साल था 1996. आम चुनाव का साल. बाक़ी लोकसभाओं की तरह ही दक्षिणी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र भी भाषणों से गूंज रहा था. मोहल्ले की एक गली को घेर घार के चुनावी मंच बना दिया गया था. मंच था भाजपा का. और हुंकार भर रही थीं सुषमा स्वराज. हर लाइन का अंत तालियों से हो रहा था. सुषमा और जनता, दोनों में से कौन ज़्यादा झूम रहा था, कहना मुश्किल था. उंचे से पोडियम के पीछे सुषमा इतना ऊपर उठी हुई थीं कि माइक और उनके बीच ठीक 45 डिग्री का कोण बना हुआ था. इस कोण पर इक्का दुक्का लोगों का ही ध्यान गया.
सुषमा ने दुनिया को सिखाया कि 'लंबाई' और 'कद' में क्या फ़र्क है
सुषमा ने अपना कद ख़ुद बनाया और ऐसा बनाया कि पूरी दुनिया ने उनसे झुक कर बात की.

4 फिट 11 इंच की एक महिला जब 5 फिट के पोडियम के पीछे खड़ी हो तो दिखाई भी नहीं देगी. लेकिन सुषमा ना सिर्फ़ दिख रही थीं, बल्कि अगर किसी ने उन्हें पहली बार देखा हो तो उनके कद से धोखा खा सकता था.
सुषमा के कद का ये राज़ भी रैली ख़त्म होने के साथ खुल जाता है. पोडियम के पीछे एक दो फिट की चौकी रखी थी.

सुषमा स्वराज के साथ-साथ ये लकड़ी की चौकी भी जाती थी. छोटी लंबाई की वजह से सुषमा अक्सर पोडियम के पीछे छिप जाती थीं. इसी का तोड़ निकाला गया था इस चौकी से
# लेकिन कद बहुत उंचा था
सुषमा स्वराज की लंबाई कम थी. औसत से भी कम. लेकिन उनका कद बहुत उंचा था. सुषमा की लंबाई मापने के पैमाने दुनिया ने बना रखे थे लेकिन उनके उंचे कद का पैमाना ख़ुद सुषमा ने बनाया था. लहरों के ख़िलाफ़ तैरने और किनारे लगना सुषमा ने जैसे अपने बचपन में ही सीख लिया था.

सुषमा स्वराज उन अनगिनत औरतों के लिए मिसाल हैं जिन्हें चुनाव का विकल्प पूरी ज़िंदगी ना के बराबर मिलता है
इंसान अपनी लंबाई नहीं चुन सकता. वो अपनी खूबसूरती भी नहीं चुन सकता. ये पैदाइश के साथ ही लगभग तय हो जाता है. लेकिन अपना कद तय किया जा सकता है, इतना खूबसूरत हुआ जा सकता है कि विश्वसुंदरी भी मिले तो उसकी दमक फीकी पड़ जाए. ये सुषमा ने बहुत पहले जान लिया था. शायद यही वजह थी कि जब लड़कियां घरेलू होने की तरफ़ दम बांधे दौड़ रही थीं तब सुषमा नारे लगाते हुए झुलसती गर्मी में सड़क पर थीं. दूर का सफ़र जो तय करना था. आपातकाल में जयप्रकाश नारायण के साथ उन्होंने पूरी सत्ता को चुनौती दी. जिस उम्र में लड़कियां सुबह उठकर जी जान से काम करने का लेक्चर सुनती हैं, उस उम्र में सुषमा ने श्रम मंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाया.

जय प्रकाश नारायण के साथ उनके पटना के आवास पर सुषमा स्वराज
# रेशा-रेशा बुनी शख्सियत थीं सुषमा
लंबा रास्ता तय किया और 2014 की मोदी सरकार में परदेस संभाला. सुषमा जब दुनिया भर के विदेश मंत्रियों के साथ एक कतार में खड़ी होती थीं तो ज़्यादातर के कंधों तक भी नहीं पहुंच पाती थीं. लेकिन सुषमा के कंधों पर आधा हिंदुस्तान बैठा होता था. जिस मुल्क में ज़्यादातर जगहों पर औरत अकेले शहर के चौक तक ना जा पाती हो वहां सुषमा परदेस संभाले हुए थीं.

दुनिया भर के मिनिस्टर्स के बीच सुषमा की लंबाई भले ही कम दिखती हो लेकिन सुषमा के कद में उन अनगिनत भारतीय औरतों के कद भी गुंथे हुए हैं जो सपने देखना कब का छोड़ चुकी हैं
# जब-जब बोलीं, कद और उंचा हुआ
अटल के बाद अगर किसी ने अपनी भाषण कला के दम पर अपना रास्ता बनाया था तो वो थीं सुषमा स्वराज. बोलने का ऐसा दमदार लहज़ा और लहराकर भाषण देने का अंदाज़ सुषमा का कद हर बार और बढ़ा देती थीं.
संसद से सड़क तक जब-जब सुषमा ने माइक थामा तो लोगों को कबड्डी का खेल याद आता था. सामने कौन है? कितना है? क्यों है? कब तक है? ये सवाल सुषमा स्वराज के लिए कोई सवाल ही नहीं होते थे. माइक थामकर जब सुषमा ने ताल ठोंक दी तो ठोंक दी. उसके बाद लोगों ने सुषमा स्वराज को आख़िरी दम साधे अपना पाला छूते ही देखा.

सुषमा स्वराज के ट्विटर अकाउंट पर लोगों की नज़र रहती थी, अब भी शायद कभी ग़लती से ही सही लेकिन किसी मामले पर सुषमा की राय जानने के लिए शायद उनके ट्विटर हैंडल पर चले जाएं
सुषमा स्वराज अब नहीं हैं. सोशल मीडिया का असल ज़िंदगी पर सबसे ज़्यादा असर सुषमा ने दिखाया. महीनों से दुनिया के किसी सुदूर कोने में फंसा हिंदुस्तानी महज़ एक ट्वीट या पोस्ट से वापस अपनी मिट्टी तक आ सकता था. 4 फिट 11 इंच की एक महिला का ये बेहिसाब कद ही था कि पूरी दुनिया को उसके सामने झुकना पड़ा. सुषमा ने जब भी जिससे भी बात की सिर उठा कर बात की. लंबाई कम होने का एक फ़ायदा ये भी तो है.
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