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न्यूटन क्यों खोज रहा था पारस पत्थर?

पारस पत्थर, प्रलय की तारीख़, अपने अंतिम दिनों में ये सब क्यों खोजने में लग गए आइज़ेक न्यूटन?

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सर आइज़ेक न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत और गति के नियमों की खोज की. भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है (तस्वीर- Wikimedia commons/Getty)

एक चिंगारी बुझी लेकिन बुझते बुझते एक दीपक को जला गयी. साल 1642 गैलीलियो ने अपनी अंतिम सांस ली और उसी साल जनम हुआ आइज़ेक न्यूटन का. वो शख्स जिसने गिरते हुए सेब को देखा और गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज कर डाली. जिसने गति के वो तीन नियम बनाये(Laws Of Motion), जिनसे सारी दुनिया चलती है. इतना तो हम सब जानते हैं लेकिन फिर इन्हीं न्यूटन की ज़िन्दगी का एक स्याह पहलु भी है, जिसने उनकी ज़िन्दगी के 20 साल अंधेरे में डुबा दिए. वो पारस पत्थर की खोज करने लगा. ढूढ़ने लगे वो द्रव्य जिसे पीकर इंसान अमर हो जाता है. और अंत में गणना  करने लगा उस तारीख़ की जिस रोज़ दुनिया ख़तम हो जाएगी. (Isaac Newton)

आज जानेंगे विज्ञान और जादू दोनों को अपनी हथेलियों पर लेकर चलने वाले भौतिकी के इस पितामह की कहानी. 

Statue of Isaac Newton, Trinity College
न्यूटन ने साल 1661 में, उन्नीस वर्ष की आयु में, ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज, इंग्लैंड में दाखिला लिया (तस्वीर- Wikimedia commons)

न्यूटन का बचपन 

न्यूटन की मां के अनुसार, जब वो पैदा हुआ तो इतना छोटा था कि एक मग में समा जाये। पैदा होने से पहले ही पिता की मृत्यु हो चुकी थी और पैदाइश के कुछ दिन बाद मां ने किसी और से शादी कर ली. न्यूटन की परवरिश उसके नाना नानी ने की. बचपन से ही काफी मेधावी था. 6 साल की उम्र में उसने अपना पहला मॉडल बनाया. एक चकरी जिस पर ऊपर चूहा घूमता था और नीचे आटा पिसकर निकल आता था. हालांकि मां के छोड़े जाने और पिता की मौत से उसे काफ़ी अकेला भी कर डाला था. कई साल बाद जाकर जब न्यूटन ने अपने द्वारा किए गए पापों की लिस्ट बनाई, उनमें एक जगह लिखा था,

"मैंने अपने सौतेले पिता और मां को ज़िंदा जला देने की धमकी दी थी".

न्यूटन जब स्कूल गया, वहां एक लड़का उसे बुली करता था. शुरुआत में उसके नम्बर भी कम आते थे. लेकिन फिर उस बुली लड़के को दिखाने के लिए उसने मेहनत करना शुरू किया और अच्छे नम्बरों में पास हुआ. इसी दौरान पांच साल तक उसने एक फार्मासिस्ट के यहां काम किया। यहीं से केमिस्ट्री का ऐसा शौक चढ़ा जो आगे जाकर जुनून में तब्दील हो गया. केमिस्ट्री में उस दौर में ऐल्कमी का चलन था. ऐल्कमी यानी केमिस्ट्री की ऐसी विधा, जिसमें पारस पत्थर, और अमरता देने वाले द्रव्य की खोज की जाती थी. हालांकि वो आगे की बात है. पहले चलते हैं, सीधे उस सब्जेक्ट की तरफ़, जिससे हम सभी न्यूटन को जानते हैं. यानी ग्रेविटी की खोज. 

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कैसे खोजी ग्रेविटी? 

आम धारणा है कि न्यूटन ने गिरता हुआ सेब देखा और ग्रेविटी का पता लगा लिया. लेकिन ये बात सही नहीं है. हज़ारों लोग रोज़ चीजों को गिरते हुए देखते थे. लेकिन न्यूटन वो पहला व्यक्ति था, जिसने सवाल पूछा, क्यों? कारण एक और भी था. ग्रेविटी की खोज से पहले न्यूटन से सालों तक ग्रहों की चाल पर शोध कर रहा था. 1661 में न्यूटन ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया. यहां उसने अरस्तु, प्लेटो, गैलीलियो, केप्लेर जैसे विचारकों के लिखे का अध्ययन किया. इनमें से योहानस केप्लर के लिखे का उस पर सबसे ज़्यादा असर हुआ. केप्लर ने ग्रहों की चाल का सिद्धांत देते हुए कहा था, सभी ग्रह सूरज के आसपास अंडाकार कक्षा में घूमते हैं. सिद्धांत तो था, लेकिन गणित नहीं थी, जो इसे प्रूव कर सके. यहीं पर एंट्री हुई न्यूटन की.

साल 1664 की बात है. पूरे पूरे इंग्लैंड में जब ब्यूबोनिक प्लेग की महामारी फैली और न्यूटन को कैंब्रिज छोड़कर घर लौटना पड़ा. एक रोज़ आंगन के बैठे बैठे जब न्यूटन केप्लर के नियमों के बारे में सोच रहा था, उसने एक सेब गिरता हुआ देखा. विलियम स्टकली, अपनी किताब, “Memoirs of Sir Isaac Newton’s Life”. में लिखते हैं,

गर्मियों के मौसम में एक रोज़ खाने के बाद हम लोग बाहर जाकर गार्डन में बैठ गए. और एक सेब के पेड़ के नीच बैठकर चाय पीने लगे. न्यूटन में मुझे बताया कि कई साल पहले वो ऐसे ही एक पेड़ के नीचे बैठकर सोच रहा था, जब अचानक एक सेब गिरा और उसके दिमाग़ में पहली बार ग्रेविटी का ख़्याल आया था. ख़्याल ये था कि जो बल इस सेब को धरती की तरफ़ खींच रहा है, क्या वही ग्रहों को अपनी कक्षा में बनाकर रखता है. इस सवाल का हल ढूँढने के लिए न्यूटन ने एक थॉट एक्सपेरिमेंट ईजाद किया. जो कुछ इस प्रकार था.

मान लो एक बहुत ही ऊंचे पहाड़ पर एक बड़ी सी तोप रखी है. अब यदि आप इस तोप से एक गोला फ़ायर करोगे तो क्या होगा. ज़ाहिर है गोलाकुछ दूर सीध में जाएगा, और फिर नीचे की ओर गिरने लगेगा. अगर इस गोले की गति बढ़ा दी जाए तो क्या होगा, गोला और आगे जाएगा. और फिर नीचे गिर जाएगा. लेकिन अगर गोले की गति बढ़ती चली जाए, तो एक निश्चित गति के बाद वो वापस धरती पर नहीं आएगा बल्कि चांद की तरह धरती के चक्कर लगाने लग जाएगा. आज इस गति को हम ऑर्बिटल वेलॉसिटी कहते हैं. 

Newton's apple tree
पेड़ से नीचे गिरते हुए सेब को देखकर न्यूटन के मन में गुरुत्वाकर्षण का विचार आया और आगे जाकर उन्होंने इसे सारी दुनिया के सामने प्रस्तुत किया (तस्वीर- Wikimedia commons)

इस थॉट एक्सपेरिमेंट के आधार पर न्यूटन ने ग्रेविटी का सिद्धांत खोज निकाला. लेकिन ये बात उन्होंने किसी को बताई नहीं. क्यों? क्योंकि गणित में किसी चीज़ को प्रूव करने के लिए इक्स्पेरिमेंट की ज़रूरत होती है. और उससे भी पहले चाहिए होती है एक थियोरी. थियोरी भी सिर्फ़ उसे कहा जाता है, जो गणित और लॉजिक पर खरी उतरे. और न्यूटन को जिस गणित की ज़रूरत थी, वो तो अभी तक बनी ही नहीं थी. न्यूटन ने कहा, चलो कोई नहीं, गणित भी बना लेंगे.

पारस पत्थर की खोज 

अगले तीन साल तक न्यूटन ने अपने आप को पूरी तरह पढ़ाई में झोंक दिया और इन तीन सालों, 1664 से 1667 को न्यूटन ने "एनस मिराबिलिस" का नाम दिया. यानी वो जादुई वर्ष जिनमें न्यूटन ने एक बिलकुल नई गणित, कैलकुलस ईजाद की. गति के तीन सिद्धांत खोजे और ग्रेविटी की एकवेशंस भी लिख डाली. इसके अलावा इसी दौरान न्यूटन ने ये भी खोज निकाला कि जिसे हम सफ़ेद प्रकाश समझते हैं, वो असल में 7 रंगों से मिलकर बना है. 1667 तक न्यूटन ने जो हासिल कर लिया था, वो उन्हें दुनिया का सवर्कालीन वैज्ञनिक बनाने के लिए काफ़ी था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

बल्कि इन सब सिद्धांतों को पब्लिश करने में न्यूटन को 20 साल का वक्त लग गया. 20 साल बाद, 5 जुलाई की तारीख़ को उन्होंने अपनी पहली किताब पब्लिश की. इस किताब का नाम था, Mathematical principles of Natural Philosophy. इस किताब के छपने के बाद न्यूटन का दुनिया भर में नाम हो गया. लेकिन उन 20 सालों का क्या जो गुमनामी में चले ग़ए. 
ये साल न्यूटन में धार्मिक पुस्तकें पढ़ने में गुज़ार दिए? ऐसा क्यों?

ये सब हुआ एक रिर्सच पेपर के चक्कर में. साल 1671 में न्यूटन ने रॉयल सोसाइटी के सामने एक रिसर्च पेपर पेश किया. जिसमें उन्होंने प्रकाश के सात रंगों में बंटे होने का सिद्धांत दिया था. इसी रिसर्च पेपर को लेकर उनकी रॉयल सोसाइटी के एक मेम्बर रॉबर्ट हुक से ठन गई. एक कठिन बचपन से गुज़रने के कारण न्यूटन काफ़ी सेंसिटिव थे. और अपनी निंदा बर्दाश्त नहीं कर पाते थे. इसलिए जब रॉबर्ट हुक ने उसका विरोध किया. उन्होंने खुद को दुनिया से काट लिया. एक कमरे में बंद हो गए धार्मिक और जादू टोने की किताबों के साथ दिन बिताने लगे. इस दौरान उन्होंने पारस पत्थर की खोज शुरू कर दी. ज्योतिष में इंट्रेस्ट लेने लगे. बल्कि उनके लिखे से पता चलता है कि उन्होंने प्रलय की तारीख़ की भी गणना कर ली थी. रोमन साम्राज्य के सालों और तमाम पैग़म्बरों की आयु मिलाकर उन्होंने लिखा, दुनिया साल 2060 में नष्ट हो जाएगी.

Dispersive Prism Illustration
साल 1666 में न्यूटन ने प्रकाशिकी का अध्ययन किया, उन्होंने प्रिज्म का प्रयोग करके यह समझाया की सूर्य का प्रकाश इंद्रधनुष के रंगों से मिलकर बना हुआ है (तस्वीर- Wikimedia commons)

दक़ियानूसी का ये सिलसिला शायद यूं ही बरकरार रहता. वो तो भला हो एक दूसरे वैज्ञनिक का, जो न्यूटन को इस जादू टोने से बाहर लाया. इस वैज्ञनिक का नाम था एडमंड हेली. हेली के नाम पर हेली's कमेट का नाम आपने सुना होगा. 1684 में एक रोज़ हेली न्यूटन से मिलने आए. ये पूछने के लिए कि ग्रहों की कक्षा अंडाकार क्यों होती है, गोल क्यों नहीं. लेकिन उन्होंने देखा, न्यूटन दूसरी ही दुनिया में खोए हुए हैं. हेली के सवाल ने न्यूटन को नींद से जगाया साथ ही उनके अंदर विज्ञान के लिए एक नई आग पैदा कर दी. न्यूटन की वापसी हुई. वो दोबारा शोध में लग गए.

न्यूटन से दुश्मनी महंगी पड़ी 

इस वापसी का एक कारण और भी था. न्यूटन को पता चला कि एक दूसरा गणितज्ञ कैलकुलस की खोज का दावा कर रहा है. इन गणितज्ञ का नाम था, गाटफ्रीड विलहेल्म लाइबनिज. लाइबनिज में न्यूटन के बीच कैलकुलस का श्रेय लेने के लिए एक लम्बी लड़ाई चली. जिसके बाद अंत में इसका श्रेय न्यूटन को मिला. हालांकि एक बात ये भी है कि जिस रिपोर्ट ने न्यूटन को श्रेय दिया, वो खुद न्यूटन ने ही लिखी थी. आज कैलकुलस का श्रेय दोनों को दिया जाता है. और माना जाता है कि दोनों ने अपनी अलग अलग खोज की थी. और किसी ने किसी का कुछ चुराया नहीं था.

बहरहाल न्यूटन को दुनियाभर में पहचान मिली अपनी उस किताब से जिसे 1687 में छापा था. प्रिंसिपिया नाम से जाने जानी वाली इस किताब को आज भी गणित की सबसे महान किताब माना जाता है. इस किताब से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है. वो सुनिए. प्रिंसिपिया जब छपी, न्यूटन का एक पुराना दुश्मन फिर श्रेय लेने आ गया. ये वही रॉबर्ट हुक थे, जिनके कारण 1671 में न्यूटन ने विज्ञान की दुनिया छोड़ दी थी. प्रिंसिपिया छपते ही उन्होंने दावा किया कि ग्रैविटी की खोज उन्होंने भी की है, इसलिए किताब में उनका नाम भी लिखा जाना चाहिए. किताब में नाम तो न्यूटन ने नहीं लिखा, एक काम ये ज़रूर किया कि रॉबर्ट हुक का चेहरा ही मिटा दिया. वो ऐसे कि रॉयल सोसायटी में रॉबर्ट हुक की एक पेंटिंग टंगी रहती थी, न्यूटन जब इस सोसायटी के अध्यक्ष बने, उन्होंने हुक की पेंटिंग उतारी और उसे नष्ट कर दिया. कमाल की बात ये कि हुक की ये इकलौती तस्वीर थी. इसलिए रॉबर्ट हुक कैसे दिखते थे, ये आज तक ठीक-ठीक किसी को पता नहीं है.

एक और किस्सा है, न्यूटन के नाम से जुड़ा हुआ. न्यूटन को सर आइजैक न्यूटन के नाम से बुलाया जाता है. सर की उपाधि उन्हें ब्रिटेन की राजशाही से मिली. लेकिन इसलिए नहीं कि वो विज्ञान के दिग्गज थे. बल्कि इसलिए क्योंकि उन्हें ब्रिटिश कोषागार में करेंसी छापने की ज़िम्मेदारी मिली हुई थी. ये ज़िम्मेदारी न्यूटन को इसलिए दी गई क्योंकि उस दौर में करेंसी को लेकर काफ़ी घपला चल रहा था. जालसाज़ों की पौ बारह थी. जिसके कारण करेंसी के हर 10 सिक्कों में से एक नक़ली निकलता था. इसके अलावा एक बड़ी दिक़्क़त थी कि सिक्का जितने दाम का हुआ करता था, उसमें लगने वाली धातु की क़ीमत उससे ज़्यादा होती थी. जिसके चलते लोग सिक्के गलाकर धातु बेच डालते थे. न्यूटन ने ज़िम्मेदारी सम्भालते हुए ब्रिटेन का पहला डीमोनेटाइजेशन  किया. उन्होंने सभी सिक्कों को वापस जमा कर नए सिक्के ढलवाए. और फ़र्ज़ी सिक्के बनाने वालों पर ऐसी कड़ाई बरती कि कइयों को तो इस जुर्म में सीधा फ़ांसी पर ही चढ़ा दिया.

Newtons Principia
साल 1687 में न्यूटन द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका' विज्ञान की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकों में गिनी जाती है (तस्वीर- Wikimedia commons)

पैसों के मामले में लोगों से इतनी सख़्ती बरतने वाले न्यूटन का हालांकि खुद का रिकार्ड कुछ ख़ास अच्छा नहीं था. अपने अंतिम दिनों में उन्हें पैसे इन्वेस्ट करने का बुख़ार चढ़ा और इस चक्कर में अपना सारा पैसा डुबा दिया. हुआ यूं की न्यूटन ने साउथ सी नाम की एक कम्पनी में पैसा इन्वेस्ट किया. ये कम्पनी साउथ अमेरिका में व्यापार करती थी. न्यूटन ने इस कम्पनी के शेयर ख़रीदे. और जल्द ही शेयरों का दाम 10 गुना हो गया. मौक़े का फ़ायदा उठाते हुए न्यूटन ने शेयर बेच डाले और मोटा मुनाफ़ा कमा लिया. लेकिन जैसी ही न्यूटन ने अपने शेयर बेचे, शेयर का दाम और बढ़ने लगा. पीछे ना छूट जाऊं, इस डर से न्यूटन ने एक बार फिर कम्पनी के खूब सारे शेयर ख़रीद मारे. जैसे ही न्यूटन ने शेयर ख़रीदे, कम्पनी का ग़ुब्बारा फूट गया. और उनके सारे पैसे डूब गए. शेयर के दाम बड़े क्यों, और अचानक घटे क्यों. न्यूटन तमाम गुणा भाग लगाकर भी इसका हिसाब लगा नहीं पाए. और अंत में बोले,

“मैं अंतरिक्ष में घूमते पिंडो की गति नाप सकता हूं, लेकिन लोगों का पागलपन नहीं.”

अपनी तमाम खोजों के चलते भौतिकी के पितामह माने जाने वाले न्यूटन की मृत्यु साल 1727 में हुई. अपने अंतिम दिनों में वो पारस पत्थर की खोज में लगे हुए थे. मौत के बाद जब उनके बालों के सैम्पल को जांचा गया तो उसमें मर्करी के निशान मिले. मर्करी अपने आप में ज़हरीला होता है. और माना जाता है कि इसी के कारण न्यूटन के मस्तिष्क पर काफ़ी प्रभाव पड़ा और जिंदगी भर वो कोई करीबी रिश्ता नहीं बना पाए. पारस पत्थर की खोज करने वाल वैज्ञनिक इस खोज में सफल नहीं हो पाया लेकिन खुद पारस ज़रूर साबित हुआ. जिसे आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिकों ने छुआ और सोने से भी क़ीमती खोजें कर डालीं.

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