रश्मि प्रियदर्शिनी पांडे
रश्मि प्रियदर्शिनी एक स्वतंत्र लेखक/पत्रकार हैं. मैथिली-भोजपुरी अकादमी की संचालन समिति की सदस्य हैं. उन्हें ज़ी नेटवर्क और हमार टीवी में पत्रकारिता का लंबा अनुभव प्राप्त है. कई मंचों से काव्य-पाठ करती आ रही हैं. आजकल 'बिदेसिया फोरम' नाम के डिजिटल प्लेटफॉर्म का संचालन कर रही हैं. दी लल्लनटॉप के लिए एक लंबी कहानी 'शादी लड्डू मोतीचूर' लिख रही हैं. शादी लड्डू मोतीचूर कहानी शहर और गांव के बीच की रोचक यात्रा है. कहानी के केंद्र में है एक विवाहित जोड़ी जिन्होंने शादी का मोतीचूर अभी चखा ही है. प्रस्तुत है इसकी 19वीं किस्त-

भाग 19- पूनम मीडिया की हो गई
रात की तल्ख़ वार्ता के दो ही नतीजे निकल सकते थे. या तो पूनम कभी ऑफिस नहीं जाती या सब कुछ अनदेखा कर जाती. सुबह अलार्म बजने के साथ ही चन्दर समझ गया कि पूनम ने निर्णय ले लिया है. चन्दर को बिस्तर कांटो जैसा लग रहा था. इतना असहाय उसने खुद को कभी महसूस नहीं किया था. पूनम में पत्रकारिता की इतनी तगड़ी जिजीविषा है ये उसने सोचा ही नहीं था. उसे तो हर क्षण भर का कौतुक लग रहा था पर यहां तो परिस्थितियां कुछ और ही होती जा रही थीं. हल्की थपकी पर उसने नींद से जागने का स्वांग किया. पूनम ने कहा- '
दरवाजा बंद कर लीजिए, मैं आफिस के लिए निकल रही हूं.'
चन्दर ने उसे जलती हुई आंखों से देखा पर पूनम निगाहें चुरा गई. चन्दर वापस कमरे में आया. उसने देखा किचन में उसका टिफ़िन, नाश्ता और एक तरफ भाप निकलती चाय रखी हुई थी. वो वही खड़ा कुछ देर सोचता रहा. उसे सिर्फ पूनम से शिकायत नहीं थी. वो खुद भी समझ नहीं पा रहा था कि आखिर वो ऐसा क्यों कर रहा है! क्या वो सिर्फ कहने को खुले विचारों वाला था? क्या स्त्रियों की आज़ादी, उनकी स्वावलंबिता पर उसके दावे खोखले थे? झूठे थे? अजीब फ़िल्मी सिचुएशन थी जहां चन्दर खुद से सवाल कर रहा था और खुद ही जवाब दे रहा था. वो एक ऐसे परिवार/समाज से था जहां स्त्रियों को इस रूप में उसने देखा ही नहीं था. दिल्ली में अपने पैरों पर खड़ी लड़कियां उसे अच्छी लगती थीं और शायद मन ही मन उसने पूनम को इस रूप में सोचा भी था. पर जब सच मे ऐसे हालात सामने आ खड़े हुए तो उसके अंदर सोया पड़ा दंभी पुरुष जाग उठा. सारे दावे किताबी साबित हुए. उसने मन ही मन खुद को समझाया कि अभी भी एक अस्त्र उसके हाथ मे है. जैसे ही पूनम मां बनेगी, अपने आप ये नौकरी के झमेले खत्म हो जाएंगे. तब तक खामख्वाह टेंशन लेकर अपना और पूनम का सुख चैन खत्म करना कहीं से समझदारी नहीं. उसने अपने कंधे ढीले छोड़े और चाय लेकर सामने खुली छत पर आ गया. बगल की छत पर वही मीडिया वाली लड़की पौधों को पानी दे रही थी. उसे देखते ही चन्दर के जबड़े कस गए. उसने रुख फेर लिया और कमरे में आकर ऑफिस जाने की तैयारी करने लगा.
उधर मेट्रो के सबसे पीछे वाले कोच में बैठी पूनम जैसे शून्य में निहार रही थी. अचानक उसे अम्मा की कही बात याद आ गई- '
घर से बिना खाये नहीं निकलना चाहिए, वरना दिन भर खाने को कुछ नहीं मिलता है. मन न हो तो भी थोड़ा सा मुंह जुठिया के ही निकलो लेकिन खाली पेट नहीं.' उसने बैग में हाथ डाला और अंदाज से पराठे का एक टुकड़ा तोड़ उसे आलू की भुजिया के साथ निगलने की कोशिश की. आंसुओं और कौर में ठनी हुई थी. दोनों गले में अटके पड़े थे. पूनम दोनों को निगलने की कोशिश में लगी थीं पर आंखें मानती कहां हैं! बरस पड़ीं. तेज़ खांसी के साथ चेहरा लाल गया. पूनम बेचैन हो उठी. उसे मन हुआ वो तत्काल अम्मा से बात करे लेकिन कर न सकी. जो अम्मा बिन कहे उसके मन की हर बात समझ जाती वो उसकी आवाज़ से तो भांप ही लेती कि वो रो रही है. उसने आंखें बंद करके मेट्रो की खिड़की से टेक लगा ली. मन पतंग सा उड़ता-उड़ता बचपन में जाकर आंगन में रुक गया. अम्मा की गोद मे बैठी वो खिलखिलाती हुई अम्मा के हाथों कौर-कौर खा रही है और अम्मा की ओर इशारा करती हुई गा रही हैं-
'ए चंदा मामा!
आरे आव' पारे आव'
नदिया किनारे आव'
सोने के कटोरिया में
दूध-भात लेले आव'
बबुआ के मुंह मे घुटूं'
वो आंखें बंद किये किये मुस्कुरा उठी. अचानक लगा कोई उससे कुछ कह रहा है. वो अचकचा कर देखने लगी.
'हंसते रहे हरदम तो पागल ही कहेंगे ये
जो रो दिए तो कह देंगे तुम्हें हंसना नही आता'
'क्या? आप? क्या कहा?' वो पलकें झपकाती पूछ बैठी
'हां. मैं! और ये शेर मैंने थोड़ी, 'नंद कुमार झा' जी ने कहा है. आप खुद में ही हंसे जा रही थी. लेकिन मैंने आपको पागल थोड़ी कहा!' ये सुमित था.
'आ...आप यहां क्या कर रहे हैं?' वो चिढ़ गई.
'लो. अब सुनने वाले ज़रूर आपको पागल कहेंगे. मेट्रो में कोई क्या करता है. हद है!'
सुमित की मुस्कुराहट से उसे और ज़्यादा चिढ़ होने लगी. पर वो रुका नहीं, बोलता रहा- '
देखिए हम दोनों की मंज़िल एक ही है. तो इस सफर में हमदोनों एक दूसरे के हमसफ़र हुए. क्या ही अच्छा हो अगर ये सफर प्यार से.' इतना सुनते ही पूनम का चेहरा तमतमा उठा. वो झटके से उठ खड़ी हुई और लेडीज़ कोच की ओर तेज़ी से चलने को हुई ही थी कि राजीव चौक से घुसने वाली भीड़ ने उसे अपनी जगह वापस धकेल दिया. अब तक सुमित गम्भीर हो चुका था.उसने उसे देखते हुए कहा- '
देखिए पूनम जी, शायद आप मेरे मज़ाक को कभी समझ नहीं पाएंगी. बेहतर होगा कि मैं ही आपसे सोच-समझ कर बात करूं, लेकिन हां, खाली पेट गुस्सा ज़्यादा आता है. कुछ खा लीजिए.' वो हैरानी से उसका चेहरा देखने लगी. अपनी बात कहकर सुमित ने कानों में लीड लगा ली. पूनम ने भी मोबाइल में नज़रें गड़ा लीं. उसे आज ग़ालिब की स्पेशल स्टोरी पर काम करना था.
वो दोनों भागते-दौड़ते ऑफिस पहुंचे.पता चला कैमरामैन सहित पूरी टीम शूट पर जाने को तैयार है. जल्दी-जल्दी साइन इन कर दोनों भागे. एक कैमरामैन और एक असिस्टेंट के अलावा पूनम, सुमित और ड्राइवर पांच जने एक गाड़ी में थे. सुमित की नज़र पीछे गई. क्या पूनम कैमरामैन के बगल में बैठ कर कुछ असहज सी है! उसने गौर किया पूनम गाड़ी के गेट से चिपकती ही जा रही है. साथ ही उसके माथे पर पसीने की बूंदें छलछला उठी हैं. शीशे में पूनम की एक एक गतिविधि को देखता सुमित अचानक गाड़ी रोकने को कहता है. सुमित ने देख लिया था कि अब पूनम शायद और बर्दाश्त न करके कुछ न कुछ रियेक्ट कर ही देगी. ऐसी ही बातें और उनकी चर्चाएं तूल पकड़ लेती हैं और ऑफिस में बेवजह बहस का मुद्दा बनती हैं. 'अरे यार! आज की स्टोरी पर थोड़ा डिस्कस करना है पूनम जी के साथ. भैया, आप आगे आ जाओ. मैं पीछे चला जाता हूं.'
ऐसा कह सुमित पीछे जा बैठा. पूनम ने चैन की सांस ली. पर वो नही जानती थी कि सुमित ने ऐसा उसके लिए किया है. थोड़ी ही देर बाद वो बल्लीमारान की गलियों में गालिब के कदमों के निशान ढूंढने में लगे थे. गालिब की हवेली से लेते हुए निज़ामुद्दीन में उनके मकबरे तक की शूटिंग में शाम हो आई. कैमरामैन इन पुराने घरों की छतों पर चढ़ कर शॉट लेने में लगे थे. पूनम और सुमित घूम-घूम कर इतिहास को वर्तमान में ढूंढने की कोशिश कर रहे थे. अंत मे पी.टी.सी. करना था. सुमित ने माइक लिया और गालिब के कुछ शेरों को पढ़ने के साथ स्टोरी समाप्त करनी चाही पर वो उन शेरों को बार-बार भूल जा रहा था. कुछ देर बाद पूनम ने कहा- 'सुमित जी,
आप
, रहिए अब ऐसी जगह चलकर जहां कोई न हो. ये ग़ज़ल क्यों नहीं पढ़ते? ये आसान भी है. ज़्यादा टेक नहीं लेने पड़ेंगे इसमे.' सबकी निगाहें पूनम की ओर दौड़ गई. पूनम ने दांतों तले जीभ दबा ली कि शायद ये ज़्यादा हो गया. सुमित ने कैमरामैन को इशारा करते हुए कहा- 'सर ,एक पूनम का भी पीटीसी ले लेते हैं. अगर सिन्हा सर को ठीक लगा तो उसे यूज़ कर लेंगे वरना मेरा तो है ही. कैमरामैन ने सुमित को मानीखेज़ अंदाज़ में देखकर मुस्कुराते हुए सहमति में सर हिला दिया. अगले ही पल पूनम माइक थामे कैमरे के सामने थी. उसे विश्ववास ही नहीं हो रहा था कि ये सपना है या हक़ीक़त! उसने अपने कांपते पैरों को संभाला और बड़े प्रभावी तरीके से बोलती चली गई-
'रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहां कोई न हो
हम-सुख़न कोई न हो और हम-ज़बां कोई न हो
बे-दर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिए
कोई हम-साया न हो और पासबां कोई न हो
पड़िए गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार
और अगर मर जाइए तो नौहा-ख़्वाँ कोई न हो'
इन्हीं गलियों में, इसी हवेली में अपनी बीमारी और तन्हाई के आखिरी दिनों में इस ग़ज़ल की रचना की होगी "मिर्ज़ा ग़ालिब" यानी "मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां" ने. आज भी गालिब की हवेली की हालत कुछ खास बेहतर नहीं है. 130 वर्ग गज में फैली यह हवेली जर्जर हालत में पड़ी हुई है. यहां न रोशनी है न कोई जिंदगी.पूनम और भी न जाने क्या-क्या बोलती चली गई जबकि सुमित बिना पलकें झपकाए उसे देखता ही रह गया. बहुत शानदार पीटीसी किया पूनम ने. अपनी बात खत्म कर जैसे ही पूनम ने सुमित की ओर सवालिया निगाहों से देखा, उसने आंखों ही आंखों में उसे शाबाशी दे डाली. पूनम खुश हो गई. पास आकर सुमित ने बनावटी शिकायती लहज़े में गालिब के ही शेर को जोरदार तरीक़े से लहराया-
'हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है'
सब ज़ोर से हंस पड़े. अबकी पूनम भी अपनी हंसी रोक न पाई. सब हंसते-मुस्कुराते गाड़ी की ओर बढ़ चले. पूनम ने पर्स में से साइलेंट कर के रखा हुआ मोबाइल निकाला. चन्दर के बीस मिस्ड कॉल थे.
…टू बी कंटीन्यूड!
भाग 1 दिल्ली वाले दामाद शादी के बाद पहली बार गांव आए हैं!
भाग 2 दुल्हन को दिल्ली लाने का वक़्त आ गया!
भाग 3 हंसती खिलखिलाती सालियां उसके इंतज़ार में बाहर ही बरसाती में खड़ी थीं
भाग 4 सालियों ने ठान रखा है जीजाजी को अनारकली की तरह नचाए बिना जाने नहीं देंगे
भाग 5 ये तो आंखें हैं किसी की... पर किसकी आंखें हैं?
भाग 6 डबडबाई आंखों को आंचल से पोंछती अम्मा, धीरे से कमरे से बाहर निकल गई!
भाग 7 घर-दुआर को डबडबाई आंखों से निहारती पूनम नए सफ़र पर जा रही थी
भाग 8 काश! उसने अम्मा की सुन ली होती
भाग 9 औरतों को मायके से मिले एक चम्मच से भी लगाव होता है
भाग 10 सजना-संवरना उसे भी पसंद था पर इतना साहस नहीं था कि होस्टल की बाउंडरी पार कर सके
भाग 11 ये पीने वाला पानी खरीद के आता है? यहां पानी बेचा जाता है?
भाग 12 जब देश में फैशन आता है तो सबसे पहले कमला नगर में माथा टेकते हुए आगे बढ़ता है
भाग 13 अगर बॉस को पता चला कि मैंने घूमने के लिए छुट्टी ली थी, तो हमेशा के लिए छुट्टी हो जाएगी
भाग 14 बचपन से उसकी एक ही तो इच्छा थी- 'माइक हाथ में थामे धुंआधार रिपोर्टिंग करना'
भाग 15 उसे रिपोर्टर बनना था रिसेप्शनिस्ट नहीं
भाग 16 ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? जॉब नहीं मिलेगी? यही न? बिंदास जा. इंटरव्यू दे. जो होगा, देखा जाएगा
भाग 17 इंटर्नशिप मिलने के बाद भी क्यों परेशान थी पूनम?
भाग 18 क्या होता है जब एक लड़की, जिसकी नई शादी हुई है, नौकरी ढूंढने जाती है
वीडियो- किताबवाला: चौचक दास्तानगो हिमांशु बाजपेयी ने सुनाए लखनउआ किस्से