मुंबई में 26/11 को हुए आतंकी हमलों के आरोपी तहव्वुर राणा (Tahawwur Rana Extradition) के प्रत्यर्पण को मंजूरी मिल गई है. राणा के लिए दिल्ली की तिहाड़ जेल भी तैयार है, जहां ट्रंप के शब्दों में ‘वो कानून का सामना करेगा.’ लेकिन भारत को राणा के अलावा मुंबई के एक और गुनाहगार को कानून के सामने पेश करना है. ये शख्स है राणा के बचपन का साथी, डेविड उर्फ दाऊद कोलमैन हेडली (David Headly) जो इस समय अमेरिकन जेल में 35 साल की सजा काट रहा है. तो समझते हैं कि कैसे हुई इन दोनों की दोस्ती, और मुंबई हमलों में इन दोनों की क्या भूमिका है?
साथ पढ़ाई की, साथ में आतंकवादी बने; कहानी तहव्वुर राणा और उसके दोस्त डेविड हेडली की
Donald Trump के सत्ता में आने के बाद उन्होंने एलान किया कि Tahawwur Rana को भारत जाना होगा और न्याय का सामना करना पड़ेगा. राणा का प्रत्यर्पण तो हो गया. मगर मुंबई की रेकी करने वाला David Headly अब भी अमेरिका की जेल में बंद है.

26 नवंबर 2008 को भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में आतंकी हमला हुआ. पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों ने 60 घंटों तक पूरे मुल्क को दहशत में रखा. कई अहम ठिकानों पर हमले किए. 166 लोगों की जान गई. पहले नेवल कमांडोज़ Marcos, फिर बाद में NSG कमांडोज आए. पुलिस और कमांडोज़ की कार्रवाई में 09 आतंकी मारे गए. एक जिंदा पकड़ा गया जिसका नाम अजमल आमिर कसाब. उसको नवंबर 2012 में पुणे की येरवडा जेल में फांसी दे दी गई. होने को तो कहानी यहीं पर खत्म हो सकती थी. लेकिन मोहरों को मात देकर गेम खत्म नहीं किए जाते.

तहव्वुर राणा भी इस हमले का मुख्य साजिशकर्ता है. आरोप हैं कि राणा को हमले की साज़िश के बारे में पहले से पता था. सारी प्लानिंग उसकी नज़रों के सामने हुई थी. उसने टारगेट की रेकी भी की थी. हालांकि, उसका परिचय यहीं पर ख़त्म नहीं होता. वो पाकिस्तान की सेना में डॉक्टर के तौर पर काम कर चुका है. और, तहव्वुर राणा मुंबई हमलों के सबसे संगीन किरदार का लंगोटिया यार भी था और उसी दोस्त ने उसका खेल बिगाड़ दिया.

तारीख, 09 अक्टूबर 2009. शिकागो के ओ’हेयर इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर एक शख्स जल्दबाजी में था. उसे इस्लामाबाद की फ़्लाइट पकड़नी थी. वो पहले भी कई मौकों पर पाकिस्तान जा चुका था. लेकिन इस बार उसके चेहरे पर खौफ़ साफ़ नज़र आ रहा था. उसका खौफ़ उस वक़्त सच हो गया, जब FBI एजेंट्स ने उसे बोर्डिंग से पहले ही अरेस्ट कर लिया. उस पर FBI की नजर बहुत पहले से थी. वजह, आतंकी संगठनों से उसका कनेक्शन.

पकड़े गए शख्स की एक पुरानी आदत थी. जब भी किसी मुश्किल में फंसता, डर कर वो तोते की तरह अपनी जुबान खोल देता था. साथ ही सरकारी गवाह बनकर अपनी सजा भी कम करवा लेता. उसका नाम था, डेविड कोलमैन हेडली. हेडली ने FBI के सामने भी अपनी पुरानी तरकीब अपनाई थी. उसने मुंबई समेत कई आतंकी हमलों में अपनी संलिप्तता स्वीकार ली. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI, लश्कर-ए-तैयबा और अलकायदा के अंदर की ख़बरें बताई. मगर FBI इतने से ही संतुष्ट नहीं थी. ऊपर से उसके ऊपर प्रत्यर्पण और मौत की सजा का खतरा मंडरा रहा था. इससे बचने के लिए वो बोला,
मैं आपको नाम बताता हूं. मुझे बचा लो. मैं गवाही दूंगा.
जो नाम उसने लिया, वो उसके बचपन का सबसे खास दोस्त था. नाम, तहव्वुर हुसैन राणा. दोनों का परिवार रसूखदार था. दोनों ने पाकिस्तानी पंजाब के एक ही मिलिट्री कॉलेज से पढ़ाई की थी. यहीं उनके बीच याराना हुआ. कॉलेज की दोस्ती आगे भी कायम रही. जब हेडली हेरोइन के साथ पकड़ा गया, तब राणा ने अपना घर गिरवी रखकर उसे जमानत दिलवाई थी. मगर हेडली ने अपनी जान बचाने के लिए अपने दोस्त की कुर्बानी देने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई. आगे चलकर वो राणा के केस का सबसे बड़ा गवाह बना. राणा पर तीन मुख्य आरोपों में मुकदमा चला.
- पहला, डेनिश अखबार के दफ़्तर पर आतंकी हमले में सहायता दी.
- दूसरा, आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को सपोर्ट दिया.
- तीसरा, मुंबई हमले की साज़िश रचने में मदद की.
जून 2011 में शिकागो की एक अदालत ने राणा को तीसरे आरोप में बरी कर दिया. लेकिन पहले और दूसरे आरोप में उसको दोषी करार दिया गया. 2013 में उसे 14 बरस की सजा सुनाई गई. 2020 में वो कोविड पॉजिटिव हो गया. तब उसे जेल से रिहा कर दिया गया. भारत इससे खुश नहीं था. NIA ने कहा कि हमारे पास राणा के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं. उसे भारत भेजा जाए. हम उसे अपने कानून के हिसाब से सजा देंगे.
इसके बाद ट्रंप के सत्ता में आने के बाद उन्होंने एलान किया कि राणा को भारत जाना होगा और न्याय का सामना करना पड़ेगा. 27 फरवरी को तहव्वुर राणा ने अपने प्रत्यर्पण पर रोक लगाने के लिए अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में आपातकालीन याचिका दाखिल की थी. पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट की असोसिएट जस्टिस ऐलेना कगन ने राणा की ये याचिका खारिज कर दी थी. राणा ने दोबारा भी याचिका पेश की थी और मांग की थी कि उसकी अपील मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स के सामने पेश की जाए. सोमवार को अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित नोटिस में कहा गया कि अर्जी कोर्ट ने खारिज कर दी है. इसके बाद राणा के भारत लाए जाने का रास्ता साफ हो गया.

राणा जनवरी 1962 में पाकिस्तान के साहीवाल में पैदा हुआ था. उसने मेडिकल की डिग्री ली. फिर पाकिस्तान आर्मी की मेडिकल कोर में नौकरी पकड़ ली. उसकी पत्नी भी डॉक्टर थी. 1997 में दोनों पति-पत्नी कनाडा शिफ्ट हो गए. 2001 में उन्हें कनाडा की नागरिकता भी मिल गई. कनाडा में राणा ने कई बिजनेस शुरू किए. लेकिन उसका फोकस इमिग्रेशन सर्विस और ट्रैवल एजेंसी पर था.
2006 में हेडली ने उसे मुंबई में इमिग्रेशन फर्म शुरू करने की सलाह दी. इसी सिलसिले में दोनों कई बार मुंबई आए. जांच एजेंसियों का कहना है कि ये फर्म आतंकी हमले की रेकी का झांसा देने के लिए खोला गया था. हेडली ने भी अपनी गवाही में इसकी पुष्टि की है. हेडली ने कहा था कि उसने राणा को पूरे प्लान के बारे में बताया था. राणा की सलाह पर ही उसने अपना नाम बदला. उसने अपनी भारत-यात्रा का मकसद बताने में भी हेरफेर की. ये सब भारत का वीजा लगवाने के लिए किया गया था.
डेविड हेडली 2006 से पहले तक दाऊद गिलानी के नाम से जाना जाता था. उसके पिता सैयद सलीम गिलानी पाकिस्तान के रहने वाले थे. पेशेवर तौर पर ब्रॉडकास्टर थे. वॉशिंगटन डीसी में पाकिस्तानी दूतावास की एक पार्टी में उनकी मुलाकात सेरिल हेडली से हुई. दोनों को एक-दूसरे का साथ रास आया. कुछ समय बाद उन्होंने शादी कर ली. फिर 1960 में उनके घर लड़के का जन्म हुआ. जिसका नाम उन्होंने रखा, दाऊद.
दाऊद की पैदाइश के कुछ समय बाद ही सैयद और सेरिल पाकिस्तान आ गए. लेकिन उनका रिश्ता जमा नहीं. कुछ समय बाद ही उनका तलाक हो गया. दाऊद पिता के पास ही रह गया. पिता ने दूसरी शादी कर ली थी. सौतेली मां के साथ उसके रिश्ते ठीक नहीं थे. इसी वजह से उसे अक्सर घर से दूर रखा गया. उसे रेसिडेंशियल स्कूलों में पढ़ने के लिए भेज दिया गया. बाद में दाऊद को मिलिट्री स्कूल में दाखिला मिला. यहीं पर उसके दिमाग में भारत के ख़िलाफ़ ज़हर का बीज भरा गया था. नवंबर 2011 में फ़्रंटलाइन के लिए अज़मत ख़ान ने लिखा है,
गिलानी ने पाकिस्तान मिलिटरी के प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई की. वहां की टेक्स्टबुक्स पाकिस्तान के लिए बलिदान देने और भारत के प्रति शत्रुता की भावना बढ़ाने के लिए कुख्यात थीं. हेडली ने बाद में माना भी कि मुंबई हमलों के जरिए उसने भारत के हमले का बदला लिया था. उसके मुताबिक, 1971 के युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेना ने उसके स्कूल पर बमबारी की थी.
दाऊद जब तक 17 बरस का हुआ, तब तक उसका पिता और सौतेली मां के साथ झगड़ा बढ़ गया था. फिर वो अपनी मां के पास रहने अमेरिका चला गया. वहां उसकी मां पब चलाती थी. दाऊद ने कुछ समय वहां काम किया. वहीं पर उसकी मुलाकात कुछ नशेड़ियों से हुई. वे अक्सर आपस में पाकिस्तान का जिक्र किया करते थे. दाऊद तब तक नशे का आदी हो चुका था. उसने सोचा कि पाकिस्तान से सस्ते में ड्रग्स लाकर बढ़िया फायदा कमाया जा सकता है. 1984 में उसने पहली बार कोशिश भी की. लेकिन उसे पाकिस्तान में ही पकड़ लिया गया. यहां पर उसका एक टैलेंट काम आया. वो लोगों को बहलाने में माहिर था. पाकिस्तानी अधिकारियों को उसने आसानी से अपने पाले में कर लिया और आसानी से छूट गया. आगे चलकर ये उसका ट्रेडमार्क हथियार बन गया.
मसलन, 1988 में उसे अमेरिका में ड्रग एन्फ़ोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन (DEA) ने दो किलो हेरोइन के साथ पकड़ा. 09 साल की सजा हुई. फिर उसने मुखबिर बनने की पेशकश की और वो 4 साल में ही छूट गया. 1997 में उसे फिर से हेरोइन के साथ पकड़ा गया. फिर सजा हुई, वो फिर से मुखबिर बना. फिर से उसकी सजा कम हो गई.

फिर आया 2001 का साल. 11 सितंबर को अमेरिका पर हमला हुआ. लगभग तीन हजार लोग मारे गए. अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने पूरी दुनिया में आतंकियों के ख़िलाफ ऑपरेशन चलाया. इसी दौरान दाऊद गिलानी ने DEA का साथ छोड़कर आतंकियों की मुखबिरी करने का फैसला किया. उसने लश्कर-ए-तैयबा में घुसपैठ की. लेकिन बहुत जल्द वो ख़ुद रैडिक्लाइज़ (कट्टर) हो चुका था. लश्कर में उसकी मुलाकात साजिद मीर से हुई.
2005 में साजिद मीर ने दाऊद को भारत जाने का ऑफर दिया. तब दाऊद गिलानी ने अपने बचपन के दोस्त तहव्वुर राणा से संपर्क किया. उसकी सलाह पर उसने अपना नाम बदलकर रिचर्ड कोलमैन हेडली कर लिया. फिर दोनों भारत आए. राणा भारत के कई हिस्सों में घूमा. उन दोनों ने मशहूर फ़िल्मकार महेश भट्ट के बेटे राहुल भट्ट को फ़िल्मों में लॉन्च करने का ऑफ़र भी दिया. हेडली और राहुल भट्ट ने साथ में लगभग एक हजार घंटे बिताए थे. ये दोस्ती तब टूटी, जब मुंबई हमला हुआ और उसमें हेडली के शामिल होने की खबर बाहर आई.

अरेस्ट होने के बाद हेडली के लिए सारे दरवाजे बंद हो चुके थे. तब उसने अमेरिकी सरकार के साथ डील कर ली. इसके एवज में उसने तहव्वुर राणा का नाम लिया. अलग-अलग आतंकी हमलों में उसकी भूमिका बताई. उसने राणा के खिलाफ गवाही भी दी. इसी के आधार पर राणा को एक डेनिश अखबार के दफ्तर पर हमले की साजिश रचने का दोषी करार दिया गया था. राणा के वकीलों ने कोर्ट में कहा कि हेडली बहुत बड़ा झूठा है. उसने पूरी उम्र यही काम किया है. उसके ऊपर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन कोर्ट ने उनकी दलीलों को खारिज कर दिया. डेविड हेडली को 2013 में 35 बरस की जेल की सजा सुनाई गई. सरकार उसको भी भारत लाने के लिए काम कर रही है. अमेरिकन एजेंसियों ने जांच में सहयोग की बात कही है पर उसके प्रत्यर्पण पर अभी बात नहीं बन पाई है.
वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: 26/11 आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण की पूरी कहानी