अगर फरवरी की ठंडी दोपहर में आप हुमायूं के मकबरे की सीढ़ियों पर बैठे हों या उसकी बगल में बनी सुंदर नर्सरी की हरियाली में टहल रहे हों, तो आपको एक बार समय में पीछे मुड़कर देखना चाहिए. क्योंकि ये जगहें हमेशा से ऐसी दिलकश नहीं थीं. हुमायूं का मकबरा अपनी बदहाली में वीरान पड़ा था. सुंदर नर्सरी का 'सुंदर' नाम बस नाम भर ही रह गया था. पहले वक्त ने इन पर गर्द जमाई, बाद में तेज़ रफ्तार ज़िंदगी ने इन्हें लोगों के जहन से मिटा सा दिया था.
आगा खान: दूर देस के वासी जो हमारी नस्लों को विरासत की कद्र करना सिखा गए
आगा खान 88 साल की उम्र में दुनिया और हिंदुस्तान को अलविदा कह गए. लेकिन उनकी संवारी हुई इमारतें आने वाली नस्लों को ये याद दिलाती रहेंगी कि एक दूर देस के वासी ने हमारी विरासत को बहाल किया था. उन्हें मुस्लिम समाजों और पश्चिमी दुनिया के बीच पुल बनाने वाला नेता माना जाता था.

लेकिन दिल्ली की इन धरोहरों को इनका पुराना वैभव वापस देने वाला भी जन्म ले चुका था. राजधानी दिल्ली से करीब 6 हजार किलोमीटर दूर स्विट्जरलैंड में. नाम- प्रिंस करीम आगा खान. जिन्होंने हिंदुस्तान की इन विरासतों को संवारने में सबसे अहम भूमिका निभाई. 1997 में उन्होंने अपनी संस्था आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर (AKTC) के ज़रिये इन जर्जर इमारतों को नई जिंदगी देने का बीड़ा उठाया. सरकार से हाथ मिलाया, इतिहासकारों से राय ली, और अगले 10 साल तक दिन-रात एक कर दिया.

इस मेहनत का नतीजा था हुमायूं के मकबरा का फिर शान से खड़ा हो जाना. सुंदर नर्सरी की सुंदरता में चार चांद का लग जाना. निज़ामुद्दीन बस्ती का फिर गुलजार हो जाना. वैसे सिर्फ हुमायूं मकबरे और सुंदर नर्सरी क्यों, दिल्ली के रहीम मकबरे से लेकर हैदराबाद के कुतुब शाही मकबरों तक, आगा खान की संस्था ने हिंदुस्तान की धरोहरों को फिर से चमकाने का काम किया है. न कोई सियासी फायदा, न कोई सरकार की कुर्सी—बस एक जुनून कि इतिहास जिंदा रहना चाहिए.
आगा खान 88 साल की उम्र में दुनिया और हिंदुस्तान को अलविदा कह गए. लेकिन उनकी संवारी हुई इमारतें आने वाली नस्लों को ये याद दिलाती रहेंगी कि एक दूर देस के वासी ने हमारी विरासत को बहाल किया था. उन्हें मुस्लिम समाजों और पश्चिमी दुनिया के बीच पुल बनाने वाला नेता माना जाता था, खासकर इसलिए क्योंकि उन्होंने राजनीति में सीधे दखल देने से परहेज़ किया.
भारत की कई ऐतिहासिक धरोहरों को बचायापैगंबर मोहम्मद के वंशज माने जाने वाले प्रिंस करीम आगा खान चतुर्थ AKTC के संस्थापक और अध्यक्ष थे. मंगलवार, 4 फरवरी को पुर्तगाल के लिस्बन में उनका निधन हो गया. वे इस्माइली समुदाय के 49वें धर्मगुरु थे. उनके नेतृत्व में ‘आगा खान डेवलपमेंट नेटवर्क’ (AKDN) ने दुनिया भर में शिक्षा, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण के लिए कई बड़े काम किए. भारत में भी उनकी छाप गहरी रही है. वो कहते थे, "हमारे यहां धन-संपत्ति इकट्ठा करने को बुरा मानने की कोई धारणा नहीं है."
साल 2012 में Vanity Fair को दिए एक इंटरव्यू में आगा खान ने कहा था,
"इस्लामी नैतिकता यह कहती है कि अगर खुदा ने आपको समाज में एक विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति बनने की क्षमता या सौभाग्य दिया है, तो आपकी समाज के प्रति नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है."
प्रिंस करीम आगा खान का जन्म 13 दिसंबर, 1936 को स्विट्जरलैंड के जिनेवा में हुआ था. वे इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद के सीधे वंशज माने जाते हैं. 1957 में अपने दादा सुल्तान महमूद शाह आगा खान की जगह इस्माइली समुदाय के आध्यात्मिक गुरु बने.
इस्माइली मुसलमानों का एक वैश्विक संप्रदाय हैं. इसके सदस्य विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और राष्ट्रीयताओं से आते हैं. ये लोग मध्य एशिया, मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया, उप-सहारा अफ्रीका, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में फैले हुए हैं.

1. हुमायूं का मकबरा और निजामुद्दीन बस्ती का कायाकल्प
16वीं सदी में बना ये शानदार मुगल मकबरा, जो ताजमहल से भी पहले का है, 2013 में अपनी असली शान में वापस लौटा. इस काम में पूरे छह साल लगे, दो लाख से ज्यादा कार्य दिन खर्च हुए और देशभर के माहिर कारीगरों ने मिलकर इसको संवारा.
1997 में भारत अपनी आज़ादी की 50वीं सालगिरह मना रहा था. तब आगा खान ने वादा किया था कि वो हुमायूं के मकबरे के बाग़ों को फिर से संवारेंगे. 2007 से शुरू हुई ये मुहिम सिर्फ मकबरे की मरम्मत तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसने आसपास के पूरे इलाके की कायापलट कर दी. AKTC ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और अन्य सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर कई ऐतिहासिक इमारतों का जीर्णोद्धार किया, 36 हेक्टेयर का सुंदर नर्सरी पार्क तैयार किया और हजरत निजामुद्दीन बस्ती के लोगों की ज़िंदगी बेहतर बनाने का काम किया.
हुमायूं मकबरे की मरम्मद के लिए करीब 10 लाख किलो कंक्रीट को इसकी छत से हटाया गया, दीवारों और फर्श से 20वीं सदी की सीमेंट की मोटी परतें निकाली गईं. गुंबद को वाटरप्रूफ करने के लिए पत्थरों के जोड़ों को फिर से चूने से भरा गया, बाग की चारदीवारी के गेट दोबारा बनाए गए और 21,000 वर्ग मीटर पर दोबारा प्लास्टर किया गया. 5400 वर्ग मीटर में लाल पत्थर फिर से जमाए गए, ताकि मकबरे का असली पैटर्न और ढलान दोबारा जिंदा हो सके.
इस मरम्मत का सबसे खास पहलू ये था कि इसे मुगल काल की असली कारीगरी के मुताबिक किया गया. मतलब, पुराने दौर के हुनर को जिंदा रखते हुए, उसी स्टाइल में फिर से कारीगरी करवाई गई. इसने कई कारीगरों को रोज़गार भी दिया और खत्म होती जा रही इस कला को भी नया जीवन मिला.
हुमायूं के मकबरे के साथ-साथ इसके आस-पास की कई ऐतिहासिक इमारतें भी संवारी गईं – नीला गुंबद, ईसा खान का मकबरा, बू हलीमा का बाग, अरब सराय के गेटवे, सुंदरवाला महल, बताशे वाला मकबरा समूह, चौसठ खंभा और हज़रत निज़ामुद्दीन बाओली.
2. कुतुब शाही मकबरे, हैदराबाद
अगर आप हैदराबाद गए हों और कुतुब शाही मकबरों की इमारतों को न देखा हो, तो समझिए आधा इतिहास छूट गया. ये वही जगह है जहां 16वीं सदी में दक्खन में कुतुब शाही सुल्तानों ने भी अपनी शानदार इमारतें खड़ी कीं. उसी समय उत्तर भारत में मुगलों के किले और मकबरे बन रहे थे.
2013 से आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर और तेलंगाना सरकार ने मिलकर इस ऐतिहासिक धरोहर को संवारने का काम शुरू किया. 8 साल तक चली मरम्मत के दौरान मकबरों की जर्जर दीवारों को ठीक किया गया, बावड़ियों को फिर से आबदार बनाया गया और बाग-बगीचों को पहले जैसी हरियाली दी गई. रास्तों और जल संरचनाओं की बहाली भी की गई ताकि इस जगह की ऐतिहासिक भव्यता बरकरार रहे.
इस संरक्षण कार्य से न सिर्फ इमारतों की उम्र बढ़ी, बल्कि पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए भी ये एक दिलचस्प स्थल बन गया. अब कोई यहां आता है, तो उसे कुतुब शाही दौर की झलक देखने को मिलती है– वही ऊंचे गुंबद, वही विस्तृत बाग और दक्खन की स्थापत्य कला की बारीकियां.
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3. अब्दुर रहीम खान-ए-खाना का मकबरा, दिल्ली
मुगल सेनापति और कवि अब्दुर रहीम खान-ए-खाना का मकबरा भी आगा खान ट्रस्ट के संरक्षण के बाद दोबारा अपनी भव्यता में लौटा. यह मकबरा हुमायूं के मकबरे से प्रेरित था और बाद में ताजमहल के निर्माण में भी इसकी वास्तुकला का प्रभाव दिखा.
आगा खान की पहली पहचान उनके परोपकारी कामों से है. हालांकि उनकी शख्सियत में और भी रंग थे. वे एक सफल बिजनेसमैन रहे. उन्हें घुड़दौड़ देखने का काफी शौक था. उनकी हॉर्स रेसिंग टीम ने कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं. आगा खान अरबपति थे. उनके पास निजी द्वीप, लग्जरी याच और निजी जेट भी थे.
पद्म विभूषण से सम्मानित
साल 2018 में आगा ख़ान को अपनी इमामत के हीरक जयंती समारोह (Diamond Jubilee) के मौके पर भारत आमंत्रित किया गया था. उसी साल उन्हें सुंदर नर्सरी का उद्घाटन करने के लिए बुलाया गया. इससे पहले वे सितंबर 2013 में हुमायूं के मकबरे के संरक्षण कार्यों के बाद उसका उद्घाटन कर चुके थे. 2015 में, उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था.
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