हो गई. एक हेंड हेल्ड स्कैनर से सामान को चेक किया गया. इस दौरान मंजीत के बैग के पास हल्की सी बीप की आवाज भी आती है लेकिन कर्मचारी उसे इग्नोर कर देते हैं. मंजीत का बैग एयर इंडिया फ्लाइट 182 में चढ़ा दिया जाता है.

इसके बाद टोरंटो से फ्लाइट 182 मॉन्ट्रियल पहुंचती है. जहां कुछ और लोग उसमें सवार होते हैं. अब तक यात्रियों की संख्या 307 हो चुकी थी, जिनमें से 268 कनाडा के नागरिक थे और उनमें से लगभग 84 बच्चे थे. अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इनमें से अधिकतर भारत के मूल निवासी थे जो भारत अपने नाते रिश्तेदारों से मिलने जा रहे थे.

डे लाइट सेविंग ने बचाई लोगों की जान 

उधर वैंकूवर में 22 जून की दोपहर ये स्क्रिप्ट एक और बार दोहराई गई. अबकी एल. सिंह नाम का एक आदमी आता है और केनेडियन पैसिफिक एयरलाइन्स में एक दूसरा सूट केस चेक इन कराता है. ये फ्लाइट टोक्यो जा रही थी, जहां से एल. सिंह ने एयर इंडिया की फ्लाइट 301 में एक कनेक्टिंग टिकट बुक करवाया था. अबकी बार भी वही हुआ. केनेडियन पैसिफिक एयरलाइन्स के साथ सूटकेस तो टोक्यो पहुंच गया लेकिन एल सिंह नहीं पहुंचा.

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इस हादसे में ब्रिटिश और कनाडा के नागरिकों समेत कुल 329 लोगों की जान चली गई थी (तस्वीर: Getty)

ये सूटकेस भी एयर इंडिया की फ्लाइट में चढ़ जाता, लेकिन यहां एल सिंह से एक गलती हो गई. कनाडा और अमेरिका में डे लाइट सेविंग चलती है. यानी गर्मियों में घड़ियों को एक घंटा आगे कर दिया जाता है. और जाड़ों में एक घंटा पीछे.

लेकिन टोक्यो में डे लाइट सेविंग का नियम नहीं है. इसलिए जब सूटकेस टोक्यो में बैगेज एरिया में था तभी उसमें विस्फोट हो गया. चूंकि टाइमर लगाते वक्त डे लाइट सेविंग का ध्यान नहीं रखा गया, इसलिए वक्त से पहले ही सूटकेस में विस्फोट हो गया. इस घटना में दो लोगों की जान गई, और किस्मत से एयर इंडिया फ्लाइट 301 के सभी यात्रियों की जान बच गई.

जिस समय टोक्यो में विस्फोट की खबर आई, एयर इंडिया फ्लाइट 182 यानी सम्राट कनिष्क, आयरलैंड के आसमान में थी और लन्दन की ओर जा रही थी. आयरिश समय के अनुसार आज ही के दिन यानी 23 जून, 1985 को सुबह के 9 बजे थे जब एयर ट्रैफिक कंट्रोल ने पाया कि विमान रडार से गायब हो गया है.

तब तक किसी को नहीं पता था कि विमान में विस्फोट हुआ है. अनहोनी की आशंका देखते हुए बचाव दल ने अपन अभियान शुरू किया. विमान का मलबा बीच समंदर में फैला हुआ था. जब तक बचाव दल पहुंचा, उन्हें सिर्फ 141 लोगों की लाशें मिल पाईं, इनमें नवजात बच्चे भी थे. बाकी बचे लोगों को समंदर की लहरें दूर ले गईं और उन्हें कभी खोजा न जा सका. पोस्टमार्टम में पता चला कि कुछ लोगों की जान ऑक्सीजन की कमी से हुई तो कुछ लोग पानी में डूबकर मरे थे.

राजीव गांधी का अमेरिका दौरा 

इनमें से अधिकतर लोग भारतीय मूल के थे. जब तहकीकात शुरू हुई तो पूरी कहानी का पता चला कि कैसे एक आतंकी साजिश के चलते विमान को निशाना बनाया गया था. कैसे हुई थी इस आतंकी हमले की प्लानिंग, कौन था शामिल, ये जानने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं.

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1985 में अमेरिका के राष्ट्रपति रोनॉल्ड रीगन से मुलाकात करते हुए राजीव गांधी (तस्वीर: getty)

1985 जून के शुरुआती हफ्ते में राजीव गांधी अमेरिका का दौरा करने वाले थे. तभी ऑपरेशन ब्लू स्टार की पहली बरसी भी आने वाली थी, इसलिए अमेरिका और कनाडा में राजीव की सुरक्षा का कड़ा बंदोबस्त किया गया था. कनाडा में बब्बर खालसा नाम के एक आतंकी संगठन पर खास नजर थी. जिसका हेड था तलविंदर सिंह परमार. 1970 में तलविंदर कनाडा पहुंचा वहां उसने स्थायी नागरिकता ले ली. 1978 में उसने बब्बर खालसा इंटरनेशनल की शुरुआत की. ये एक चरमपंथी सिख संगठन था, जिसकी मांग थी सिखों के लिए एक अलग देश, खालिस्तान की.

1983 में तलविंदर ने जर्मनी में जेल में कुछ दिन बिताए. और 1984 में रिहा होकर वापिस कनाडा आ गया. भारत में उसने पंजाब पुलिस के दो अफसरों की हत्या की थी. इसलिए भारत सरकार ने उसके प्रत्यर्पण की कोशिश की, लेकिन कनाडा सरकार राजी न हुई.

राजीव गांधी के दौरे से कुछ समय पहले ही कनाडा सीक्रेट पुलिस ने तलविंदर पर नजर रखना शुरू कर दिया था. उन्होंने पाया कि तलविंदर कुछ लोगों से मुलाक़ात कर रहा था. इनमें से एक शख्स का नाम था इंदरजीत सिंह रेयात. कुछ और लोगों के नाम भी शामिल थे, मसलन हरदीप सिंह जोहल, जो एक स्कूल में जेनिटर का काम करता था. रिपुदमन सिंह मालिक, जो कनाडा की सिख कम्युनिटी में काफी रसूख रखता था और खालिस्तान आंदोलन से अंदर तक जुड़ा था. इसके अलावा एक और शख्स था, अजैब सिंह बागरी. 84 सिख दंगों के बाद बागरी ने एक भाषण के दौरान कहा था कि वो 50 हजार हिन्दुओं की हत्या कर बदला लेगा.

ये सभी पुलिस के रडार पर थे. लेकिन राजीव गांधी का दौरा ख़त्म होते ही पुलिस ने इन पर नजर रखना बंद कर दिया. यहां कनाडा की सुरक्षा एजेंसियों से भारी चूक हुई. वो माहौल की गंभीरता को समझने में चूक कर गए.

कहानी लिख दी है? 

ऑपरेशन ब्लू स्टार और दिल्ली में सिख नरसंहार के चलते कनाडा के सिख समुदाय में भारी गुस्सा था. उस साल हिन्दू कैनेडियन नागरिकों पर हमले की दो चार वारदातें भी हुईं. गुरुद्वारों से खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जा रहे थे. और बब्बर खालसा एयर इंडिया में यात्रा न करने की चेतावनी जारी करने लगा था. एयर इंडिया के प्लेन बीच आसमान से टपकेंगे, ऐसी बातें सुनाई देने लगी थीं. लेकिन कैनेडियन अथॉरिटीज इस मामले में उनींदा थीं.

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तलविंदर सिंह परमार (तस्वीर: Getty)

उनके हिसाब से, पगड़ी वाले भूरे, बिना पगड़ी वाले भूरे लोगों के खिलाफ बोल रहे थे. मामला 15 हजार मील दूर एक थर्ड वर्ल्ड देश का था, और सबसे बड़ी बात थी कि गोरे कैनैडियन्स का इसमें कोई नुकसान नहीं हो रहा था. ये वो दौर था,जब खालिस्तान, हिंदू, सिख- ये शब्द कैनेडियन लोगों के लिए काला अक्षर भैंस बराबर थे. यहां तक कि घटना से 2 हफ्ते पहले रॉ ने कनेडियन सुरक्षा एजेंसियों को इस मामले में आगाह भी किया था. ये भी बताया था कि प्लेन पर हमला हो सकता है. लेकिन फिर भी उन्होंने इस मामले में चूक की.

प्लेन अटैक के दिन यानी 23 जून तक पुलिस ने तलविंदर सिंह परमार का फोन टैप किया हुआ था. हमले के चार दिन पहले उन्होंने फोन पर तलविंदर को किसी को कहते सुना, “कहानी लिख दी है?” दूसरी तरफ से जवाब आया, नहीं. इस पर तलविंदर ने जवाब दिया, “लिख दो”.

हमले के एक दिन पहले तलविंदर के पास एक और कॉल आया. जिसमें दूसरी तरफ से कहा गया, “कहानी लिख दी है, देखना है तो आ जाओ”

दूसरी तरफ से बोलने वाले शख्स का नाम था, हरदीप सिंह जोहल. और कहानी लिख देने से यहां मतलब फ्लाइट में टिकट बुक कराने से था. बम तैयार करने की जिम्मेदारी थी, इंदरजीत सिंह रेयात की. ब्रिटिश कोलंबिया में रहने वाला इंदरजीत ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद सबसे कहते हए घूम रहा था कि भारत से बदला लेना है. उसने बाकायदा बम बनाने का सामान भी लोकल स्टोर से ही ख़रीदा. लेकिन इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. कारण वही जो पहले बताया था, भूरे लड़ मर रहे थे, और गोरों को इससे कोई दिक्कत नहीं थी.

6 साल तक कोई पकड़ा नहीं गया 

इस आतंकी हमले में 331 लोगों की जान गयी थी लेकिन अगले 6 साल तक पुलिस किसी के खिलाफ एक्शन नहीं ले पाई. जबकि कॉल रिकॉर्ड समेत पूरी रिपोर्ट उनके पास थी. इसकी वजह थी लापरवाही, पुलिस ने कॉल रिकार्ड्स को ट्रांसलेट करवा के ओरिजिनल फिल्म को मिटा दिया था. जिसके कारण अदालत में उनके पास पेश करने के लिए ये महत्वपूर्ण सुराग नहीं था.

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रिपुदमन सिंह मलिक (तस्वीर: getty)

पुलिस ने सभी अभियुक्तों ने खिलाफ मामला दर्ज़ किया, लेकिन एक को भी जेल न हुई. 29 अप्रैल 1986 को इंदरजीत सिंह रेयात ने कबूल किया कि उसके पास विष्फोटक सामग्री थी. लेकिन इस मामले में उसे 2000 डॉलर का जुर्माना लगाकर छोड़ दिया गया. इसके बाद रेयात अपने परिवार समेत ब्रिटेन जा बसा.

उधर जापान में हुए बम धामके के सबूत जापान की पुलिस के पास थे. अंत में जापान में दो लोगों की हत्या के जुर्म में रेयात को गिरफ्तार कर कनाडा लाया गया. जहां उसे 10 साल जेल की सजा सुनाई गई.

हादसे के 15 साल बाद साल 2000 में पुलिस ने बागरी और मलिक पर केस दर्ज़ किया. कनाडा में ये मामला इतना हाई प्रोफ़ाइल था कि इसे एयर इंडिया ट्रायल का नाम दिया गया. केस के दौरान एक गवाह की हत्या कर दी गई जबकि एक को विटनेस प्रोटेक्शन में भेजना पड़ा. मामले की नाजुकता को देखते हुए 7.2 मिलियन डॉलर का एक अलग कोर्ट रूम बनाया गया. लेकिन सबूतों के अभाव में बागरी और मालिक को रिहा कर दिया गया. रेयात को इस मामले में 5 साल की और सजा हुई. और 2011 को उसे अदालत में झूठ बोलने के मामले में 9 साल की सजा और सुनाई गई. एम सिंह और एल सिंह जिन्होंने एयरपोर्ट तक सूटकेस पहुंचाए थे, उनकी पहचान कभी न हो सकी. 

परमार भारत का एजेंट था?

इस केस में तलविंदर सिंह परमार का रोल प्रमुख था. पुलिस ने उस पर भी केस दर्ज़ किया लेकिन सबूतों के अभाव में वो भी रिहा हो गया. इसके बाद परमार पाकिस्तान गया और वहां से साल 1992 में भारत पहुंचा. यहां एक पुलिस एनकाउंटर में उसकी मौत हो गई. इस घटना ने खालिस्तान चरमपंथियों के बीच एक नई थियोरी को जन्म दिया. इस थियोरी के अनुसार परमार भारत का एजेंट था और उसने प्लेन गिराने की साजिश इसलिए रची थी कि खालिस्तान आंदोलन को डिस्क्रेडिट किया जा सके. जबकि भारत में जैन कमीशन ने अपने रिपोर्ट में पाया था कि परमार कई बार राजीव गांधी की हत्या का प्लान बना चुका था.

कनाडा सरकार ने 25 साल तक इस इन्वेस्टिगेशन को खींचा. खर्चा हुआ मात्र 46 हजार आठ सौ करोड़ रुपया. इस मामले में सिर्फ एक शख्स को जेल हुई और और साल 2017 में उसे भी रिहा कर दिया गया.

प्लेन हादसे की ये घटना घर से थोड़ा और नजदीक लगती है, जब पता चलता है की इस प्लेन हादसे में एक्टरइन्दर ठाकुर भी अपने परिवार सहित चल बसे थे. ये वही इन्दर ठाकुर हैं जो फिल्म ‘नदिया के पार’ में सचिन पिलगांवकर के बड़े भाई बने थे.