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मोसाद के ‘दामाद’ ने एक कॉल से गेम पलट दिया!

मिस्र के राष्ट्रपति का दामाद कैसे बना मोसाद का जासूस?

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अशरफ़ मारवान को दुनिया के सबसे बेहतरीन जासूसों में से एक माना जाता है (तस्वीर- Getty/group194)

इज़रायल, 1948 में जब से इस देश का गठन हुआ, अपने पड़ोसियों से इसकी दुश्मनी रही है. कुल 7 बड़े युद्ध हो चुके हैं. जिनमें इज़रायल एक भी नहीं हारा. लेकिन साल 1973 में एक बार ऐसा मौक़ा आया, जब इज़रायल मुसीबत में पड़ गया था. उस साल मिस्र और सीरिया की सेनाओं ने मिलकर इज़रायल पर हमला कर दिया(Yom Kippur War). इज़रायल को एक रात पहले तक इस हमले की भनक तक नहीं थी. (Mossad spy)

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फिर आया एक फ़ोन कॉल. एक देवदूत का कॉल. एंजल- यही कोड वर्ड था, मोसाद के उस सीक्रेट एजेंट का, जिसने इज़रायल को बर्बादी से बचा लिया. और ये एजेंट और कोई नहीं. मिस्र के राष्ट्रपति का दामाद था. जिसका असली नाम था अशरफ़ मारवान. क्या थी अशरफ़ मारवान की कहानी? (Mossad Superspy Ashraf Marwan)

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Ashraf Marwan & Gamal Abdel Nasser
अशरफ़ मारवान की शादी मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति गमाल आब्देल नासेर की बेटी मोना के साथ हुई थी (तस्वीर- Anonymous/AP)

मोसाद को फोन कॉल 

जासूसी का ये खेल शुरू होता है एक फ़ोन कॉल से. लेकिन ये वो फ़ोन कॉल नहीं है जिसने 1973 युद्ध में इज़रायल को आगाह किया. ये उस घटना से 3 साल पहले की बात है. लंदन में तब हर जगह लाल रंग के टेलीफोन बूथ लगे रहते थे, जिनमें सिक्का डालकर आप फ़ोन कॉल कर सकते थे. साल 1970 में एक रोज़ 26 साल का एक शख़्स, ऐसे ही किसी टेलीफोन बूथ में कदम रखता है और फ़ोन मिलाता है. दूसरी तरफ़ इज़रायली दूतावास का एक कर्मचारी कॉल उठाता है. इधर से आवाज़ आती है,

‘मुझे मुख़ाबारत के किसी आदमी से बात करनी है.’

मुख़ाबारत यानी अरबी भाषा में 'मिलिट्री इंटेलिजेंस'. तुरंत ये खबर इज़रायल की ख़ुफ़िया एजेन्सी मोसाद(Mossad) तक पहुंचाई जाती है. मोसाद का एक अधिकारी दूतावास के कर्मचारी से पूछता है,

'क्या नाम बताया था उस शख़्स ने?'.

कर्मचारी जवाब देता है-

'उसने अपना नाम अशरफ़ मारवान बताया था'.

जावी जामीर तब मोसाद के हेड हुआ करते थे. जैसे ही उन्होंने ये नाम सुना, उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. वो लम्बे समय से अशरफ़ मारवान(Ashraf Marwan) को रिक्रूट करने की कोशिश कर रहे थे. अशरफ़ मारवान मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति गमाल आब्देल नासेर(Gamal Abdel Nasser) का दामाद था. 1970 में नासेर की मौत के बाद वो नए राष्ट्रपति अनवर सादात की सरकार में महत्वपूर्ण पद पर काम कर रहा था. जावी जामीर ने तुरंत मारवान के साथ लंदन में एक मीटिंग तय की. यहां मारवान ने मिस्र की सेना से जुड़े कई ख़ुफ़िया दस्तावेज दिखाए. जिसके बाद उसे मोसाद के लिए रिक्रूट कर लिया गया. और एक स्पेशल कोड नेम दिया गया- एंजल. मारवान ने इज़रायल की मदद कैसे की, उससे पहले जानते हैं, 

मिस्र के राष्ट्रपति का दामाद मोसाद का जासूस बनने के लिए क्यों तैयार हुआ?

अशरफ़ मारवान की कहानी पर यूरी बार-जोज़ेफ़ ने एक किताब लिखी है, ‘द एंजिल- द इजिप्शियन स्पाई हू सेव्ड इज़रायल’. इस किताब में जोसेफ लिखते हैं, पैसों का लालच और जोखिम उठाने के शौक़ ने उसे ऐसा करने के लिए उकसाया. मारवान की पैदाइश साल 1944 में हुई थी. उसके पिता मिस्र की सेना में जनरल हुआ करते थे. जब वो 21 साल का था, तब उसने काइरो यूनिवर्सिटी से केमिकल इंजिनीयरिंग की डिग्री ली. इसी दौरान उसकी मुलाक़ात मोना नासेर से हुई. मोना राष्ट्रपति गमाल आब्देल नासेर की बेटी थी. नासेर को जब दोनों के इश्क़ का पता चला, उन्होंने इस रिश्ते को मंज़ूरी नहीं दी. उन्हें लगता था, अशरफ़, पद और  ताक़त के लालच में उनकी बेटी से शादी करना चाहता है. लेकिन बेटी की ज़िद के आगे उन्हें झुकना पड़ा.

The Angel book writer Uri Bar-Joseph
'द एंजिल- द इजिप्शयन स्पाई हू सेव्ड इसराइल' के लेखक यूरी बार जोज़ेफ़ (तस्वीर- Amazon/wikimedia commons)

मारवान नासेर की सरकार में काम करने लगा. 1968 में मारवान और मोना का एक बेटा पैदा हुआ. और तीनों लंदन चले गए. लंदन में एक साल रहने के बाद नासेर ने उन्हें वापस काइरो बुला लिया. लंदन में मास्टर्स की डिग्री हासिल करने के लिए मारवान ने एक यूनिवर्सिटी में दाख़िला ले लिया था. जिसके चलते उसका अक्सर लंदन आना-जाना लगा रहता था. इसी बात का फ़ायदा उठाकर वो लंदन में अपने हैंडलर से मिलता और उन्हें ख़ुफ़िया जानकारी देता. जानकारी पहुंचाने के लिए वो कभी भी रेडियो सिग्नल का इस्तेमाल नहीं करता था.

मारवान जो भी जानकारी देता, वो सीधा इज़रायल की प्रधानमंत्री गोल्डा मीर की डेस्क तक पहुंचती थी. बार जोज़ेफ़ के अनुसार, मारवान से पहले किसी जासूस ने इतनी पुख़्ता और इतनी ढेर-सारी ख़ुफ़िया जानकारी मोसाद तक नहीं पहुंचाई थी. मारवान की दी हुई हर फ़ाइल,सबसे पहले प्रधानमंत्री गोल्डा मीर के डेस्क तक भेजी जाती थी. जबकि पहले रिवाज ये था कि इंटेलीजेंस उस जानकारी को खंगाले और उस पर अपनी टिप्पणी लिखकर प्रधानमंत्री को दे.

जोज़ेफ़ एक क़िस्से का ज़िक्र भी करते हैं जिससे इज़रायल के लिए मारवान की अहमियत का पता चलता है. हुआ यूं कि एक बार मारवान और उसकी पत्नी मोना का कुछ झगड़ा हो गया. मोसाद के लिए ये चिंता की बात थी. क्योंकि अगर ये रिश्ता टूट जाता तो मारवान की अहमियत भी कम हो जाती. और तब शायद उसे अपने पद से भी हटा दिया जाता. इस रिश्ते को बचाने के लिए मोसाद ने एक हीरे की अंगूठी ख़रीदकर मारवान को दी. ताकि वो इसे गिफ़्ट देकर अपनी पत्नी की नाराज़गी दूर कर सके.

द कॉन्सेप्टजिया

साल 1970 से 1973 तक मारवान ने मिस्र की सेना से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां मोसाद को दी. लेकिन उसकी असली परीक्षा हुई 1973 में. 5 अक्टूबर की तारीख़ थी. इस रोज़ मारवान ने अपने हैंडलर को कॉल कर एक शब्द कहा, केमिकल. इस कोड वर्ड का मतलब था, मिस्र और सीरिया की सेना इज़रायल पर हमला करने वाली है. मारवान ने आगे बताया कि हमला 6 तारीख़ शाम के 6 बजे शुरू होगा. हैंडलर ने ये बात इज़रायली डिफ़ेंस फ़ोर्सेस के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचा दी. लेकिन वहां एक बहस शुरू हो गई. इज़रायल की सेना के एक मेजर जनरल हुआ करते थे. जिनका नाम था एली जीरा. जीरा को इज़रायल में एक ख़ास सिद्धांत के लिए जाना जाता है. जिसे नाम दिया गया था, "द कॉन्सेप्टजिया". क्या था ये सिद्धांत?

1967 के युद्ध में इज़रायल ने मिस्र को ज़बरदस्त पटखनी दी थी. और एक ही दिन में मिस्र की पूरी एयर फ़ोर्स को तहस नहस कर दिया था. इसके बाद इज़रायल में ये माना जाने लगा कि बिना एयर सपोर्ट के मिस्र या सीरिया उन पर हमला करने का जोखिम नहीं उठाएंगे. ये सपोर्ट सिर्फ़ सोवियत संघ से मिल सकता था. सोवियत संघ से मिलने वाली हर मदद पर इज़रायल की नजर थी. इसलिए 1973 युद्ध के आख़िरी दिनों तक उन्हें हमले की बिलकुल उम्मीद नहीं थी.

Egypt's President Anwar Sadat & Israel's Prime Minister Golda Meir
मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद अनवर सादात (बाएं) और इसराइल की तत्कालीन प्रधानमंत्री गोल्डा मायर (दाएं) (तस्वीर- wikimedia commons)

इसी सिद्धांत पर विश्वास कर इज़रायल ने युद्ध के तमाम संकेतों की अनदेखी की. युद्ध के कुछ महीने पहले से ही मिस्र और सीरिया की सेना मोर्चा बना रही थीं. लेकिन इज़रायली फ़ौज के नेतृत्व ने इसे महज़ ट्रेनिंग एक्सरसाइज़ मानकर इग्नोर कर दिया. 4 तारीख़ को उन्हें खबर मिली कि सोवियत संघ मिस्र से अपने लोगों को वापस बुला रहा है. तब भी उन्होंने इस पर कोई ध्यान ना दिया. आख़िर में जब 5 तारीख़ की शाम अशरफ़ मारवान ने ये खबर दी कि हमला होने वाला है, तब जाकर इज़रायल की फ़ोर्सेस हरकत में आई.

मिस्र और सीरिया ने बड़ी चालाकी से हमले की तारीख़ 6 अक्टूबर रखी थी. क्योंकि इस रोज़ योम किपुर का त्योहार पड़ता था. जिसके चलते पूरे इज़रायल में छुट्टी थी. जब अचानक हमले की खबर आई, प्रधानमंत्री गोल्डा मीर ने आनन फ़ानन में सुबह 9 बजे युद्ध की तैयारियों के आदेश दिए और सभी सैनिकों को छुट्टी से वापस बुला लिया गया. अशरफ़ मारवान की खबर के अनुसार शाम 6 बजे हमला होने वाला था. लेकिन वो दोपहर दो बजे ही शुरू हो गया. इज़रायली फ़ोर्सेस इस हमले के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थी. इसलिए शुरुआत में उन्हें काफ़ी नुक़सान सहना पड़ा. हालांकि बात में भरपाई करते हुए वो मिस्र और सीरिया की फ़ौज को पीछे खदेड़ने में कामयाब रहे.

इस युद्ध में अंत में जीत इज़रायल की हुई. लेकिन बाद में इस युद्ध को लेकर इज़रायल में काफ़ी चिंतन भी हुआ कि इंटेलिजेंस में इतनी भारी चूक कैसे हुई. बार जोज़ेफ़ के अनुसार उस रोज़ अगर वक्त रहते अशरफ़ मारवान ने हमले की खबर ना दी होती तो इज़रायल को बड़ा घाटा उठाना पड़ सकता था. अशरफ़ मारवान ने आगे जाकर मिस्र की सरकार में कई महतपूर्ण पदों पर काम किया. उनकी सच्चाई शायद कभी सामने नहीं आती, लेकिन फिर 2002 में एली जीरा ने उनके नाम का खुलासा कर दिया.

कैसे मारा गया जासूस? 

1973 युद्ध के बाद इंटेलिजेन्स फ़ेलियर के लिए एली जीरा को इस्तीफ़ा देना पड़ा था. इस बात से नाराज़ होकर उन्होंने अशरफ़ मारवान के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया. उन्होंने दावा किया कि मारवान असल में एक डबल एजेंट था.  जीरा के अनुसार मारवान ने इज़रायल को जानबूझकर गलत खबर दी कि हमला 6 बजे होगा, जबकि हमला 2 बजे ही हो गया था. 
ऐसा ही कुछ मानना मिस्र के सुरक्षा विशेषज्ञों का भी था. जिनके अनुसार मारवान जानबूझकर इज़रायल को ग़लत जानकारी दे रहे थे.

मारवान एक डबल एजेंट था या नहीं, इसे लेकर इज़रायल में कई दशकों तक ये बहस चलती रही. हालांकि कभी भी उसके नाम का खुलासा नहीं किया गया. उसे हमेशा दामाद कहकर बुलाया जाता था. फिर 2002 में कुछ पत्रकारों ने कड़ियां जोड़ते हुए अख़बार में उनके नाम का खुलासा कर दिया. अपनी पहचान ज़ाहिर होने का ख़ामियाज़ा मारवान को अपनी जान से हाथ धोकर देना पड़ा. साल 2007 में लंदन की एक बिल्डिंग से नीचे गिरकर उनकी मौत हो गई.

Ashraf Marwan’s funeral in Cairo
मिस्र के काहिरा में राजकीय सम्मान के साथ निकाली गयी अशरफ़ मारवान की अंतिम यात्रा (तस्वीर- Nasser Nuri/Reuters/Corbis)

ये हत्या थी या दुर्घटना, ये बात भी पूरी तरह साफ़ नहीं हुई. आरोप दोनों तरफ से लगते रहे. मिस्र ने कहा, मोसाद ने उनकी हत्या की. वहीं इज़रायल का मानना था कि मिस्र के अधिकारी इस शर्मिंदगी से बचना चाहते थे कि पूर्व राष्ट्रपति का दामाद दुश्मन का जासूस है. इसलिए उन्होंने मारवान की हत्या कर दी. हत्या के क़यासों को इस बात से भी बल मिला कि 2007 से पहले भी मिस्र के तीन लोग ऐसे ही बिल्डिंग से गिरकर मर चुके थे.

अंत में किस्से का ख़ात्मा अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेन्सी CIA के पूर्व निदेशक, डेविड पीट्रियस की एक टिप्पणी से करते हैं. अभी कुछ रोज़ पहले यानी साल 2023 में 24 जून के रोज़ रूस में एक विद्रोह शुरू हुआ, जब रूस की प्राइवेट मिलिशिया -'वेग्नर ग्रुप’ के चीफ येवगेनी प्रिगोझिन ने मॉस्को की तरफ कूच कर दिया था. मामला बाद में शांत हो गया था. और प्रिगोझिन को रूस के पड़ोसी बेलारूस में शरण लेने भेज दिया गया था. इस घटना के चंद घंटे बाद पीट्रियस ने टिप्पणी करते हुए कहा,

‘प्रिगोझिन को खुली खिड़कियों के आगे बहुत सावधान रहना चाहिए.’

जासूसी की कहानियां अक्सर ऐसे खुली खिड़कियों में आकर बंद हो जाती हैं. अशरफ़ मारवान के साथ भी ऐसा ही हुआ. अशरफ़ की कहानी पर नेटफ़्लिक्स ने एक फ़िल्म बनाई है, The Angel नाम से. चाहे तो देख सकते हैं.

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