मंत्री केएन नेहरू ने अपने विभाग के लिए अनुदान की मांग को लेकर सदन की बहस का जवाब देते हुए ये जानकारी दी. उन्होंने कहा,
"इस साल योजना को ग्रेटर चेन्नई निगम में दो क्षेत्रों में और दूसरे नगर निगमों में एक-एक क्षेत्र में लागू किया जाएगा. इसके अलावा सात क्षेत्रीय निदेशालय के तहत एक-एक नगर पालिका में और 37 जिलों में एक-एक नगर पंचायत में लागू किया जाएगा."'पहली' शहरी रोजगार गारंटी योजना कहा जा रहा है कि मनरेगा की तर्ज पर ये भारत की पहली शहरी रोज़गार गारंटी योजना (यूईजीएस) है. इससे पहले भारत में पहली बार ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना यानी साल 2006 में लागू की गई थी. हम सब इसे मनरेगा के नाम से जानते हैं. इसे पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए-1 सरकार ने लागू किया था.
मनरेगा और यूईजीएस में एक बड़ा अंतर यही है कि मनरेगा केंद्र के स्तर पर बनाई गई योजना थी, जबकि यूईजीएस राज्य द्वारा लाई गई स्कीम होगी. इसे लाने की जरूरत के बारे में बोलते हुए मंत्री केएन नेहरू ने विधानसभा में कहा,
"अन्य राज्यों के इतर तमिलनाडु में शहरी आबादी तेज़ी से बढ़ रही है और ये 2036 तक राज्य की कुल आबादी के 60 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी. कुल चार करोड़ लोग अब शहरी क्षेत्रों में रह रहे हैं, जो कि कुल जनसंख्या का 53 प्रतिशत हिस्सा है."दि हिंदू की एक रिपोर्ट में सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि ये रोज़गार गारंटी स्कीम एक पायलट योजना है और सरकार जल्द ही इस योजना के तहत वेतन प्रदान करने से जुड़े दिशा-निर्देश लेकर आएगी. विशेषज्ञों ने की थी सिफारिश आरबीआई के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन की अध्यक्षता वाली एक कमेटी ने सरकार से सिफारिश की थी कि महामारी के मद्देनजर शहरी क्षेत्रों में एक रोजगार योजना शुरू करे. सूत्रों ने अखबार को बताया कि इसी के मद्देनज़र तमिलनाडु में ये योजना उन शहरी गरीबों को रोजगार प्रदान करने के लिए शुरू की गई है, जिन्होंने COVID-19 महामारी के कारण अपनी नौकरी गवांई है.
योजना को लेकर एक सरकारी अफ़सर ने दि हिंदू से कहा,
“(कोरोना काल में) हजारों नौकरियां चली गईं. सरकार ने रोजगार पैदा करने के तरीकों पर चर्चा की. इस योजना के तहत श्रमिकों का उपयोग जल निकायों की गाद निकालने और सार्वजनिक पार्कों और अन्य स्थानों के रखरखाव जैसे कामों के लिए किया जाएगा."हालांकि ये योजना स्थायी रूप से शुरू की जा रही है या नहीं, इस पर सरकार ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है.
बताया गया है कि राज्य सरकार ने योजना के लिए धनराशि की मांग करते हुए केंद्र को एक ज्ञापन सौंपा था, लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. देखना होगा कि आने वाले दिनों में केंद्र की तरफ से कोई जवाब आता है या नहीं.

बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करते युवा और छात्र संगठन..
शहरों में बेरोजगारी की मार ज्यादा भारत सरकार द्वारा हाल ही में जारी पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) की रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान शहरों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी बढ़ी. इससे संगठित क्षेत्र, आम भाषा में कहें तो सैलरी क्लास पर सबसे ज़्यादा असर पड़ा है.
PLFS का डेटा देश में आर्थिक संकट और अवसरों की कमी को भी साफ़ दर्शाता है. रिपोर्ट बताती है कि श्रमिक कम उत्पादकता वाले काम करने को मजबूर हैं. इसके एवज में उनको वेतन भी कम मिलता है जिससे बेरोज़गारी की समस्या और बढ़ रही है.
रोजगार संबंधी आंकड़े जुटाने वाली एक अन्य संस्था CMIE ने भी अपनी रिपोर्ट में ऐसे ही संकेत दिए थे. CMIE के मुताबिक़, फ़िलहाल भारत में बेरोज़गारी दर 7.4 प्रतिशत पर है. लेकिन शहरी इलाक़ों में ये दर 9.1 प्रतिशत तक है. ग्रामीण इलाक़ों में इसका स्तर 6.7 प्रतिशत है.
आंकड़े दिखाते हैं कि जून 2021 में 7.97 करोड़ लोगों के पास नौकरियां थीं. ये जुलाई 2021 में 30 लाख घटकर 7.65 करोड़ हो गईं. वहीं, कोरोना वायरस की दूसरी लहर से पहले देखें तो स्थिति कुछ बेहतर थी. CMIE के मुताबिक, जनवरी-मार्च 2021 में देश में 8 करोड़ नौकरियां थीं. वित्तीय वर्ष 2019-20 की तुलना में 2021 में जुलाई महीने तक रोजगार में 2.3 प्रतिशत की गिरावट आई है.
इन रिपोर्ट्स के जारी होने के बाद कई अर्थशास्त्रियों ने समस्या के समाधान के लिए शहरी रोज़गार गारंटी योजना लाने की बात कही थी, जिसे अब तमिलनाडु में लागू करने की बात सामने आई है.