सुनीता विलियम्स इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) से रवाना हो चुकी हैं. NASA का स्पेशल स्पेसक्रॉफ्ट 19 मार्च को सुबह लगभग 3:27 बजे फ्लोरिडा के तट पर लैंड होगा. सुनीता विलियम्स और बुच विल्मर पिछले साल 5 जून को ISS गई थीं. उनका ये मिशन सिर्फ एक हफ्ते के लिए था. इसके बाद उन्हें वापस लौटना था. लेकिन बोइंग स्टारलाइनर में गड़बड़ी की वजह से वो वहीं पर फंस गई और पिछले 9 महीने से उनकी वापसी संभव नहीं हो पाई. सुनीता अब वापस आ रही हैं. लेकिन कहा जा रहा है कि इतने दिन स्पेस में गुजराने की वजह से उन्हें शारीरिक और मानसिक तौर पर कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. जानने की कोशिश करते हैं कि सुनीता विलियम्स को धरती पर लौटने के बाद किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.
महीनों स्पेस में रहीं, अब धरती पर लौटने की भी कीमत चुकाएंगी सुनीता विलियम्स, कई दिक्कतें होंगी
Sunita Williams धरती पर वापस लौट रही हैं. लेकिन लौटने के बाद सबकुछ पहले जैसा सामान्य नहीं होगा. उन्हें कई शारीरिक दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

सबसे पहली समस्या चलने-फिरने को लेकर. स्पेस में एस्ट्रोनॉट्स को चलना नहीं पड़ता. इस दौरान उनके तलवों की स्कीन का मोटा हिस्सा निकल जाता है. जब वे स्पेस में लंबा वक्त बिताकर धरती पर वापस लौटते हैं तो उनके तलवे बच्चों की तरह सॉफ्ट हो चुके होते हैं. जिससे उन्हें चलने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है. ऐसी स्थिति को ‘बेबी फीट’ समस्या कहा जाता है. अलग-अलग स्पेस मिशन के तहत यात्रा कर चुके कई अंतरिक्ष यात्रियों ने पृथ्वी पर लौटने के बाद ‘बेबी फीट' समस्या का सामना किया है.
गुरुत्वाकर्षण का असरस्पेस में ग्रेविटी नहीं है और जब अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर वापस लौटते हैं तो उन्हें पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार तुरंत फिर से ढलना पड़ता है. यहां ग्रेविटी खून के साथ-साथ दूसरे तरल पदार्थों को शरीर के निचले हिस्से की ओर खींचती है. वहीं, अंतरिक्ष में भारहीनता की वजह से शरीर में ये तरल पदार्थ शरीर के ऊपरी हिस्सों में जमा हो जाते हैं और इसी कारण वे फूले हुए नजर आते हैं. स्पेस में एस्ट्रोनॉट्स के खून की मात्रा कम हो जाती है और रक्त प्रवाह का तरीका बदल जाता है. यह शरीर के कुछ हिस्सों में धीमा हो जाता है. जिससे थक्के बन सकते हैं. तरल पदार्थ भी आसानी से नीचे नहीं आते, या बहते ही नहीं हैं.
स्विनबर्न विश्वविद्यालय के खगोल वैज्ञानिक ‘एलन डफी’ ने बताया,
‘जब अंतरिक्ष यात्री स्पेस में होते हैं, तो उनके सिर में तरल पदार्थ जमा हो जाता है. इसलिए उन्हें ऐसा महसूस होता है जैसे उन्हें लगातार सर्दी लग रही है.’
वहीं, ह्यूस्टन स्थित ‘बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन' का स्पेस में शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में कहना है,
'जब अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर वापस लौटते हैं तो उन्हें पृथ्वी की ग्रेविटी के मुताबिक, तुरंत फिर से ढलना पड़ता है. उन्हें खड़े होने, नजरें एक जगह टिकाने, चलने और मुड़ने में समस्या हो सकती है. पृथ्वी पर लौटने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर लौटने के तुरंत बाद एक कुर्सी पर बिठाया जाता है.'
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स्पेस और ग्रेविटी सिकनेसकान के अंदर एक ‘वेस्टिबुलर' नाम का एक अंग होता है. जो मस्तिष्क को ग्रेविटी के बारे में जानकारी भेजता है. जिससे पृथ्वी पर चलते वक्त इंसानों को अपने शरीर को संतुलित रखने में मदद मिलती है. जापानी अंतरिक्ष एजेंसी JAXA के मुताबिक,
'अंतरिक्ष में कम ग्रेविटी की वजह से ‘वेस्टिबुलर' अंगों से प्राप्त होने वाली जानकारी में बदलाव आता है. इससे दिमाग भ्रमित हो जाता है और ‘स्पेस सिकनेस' हो जाती है. इसके बाद जब आप पृथ्वी पर वापस आते हैं, तो आप पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभावों का फिर से अनुभव करते हैं और इस प्रकार कभी-कभी ‘ग्रैविटी सिकनेस' हो जाती है, जिसके लक्षण ‘स्पेस सिकनेस' जैसे ही होते हैं.'
यानी स्पेस सिकनेस, अंतरिक्ष में फील होती है और ग्रेविटी सिकनेस, धरती पर लौटने के बाद फील होती है. इसके लक्षणों में चक्कर आना, सिर चकराना, सिरदर्द, ठंडा पसीना आना, थकान, मतली और उल्टी शामिल है.
रेडिएशन का असरपृथ्वी की सतह वायुमंडल से घिरी हुई है. यहां वायुमंडल और मैग्नेटिक फील्ड हमें रेडिएशन से बचाते हैं. वायुमंडल हमें सांस लेने के लिए जरूरी ऑक्सीजन देता है. साथ ही इंसानों को पृथ्वी पर पड़ने वाली यूवी किरणों और विकिरण से भी बचाता है. JAXA के मुताबिक, अंतरिक्ष यात्री जो अंतरिक्ष में रहते हैं. जहां लगभग कोई वायुमंडल नहीं है, वे पृथ्वी की तुलना में अधिक ऊर्जा विकिरण के संपर्क में आते हैं. जिससे कैंसर जैसी बीमारियां होने का जोखिम बढ़ जाता है. साथ ही दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है और इम्यून सिस्टम वीक हो जाता है.
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सर्वाइव करने के लिए एक्सरसाइजस्पेस में जीरो ग्रेविटी होने की वजह सें शरीर को बिना किसी मेहनत के काम करना पड़ता है. जिससे हड्डियों और मांसपेशियों को नुकसान पहुंचता है. NASA के मुताबिक,
‘स्पेस में वजन सहन करने वाली हड्डियों का घनत्व अंतरिक्ष में हर महीने करीब एक प्रतिशत से डेढ़ प्रतिशत कम हो जाता है. इस समस्या से निपटने के लिए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर अंतरिक्ष यात्रियों को व्यायाम करना पड़ता है.’
NASA के अंतरिक्ष यात्री डगलस व्हीलॉक ने बताते हैं,
बोलने में दिक्कत'जीरो ग्रेविटी में रहने वजह से हम सोचने लगे थे कि पैरों की जरूरत नहीं है. ऐसे में पृथ्वी पर लौटने में खुद को ढालना चुनौतीपूर्ण होता है. डॉक्टर और फिजिकल एक्सपर्ट से ट्रेनिंग लेनी पड़ती है. मांसपेशियों और हड्डियों की रिकवरी करने के लिए महीनों तक एक्सरसाइज करनी पड़ती है.'
स्पेस में शरीर के बाकी अंगो की तरह ही जीभ भी भारहीन हो जाती है. लेकिन धरती पर वापसी के बाद अंतरिक्ष यात्रियों को बात करने में दिक्कत होती है. 2013 में ISS से वापस लौटे कनाडाई अंतरिक्ष यात्री क्रिस हैडफील्ड ने बताया,
‘पृथ्वी पर लौटने के तुरंत बाद मैं अपने होठों और जीभ का वजन महसूस कर सकता था और मुझे अपनी बातचीत का तरीका बदलना पड़ा. मुझे एहसास ही नहीं हुआ था कि मुझे भारहीन जीभ से बात करने की आदत हो गई थी.’
सुनीता और बुच की वापसी के बाद उन्हें स्पेशल पुनर्वास प्रक्रिया से गुजरना होगा. NASA की मेडिकल टीम उनका परीक्षण करेगी. बताया जा रहा है कि दोनों यात्रियों को सामान्य होने के लिए लगभग एक साल का वक्त लग सकता है.
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