BYJU's. नाम तो सुना होगा. भारत के इस सबसे बड़े ऑनलाइन एजुकेशन स्टार्टअप ने अब मेडिकल और IIT एंट्रेंस की तैयारी करवाने वाली आकाश एजुकेशनल सर्विस लिमिटेड (AESL)को खरीद लिया है. यह डील लगभग 1 अरब डॉलर (करीब 7300 करोड़ रुपये) में हुई है. आइये जानते हैं BYJU's के इस मुकाम तक पहुंचने की कहानी.
जिस BYJU's ने आकाश इंस्टीट्यूट भी खरीदा, क्या है उसकी कहानी
कोचिंग पढ़ाने वाले एक टीचर ने इस तरह बदल दिया स्टार्टअप का गेम

लेफ़्ट में हैं शाहरुख़, बायजू’स के एक एड में. राइट में हैं विराट कोहली, टीम इंडिया की जर्सी पहने, जिसमें बायजू’स साफ़ लिखा है. और बीच में है बायजू’स के संस्थापक, बायजू रवींद्रन.
कैसे हुई BYJU's की शुरुआत
IIM की भर्ती परीक्षा में टॉप करने के बावज़ूद उसमें एडमिशन नहीं लेने वाले शख्स ने 2015 में इस ऐप की शुरुआत की. मार्च में 3,328 करोड़ से ज़्यादा की फ़ंडिंग पाकर बायजू’स का वैल्यूएशन 95 हजार करोड़ रुपए हो गया था. अब BYJU's फंड रेज़िंग से 4,500 करोड़ रुपए और जुटाने जा रहा है. इससे इस स्टार्टअप का वैल्यूएशन 1,500 करोड़ डॉलर (क़रीब एक लाख करोड़ रूपये) हो जाएगा. यूं महज़ 6 साल के अंदर ये वैल्यूएशन के मामले में पेटीएम के बाद भारत का सबसे बड़ा स्टार्टअप हो जाएगा. इस एजुटेक स्टार्टअप की ग्रोथ स्टोरी बेहद चौंकाने वाली है.
इस स्टोरी की शुरुआत का आसान भाषा में क्या मतलब है, इस ख़बर से क्या निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं, इसके क्या निहितार्थ हैं, ये जानने के लिए हमें ‘बायजू’स’ और उसकी सक्सेस स्टोरी को शुरू से समझना होगा. # क्या है BYJU's? अगर आप बायजू’स के बारे में नहीं जानते तो बता दें कि ये एक लर्निंग ऐप है. मतलब, जैसे आप कैब वाले ऐप इंस्टॉल करते हो, एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए. फ़ूड डिलीवरी वाले ऐप इंस्टाल करते हो खाना ऑर्डर करके के लिए. OTT ऐप इंस्टॉल करते हो मूवीज़ और वेब सीरीज़ देखने के लिए. वैसे ही लर्निंग ऐप इंस्टॉल करते हैं पढ़ाई करने के लिए. इस तरह के कॉन्सेप्ट, ऐप या कंपनी को ‘एडटेक’ कहा जाता है. मतलब ‘एजुकेशन + टेक’. हालांकि इन लर्निंग ऐप्स का भी अपना नीशे (स्पेशल्टी) होता है. जैसे कोई लर्निंग ऐप सिर्फ़ कंपटीटिव एग्ज़ाम की तैयारी करवाता है. कोई सिर्फ़ छोटे बच्चों के लिए है. ABCD, 1234 वग़ैरह सिखाने के लिए. किसी लर्निंग ऐप का फ़ोकस हॉबी या पर्सनैल्टी डिवेलपमेंट वग़ैरह सिखाने में है जैसे गिटार, बाग़बानी वग़ैरह. लेकिन बायजू’स ऐसे चुनिंदा लर्निंग ऐप्स में से एक है जिसमें आप लगभग सभी तरह के कोर्सेज़, सभी उम्र के लोगों के लिए पा सकते हैं. इनके ड्रॉप डाउन मेन्यू में आपको-# CBSE, NCERT, ICSE बोर्ड. # IAS, JEE, NEET के कंपटीटिव इग्ज़ाम. # किड्स लर्निंगजैसे तमाम कोर्स और ढेरों स्कॉलरशिप प्रोग्राम्स की लिस्ट मिल जाएगी. (डिस्क्लेमर: हालांकि मुझे ‘एमए फ़िलोसॉफ़ी’ का कोर्स नहीं मिला कहीं.) बायजू’स का दावा है ये कोर्सेज़ को ऐसे पढ़ाते हैं कि आपको पढ़ाई से प्यार हो जाएगा:
Fall in love with learning.# फ़्रीमियम है बायजू’स के पैसे कमाने का तरीका बायजू’स का बिज़नेस मॉडल (यानी कमाई करने का फ़ॉर्मेट) ‘फ़्रीमियम’ स्टाइल का है. फ़्रीमियम दरअसल दो शब्दों से मिलकर बना है. ‘फ़्री’ और ‘प्रीमियम’. इस मॉडल पर आपको ढेरों एप्स देखने को मिल जाएंगे. इनमें बेसिक सुविधाएं फ़्री दी जाती हैं, लेकिन अगर आपको एडवांस सुविधाएं चाहिए तो मासिक, अर्धवार्षिक या सालाना सब्स्क्रिप्शन लेना होता है. बायजू’स के बेसिक सुविधाओं में डेमो क्लास वग़ैरह शामिल होते हैं. प्रीमियम में फुल फ़्लेज्ड कोर्स और उससे जुड़ी पूरी हेल्प. पहले 15 दिनों का ट्रायल पीरियड होता है फिर स्टूडेंट्स को कोर्स ख़रीदना पड़ता है. या कहें कि कोर्स की फ़ीस देनी होती है. बायजू’स का एक आय का स्रोत ‘क्लासरूम टीचिंग’ भी है. वही जैसे पारंपरिक रूप से ट्यूशन दिए जाते रहे हैं. # किसने बनाया BYJU's को?
मैं शिक्षक अपनी इच्छा से और उद्योगपति संयोग से हूं. - बायजू रवींद्रनबायजू’स नाम सुनकर शुरू में आपको लग सकता है कि ऐप के नाम में ‘बाय’ यानी ख़रीद के संदर्भ में है. जैसे ‘बाय-हटके’. लेकिन ऐसा नहीं है. इस ऐप का नाम दरअसल इसके संस्थापक बायजू रवींद्रन (Byju Raveendran) के नाम पर है. बायजू रवींद्रन UK में जॉब करते थे. साथ ही कुछ स्टूडेंट्स की कैट के एंट्रेस इग्ज़ाम के लिए तैयारी भी करवाते थे. उसी दौरान उन्होंने कैट की परीक्षा दी और 100 परसेंटाइल मार्क्स ले आए. हम बात कर रहे हैं ‘कैट’ की. ये भारत की ही नहीं, दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है. ’शायद कोई तुक्का लग गया हो’, ये सोचकर उन्होंने एक बार फिर से कैट की परीक्षा दी, और फिर से 100 परसेंटाइल मार्क्स ले आए.
परसेंटाइल, पर्सेंटेज़ से इस तरह अलग होता है कि अगर आपके 100% मार्क्स हैं तो मतलब हुआ आपके 100 में से 100 मार्क्स हैं. जबकि अगर आपके 100 परसेंटाइल हैं तो ये निश्चित नहीं कहा जा सकता कि आपके 100 में से 100 मार्क्स हैं. लेकिन एक बात निश्चित कही जा सकती है कि आपके सबसे ज्यादा मार्क्स हैं, बाक़ियों के आपसे कम ही मार्क्स हैं, कुछेक के हो सकता है कि आपके बराबर हों. यूं 100 परसेंटाइल का मतलब ये हुआ कि अब बाक़ियों के मार्क्स 100 में से नहीं, आपके मार्क्स से तुलना करके कैल्क्यूलेट करके निकाले जाएंगे.तो बायजू रवींद्रन ने IIM की भर्ती परीक्षा में टॉप करने के बावज़ूद उसमें एडमिशन नहीं लिया. इसके बजाय वो लोगों को IIM के एंट्रेस की कोचिंग देने लगे. उनका ये पढ़ाई का मॉडल भी फ़्रीमियम स्टाइल का था. मतलब शुरू में स्टूडेंट्स को फ़्री में पढ़ाया, और जब पॉपुलरटी बढ़ने लगी तो चार्ज़ करने लगे. 2006 से 2011 के बीच बायजू के स्टूडेंट्स की संख्या 40 से बढ़कर 1,000 तक पहुंच गई. उनके एक स्टूडेंट ने उन्हें प्रेरणा दी कि अब वक्त आ गया है कि अपना वेंचर खोलने का. तब उन्होंने अपनी पत्नी दिव्या गोकुलनाथ के साथ मिलकर ‘थिंक एंड लर्न प्राइवेट लिमिटेड’ कंपनी बनाई. ये 2011 का साल था. और फिर पांच साल बाद, यानी 2015 में लॉन्च हुआ ‘बायजू’स: दी लर्निंग ऐप’.
उनका ये वेंचर कितना सफल रहा, इस पर हम आगे बात करेंगे, लेकिन अभी के लिए इतना जान लीजिए कि 2019 में ही बायजू रविंद्रन फ़ोर्ब्स की अरबपतियों की लिस्ट में शामिल हो चुके थे.
# बॉलीवुड, क्रिकेट और बायजू’स
भारत में दो चीज़ों का बोलबाला है. बॉलीवुड और क्रिकेट. अगर इन्हें कोई अपनी कंपनी के प्रमोशन का माध्यम बना ले तो दो चीज़ें सिद्ध हो जाती हैं. एक तो उस कंपनी के पास अकूत पैसे हैं, और दूसरा उसका अकूत बज़ बनने वाला है. और ये दोनों ही चीज़ें BYJU's के लिए लागू होती हैं. अब बात बायजू’स के इन दो जुनूनों के साथ रिश्ते के बारे में. पिछले क़रीब डेढ़ साल से यानी 5, सितंबर 2019 से भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी पर आपको जो बायजू’स लिखा दिखता है, वो कम से कम 31 मार्च, 2022 तक दिखेगा. क्यूंकि बायजू’स ने तब तक के इंडियन क्रिकेट टीम के ‘जर्सी राइट्स’ ख़रीद रखे हैं. असल में ये राइट्स पांच साल के लिए (मार्च 2017 से मार्च 2022) तक ओप्पो के पास थे. लेकिन ‘कुछ दिक़्क़तों’ के चलते उसने ये राइट्स थोड़े घाटे में BYJU's को बेच दिए. ये ठीक ऐसा ही था, जैसा वीवो ने IPL के राइट्स ड्रीम 11 को बेच दिए थे. जर्सी पर नाम छपवाने के लिए बायजू’स को कितने रुपए देने पड़े, इसके बारे में निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता. आप अंदाज़ा लगा लीजिए कि ओप्पो ने 5 साल के राइट्स 1,079 करोड़ रुपए में ख़रीदे थे. तो बचे हुए क़रीब आधे समय के राइट्स उसने कितने में बेचे होंगे. बात करें बायजू’स के बॉलीवुड कनेक्शन की तो आपको पता ही होगा कि इस ऐप के ब्रांड एंबेसडर शाहरुख़ खान हैं. इसके लिए शाहरुख़ को कितने पैसे मिले, इसका कहीं कोई ज़िक्र नहीं है. अनुमान भी नहीं. लेकिन अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि डील करोड़ों की होगी. लेकिन एक जानकारी दे दें कि बायजू’स ने क़रीब दो साल पहले 2019 में विज्ञापनों में 450 करोड़ रुपए के क़रीब खर्च किए थे.
# वुल्फ़ गुप्ता (Wolf Gupta)
अब बात एड, मार्केटिंग और प्रमोशन की आ गई है तो इसके चलते बायजू’स की एक बार हुई फ़ज़ीहत के बारे में भी जान लिया जाए. पिछले साल (2020 में) IPL के दौरान बायजू’स की सब्सिडियरी ‘वाइट हेट जूनियर’ के विज्ञापन आया करते थे. इनमें दिखाया जाता था कि कैसे छह साल के एक बच्चे चिंटू ने वाइटहेट जूनियर की मदद से कोडिंग सीखकर एक ऐप बना लिया था. विज्ञापनों में ये भी दिखाया गया था कि 12 साल का एक बच्चा वुल्फ़ गुप्ता, गूगल में आर्टीफ़िशियल इंटेलिजेंस रिसर्चर के रूप में काम कर रहा था. लेकिन सच बात तो दरअसल ये थी कि ये दोनों ही किरदार (चिंटू और वुल्फ़ गुप्ता) ख़ुद आर्टीफ़िशियल थे. पहले तो इन विज्ञापनों की ख़ूब ट्रोलिंग हुई, लेकिन फिर मामला कुछ ज़्यादा ही बढ़ गया. ASCI (एडवर्टाइज़िंग स्टेंडर्ड्स काउंसिल ऑफ़ इंडिया) ने इन विज्ञापनों को भ्रामक बताते हुए वाइटहेट जूनियर से इन्हें हटाने के लिए बोल दिया.
इन विज्ञापनों की बात ख़ासतौर पर इसलिए क्यूंकि आज भी सोशल मीडिया से लेकर कई अन्य पब्लिक फ़ोरम्स में गाहे बगाहे इस पर बहस देखने को मिल जाएगी कि क्या इतने छोटे बच्चे कोडिंग सीख सकते हैं, क्या उन्हें इतनी एडवांस कोडिंग सिखाई जानी चाहिए. चलिए अगर दोनों सवालों का उत्तर हाँ में हैं, तो भी क्या प्रोग्रामिंग के लिए एडवांस लॉजिक या एडवांस मैथ्स की ज़रूरत नहीं है. मतलब विज्ञापन तो छोड़िए, क्या इस कोर्स का स्ट्रक्चर ही भ्रमित करने वाला नहीं है?
ख़ैर ये विवादित विषय का हल्का सा इंट्रो भर था, कभी इस पर विस्तारपूर्वक स्टोरी करेंगे. अभी अपना फ़ोकस सिर्फ़ बायजू’स पर रखते हैं और अगले सेग्मेंट पर चलते हैं.
# कैसे तय होता है कंपनी का वैल्यूएशन?
लल्लन की एक कंपनी है. लल्लन को उस कंपनी से कितना प्रॉफ़िट कितना लॉस होता है, हमें नहीं पता. हमें ये भी नहीं पता कि वो कंपनी बनाती क्या है, करती क्या है. हमें बस इतना पता है कि एक दिन कचरा, लल्लन से कहता है कि मुझे अपनी कंपनी में 10% हिस्सेदारी दे दो. इसके एवज़ में 10 करोड़ रुपए ले लो. ठीक जिस दिन कचरा-लल्लन की ये डील फ़ाइनल होती है उसी दिन लल्लन की कंपनी का वैल्यूएशन हो जाता है 100 करोड़ रुपए. क्यूं? क्यूंकि अगर 10% शेयर का दाम 10 करोड़ तो पूरी कंपनी का दाम 100 करोड़. और पूरी कंपनी के दाम को ही कहते हैं कंपनी का वैल्यूएशन. सिंपल. अब लल्लन के पास आता है बुधिया. वो कहता है कि मुझे भी अपनी कंपनी में 10% हिस्सेदारी दे दो. लेकिन अबकी बार लल्लन 10% हिस्सेदारी के लिए बुधिया से 50 करोड़ रुपए मांगता है. और यूं कंपनी का वैल्यूएशन हो जाता है, 500 करोड़ रुपये. साफ़ है कि इस दौरान कचरा को अपनी हिस्सेदारी में 40 करोड़ का फ़ायदा भी हो जाता है. क्यूंकि उसने जिस 10% हिस्से के लिए क़भी 10 करोड़ रुपए दिए थे, अब उसी हिस्से के लिए लोग 50 करोड़ देने को तैयार हैं. तो देखा आपने, बिना ये जाने कि लल्लन की कंपनी क्या करती है, कितना कमाती है, उसको कितना प्रॉफ़िट लॉस होता है, हम लल्लन की कंपनी का वैल्यूएशन पता कर सकते हैं. हालांकि ये जो लल्लन, कचरा और बुधिया जैसे आंत्रप्रेन्योर हैं, वो काल्पनिक हैं, लेकिन रियल वर्ल्ड में भी ठीक ऐसा ही होता है. किसी स्टार्टअप में पहले शेयर लेने वाला ज़्यादा रिस्क ले रहा होता है. इसलिए उसे कम रुपयों में ज़्यादा शेयर मिल जाते हैं. लेकिन जैसे-जैसे फ़ंडिंग के अगले राउंड आते हैं, हिस्सेदारी की कीमत बढ़ती चली जाती है. यूं धीरे-धीरे कंपनी का वैल्यूएशन बढ़ता चला जाता है. ऐसा ही बायजू’स के केस में भी हुआ. और इसी के चलते आप समझ सकते हैं कि 4,500 करोड़ रुपए जुटाकर बायजू’स के पास करीब एक लाख करोड़ रुपये हो जाएंगे. ऐसा नहीं है. दरअसल होगा ये कि जिस भी व्यक्ति या संस्थान से बायजू’स 4,500 करोड़ रुपए जुटाएगी, उसके एवज़ में उसे इतने शेयर्स देगी कि 100% शेयर्स का मूल्य एक लाख करोड़ रुपये हो जाएगा. या पूरी कंपनी का वैल्यूएशन लगभग एक लाख करोड़ रुपये हो जाएगा. हाँ एक बात और. हमने लल्लन के उदाहरण में ये कहा था कि कंपनी के प्रॉफ़िट लॉस से, कंपनी के वैल्यूएशन में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. ये बात आपको ऊपर साधारण सी गणित से समझ में भी आ गई होगी. लेकिन एक चीज़ जानिए कि बेशक प्रत्यक्ष रूप से कंपनी के प्रॉफ़िट लॉस से वैल्यूएशन का कोई कनेक्शन न दिख रहा हो, लेकिन सोचिए कचरा या बुधिया, लल्लन की कंपनी में पैसे क्यूं लगा रहे हैं? वो भी पहले से 5 गुना? इसलिए ही, क्यूंकि या तो लल्लन की कंपनी मोटा पैसा कमा रही है, या फिर अभी मोटा पैसा नहीं कमा रही या लॉस में भी है तो भी उसका भविष्य बहुत उज्ज्वल है. यही बात बायजू’स के केस में भी लागू होती है. बायजू’स का बिज़नेस मॉडल से लेकर सेक्टर तक इतना यूनीक और पैसा कमाऊ है कि बड़े लोग और संस्थान इसमें खूब पैसे लगा रहे हैं. 2019 में बायजू’स प्रॉफ़िट कमाने वाला ऐप/कंपनी बन गई. BYJU's ऐप के रोज़ क़रीब 70,000 के करीब डाउनलोड होते हैं. दुनिया भर में इसे डेढ़ करोड़ के क़रीब लोग इस्तेमाल करते हैं. इसके नौ लाख के क़रीब पेड सब्स्क्राइबर हैं.
# बर्फ़ का गोला
चूंकि बायजू’स, IIT एंट्रेस वग़ैरह की तैयारी भी करवाता है, इसलिए मैं निश्चित हूँ कि उसके कोर्स में बर्फ़ के पहाड़ पर लुढ़काए गए गोले वाला सवाल भी ज़रूर होगा. होता क्या है कि अगर आप बर्फ़ के किसी पहाड़ पर बर्फ़ का गोला लुढ़काएं तो वो लुढ़कते हुए अपने साथ और बर्फ़ चिपका लेता है. बड़ा होता चला जाता है. लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि ये बर्फ़ का गोला जितना बड़ा होता जाता है, उसके और बड़े होने की दर भी तेज होने लगती है. क्यूंकि जैसे-जैसे उस गोले का आयतन बढ़ता है, उसमें चिपकने वाली बर्फ़ की मात्रा भी बढ़ने लगती है. लेकिन ये साइंस और मैथ्स की बात हम बायजू’स की केस स्टडी में क्यूं कर रहे हैं? वो इसलिए कि हम दरअसल उपमा देकर बताना चाहते हैं कि बायजू’स धीरे-धीरे कैसे छोटे से बड़ा और बड़े से विशाल होता चला गया. हम बताना चाहते हैं बायजू’स को मिलने वाली फ़ंडिंग की कहानी, जो शुरू में कम थी लेकिन जब बढ़ी तो ज़्यादातर बार पिछले रिकॉर्ड को तोड़ दिया. अगले कुछ पैरा पढ़िएगा, बड़े इंट्रेस्टिंग तरीक़े से बायजू’स की वैल्यूएशन बढ़ने का पता चलेगा आपको. बायजू’स की पहली फ़ंडिंग आरिन कैपिटल से आई. 2013 में. इसे सीरीज़ A फ़ंडिंग कहा गया. स्टार्टअप्स से जुड़े और टेक्निकल टर्म्स जानने के लिए आप हमारी ये स्टोरी पढ़ सकते हैं: जानिए आपको ख़ुद के स्टार्टअप के लिए पैसे कैसे और कहां से मिलेंगे? दूसरी फ़ंडिंग, यानी सीरीज़ B फ़ंडिंग आई सिक्योइया कैपिटल से. दो साल बाद यानी 2015 में. फिर 2016 में सीरीज़ C, D और E राउंड की फ़ंडिंग हुईं. इनमें से ‘सीरीज़ D’ फ़ंडिंग में बायजू’स को फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग और उनकी पत्नी प्रिसिला चान की ‘चान-जकरबर्ग इनिशिएटिव’ से फंडिंग मिली. इस संस्थान से फ़ंडिंग लेने वाली बायजू’स एशिया की पहली कंपनी बन गई. कंपनी का वैल्यूएशन 3,379 करोड़ रुपए हो गया. 2018 में सीरीज़ F की फ़ंडिंग में बेल्जियम की ‘वेरनिलीवेस्ट’ से 219 करोड़ रुपए जुटाने के बाद बायजू’स का वैल्यूएशन 4,389 करोड़ रुपए हो गया. इसके बाद 2017 में एक और राउंड (कॉर्पोरेट राउंड) की फ़ंडिंग हुई. फिर 2018 में वेंचर राउंड की फ़ंडिंग के बाद इसका वैल्यूएशन बढ़कर 100 करोड़ डॉलर हो गया. हमने ये वैल्यू डॉलर में इसलिए बताई, क्यूंकि अगर किसी स्टार्टअप का वैल्यूएशन 100 करोड़ डॉलर हो जाए तो उसे यूनिकॉर्न की उपाधि मिल जाती है. ये भारत का ग्यारहवाँ स्टार्टअप और पहली एडटेक कंपनी थी, जो दुनिया भर के यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हुई थी. रूपये में बताएं तो अब बायजू’स का वैल्यूएशन बढ़कर 7,315 करोड़ के क़रीब हो चुका था. और बर्फ़ के गोले का आयतन बढ़ने लगा था. इस कदर कि 2019 में ‘कतर इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी’ और आउल वेंचर्स से फ़ंडिंग लेने के बाद इसका वैल्यूएशन 41,600 करोड़ रुपए के क़रीब पहुंच गया. 2020 में कंपनी ने ‘जर्नल अटलांटिक’ और ‘टाइगर ग्लोबल’ से क़रीब 2,926 करोड़ रुपए जुटाए. यूं अपना वैल्यूएशन क़रीब 60,000 करोड़ रुपए कर लिया. लेकिन अभी साल ख़त्म होना बाकी था. बायजू’स का एक और फ़ंडिंग इंतज़ार कर रही थी. वो आई ‘ब्लैक रॉक’ और ‘टी रोव प्राइस’ से. जिसने कंपनी के वैल्यूएशन को 1,200 करोड़ डॉलर तक पहुंचा दिया. हमने फिर से डॉलर में बात इसलिए की क्यूंकि अब बायजू’स दुनिया की ऐसी 20 स्टार्टअप कंपनियों में से एक हो गई थी जिनका वैल्यूएशन 1,000 करोड़ डॉलर से ज्यादा हो. जैसे 100 करोड़ डॉलर के वैल्यूएशन को पार करने पर स्टार्टअप यूनिकॉर्न कहलाता है. वैसे ही 1,000 करोड़ डॉलर के वैल्यूएशन को पार करने पर स्टार्टअप, डेकाकॉर्न कहलाता है. इस 1,000 करोड़ डॉलर के अमाउंट को भी हम ‘हिंदी में’ बता देते हैं: क़रीब 73,150 करोड़ रूपये. और अंत में इसी साल, यानी 2021 के मार्च के महीने में ‘MC ग्लोबल एडटेक होल्डिंग्स’ से 3,328 करोड़ रुपए से ज़्यादा की फ़ंडिंग पाकर बायजू’स का वैल्यूएशन 95,102 करोड़ रुपए हो गया. बस एक फ़ंडिंग और, फिर ये हो जाएगी एक लाख करोड़ रुपए की कंपनी. हालांकि हमें पूरा यक़ीन है कि अगर आप ये ख़बर एक दो महीने बाद पढ़ेंगे तो शायद ये एक लाख करोड़ रुपए वाली बात भी ‘बीती रात’ की तरह गुज़र चुकी होगी.