जैसे ही कोडवर्ड सुनाई पड़ा, सबके सब हरक़त में आ गए. वे नहर के ऑफ़िस में घुसे और ऐलान किया-
आपकी पुरानी कंपनी वाली सेवाएं समाप्त हुई. अब ये नहर हमारे देश की अमानत हो चुकी है.ऐलान करनेवालों के पास बंदूकें भी थीं. लेकिन उसके इस्तेमाल की नौबत नहीं आई. ऑफ़िस में मौज़ूद कर्मचारियों ने सिर हिलाकर अपनी सहमति दे दी.
मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासेर. (तस्वीर: एएफपी)
ये सब हो क्या रहा था?
किस कोडवर्ड को सुनकर कुछ हथियारबंद लोगों ने एक नहर पर कब्ज़ा कर लिया था? इसका जवाब राष्ट्रपति नासेर के भाषण में ही मिला. अलेक्जेंड्रिया में दो लाख लोगों के सामने नासेर ने ऐलान किया-
मेरे दोस्तों! मुझे अभी-अभी ख़बर मिली है कि हमारे कुछ साथियों ने स्वेज़ नहर पर कब्ज़ा कर लिया है. स्वेज़ कैनाल कंपनी को नेशनलाइज़ किया जाएगा. कंपनी की सारी संपत्ति अब ईजिप्ट की होगी.नासेर का भाषण दो घंटे से ज़्यादा वक़्त तक चला. इस दौरान उन्होंने कुल 14 बार एक फ़्रेंच डिप्लोमैट का नाम लिया था. फ़र्डीनेण्ड डि लेसेप्स. यही नाम पूरे ऑपरेशन का कोडवर्ड था.
भाषण खत्म होने के तुरंत बाद नासेर थिएटर में चले गए. आराम फरमाने के लिए. लेकिन दूर किसी देश में हड़कंप मच गया था. वो देश था ब्रिटेन. वहां प्रधानमंत्री एंथनी इडेन की नींद उड़ चुकी थी. इडेन की तीन मुख्य पहचान थी-
पहली, वो विंस्टन चर्चिल के रिश्तेदार थे. दूसरी, इडेन बेहद तुनकमिजाज थे. और तीसरी, नासेर उनको फूटी आंख नहीं सुहाते थे.
स्वेज़ नहर के नेशनलाइज़ होने से ब्रिटेन के अहं पर चोट लगी थी. बतौर प्रधानमंत्री, इडेन के लिए ये एक बड़ा झटका था.
ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री एंथनी इडेन. (तस्वीर: एएफपी)
इसकी वजह क्या थी?
ये जानने के लिए थोड़ा सा बैकग्राउंड जानना होगा. 1850 का दशक चल रहा था. ब्रिटेन का भारत और उसके पड़ोसी देशों व्यापार लगातार बढ़ रहा था. भारत से कच्चे माल की लूट जारी थी. ब्रिटेन को एशिया से यूरोप तक के सीधे रूट की दरकार थी. अभी तक जहाज पूरे अफ़्रीका का चक्कर लगाकर यूरोप पहुंचते थे. एक तो ये रूट असुरक्षित था. साथ ही दूरी काफ़ी ज़्यादा थी. इसके लिए ज़रूरी था कि भूमध्यसागर और हिन्द महासागर को जोड़ दिया जाए.
ये संभावित रास्ता ईजिप्ट से होकर गुज़रता था. इसके लिए नहर का निर्माण करना ज़रूरी था. ताकि बड़े जहाज आसानी से इस रास्ते से होकर गुज़र सकें. इसका बीड़ा उठाया फ़्रेंच डिप्लोमैट फ़र्डीनेण्ड डि लेसेप्स ने. उन्होंने रिसर्च करवाया, ऑटोमन सुल्तान की इजाज़त ली और 1858 में स्वेज़ कैनाल कंपनी की स्थापना की. नहर का निर्माण 1859 के साल में शुरू हुआ. इसमें ब्रिटेन, फ़्रांस और अमेरिका के निवेशकों ने पैसा लगाया.
नहर बनने में 10 साल लग गए. इस दौरान 15 लाख मज़दूरों ने दिन-रात काम किया. इनमें से 1.20 लाख मज़दूर खसरा और दूसरी वजहों से मर गए. 1869 में स्वेज़ नहर का उद्घाटन हुआ. उस वक़्त इसमें ईजिप्ट की भी हिस्सेदारी थी. लेकिन कुछ बरस बाद ही उन्हें अपनी हिस्सेदारी ब्रिटेन के हाथों बेचनी पड़ी. तब से नहर ब्रिटेन और फ़्रांस के नियंत्रण में आ गई.
फ़्रेंच डिप्लोमैट फ़र्डीनेण्ड डि लेसेप्स. (तस्वीर: एएफपी)
स्वेज़ नहर से फ़्रांस और ब्रिटेन को दो फायदे हुए. पहला, उन्हें एशिया से यूरोप तक का सीधा रूट मिल गया था. दूसरा, बाकी देशों के जहाजों को टोल टैक्स देना होता था. ये रकम काफी ज़्यादा थी. जिसकी ज़मीन पर ये नहर बनी थी, उस ईजिप्ट को एक धेला तक नहीं मिलता था.
जब नासेर ईजिप्ट के राष्ट्रपति बने, उन्होंने नील नदी पर असवान बांध बनाने का फ़ैसला लिया. इससे पूरे ईजिप्ट कको फ़ायदा होने वाला था. इसके लिए उन्होंने वर्ल्ड बैंक से मदद मांगी. वर्ल्ड बैंक में अमेरिका का दबदबा था. मदद के लिए सहमति मिल गई. फिर नासेर की नजदीकी सोवियत संघ से भी बढ़ी. दौर कोल्ड वॉर का था. नाराज़ अमेरिका ने बांध के लिए मिलने वाली मदद पर रोक लगा दी. इससे नाराज़ नासेर ने स्वेज़ नहर को नेशनलाइज़ कर दिया. ब्रिटेन के लिए ये तगड़ा झटका था.
अमेरिका ने इडेन को शांत रहने के लिए कहा. उसने अंतरराष्ट्रीय दबाव के जरिए नासेर को मनाने की सलाह दी. लेकिन इडेन नहीं माने. उन्होंने ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एमआई-6 की रिपोर्ट पर भरोसा कर लिया. रिपोर्ट में कहा गया था कि ईजिप्ट की जनता नासेर से खुश नहीं है.
इडेन ने इजरायल और फ़्रांस के साथ मिलकर ईजिप्ट पर हमला करने का फ़ैसला कर लिया. 29 अक्टूबर 1956 को इजरायल ने ईजिप्ट पर हमला कर दिया. दो दिन बाद फ़्रांस और ब्रिटेन के सैनिक भी ईजिप्ट में दाखिल हो गए. इडेन को लगा कि हमला होते ही जनता नासेर के ख़िलाफ़ विद्रोह कर देगी. लेकिन ये कोरी कल्पना थी.
नासेर ने कहा- हम ख़ून की आख़िरी बूंद तक लड़ेंगे.
इस ऐलान के बाद समूचा ईजिप्ट उनके साथ खड़ा हो गया. विदेशी सेनाओं को मुंह की खानी पड़ी. इडेन की गणना गलत साबित हुई.
29 अक्टूबर 1956 को इजरायल ने ईजिप्ट पर हमला किया था. (तस्वीर: एएफपी)
अब इस खेल में अमेरिका की एंट्री हुई. वो बिना जानकारी के ईजिप्ट पर हमला किए जाने से नाराज़ था. दूसरी तरफ सोवियत संघ बार-बार परमाणु हमले की धमकी दे रहा था. अमेरिका इससे बचना चाहता था. उसने ब्रिटेन, फ़्रांस और इजरायल पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दी. ये धमकी काम कर गई. पहली बार यूएन पीसकीपिंग फ़ोर्स की तैनाती हुई. यूएन की निगरानी में तीनों सेनाओं को बाहर निकलना पड़ा. स्वेज़ नहर पर ईजिप्ट का कब्ज़ा बरकरार रहा. इस घटना को ‘स्वेज़ क्राइसिस’ के नाम से जाना जाता है.
इस संकट ने स्वेज़ नहर को कई और टैग दिए. मसलन,
एक नहर जिसने ब्रिटेन का प्रभुत्व हमेशा के लिए खत्म कर दिया. वो नहर जिसने एक ब्रिटिश प्रधानमंत्री को उसी के देश में विलेन बना दिया. नहर जिसकी वजह से तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो सकता था.
ये खासमखास स्वेज़ नहर फिलहाल चर्चा में क्यों है?
वजह है नहर के बीचोंबीच लगा जाम. मंगलवार, 23 मार्च को चीन से यूरोप जा रहा जहाज ‘एवर गिवेन’ तेज़ हवा और रेतीले तूफ़ान की चपेट में आ गया. जिसकी वजह से उसका संतुलन बिगड़ गया और जहाज नहर में तिरछा होकर फंस गया. एवर गिवेन दुनिया के सबसे बड़े मालवाहक जहाजों में से एक है. 400 मीटर लंबे और 53 मीटर चौड़े इस जहाज का वजन दो लाख टन है. अगर 6 क़ुतब मीनार को एक साथ ज़मीन पर रख दिया जाए, उतना लंबा है ये जहाज.
जहाज को वापस रूट पर लाने की सब कोशिशें फ़ेल हो चुकी हैं. नहर के अधिकारियों ने ड्रेजिंग करवाई. टगबोट्स का इस्तेमाल किया, नीचे से बालू हटाए. लेकिन जहाज टस-से-मस नहीं हुआ है. ताज़ा समाचार ये हैं कि स्थिति अभी भी अधर में लटकी हुई है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जहाज को बाहर निकालने में कई हफ़्तों का वक़्त लग सकता है. हालांकि, ये तय नहीं है कि एवर गिवेन बाहर निकलकर तैरने लगे.
23 मार्च से जहाज स्वेज़ नहर में तिरछा होकर फंसा हुआ है. (तस्वीर: एपी)
इस जाम का क्या असर पड़ा है?
जाम की वजह से 193 किलोमीटर लंबी नहर बंद पड़ी है. 25 मार्च तक दोनों तरफ कुल 206 जहाज रास्ता खुलने का इंतज़ार कर रहे हैं. इन जहाजों में तेल, प्राकृतिक गैस, कार प्रोडक्ट्स, फ़्रोज़न फ़ूड, कपड़े समेत कई बेहद ज़रूरी सामान लदे हैं. अगर ये जाम जल्दी नहीं खुला तो तेल और गैसों के दाम में बढ़ोत्तरी की आशंका जताई जा रही है. इसके अलावा, जर्मन कार फ़ैक्ट्रियों का कामकाज ठप्प पड़ने का डर भी सता रहा है.
अगर आंकड़ों में बात करें, तो प्रतिदिन के जाम से लगभग 70 हज़ार करोड़ रुपये के व्यापार पर असर पड़ता है. स्वेज़ नहर से दुनिया का लगभग 10 फ़ीसदी व्यापार होता है. ये ईजिप्ट की इनकम का भी बड़ा सोर्स है. 2020 में ईजिप्ट ने स्वेज़ नहर के टोल टैक्स से 42 हज़ार करोड़ रुपये कमाए थे. ये जाम जितना लंबा खिेंचेगा, उससे आर्थिक नुकसान तो होगा ही, साथ ही कई देशों में ज़रूरी सामानों की क़िल्लत भी बढ़ेगी.
जाम की वजह से 193 किलोमीटर लंबी नहर बंद पड़ी है.. (तस्वीर: एपी)
इसे ठीक करने का रास्ता क्या है?
स्वेज़ कैनाल अथॉरिटी जहाज को वापस रास्ते पर लाने के काम में जुटी है. वहां पर लगातार ड्रेजिंग चल रही है. इसके अलावा, मदद के लिए विदेशी एक्सपर्ट्स को भी बुलाया गया है. अधिकारी मौसम पर भी आस लगाए हैं. एक संभावना है कि पानी का स्तर अचानक से बढ़ जाए तो जहाज बाहर आ सकता है.
जहाज पर रखे कंटेनर्स को खाली कर दिया जाए, तो जहाज हल्का हो जाएगा. फिर उसे टगबोट्स के सहारे खींचा जा सकता है. अधिकारी इस ऑप्शन पर भी विचार कर रहे हैं. लेकिन इस काम में भी काफी लंबा वक़्त जाया हो सकता है.
शिपिंग कंपनियां क्या कर रही हैं?
जो भी जहाज रास्ता खुलने के इंतज़ार में हैं, वे भी दूसरे रास्ते तलाश रहे हैं. जानकारों के मुताबिक, उन्हें अफ़्रीका का चक्कर लगाकर रूट पूरा करना पडे़गा. इस वजह से दूरी और समय ज़्यादा हो जाएगा. लेकिन रुककर इंतज़ार करने की तुलना में ये थोड़ा फायदेमंद है. इसके अलावा, शिपिंग कंपनियां महंगे सामानों को एयरलिफ़्ट करने पर भी विचार कर रही हैं.
स्वेज़ नहर इजरायल और ईजिप्ट की लड़ाई के दौरान आठ सालों तक बंद रही. राजनैतिक कारणों से. 1967 से 1975 तक. उससे पहले या बाद में कभी नहीं. दोनों विश्व युद्ध के समय भी नहर का काम चल रहा था. अबकी बार का संकट अकल्पनीय है. इसने इंसानी समझ के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है. इस पर विजय कब मिलेगी, ये तो आनेवाला समय ही बताएगा.