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सीरिया में जिस 'सरीन गैस' से असद ने हजारों जानें लीं, वो अब जुलानी के पास, कितनी खतरनाक है ये गैस

Syria News: ये खामोश सा हमला Sarine Nerve Agent से किया गया था. ये इतना भयावह था कि इसने एक हजार से ज्यादा ज़िंदगियों को एक झटके में अपना शिकार बना लिया.

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बशर-अल-असद देश छोड़कर भाग चुके हैं (फोटो-एक्स)

हम बात कर रहे हैं सीरिया की. वही सीरिया जो बीते कुछ दिनों से सुर्खियों में है. करीब 24 सालों से सत्ता पर काबिज बशर-अल-असद देश छोड़कर भाग चुके हैं. सीरिया की सड़कों पर लोग जश्न मना रहे हैं. बीते एक दशक में ये कुछ दिन शायद सबसे कम हिंसाग्रस्त रहे. सीरिया में सबसे मजबूत गुट इस वक्त हयात-तहरीर-अल-शाम है. इसके नेता हैं अबु मोहम्मद अल-जुलानी. हाल ही में उनके गुट की ओर से एक बयान आया कि वो सुनिश्चित करेंगे की सीरिया के केमिकल हथियार गलत हाथों में न पड़ें. साथ ही वो किसी भी सूरत में इनका इस्तेमाल नहीं करेंगे. तो समझते हैं कि हयात-तहरीर-अल-शाम किन हथियारों की बात कर रहा है ? और इन्हें गंभीरता से लेने की जरूरत क्यों है ?

साल 2013 , ऐसा साल  जिसे याद करके आज भी सीरिया के लोग सिहर उठते हैं. न कोई बम फटा , न कोई तोप का गोला दागा गया, न किसी बंदूक से गोली चली. फिर भी ये खामोश सा दिखने वाला हमला इतना भयावह था कि इसने एक हजार से ज्यादा ज़िंदगियों को अपना शिकार बना लिया. अल-जज़ीरा से जुड़े पत्रकार Ali Haj Suleiman की एक रिपोर्ट इस हमले की कहानी को सीरिया के एक शहर इदलिब (Idlib) में काम करने वाली एक नर्स के हवाले से बयान करते हैं. पहले वो कहानी जान लेते हैं.

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गैस अटैक से प्रभावित इलाके (Source- Global Public Policy Institut )
मुंह से झाग 

21 अगस्त 2013 की आधी रात थी. सीरिया बीते 2 सालों से गृहयुद्ध की चपेट में था. बम गिरना, तोप के गोले बरसना, गोलियों की तड़तड़ाहट जैसी चीजें अब वहां के लोगों को हैरान नहीं करती थीं. राजधानी दमिश्क के बाहरी इलाके Ghouta में Umm Yahya नामक एक नर्स रहती थीं. रात के लगभग 1 बजे अस्पताल में अपनी शिफ्ट खत्म करके वो घर आ चुकी थीं. उन्हें महसूस हुआ था कि उन्हें सांस लेने में कुछ दिक्कत हो रही है, पर वो घर आकर सोने की कोशिश करने लगीं. कुछ ही मिनट बीते थे कि उनके दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो सामने अबु खालिद खड़े थे. अबु खालिद उनके ही अस्पताल में एम्बुलेंस ड्राइवर थे. अबु खालिद ने बताया कि बहुत सारे मरीज अस्पताल में आए हैं. सबको सांस लेने में दिक्कत है.

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सीरिया के गृहयुद्ध में कई शहर तबाह हो गए  (PHOTO- Bulent Kilic/AFP/Getty Images)

पहले तो Umm Yahya थोड़ा चकित हुईं क्योंकि उन्होंने किसी तरह के धमाके की आवाज नहीं सुनी थी. तो फिर अस्पताल में आए लोग कैसे घायल हुए थे? जवाब था केमिकल हमला. बशर-अल-असद के आदेश पर सेना ने Ghouta में सरीन गैस से एक केमिकल हमला किया था. तब तक किसी को ये अंदाजा नहीं था कि असद की सेना इस हद तक जा सकती है. खैर, Umm Yahya अबु खालिद के साथ अस्पताल आईं. वहां जो नजारा उन्होंने देखा, उससे उनका कलेजा सिहर गया. उन्होंने देखा कि बच्चे, बूढ़े, जवान; कोई भी सांस नहीं ले पा रहा था. अधिकतर के मुंह से झाग निकल रहा था. वो सभी मरीजों की मदद करने की कोशिश कर रही थीं. पर लोग बढ़ते ही जा रहे थे. एक समय अस्पताल में इतने लोग आ गए कि अस्पताल में जगह नहीं बची. Umm Yahya उस रात को याद करते हुए कहती हैं-

"हम बस ये देख रहे थे कि लोगों की छाती और गले में ऐंठन हो रही थी और वो सांस नहीं ले पा रहे थे. हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था. तभी किसी ने कहा कि इन पर पानी से स्प्रे करो. डॉक्टर ने कहा कि सभी मरीजों को एट्रोपिन लगाओ. मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी कि आखिर इन्हें हुआ क्या है. मैं सिर्फ उन्हें ऑक्सीजन दे रही थी जिससे वो सांस ले सकें."

एट्रोपिन एक ऐसी दवा है जिसे दिल की धड़कन अगर धीमी पड़ने लगे तो उसे तेज करने के लिए दिया जाता है. सर्जरी के दौरान सांस की नली को साफ करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. Umm Yahya बताती हैं कि उस समय वो अकेली थीं, जिन्हें समझ में आया कि और कुछ नहीं बल्कि केमिकल हथियार से किया गया हमला है. Umm Yahya रात भर छटपटाते बच्चों को देखती रहीं. पर वो बेबस थीं. उन सबके मुंह से झाग निकल रहा था. कुछ ही मिनटों में उनकी मौत हो जा रही थी. सुबह तक पूरा अस्पताल लाशों से भर चुका था. उन्होंने 300 तक लाशें गिनीं पर उससे आगे उनकी हिम्मत नहीं हुई.

अस्पताल का स्टाफ सभी लाशों को कफन में लपट रहा था. पर एक समय अस्पताल में कफन कम पड़ गए. जब लोग अपने परिजनों की लाशों को दफन करने निकले. उस समय भी उन पर जंगी जहाजों ने हमला किया और बचे हुए लोगों के चीथड़े भी सड़क पर फैल गए. ये एक भयावह नजर था.

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असद सरकार के विरोध में बनी पेंटिंग जिसमें केमिकल से भरे गुब्बारों से बच्चों के शव लटक रहे हैं. Ghouta केमिकल हमले के विरोध में इस पेंटिंग को बनाया गया था. (Photo- Ali Haj Suleiman/Al Jazeera)

Syrian Network for Human Rights - SNHR के मुताबिक इस हमले में कुल 1127 लोगों की जान गई. 6 हजार के लगभग लोग सांस संबंधी समस्याओं के शिकार हो गए. SNHR ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि ये एक सोचा समझा हमला था. रात के 2 बजे से 5 बजे तक उस क्षेत्र में मौसम ठंडा था. जिन्होंने ये हमला किया वो जानते थे कि हवा शांत है और ऐसे में गैस अपने आप जमीन की तरफ जाएगी. असद की सेना ने इस हमले में एक नर्व एजेंट का इस्तेमाल किया था. इस नर्व एजेंट को सरीन गैस कहा जाता है.

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हेलीकॉप्टर से केमिकल हथियार गिराती सीरियन सेना (PHOTO-Bellingcat) 
सरीन गैस 

सरीन गैस एक बिना किसी महक वाला सिंथेटिक ऑर्गेनोफॉस्फेट कंपाउंड है. ये ऐसे केमिकल होते हैं जिनका प्रयोग आमतौर पर कीटनाशक के रूप में किया जाता है. पर अगर इन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाए तो इंसान इतना तड़पता है कि उसे जिंदगी से बेहतर मौत लगने लगती है. इनमें भारी मात्रा में फॉस्फोरिक एसिड होता है जो इंसानों के लिए खतरनाक है. चूंकि ये इंसान के नर्वस सिस्टम पर सीधा हमला करता है. इसीलिए इसे नर्व एजेंट भी कहा जाता है. पहली बार इसे 1938 में जर्मनी में एक फार्मा कंपनी IG Farben ने बनाया था. उस समय इसे पौधों में डाले जाने वाले कीटनाशक के तौर पर बनाया गया था. पर नाजी साम्राज्य के शैतानी दिमाग ने इसे अलग तरीके से डेवलप किया और इससे एक हथियार बना डाला.

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सीरिया में पड़े केमिकल हमले के अवशेष (Photo by Daniele Rainer)

इसके खतरे को देखते हुए  1993 में हुए Chemical Weapons Convention में इसे पूरी तरह से बैन कर दिया गया. जिन देशों के पास भी उस समय इसका स्टॉक था, उन्होंने उसे नष्ट करना शुरू कर दिया. पर कुछ देश चोरी-छिपे इसे बनाते और स्टॉक करते रहे. सीरिया में न सिर्फ 2013 बल्कि 2017 में भी सरीन गैस का इस्तेमाल जंग में किया गया था. पर संभव है कि अगर किसी देश ने हथियार बनाया है तो वो देर-सबेर आतंकियों तक भी पहुंचेगा. 1995 में ऐसा ही हुआ जब जापान के एक धार्मिक कट्टरपंथी संगठन AUM Shinrikyo ने इसका इस्तेमाल जापान की राजधानी टोक्यो के सबवे में किया. इस हमले में 13 लोग मारे गए और 5 हजार से अधिक लोग इसके असर से प्रभावित हुए. इन सभी चीजों को देखते हुए, इस तरह के हथियारों पर बैन लगाया गया. कुछ इंटरनेशनल नियम भी बनाए गए.

केमिकल हथियारों पर अंतर्राष्ट्रीय नियम

प्रथम विश्वयुद्ध में कई बार केमिकल हथियार इस्तेमाल किये गए थे. इसे देखते हुए 1925 में इस पर पहली  बैन लगा और 1972 और  1993 में इस बैन के नियम और कड़े किये गए. इन नियमों के मुताबिक इस तरह के हथियारों का प्रोडक्शन, डेवलपमेंट, स्टॉक इकट्ठा करने और कहीं भी ट्रांसफर करने पर भी रोक लगा दी गई.

इन सब में सिर्फ एक केमिकल हथियार जिसे हम दंगों या किसी अशान्ति की स्थिति में देखते हैं उसे इस्तेमाल करने की छूट दी गई. ये हथियार है 'आंसू गैस के गोले ' जिसे टियर गैस कहा जाता है. 2013 में International Committee of the Red Cross ने सभी देशों को एक अपील जारी की. इसमें कहा गया कि टियर गैस के इस्तेमाल को भी सीमित किया जाए और इसे इस्तेमाल करने की इजाजत सिर्फ और सिर्फ लॉ-एनफोर्समेंट संस्थाओं को ही दी जाए.

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